देहरादून से भड़ास4मीडिया के एक पाठक ने मेल के जरिए दो अखबारों की कतरन और साथ में एक छोटी-सी चिट्ठी भेजी है. चिट्ठी को पढ़ लीजिए तो अखबार की कतरनों का मतलब समझ में आ जाएगा. चिट्ठी ये है-
”ये क्या हो रहा है उत्तराखंड में, जहाँ देश के ३ प्रमुख चैनल व अख़बार उत्तराखंड में हुए 400 करोड़ के जमीन घोटाले की खबर चला रहे थे वहीं हिंदुस्तान, देहरादून एडिशन के संपादक मुख्यमंत्री का फ्रंट पेज पर फोटो छापकर लिख रहे थे ‘आल इज वेल इन उत्तराखंड’. धन्य हैं प्रधान संपादक शेखर जी और उनका देहरादून का संपादक दिनेश पाठक. एक ही शहर के दो समाचार पत्रों की छायाप्रति संलगन है. एक राष्ट्रीय सहारा अखबार है जो घोटाले का प्रमुखता से खुलासा कर रहा है. दूसरा हिंदुस्तान है जो आल इज वेल बता रहा है. आप खुद फर्क देखिये. आईबीएन7, न्यूज24, एनडीटीवी, सहारा समय जैसे न्यूज चैनलों ने इस घोटाले का प्रमुखता से खुलासा किया है.”
चिट्ठी से समझ में आ गया होगा कि पाठक महोदय हिंदुस्तान के पाठक जी से खफा हैं कि उन्होंने घोटाले की खबर न चलाकर मुख्यमंत्री का पीआरनुमा इंटरव्यू क्यों प्रकाशित किया. अगर हिंदुस्तान वाले पाठकजी भड़ास4मीडिया के पाठक को कुछ समझाना-बताना चाहते हैं तो उनका स्वागत है. वे अपना पक्ष या घोटाले से संबंधित प्रकाशित खबरें जरूर भेजें. लोग जानना चाहेंगे कि इस प्रकरण को हिंदुस्तान ने कैसे कवर किया. फिलहाल तो यहां भड़ास4मीडिया के पाठक की ओर से भेजी गई दो अखबारों की एक-एक कतरन पढ़िए. -एडिटर
sanjay bhati EDTOR SUPREME NEWS
June 25, 2010 at 1:42 pm
media: bade bade khiladiyo ka khel hai . ye lokatantra ke nahi dhan-tantra ke sthamb hai.
Haresh Kumar
June 25, 2010 at 2:05 pm
कहने को बाकी रहा ही क्या। जो सबको दिख रहा है। एक पुरानी कविता इस अवसर पर याद आ रही है।
शक्ति के मद में हो कर चूर विजय को निकला था यूनान।
एक ही टकराहट में गया मगध को वह पहचान।।
सत्ता कई लोगों का दिमाग खराब कर देती है और चुनाव से कई के होश ठिकाने आ जाते हैं। आम आदमी सब कुछ समझता है, पर मजबूर है क्योंकि एक बार चुन लेने के बाद पांच सालों तक झेलते रहने को अभिशप्त है भारतीय मतदाता। अपने प्रतिनिधि को अगर वापस बुलाने का अधिकार मिल जाये तो कई समस्या तो ऐसे ही सुलझ जायेगी। लोग डर के मारे भी काम करेंगे। सत्ता मिल जाने पर लोग जल्द से जल्द वह सब कर लेना चाहते हैं। जो बगैर सत्ता के हासिल नहीं होता। आज के समाचारपत्र और टेलीविजन चैनल विज्ञापने के लिए सत्ता की तरफ टकटकी लगाये रहता है। सरकार के तमाम गलत कार्यों को नजरअंदाज करता है, तब तक जब तक पानी सिर के उपर से ना बह जाये
कुशल राजनीतिक प्रबंधक लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की कमजोर नस को दबाए रहते हैं और इसमें सहयोगी की भूमिका निभाते हैं, सत्ता के वे दलाल पत्रकार जो पत्रकारिता के नाम पर सरकार से तमाम तरह की सुविधायें ग्रहण करते हैं।
निशंक का भाग्य से उत्तराखंड का मुख्यंत्री बनना हुआ। उनके पास अच्छे अवसर थे अपने राज्य की सेवा करने का लेकिन वे बीच रास्ते में ही भटक गए।
राजीव गांधी को भी 1984 के चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला था। लेकिन राजनीतिक अपरिपक्वता के चलते वे तमाम तरह के सत्ता के दलालों से घिरते गए और अगले चुनाव में सरकार से बाहर भी हो गए। राजीव जी ने देश को 21वीं शताब्दी में ले जाने का सपना देखा था और भारत में सूचना क्रांति उन्हीं की देन है। आज कंप्यूटर का प्रयोग सब कुछ उनके प्रयासों से हुआ। लेकिन सत्ता के दलालों ने उनकी जान की भी कीमत लगा दी।
निशंक जी समय रहते आप अपने राज्य की समस्याओं पर ध्यान दीजिए और जो पैसा घोटाले में राज्य सरकार का गया है उसे वापस लाने का प्रयत्न करें तो बेहतर है। खबर दिखाने वाले अखबार, टेलीविजन का आप प्रकाशन, प्रसारण बंद कर सकते हैं, लेकिन आज के इस इंटरनेट के युग में आप किसी खबर को जितना दबाना चाहें वह उतनी ही तेजी से फैलता है। विनाश काले विपरीत बुद्धि। ज्यादा घमंड अच्छी बात नहीं है। अगर कहीं गलती हुई तो उसे सुधारा जा सकता है। दबाने से आग और भड़केगी। याद रखियेगा।
विकास के नाम पर छोटे- छोटे राज्यों का गठन तो हो गया। ये राज्य लगातार केंद्र सरकार से करों में कटौती से लेकर तमाम तरह की सुविधायें पाना चाहते हैं। खैरात खाने की आदत पड़ी हुई है। लेकिन अपने संसाधनों को इस तरह से लुटाते हैं जैसे इन्हें दहेज में मिला हो।
झारखंड में मधु कोड़ा, छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और अब उत्तराखंड में रमेश पौखरियाल निशंक का नाम घोटाले के लिए ही जाना जायेगा।
sameer
June 25, 2010 at 3:57 pm
leepapoti ka khel kab khatam hoga. ab to khulasa karne wale hi lipapoti me lag gaye hai. pahle kaha jata tha ki stringero par najar rakhni jaruri hai lekin aise sampadko par koun najar rakhega jab kotwal hi aisa ho jaye. media ke thekedaro thori sharam karo aur media ko mission ke rup me lo kyonki kukurmutte ki tarah ug aye media houso ne pahle hi bera gark kar rakha hai`
Praveen Ahuja
June 25, 2010 at 4:49 pm
अरे भैया अगर मुख्यामंत्री के साथ हेलीकाप्टर में घूमेंगे तो पी आर तो करना ही पड़ेगा.
Saleem saifi
June 25, 2010 at 7:42 pm
ये खबर तो बहुत मामूली सी बात है,मेरा एक विचार है कि राज्यों की राजधानिया हो या फिर छोटे बड़े शहर,हर जगह कुछ मठाधीश बैठे होते है जो जर्नलिस्ट नहीं सिर्फ रिपोर्टर होते है और उनका धंधा होता है जनता को गुमराह करना,अफ़सोस तो तब होता है जब बड़े बड़े जर्नलिस्ट हालत के हाथो मजबूर होते है और वही बोली बोलते है जो हालत कहते है लेकिन ये उनकी मजबूरी होती है और सही वक़्त का इंतज़ार,मठाधीश कतई नहीं चाहते कि कोई काबिल जर्नलिस्ट उस शहर में काम करे जहा उनकी दुकान झूठ और मक्कारी की बुनियाद पर चल रही है.
कुछ रिपोर्टर पेशेवर तौर पर वेश्याओं कम नहीं है जो अपने स्वार्थ और पैसा कमाने के लिए कल तक जिसके तलवे चाटते थे आज उसको गालिया देते है और कल तक जिसको गालिया देते थे आज उसको विद्वान बताते है.विद्वान को सब पता है मगर जर्नलिस्ट्स की कद्र करने की बजाय वह एक ऐसे रिपोर्टिंग कोकस को तरजीह देता है जो सिर्फ विद्वान को सब्जबाग दिखाने और गुमराह करने में माहिर है और उसका फार्मूला है “राज” +”पूत”,
जय उत्तराखंड – जय भारत
ruby
June 26, 2010 at 9:15 am
are to baat kiski kar rehe hai dinesh pathak agar mai galat nai huu to ye lko ke city cheif hua karte the yadi ye vai dinesh pathak hai to ye to purane dalle hai isme kaun se nai baat hai.
Sunil Srivastava
June 28, 2010 at 1:37 pm
शशि शेखर जी ये क्या हो रहा है जब से आने हिन्दुस्तान की कमान संभाली है तब से तो अपके नीचे का करने वाले निरंकुश हो गये हैं करूा इन्हे आके सम्मान के साथ साथ हिन्दुस्तान के सम्मान की भी चिंता नहीं है क्या महाराज देहरादून में ये पाठक धृतराष्ट्र हो गया है क्या इसके आंखों पर पटृटी बंधी है क्या सारा प्रदेश घोटाले की आग में तप रहा ह।ै और ये कह रहा है आल इज वैल इन उत्तराखण्ड मीराज इसं सभालों वैॅसे भी ये केवल पैसा कमाने यहां आया है इसे उत्तराखण्ड से क्या लेना देना यइसे माल तो मिल ही रहा है यह तो सत्ताधारी पार्टी की गोद में बैठ गया है। अब हमने तो यह अखबार पढना ही छोड़ दिया है और भी छोडने वाले हैं; अब आप ही इसे बचाा सकते है हिन्दुस्ताान की साख के लिए कुछ करिये महाराज नहीं तो ये दौलत के चहेते हिन्दुस्तान को लील लेंगे;
Sunil Srivastava
June 29, 2010 at 10:11 am
धन्य हैं प्रधान संपादक शेखर जी और उनका देहरादून का संपादक दिनेश पाठक
mukesh pandey
June 29, 2010 at 5:09 pm
kewal cm ka intervew likh dene se smarthak nhi ho jata . esi adhar pr amaryadit tippani bachkani harkat hi khi jayegi