प्रताप सोमवंशी ने दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली में स्थानीय संपादक के पद पर ज्वाइन कर लिया है। वे वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी को रिपोर्ट करेंगे। प्रताप अभी तक अमर उजाला, कानपुर में स्थानीय संपादक पद पर कार्यरत थे। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 20 दिसंबर 1968 को जन्मे प्रताप सोमवंशी समकालीन हिंदी पत्रकारिता के प्रतिभाशाली संपादकों में शुमार किए जाते हैं। इलाहाबाद में पढ़े-लिखे प्रताप पत्रकारिता में 18 वर्षों से सक्रिय हैं। वे एक कवि के तौर पर भी जाने जाते हैं। उनकी कविताओं का कन्नड़, बांग्ला और उर्दू में अनुवाद हो चुका है। प्रताप के हिंदुस्तान ज्वाइन करने की सूचना प्रधान संपादक शशि शेखर ने एक मेल के जरिए पूरे ग्रुप के संपादकीय विभाग को दी है। इस आंतरिक मेल की एक प्रति भड़ास4मीडिया के पास भी है, जिसे यहां हू-ब-हू प्रकाशित किया जा रहा है-
Dear Colleagues,
Since the revamp of the paper in 2005, our Hindi daily Hindustan has grown from strength to strength, emerging as one of the fastest growing daily newspapers in the country with respect to both readership and revenue.
This growth is backed by a dramatic increase in our brand footprint.
To further strengthen the Hindustan Editorial leadership team, I am pleased to announce the joining of Pratap Somvanshi as Resident Editor, Delhi. He is a postgraduate in Hindi Literature. His last assignment was with Amar Ujala as Resident Editor – Kanpur. He has earlier worked with Jansatta and Dainik Bhaskar. Pratap also did a stint with webdunia.com as Chief of Bureau. In 1999, Panos Institute, London selected him for South
asia media fellowship, for special study done on Women working in Silica Mines. He was also awarded K C Kulis International media merit Award for 2007on a series done on Drought in Bundelkhand region. Pratap is married to Pratima and has a son Manthan. He will be reporting to Pramod Joshi.
Shashi Shekhar
पेश हैं प्रताप की दो कविताएं…
सरासर झूठ बोले जा रहा है
सरासर झूठ बोले जा रहा है
हुंकारी भी अलग भरवा रहा है
ये बंदर नाचता बस दो मिनट है
ज्यादा पेट ही दिखला रहा है
दलालों ने भी ये नारा लगाया
हमारा मुल्क बेचा जा रहा है
मैं उस बच्चे पे हंसता भी न कैसे
धंसा कर आंख जो डरवा रहा है
तुझे तो ब्याज की चिन्ता नही है
है जिसका मूल वो शरमा रहा है
सुना है आजकल तेरे शहर में
जो सच्चा है वही घबरा रहा है
कुछ दोहे
डूब मरूंगी देखना ताल-तलैया खोज।
भइया शादी के लिए तुम रोए जिस रोज।।
अम्मा रोये रात भर बीवी छोड़े काम।
मुंह ढांपे जागा करें दद्दा दाताराम।।
चाचा तुम करने लगे रिश्तों का व्यापार।
आए जब से दिन बुरे आए न एको बार।।
छोटे तुम चिढ़ जाओगे कह दूंगा बेइमान।
आते हो ससुराल तक हम हैं क्या अनजान।।
भाभी बेमतलब रहे हम सबसे नाराज।
उसको हर पल ये लगे मांग न लें कुछ आज।।
पूरा दिन चुक जाए है छोटे-छोटे काम।
कब लिख्खे छोटी बहू खत बप्पा के नाम।।
प्रताप की अन्य कविताओं को पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं- कविता कोश