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हिंदुस्तान से पीलापन और डीएलए से सुबह गायब

बिजनेस भास्कर में भी काफी कुछ बदलाव : अखबारों की दुनिया से दो खबरें हैं. पहली तो यह कि आज हिंदुस्तान ने अपने रंग-रूप और गेटअप में थोड़ा बदलाव किया है. शशि शेखर के आने के बाद लेआउट में यह पहला बदलाव है. इस बदलाव को सबसे पहले आगरा एडिशन में आजमाया गया. आगरा में अखबार की री-लांचिंग के दौरान इस नए गेटअप को लागू किया गया. हालांकि आगरा से जो खबरें हैं उसके मुताबिका वहां की री-लांचिंग पूरी तरह पिट गई है और इस अखबार को आगरा के जमे-जमाए बाकी अखबारों से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. तो गेटअप में इसी बदलाव को अब अखिल भारतीय स्तर पर लागू कर दिया गया है.

<p align="justify"><strong>बिजनेस भास्कर में भी काफी कुछ बदलाव : </strong>अखबारों की दुनिया से दो खबरें हैं. पहली तो यह कि आज हिंदुस्तान ने अपने रंग-रूप और गेटअप में थोड़ा बदलाव किया है. शशि शेखर के आने के बाद लेआउट में यह पहला बदलाव है. इस बदलाव को सबसे पहले आगरा एडिशन में आजमाया गया. आगरा में अखबार की री-लांचिंग के दौरान इस नए गेटअप को लागू किया गया. हालांकि आगरा से जो खबरें हैं उसके मुताबिका वहां की री-लांचिंग पूरी तरह पिट गई है और इस अखबार को आगरा के जमे-जमाए बाकी अखबारों से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. तो गेटअप में इसी बदलाव को अब अखिल भारतीय स्तर पर लागू कर दिया गया है. </p>

बिजनेस भास्कर में भी काफी कुछ बदलाव : अखबारों की दुनिया से दो खबरें हैं. पहली तो यह कि आज हिंदुस्तान ने अपने रंग-रूप और गेटअप में थोड़ा बदलाव किया है. शशि शेखर के आने के बाद लेआउट में यह पहला बदलाव है. इस बदलाव को सबसे पहले आगरा एडिशन में आजमाया गया. आगरा में अखबार की री-लांचिंग के दौरान इस नए गेटअप को लागू किया गया. हालांकि आगरा से जो खबरें हैं उसके मुताबिका वहां की री-लांचिंग पूरी तरह पिट गई है और इस अखबार को आगरा के जमे-जमाए बाकी अखबारों से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. तो गेटअप में इसी बदलाव को अब अखिल भारतीय स्तर पर लागू कर दिया गया है.

मृणाल पांडेय के जमाने का पीलापन हिंदुस्तान अखबार से गायब कर दिया गया है. शशि शेखर के जमाने की स्याही का रंग अखबार में चस्पा किया जा चुका है. कालम साइज भी बदला है. पहला अखबार को सात कालम में डिवाइड कर लेआउट बनाया जाता था. अब ट्रेडीशनल आठ कालम में अखबार विभाजित कर दिया गया है. कुछ लोगों को कहना है कि हिंदुस्तान अखबार का लुक कुछ-कुछ पुराने अमर-उजाला जैसा हो गया है. वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि नया बदलाव आंखों को सुकून दे रहा है.

लेआउट और गेटअप बदलने की बात चली है तो बिजनेस भास्कर का भी जिक्र करना लाजिमी होगा. इस अखबार ने 18 जनवरी को अपना लुक बदला है. रंग और गेटअप बदलने की जानकारी हिंदुस्तान ने भले ही अपने पाठकों को न दी हो पर बिजनेस भास्कर ने पहले पेज पर एक संपादकीय के जरिए अपने पाठकों को सूचित किया है. इन बदलावों के बारे में बिजनेस भास्कर के संपादक का कहना है कि ये परिवर्तन व्यापक सर्वेक्षण और पाठकों के सुझावों को ध्यान में रखकर किए गए हैं. 18 जनवरी को बिजनेस भास्कर के पहले पेज पर बदलावों के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें जो कुछ खास बातें हैं, वो इस प्रकार हैं…

….नए कलेवर की शुरुआत आपको प्रथम पृष्ठ से ही दिखेगी. इसके पहले कालम को इस तरह से तैयार किया गया है कि यहां पूरे अखबार की सभी अहम खबरें आप आसानी से पढ़ लें…..

…मार्केट मंत्र नाम से हमने एक नया पेज नं-2 शुरू किया है. इस पेज पर शेयरों में निवेश के लिए विशेषज्ञों के टिप्स के अलावा महत्वपूर्ण शेयरों में होने वाली तब्दीली दी जाएगी.

…कारपोरेट पेज नं. 3 पर हम औद्योगिक क्लस्टर पर एक नया सेक्शन ‘धंधे की बात’ शुरू कर रहे हैं. संपादकीय पृष्ठ पर भी एक नया कालम शुरू किया गया है जो नए उद्यमियों को बेहतर और बड़े बनाने के गुर बताएगा.

दूसरी खबर मेरठ से है. डीएलए आज यानि 20 जनवरी से सुबह का नहीं बल्कि मिडडे यानि दोपहर का अखबार हो गया. आज यह अखबार सुबह मार्केट में नहीं आया. डीएलए ने मेरठ में अपनी शुरुआत फरवरी 2008 में दोपहर के समाचार पत्र के तौर पर ही की थी. नई टीम और नई थीम, दोनों के कारण अखबार शुरू में काफी लोकप्रिय हुआ. प्रसार भी काफी बढ़ा. बताते हैं कि करीब 36 हजार लोगों ने अखबार बुक कराया. अचानक अखबार को सुबह का कर दिया गया. टीम, जो कि मिडडे वाले अखबार की मानसिकता में थी, उसे सुबह के अखबार के लिहाज से बदलने में थोड़ा वक्त लगा लेकिन चीजें कुछ दिनों बाद पटरी पर आ गईं. पर मंगलवार रात फिर फरमान आ गया कि अखबार को सुबह गायब कर मिड डे में मार्केट में उतारो. इस फरमान को सभी डीएलएकर्मियों को सुनाया गया. अब एक बार फिर सभी कर्मी अपनी मानसिकता और मनःस्थिति मिडडे वाले अखबार के अनुरूप तब्दील करने में लग गए हैं.

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0 Comments

  1. ravi agrwal

    January 20, 2010 at 10:27 am

    dla ke karatadhart kab kya faramman jari kar de kucha pata nahi. unko khudha nahi malum ki vo chahate kya

  2. Arun Pathak

    January 20, 2010 at 10:31 am

    very good idea for marketing & readership.

  3. geet

    January 20, 2010 at 12:33 pm

    DLA ke barte kadmo ne jagran ki raftaar hi rok di thi is baat me koi do rai nahi ushke peechhe kai karan hai ………..kimat 1.50 rs. ,total page 24 wo bhi colour par fail hone ka karan kewal ek manegment ki kamiyaan.
    by km.geet
    ghaziabad

  4. एएसडी

    January 20, 2010 at 2:34 pm

    बाद डीएलए के सुबह के संस्‍करण के बंद होने की नहीं है, बात उस समय अखबार को बंद करने की है, जब सुबह के संस्‍करण के तौर पर डीएलए ने अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी। मैनेजमेंट के पास सैकडों जबाव हो सकते है, लेकिन अपनी कमियों को मैनेजमेंट कभी नहीं स्‍वीकारेगा। सारा ठीकरा कर्मियों पर फोडने की पुरानी रवायत अपनाई जाएगी। दरसअल डीएलए की वेबसाइट पर जो डायरेक्‍टर का परिचय दिया गया है वो कहीं से भी सही नहीं लगता। हो सकता है कि उनके पास भले ही मीडिया का 30 साल का अनुभव हो, पर उनकों वास्‍तव में नहीं मालूम कि उनकों क्‍या करना है। उनके गलत फैसलों से वह आज के जमाने के तुगलक ही बन रहे है।

  5. एएसडी

    January 20, 2010 at 2:37 pm

    बाद डीएलए के सुबह के संस्‍करण के बंद होने की नहीं है, बात उस समय अखबार को बंद करने की है, जब सुबह के संस्‍करण के तौर पर डीएलए ने अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी। मैनेजमेंट के पास सैकडों जबाव हो सकते है, लेकिन अपनी कमियों को मैनेजमेंट कभी नहीं स्‍वीकारेगा। सारा ठीकरा कर्मियों पर फोडने की पुरानी रवायत अपनाई जाएगी। दरसअल डीएलए की वेबसाइट पर जो डायरेक्‍टर का परिचय दिया गया है वो कहीं से भी सही नहीं लगता। हो सकता है कि उनके पास भले ही मीडिया का 30 साल का अनुभव हो, पर उनकों वास्‍तव में नहीं मालूम कि उनकों क्‍या करना है। उनके गलत फैसलों से वह आज के जमाने के तुगलक ही बन रहे है।

    About Mr. Ajay Agarwal

    A veteran in field of journalism, Mr. Ajay Agarwal, is the former Editor–Director of Amar Ujala. With an experience of more than 30 years in the field of journalism, Mr. Ajay Agarwal grew Amar Ujala to the peek of its credential glory. After splitting from Amar Ujala, dedicated to the ethics of journalism laid down by his father and legendary journalist Late Shri Dori Lal Agarwal, the Founder-Father of Amar Ujala, Mr. Ajay Agarwal conceptualized DLA and even named the newspaper after his father. It is the unstoppable motivation and direction given by Mr. Ajay Agarwal, which helps DLA stand where it does today. A pioneer and a true gentleman, Mr. Agarwal leads from the front as the Concept Editor of both DLA and DLA AM.

  6. samay sharma

    January 21, 2010 at 12:28 pm

    DLA ek bahut achcha akbar hai isme koi doraye nahi hai, ghaziabad aur meerut ek saal bahit achcha chala, lekin kuch samay se DLA me ho rahe lagatar badlaw ne gadbad kar di hai, dla ko jarurat hai ek atal faisle ki ya to din me ya fit rat, karamchari selary badh wana chahte hain aur kyo nahi chahen, akhi unhe samay bhi to lagbhag do saal ho gaya hai, ko nahi chahega ki unki selry nahi badhe, ek saal me nahi to kam se kam do sal me to bada hi hain, taki wo log maan se kaam kar sake,

  7. saleem akhter siddiqui

    January 23, 2010 at 5:36 am

    मेरठ में DLA निरन्तर सिकुड़ रहा है। इसकी वजह सम्पाकीय विभाग नहीं, बल्कि प्रसार विभाग है। प्रसार विभाग शुरु से ही अखबार का सही तरह से प्रसार नहीं करा पाया। आखिर क्या वजह है कि जिस अखबार के लोग छः महीने में ही आदी हो गए थे और जिसकी प्रसार संख्या 35 हजार को पार कर गयी थी, अचानक बाजार से क्यों गायब होने लगा था ? इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ प्रसार विभाग की लापरवाही और उदासीनता रही है। लोग प्रसार विभाग को फोन करके अखबार न मिलने की शिकायत करते रहे लेकिन प्रसार विभाग ने ऐसी कोई नीति बनाने में लापरवाही बरती, जिससे अखबार लोगों को निरन्तर मिलता रहे। रही सही कसर अखबार को सुबह का करके पूरी कर दी गयी। अब फिर अखबार को शाम का कर दिया गया है। प्रबंधन को सुबह शाम की कवायद करने बजाय अपने प्रसार विभाग पर ध्यान देना चाहिए

  8. geet

    January 24, 2010 at 9:13 am

    saleem sahab bil kul thik kaha
    sachchai kabhi samne aa hi jaati agar sambhal gaye to achchha warna jald hi tala lag jayega.

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