दैनिक हिंदुस्तान के इतिहास में ‘सुनहरा अध्याय’ जुड़ गया है. मेरठ हिंदुस्तान ऑफिस में पदस्थापित असिस्टेंट वाइस प्रेसीडेंट ने समूचे संपादकीय टीम की मीटिंग ली और घोषणा की कि स्थानीय संपादक महोदय के सहयोग से ये फैसला लिया गया है कि हिंदुस्तान अखबार का मेरठ शहर में प्रसार बढ़ाने के लिए अब संपादकीय के लोग सेल्स टीम को पूरा सहयोग करेंगे. संपादक, समाचार संपादक, चीफ रिपोर्टर, चीफ सब एडिटर श्रेणी के लोगों को पचास-पचास अखबार की बुकिंग करने के लिए फॉर्म दिए गए हैं जबकि शेष को बीस-बीस अखबारों की प्रतियां बुक करने की जिम्मेवारी दी गई है. ये बुकिंग मानसून धमाका स्कीम के तहत करने के लिए कहा गया है. मतलब साफ है कि बाइस-तेइस लोगों की सेल्स टीम अपना नाकारापन छुपाने के लिए अब संपादकीय का सहयोग लेगी. एवीपी अजय अरोड़ा ने मीटिंग में कहा कि हमारा प्रोडक्ट बहुत बढ़िया निकल रहा है.
लेकिन दैनिक जागरण और अमर उजाला के गलत तरीके से अखबार डंप करने की नीति के कारण हिंदुस्तान अखबार मार्केट में नहीं दिख रहा है। उन्होंने ये भी कहा कि इस फैसले पर आपके संपादक ने सहमति जताई है, उसके बाद ही इसे लागू किया जा रहा है. ये अलग बात है कि घोषणा के समय मीटिंग में किसी ने विरोध नहीं जताया न हामी ही भरी. संपादकीय के सभी लोग इस फैसले से खफा हैं. लेकिन नौकरी के कारण कोई खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा रहा. वैसे भी आधे से अधिक संपादकीय के लोग कहीं न कहीं नौकरी तलाश रहे हैं. क्योंकि ताजा संपादकीय प्रभारी संपादकीय के लोगों की कम सेल्स, विज्ञापन और प्रबंधन के दिन-रात तलुए चाटता है और ये फैसला उसकी एक बानगी भर है.
आजतक के दैनिक हिंदुस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि बड़े सेल्स टीम के बावजूद संपादकीय के लोगों को अखबार की बुकिंग करने के लिए कहा गया हो. ये इस बात को साबित करता है कि सेल्स टीम नाकारा है और काम करने में, लक्ष्य पाने में पूरी तरह नाकाम है. दरअसल जागरण और अमर उजाला जैसे अखबार हिंदुस्तान से ज्यादा पेज देते हैं. अच्छी खबरें देते हैं. हिंदुस्तान को कड़ी टक्कर देने का माद्दा रखते हैं. जबकि लगता है हिंदुस्तान के उच्च प्रबंधन और संपादकीय के लोग अपने आकाओं को सिर्फ सब्जबाग दिखाकर वाहवाही लूटते हैं. संपादकीय टीम की मीटिंग में मौजूद एक अति वरिष्ठ व्यक्ति ने कहा कि अखबार की बुकिंग करने से बेहतर है कि कहीं नौकरी तलाश की जाय. वजह जहां संपादक गैर संपादकीय कार्यों में लगाने के फैसले पर सहमति जताने लगे, वहां संपादकीय के लोगों के हित देखने वाला कोई नहीं.
आप लोगों का ही
एक हिंदुस्तानी
(मेरठ के एक ‘हिंदुस्तानी’ के पत्र पर आधारित. इस पत्र के तथ्यों के खंडन-मंडन के लिए नीचे दिए गए कमेंट आप्शन का सहारा लें)
sp rahi
July 20, 2010 at 6:49 am
sahi kaha bhai, aj patrkar akbhar becega kal bigyapan layega aur perso se haker ka kaam bhe karega , ager aise he chalta raha to
krishna
July 20, 2010 at 7:18 am
ye to ab hona hi hai….patrakarita corporate ho gai hai
dilip yadav
July 20, 2010 at 7:23 am
hindustan me yah naya nahin he. matura ke patrkar akhbar ke ek vars purd hone par vigyapan batorte rahe. 6 mah purva akhbar ki buking karte ghume. ab patrakar ke mayne hindustan naye sire se tay kar raha he.
anik sing
July 20, 2010 at 8:39 am
jai ho hindustan ab yahi baki yha
arun kumar chaubey
July 20, 2010 at 8:46 am
aisa har jagah ho raha hai.samajh me nahi aata duniya bhar ke anyay ki khabar chhapane ka dawa karane wale khud itana anyay kyon sahan karate hain?
gonu jha
July 20, 2010 at 8:51 am
Behtar ho ki ab Hindustan ke yashsvee ampadak ji , Akhbaro ke kiosk par hee reportoron aur sub editoron ke work station bhee lagva dein , taki sampadkey ke log seedhe bazar se hee panney bnva ker printing press bhej dein . Daftar ka kiraya bachega aur stories adhik market friendly bun jayengee .
Aamdanee aur bhee badhvanee ho , to sath mein sabzee ya masaley adi bhee thok mein bikvane par bhee vichar kiya ja sakta hai .
T.Vipulesh
July 20, 2010 at 9:09 am
लगता है यह समाचार किसी कुंठित की कुंठा है, अरे भाई कोइ जबरदस्ती तो है नहीं इसी बात पर इस्तीफा दे देते सम्पादकीय विभाग के सभी असंतुष्ट सहयोगी रही बात सेल्स टीम के नाकारापन की तो यह तय करने की जिम्मेदारी मालिक/ प्रबंधन की है| वैसे अगर आप के लेखनी में दम है तो ही अखबार बिकता है| सेल्स की टीम केवल पाठक तक अखबार पहुंचा सकती है, किसी पाठक को समाचार जबरदस्ती पढ़ा नहीं सकती| अब आइये बात करते है की सम्पादकीय सहगियों को बुकिंग की जिम्मेदारी क्यों डी जाती है, अरे भाई प्रोडक्ट तुमने बनाया है तो अपने पाठक से मिलो और फीडबैक लो और प्रोडक्ट में सुधार करके और बेहतर बनाओ| या फिर सेल्स के बताए फ़ीडबैक लो और उसे पूरी तरह पालन करो| समस्या यहाँ है की ये भी संभव नहीं अहै क्योकि पत्रकारिता का वाइरस ऐसा करने नहीं देगा, मित्र मई आपको ये कहना चाहता हूँ की निगेटिव सोचने की बजाय आगे बढ़ाने की सोचिये वरना ऐसे ही लिखते रह जायेंगे, आप ही के अखबार से शशिशेखर जी अमर उजाला गए है अगर वो भी आप की तरह सोचते आप जैसे गुमनाम से नौकरी करते हुए अपने ही मालिक की निंदा कर रहे होते| अपनी बात कहना अच्छी बात है लेकिन सही तरीके से सही समय पर सही मंच पर जहा समस्या का समाधान निकल सके | खैर मेरी बात का बुरा ना मानियेगा|
क्योकी आप ने अपना नाम तक नहीं लिखा ये आप की कमजोर स्थित को बता रहा है| आपका मित्र
shweta
July 20, 2010 at 10:34 am
हिंदुस्तान में भी ये सब होने लगा। अच्छा है,बड़े अकबार में काम करने का बड़ा दम भरते थे हिंदुस्तान के तथाकथित पत्रकार। अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे,अब क्या करेंगे और जब शुरूआत हो गई तो बेचो..अखबार ले लो,,,,हम हैं हिंदुस्तान के रिपोर्टर हमसे एक अखबार ले लो
sunil
July 20, 2010 at 11:12 am
hindustani akhbar bechne mein hamesha se aage rahe hain
pandey ajay
July 20, 2010 at 2:01 pm
are bhai rote kahe hain. aap jaise log hi to patrakarita ko ganda kar ke rakh diye hain. ek taraf to editor aur malik ko gali dete hain. dusari taraf naukari se chipke hue hain. editor bhi to aapna naukari hi kar raha hai. ek saath sab log decide kar ke kahe nahin resign kar dete hain. phir dekhate hain ki kon mai ka lal malik akhabar nikal leta hai.
raj Kishore
July 21, 2010 at 4:44 am
हर गलत बात का विरोध होना ही चाहिए कौन हैं वो दलाल संपादकीय प्रभारी जो पत्रकारों क़ो अखबार बेचने क़ो कह रहा है जरा उसका फोटो भी तो छापिये यशवंत भाई ताकि सारे देश के पत्रकार उस पर जूते की माला चढ़ा सके. यहाँ पटना में ये खबर पढ़ा कर बहुत रोष है . ये सेल्स के निकम्मे , नकारे पैरवी पुत्रो के कारन हो रहा है जो अपना काम करना ही नहीं चाहते और संसथान का खून चूस रहे है . ऑफिस की गाडी इनके बीबियो क़ो बाजार घुमाने के लिए है इन्हें सिर्फ हौकर्स के साथ दलाली करने के पैसे मिलते है . स्कीम की घडी और जाकेट इनके घर में मिलता है लेकिन सबसे बड़ा दलाल ये संपादकीय प्रभारी है उसका नाम और फोटो छपे
aakash
July 21, 2010 at 4:15 pm
aisa hona patrkarita k liye bahut galat hai. iski ghor ninda ki jaani chahiye. pata nahin hindustan k aaka kahan abhi tak gehri maand me soye hue hain , ab to jaagooooooooooo….