भर्तियों में एक खास किस्म के पक्षपात के आरोपों को झेल रहे दैनिक हिंदुस्तान के संपादकों को इस बार जाने क्या सूझा कि खुली भर्ती का विज्ञापन अपने अखबार में दे दिया। लेकिन पारदर्शिता और निष्पक्षता दर्शाने को उठाया गया यह कदम उलटा पड़ गया। ऐसी स्थिति बनी कि न उगलते बने, न निगलते। फैल चुके रायते को अंततः जैसे-तैसे समेटा गया।
दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली के लिए कापी एडीटर, रिपोर्टर और पेजमेकर पदों पर भर्ती के लिए एक विज्ञापन इसी अखबार में 23 सितंबर को प्रकाशित हुआ। इसमें सभी इच्छुक अभ्यर्थियों से 25 सितंबर को सुबह 10 बजे दैनिक हिंदुस्तान के दिल्ली स्थित आफिस पहुंचने को कहा गया। देश के हजारों पत्रकारों को यह मौका किसी वरदान की तरह लगा और तय तारीख को नियत समय पर भर्तीस्थल पर पहुंचने के लिए सबने रणनीति बना ली।
जो लोग अखबारों में काम कर रहे, वो भी पहुंचे और जो लोग पत्रकारिता का कोर्स कर रहे हैं, वो भी किस्मत आजमाने उठ खड़े हुए। 25 सितंबर को दिन में 12 बजे तक स्थिति यूं हुई कि एचटी आफिस के बाहर तिल रखने की जगह न बची। गार्डों ने गेट बंद कर दिया। लोग सड़क पर फैलने लगे। भीड़ बढ़ती जा रही थी। प्रबंधन के हांथ-पांव फूलने लगे। शुरुआत में तो कई लोगों के इंटरव्यू हुए लेकिन बाद में स्थिति बेकाबू होते देख सभी के रिज्यूम फटाफट लिए जाने लगे और उन्हें फोन करके इंटरव्यू के लिए निमंत्रण देने की बात समझाई जाने लगी। पर लोग तो आए थे खुली भर्ती में किस्मत आजमाने। उन्हें धोखा सा लगा। किसी को साजिश नजर आई। लोग टलने को तैयार नहीं। अंततः 2 बजे के आसपास इंटरव्यू खत्म किए जाने की घोषणा की गई और रिज्यूम जमा करके यहां से जाने की बात बता दी गई।
इंटरव्यू देने गए कई लोगों ने वहां के हालात के बारे में भड़ास4मीडिया को फोन पर और मेल के जरिए जानकारी दी। सबने इंटरव्यू न होने, धोखा होने, उपेक्षित किए जाने, अपमानित महसूस होने की शिकायत की। बाद में शाम तक भीड़ छंटने लगी और लोग अपने अपने ठिकाने की ओर रवाना हो गए।
इस इंटरव्यू में कुछ रोचक नजारे और टिप्पणियां भी देखने-सुनने को मिलीं।
नजारा यूं कि एक ही आफिस में काम करने वाले पत्रकार जो आपस में एक दूसरे को संपादक के मुखबिर के रूप में जानते-मानते हैं, हिंदुस्तान की खुली भर्ती के स्थल पर आमने-सामने हुए तो दोनों के होश फाख्ता हो गए। बाद में दोनों ने हाथ मिलाकर यहां किसी तरह की कोई मुलाकात न होने और इस इंटरव्यू में शरीक होने के बारे में किसी को कानोंकान खबर न होने देने की कसमें खाईं। कई अखबारों के संपादकों ने अपने खास लोगों को सिर्फ इसलिए इंटरव्यू स्थल पर तैनात कर दिया था ताकि पता चल सके कि उनके यहां के कितने विकेट कमजोर हैं और जल्द ही गिर सकने की स्थिति में हैं। इन संपादक भक्त मुखबिरों से बचने के लिए ज्यादातर शरीफ पत्रकार मुंह छिपाते घूम रहे थे ताकि उन्हें कोई देख न ले।
टिप्पणियां यूं कि भीड़ ज्यादा बढ़ने पर जब अभ्यर्थियों को बाहर खदेड़ दिया गया तो कइयों ने प्रमोद जोशी का नाम लेते हुए उन्हें खरी-खोटी सुनाई और सामने मिलने पर जोशी जी की खैर-खबर लेने जैसी बातें कहकर अपने दुख को कम करने की कोशिश की। ये कुवचन संभवतः इसलिए निकल रहे थे क्योंकि लोग मुरादाबाद जैसी जगहों से भी चलकर आए थे और यहां बैठने की जगह तो छोड़िए, धूप में खड़े होने के लिए भी जगह नहीं मिल रही थी। भूखे-प्यासे इन लोगों ने आपस में जमकर भड़ास निकाली। और तो और, कुछ लोगों ने भड़ास ब्लाग पर भी अपनी भड़ास निकालने में संकोच नहीं किया। इस पूरे नजारे से पुलिस, पीएसी, सेना सरीखी हुई पत्रकारों की खुली भर्ती के आयोजन में व्याप्त कुप्रबंधन के बारे में महसूस किया जा सकता है।
कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि यह खुली भर्ती की ही इसलिए गई थी ताकि ज्यादा भीड़ और अराजकता की आशंका का हवाला देकर आगे से फिर किसी पारदर्शी और निष्पक्ष भर्ती की गुंजाइश न छोड़ी जा सके। जानकारों का कहना है कि खुली भर्ती के पहले हमेशा मेल या डाक के जरिए पहले रिज्यूम मंगाया जाता है। उसकी छंटाई के बाद बेहतर दिख रहे आवेदकों को कई ग्रुप में करके अलग अलग तारीखों को इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। ऐसी प्रक्रिया न अपना कर हिंदुस्तान के संपादकीय नेतृत्व ने पुलिस-पीएसी सरीखी खुली भर्ती बुला ली और इसमें यह सब होना ही था।
भड़ास4मीडिया के पास पक्की सूचना है कि खुली भर्ती के विज्ञापन के बावजूद दैनिक हिंदुस्तान के संपादकों ने दूसरे अखबारों में काम कर रहे कई पत्रकारों को फोन कर भर्ती स्थल पर सबसे पहले पहुंच जाने को कह दिया था। ऐसे कम से काम चार लोगों ने भड़ास4मीडिया को पहले ही बता दिया था कि उनका इस बार सेलेक्शन लगभग पक्का है क्योंकि उनके पास इंटरव्यू के लिए अलग से फोन भी आ चुका है। यह प्रकरण दर्शाता है कि खुली भर्ती के विज्ञापन के बावजूद सेटिंग-गेटिंग के जरिए भर्ती का क्रम भी चल रहा था। एक आशंका यह भी व्यक्त की जा रही है कि जिन लोगों को रखा जाना था उनका इंटरव्यू सबसे पहले करने के बाद बढ़ती भीड़ का हवाला देकर बाकी लोगों को चलता कर दिया गया।
जो हो, लेकिन विज्ञापन निकालकर भर्ती किए जाने की प्रक्रिया का स्वागत किया जाना चाहिए। दिक्कत केवल व्यवस्थागत थी जिससे सबक लेकर भविष्य में चीजें ठीक की जा सकती हैं।