‘हिन्दुस्तान’ अखबार के ‘हिन्दुस्तान समागम-2009′ : उत्तर प्रदेश 2020 दिशा और दशा’ के अर्न्तगत लखनऊ में एक आयोजन किया गया। इसमें नामचीन हस्तियों ने इस बात पर मंथन किया कि 2020 तक उत्तर प्रदेश को कैसे ‘उत्तम प्रदेश’ में बदला जाए। पता नहीं अखबार के नए प्रधान सम्पादक शशि शेखर ने किस नीयत से समागम का आयोजन किया था। लेकिन इतना तो तय है कि जो चेहरे इस समागम में बोले हैं, ये वही चेहरे हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में शासन किया है। समागम में लोकदल के जयंत चौधरी, कांग्रेस के जितिन प्रसाद तथा भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी, आदि लोगों की उत्तर प्रदेश के लिए चिंता और उसकी तरक्की की बातें करते देख गुस्से के साथ-साथ हंसी भी आयी। इनमें से लोकदल, कांग्रेस और भाजपा ने प्रदेश पर कई-कई बार शासन किया है। उनके शासन काल में उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बनने के बजाय उल्टा प्रदेश क्यों बन गया?
सरकार उनकी थी। क्या अड़चन थी उनके साथ? अब जब वह सत्ता से बाहर हैं तो एक पांच सितारा होटल के वातानूकुलित हॉल में बैठकर उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की बातें करके उन गरीबों, दलितो वंचितों और अल्पसंख्यकों के घावों पर नमक छिड़क रहे हैं, जो इन लोगों के कुशासन की वजह से जर्रा-जर्रा मरने पर मजबूर हैं। मुख्तार अब्बास नकवी साहब उस पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, जिसने उत्तर प्रदेश को ‘कर्फ्यू प्रदेश’ में तब्दील कर दिया था। उनकी पार्टी के राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश के लोग सालों-साल खौफ और दहशत के साए में रहने को मजबूर हुए। हजारों बेगुनाह लोगों का खून बहा। ऐसे लोग जब उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की बात करते हैं तो बहुत कोफ्त होती है और गुस्सा आता है ऐसे लोगों पर जो उनको मंच प्रदान करते हैं। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश पर शासन किया है। उनकी पार्टी के जितिन प्रसाद कहते हैं कि राजनीति में ‘युवाओं का दखल बढ़ाना होगा।’ सवाल यह है कि कौन से युवाओं का? क्या जितिन प्रसाद, जयंत चौधरी, अखिलेश यादव, उमर अब्दुल्ला, ज्योतिरादत्य सिंधिया और राहुल गांधी आदि जैसे युवाओं की जो अपने बाप की विरासत के चलते राजनीति में आए हैं? इन युवा नेताओं की इससे ज्यादा क्या योग्यता है कि वे एक राजनीतिज्ञ के बेटे हैं? एक गली का लड़का क्यों विधायक या सांसद बनने का ख्वाब नहीं देख सकता? क्या इसलिए कि राजनीति केवल कुछ परिवारों की बपौती बन गयी है? क्या यह महज इत्तेफाक है कि किसी ने भी राजनीति में वंशवाद के खिलाफ अपना मुंह नहीं खोला। खोलते भी कैसे, हमाम में सभी नंगे जो हैं?
समागम में केवल एक आदमी संदीप पांडे था, जिसने उन लोगों की बात की, जिनके उत्थान के बगैर उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश नहीं बन सकता। लेकिन मजबूरी यह है कि संदीप पांडे जैसे लोग हैं कितने और उनकी आवाज सुनता कौन है? यह सच है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली कुछ लोगों को अमीर बनाने की मशीन में तब्दील हो गयी है। उनका अधिकतर कोटा ब्लैक में जमाखोरों के गोदामों में पहुंच जाता है। रातों-रात आटा दो रुपए किलो मंहगा हो जाता है। मजदूरी आठ आने भी नहीं बढ़ती। प्रदेश की जनता को मुनाफखोरों, जमाखोरों और मिलावटखोरों के हाल पर छोड़ दिया गया है। एक साइकिल चोर को तो पुलिस मार-मारकर अधमरा कर देती है। लेकिन जमाखोर की तरफ निगाह नहीं उठाती। ऐसा इसलिए होता है कि जमाखोर इन्हीं नेताओं को चन्दा देता है, जो पांच सितारा होटल में बैठकर ‘बौद्धिक ऐय्याशी’ करते हैं। शिक्षा सबका मौलिक अधिकार नहीं रही। शिक्षा को बहुत बड़ा बाजार बना दिया गया है। इन्हीं नेताओं की नीतियों से एक गरीब आदमी अपने बच्चों को इन्जीनियर या डाक्टर बनाने का सपना नहीं देख सकता। समागम का क्या उद्देश्य था, यह तो शशि शेखर ही बता सकते हैं। शशि जी को एक बात समझ लेनी चाहिए कि जब तक मीडिया नेताओं की चमचागिरी के बजाय उन पर प्रहार नहीं करेगा, भ्रष्टाचार, जमाखोरी, मुनाफखोरी और मिलावटखोरी के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलेगा, आम आदमी को राहत नहीं पहुंचाएगा, तब तक उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश नहीं बनेगा। यह याद रखिए, मल्टी नेशनल कम्पनियों के सहारे एक अखबार को ब्रांड में तो बदला जा सकता है, जनता के दिलों में नहीं उतरा जा सकता है। आज उत्तर प्रदेश को ऐसे मीडिया की जरूरत है, जो जनपक्षधर होने के साथ-साथ निर्भीक हो।
सामयिक मुद्दों पर कलम के जरिए सक्रिय हस्तक्षेप करने वाले सलीम अख्तर सिद्दीक़ी मेरठ के निवासी हैं। वे ब्लागर भी हैं और ‘हक बात’ नाम के अपने हिंदी ब्लाग में लगातार लिखते रहते हैं। उनसे संपर्क 09837279840 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है।