निशिकांत ठाकुर क्लर्क थे, पैसे न होने से मेरे घर में सोते, नहाते, नाश्ता करते : नरेन्द्र मोहन पीठ पीछे भी मेरे नाम के साथ ‘जी’ लगाना नहीं भूलते थे : तसल्ली ये है कि नरेंद्र मोहन दैनिक जागरण की जगहंसाई देखने के लिए दुनिया में नहीं हैं : पंद्रह साल तक चले मुकदमे के दौरान मेरा इकलौता बच्चा जज बन गया, मेरी एक बहन हाई कोर्ट की जज हो गई : हम खुश हैं कि इतने बड़े साम्राज्य के साथ इतने लम्बे संघर्ष से हम एक मिसाल बन के उभरे हैं : पत्रकारिता में मैं इंडियन एक्सप्रेस के अश्विनी सरीन को ये बताने के लिए आया था कि वे अगर पांच हज़ार रूपये में पैंतीस साल की एक अधेड़ महिला को खरीद कर देश व महिलाओं की हालत का पर्दाफाश कर सकते हैं तो मैं सिर्फ सौ रुपये में महज़ सोलह साल की एक लड़की को खरीद सकता हूँ.
इसके बाद मुझे अमर उजाला में नौकरी मिल गयी थी और फिर मेरी पहली बड़ी स्टोरी कईयों के मना कर देने के बाद कमलेश्वर जी ने ‘गंगा’ में छापी. उस स्टोरी में मैंने विस्तार से बताया था कि कैसे दीक्षांत समारोह के बहाने बुला कर इंदिरा जी को पन्त नगर में मारा जाने वाला था. अक्टूबर के शुरू में वो स्टोरी छपी. उसी महीने के आखिरी दिन इंदिरा जी की दिल्ली में हत्या हो गयी. मैं अमर उजाला से जनसत्ता, चंडीगढ़ आ गया था जब एक दिन कमलेश्वर जी का फ़ोन आया. बोले, कुछ महीनों में वे जागरण, दिल्ली के संपादक हो रहे हैं और मुझे उनके साथ काम करना है.
तो, यूं हुआ जागरण से जुड़ना. चंडीगढ़ में दफ्तर से लेकर पंजाब हरियाणा हिमाचल में स्ट्रिंगर जमाने तक के सारे काम मेरे जिम्मे थे. फोन था नहीं. टेलीप्रिंटर का ज़माना था. दिल्ली जाकर जनेश्वर मिश्र से दफ्तर के लिए एक अदद फोन भी मैं ही लेकर आया. रोज़ कोई चार छ: बार तारघर जाकर टीपी की पल्स भी मिल्वानी पड़ती थी. पत्रकारिता के नज़रिए से भी काम आसान नहीं था. आतंकवादियों के प्रेसनोट एडिट कर के छापने पर बड़े बड़े अखबारों तक को पहले पेज पर माफीनामे छापने पड़ रहे थे. छापो तो सरकार अखबारें ज़ब्त करने से लेकर बिजली काट देने तक के हथकंडे अपना रही थी. कम्पनी के लिए विज्ञापन, धन जुटाने वाले लोग भी मैंने ही तलाशे, तराशे.
अखबार जड़ें जमाने लगा था. तभी राजीव गाँधी की हत्या की बुरी खबर आई. मैं ठीक एक हफ्ता पहले १४ मई को उनके साथ एक दिन गुज़ार चुका था. भावुक था. मैंने सुझाया तो मुझे उनके अंतिम संस्कार की कवरेज के लिए दिल्ली बुलाया. सुबह पांच बजे मैनेजिंग एडिटर सुनील गुप्ता का फोन आया. बोले अंग्रेजी अखबारों में कापी है तो टाईम्स आफ इंडिया की और हिंदी में है तो तुम्हारी. उसी दिन मुझे दिल्ली में ब्यूरो चीफ बना दिया गया. दिक्कत यहीं से शुरू हो गई. रोज़ कानपुर से नया तकादा. आज इससे अपाइंटमेंट ले के दो. कल उससे. मैं चंडीगढ़ वापिस चला आया.
उधर पता लगा कि राम मंदिर की कवरेज पे बने दबाव के मद्देनज़र कमलेश्वर जी ने इस्तीफ़ा दे दिया. एक दिन मैनेजिंग डायरेक्टर और मैनेजिंग एडिटर सुनील गुप्ता भी निबटा दिए गए. मुझे नोएडा बुलाया गया. नौकरी के बदले सुनील गुप्ता के खिलाफ कुछ कागजों पे साइन करने को कहा गया. मैंने नहीं किये तो जांच नाम के किन्हीं कागजों पे साइन करने को. मैंने वाशरूम का बहाना बनाया और भाग खड़ा हुआ. चंडीगढ़ पहुंचते पहुंचते रात हो गई. सुबह जा के देखा तो दफ्तर पे मेरे ताले के ऊपर एक और ताला जड़ा है. फिर फरमान आया कि मेरा तबादला नोएडा.
उन्हीं दिनों जनसत्ता के प्रमुख संवाददाता महादेव चौहान को करनाल जैसे जिला मुख्यालय पे तबादले के खिलाफ स्टे मिला था. मैं तो ब्यूरो चीफ था. मेरा तबादला भी तहसील पर. मैंने भी स्टे की अर्जी लगा दी. रात भर भगवान से प्रार्थना की कि किसी तरह अपना भी केस उसी अदालत में लग जाए. लग गया. पर, स्टे नहीं मिला. वकील बोला कहीं कम्पनी टर्मिनेट न कर दे. सो, टर्मिनेशन के खिलाफ भी अर्जी डाल दी. कम्पनी ने कहा कानून के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे. कम्पनी का स्टैंड ये कि मुझे तो विज्ञापन वगैरह के लिए रखा गया था. रिपोर्टर का कार्ड तो सिर्फ इस लिए दे दिया कि विज्ञापन जुटाने में मदद मिले.
लेबर कोर्ट बछावत की दी परिभाषा (विशेष संवाददाता या ब्यूरो चीफ वो होता है जो राज्य के विधायी कार्यकलापों-यानी विधानसभा- को कवर करता है) के मुताबिक़ मेरा पद, ओहदा तय कर ही रहा था कि जागरण ने मुझे जांच में बुलाने के लिए नोटिस पे नोटिस छापे. कानूनन ऐसे में वेतन और किराया देना होता है. वो दिया नहीं. मैं गया नहीं. कम्पनी को लगा कि बछावत की दी परिभाषा का कोई तोड़ वो नहीं ढूंढ पाएगी तो उसने मुझे मुम्बई ट्रांसफर कर दिया. कोई दफ्तर, कोई ब्यूरो, कोई रिपोर्टर वहां भी नहीं था. विधानसभा जाने के लिए मान्यता भी सर्कुलेशन के आधार पर नहीं मिलनी थी. मुझे पता था कि मान्यता न मिली तो मैं जा के भी वापिस आ सकता हूँ. मैं मान गया. जाने का किराया कम्पनी को देना होता है. मैंने सामान समेत ट्रक का किराया माँगा. कम्पनी को मेरी स्कीम का पता लग गई. उसने किराया नहीं दिया. मैं नहीं गया.
इधर लेबर कोर्ट ने मुझे १९९४ में ब्यूरो चीफ मान लिया. तब तक का वेतन देने को भी कहा. कम्पनी ने नहीं दिया. मुझे कलक्ट्रेट दफ्तर में उस पैसे की रिकवरी डालनी पड़ी. कम्पनी इसके खिलाफ हाईकोर्ट चली गई. हाईकोर्ट ने पचास हज़ार से ऊपर की रकम कोर्ट में जमा करवा ली. लेबर कोर्ट में बर्खास्तगी का केस चल ही रहा था. मालिक नरेन्द्र मोहन जी समेत दिल्ली के बड़े बड़े वकील और कम्पनी के जी.ऍम. लेवल के लोग बीसियों दफे आये. जांच अधिकारी भी आया. उनकी जांच का धुंआ निकल गया. कोर्ट कहे सबूत लाओ. सबूत कोई आये नहीं. आखिरी मौके तक कोई सबूत नहीं आया तो एक आदेश से लेबर कोर्ट ने कम्पनी की एविडेंस ही क्लोज़ कर दी. अब कम्पनी भागी हाई कोर्ट. वहां मेरा दुर्भाग्य कि केस का नम्बर आने में ही कोई तेरह साल लग गए. जब आया तो छ: महीने में मामला निबटाने के आदेश के साथ आया. कम्पनी ने इन छ: महीनों के आखिरी दिन बिताने के बाद आखिर हथियार डाल दिए. मेरी बहाली मान ली और उसके बदले में पांच लाख रुपये की पेशकश भी की. मेरे लिए ये एक बड़ी नैतिक जीत थी. मैंने पेशकश मान ली.
इन पंद्रह से अधिक सालों में मुझ पे हुए ज़ुल्मों का हिसाब किताब देखते मेरा इकलोता बच्चा जज बन गया. मेरी एक बहन हाई कोर्ट की जज. मैं भी टीवी चैनलों के ज़रिये समाज के लिए जो कर सकता था, करता रहा. हमने जिस हाल में भी ये पंद्रह साल काटे, हम खुश हैं कि इतने बड़े साम्राज्य के साथ इतने लम्बे संघर्ष से हम एक मिसाल बन के उभरे हैं. इस संकल्प के साथ कि पहले हमने ज़ुल्म सहा नहीं, अब होने नहीं देंगे..!!
इन पंद्रह, सोलह बरसों में कभी किसी ने एक बार राजीनामे की कोशिश नहीं की. निशिकांत ठाकुर क्लर्क थे, जब मैंने ज्वाइन किया. सर्कुलेशन के सिलसिले में कभी चंडीगढ़ आते तो किसी छोटे मोटे होटल के लिए भी किराया नहीं होता था उनकी जेब में. अखबार वाली टैक्सी में आते. मेरे दो कमरे के किराए वाले घर में सोते, नहाते, नाश्ता करते. वो जीएम हो गए. अक्सर कोर्ट आते. घूर के देखते. पर, नरेन्द्र मोहन जी हमेशा प्यार से मिले. मैंने सुना, वे मेरी पीठ पीछे भी मेरे नाम के साथ ‘जी’ लगाना नहीं भूलते थे. वे भी कई बार आये अदालतों में. उनके साथ पांच, सात लोग हमेशा होते थे. मैं अकेला. बीच बीच में बेरोजगार भी. खाली हाथ भी. संजय गुप्ता को न कभी मैंने देखा, न मिला. एक बार फोन पे बात हुई थी. ‘गोल्डन शेक हैण्ड’ की बात कह रहे थे. मुझे मंज़ूर भी था. वे पापा से बात कर के कॉल करने वाले थे. पापा नहीं माने होंगे. वे मेरे भी पिता सामान थे. मुझे उनके न रहने का दुःख है. पर ये तसल्ली भी कि आज जागरण की जगहंसाई देखने के लिए वे इस दुनिया में नहीं हैं.
जगमोहन फुटेला
चंडीगढ़
(जगमोहन फुटेला जागरण को अदालत में बुरी तरह हराने के बाद अब करियर की नई पारी प्लान कर रहे हैं. इस नई पारी में वे खुद की एक वेबसाइट लांच करने जा रहे हैं. गिला-शिकवा नाम से. हम चाहेंगे कि www.gilashikva.com वेबसाइट के जरिए जगमोहन फुटेला समाज के ऐसे लोगों को मंच प्रदान करें जो अभावों के बावजूद अपनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं और डटे हुए हैं. – एडिटर)
Comments on “‘गोल्डन शेक हैण्ड’ चाहते थे संजय गुप्ता”
Many many thanks Yashwant Bhai for ur good wishes moral support.I promise that I’ll try my best to extend support to those who struggle to keep the system right and fight for the dignity of all individuals and institutions.I call upon all to send their concerns,views to me on gila@gilashikva.com with cc to phutelajm@yahoo.co.in -Jagmohan 09814113999.
Jagmohan ji aap sher hai.sher kabhi chor se darte nahi hai.do kaudi k cleark ka jikra karna uska maan badhane jaisa hai.Mard aise hi ladte aur jeet te hai.May god give you more courage to fight with such evil spirits.
In an age of contractual journalism (!) Jagmohan’s story is a BIG moral booster for scribes
jagmohan ji mazza aa gaya aur josh bhi jeet hamesha sach ki hoti hai der hi sahi….nai suruat k liye badhai
Aapke is sangharshpurna jeet ke liye badhae. Yuwaon ko aapse prerna milegi.Mai aapko tab se jaanta hu jab aap kicha(Uttarakhand) me Punjab Kesari ke samvaddata hua karte the. Apki likhawat aaj bhi mujhe thik-thik yaad hai. Nayi website ke liye shubhkaamnayen.
u r ideal for us.relally.
Badhai ho Jagmohan ji,
Badi per neki ki jeet ke liye badhai!
Shame shame! Nishikant!
Respected Jagmohan Phutela jee, aap ki naitik, GAURAVPOORNA aur utsah paida karne wali VIJAY k prati apni bhavnaoan ka izhar main ne sambandhit khabar k sath hi kar diya tha, lekin aaj aap k uparyukt aalekh ko padh kar kuchh nai jankariyan bhi mileen. Dhanyavad aur punah badhaiyan. Aap ne bahut hi uttam kadam uthane ki thani hai, Eshwar aap ki madad kare.
आप सभी मित्रों का धन्यवाद.पत्रकार ही नहीं,किसी के भी आत्मसम्मान की बहाली के लिए आप मुझे साथ खड़ा पायेंगे.-आप सब को समर्पित,जगमोहन editor@gilashikva.com
heartiest congratulations jagmohan. pay my regards to bhabhi ji who stood behind you in your struggle against the mighty media barron.your son meaning my nephew has inherited good values from your strugggle and i hope he will also earn goodwil in the state.we had share good days in jansatta , chandigarh.kiccha to chandigarh and jansatta to jagran and fir lambi ladai fir kamyabi.tumhe yad hai mer beta kaha karta tha phutele uncle aye hai.hamre ed sathi. tapas nahi rahe.mere mobile hai 9017553586. tumahara kaya hai,
HATS OFF for Mr. Futela….. Well Done.
Dil se shubhkamanayain. Mujhe laga jaise ye meri jeet hui hai. Kyu k Jagran ka itihas raha hai journalists ka carrier khatam karane ka. Jagran management kaise logon ko chahati hain, ye aap bhali tarah anate hain. Fir se Badhai.
Phutela ji ki himmate mardan gatha parhi. Badhai hai unko. Esi hi ek etihasik ladai hindustan times ke karmachari court me lad rahe hain. Sarei rajnitik partiyan ek hain, hindustan times management ke saath, delhi sarkar sahit. Phir bhi wo 362 karmachari himmat se jute hain. Phutela ji ki gatha se unko hiimat milegi………..Satya Hamesha Jeetata hai, par hindustan me shayad kaphi der se….
Jagmohan ji ki ye ladai hame hausla deti hai ki badi badi taaqkaton se bhi ladkar jeeta jaa sakta hai.
बहुत बहुत मुबारक हो सर , वैसे इन १५ सालों मैं कई बार मन में आया होगा केस वापस ले लें .. पर सच यही हैं की जीत सच्चाई की ही होती हैं .विवेक
बहुत बहुत मुबारक हो सर , वैसे इन १५ सालों मैं कई बार मन में आया होगा केस वापस ले लें .. पर सच यही हैं की जीत सच्चाई की ही होती हैं .विवेक
यार, पत्रकार हो तो जरा भाषा तो ठीक इस्तेमाल किया करो। गोल्डन शेक हैंड नहीं होता, गोल्डन हैंडशेक होता है। आपको पढ़कर न जाने कितने और लोग गलत बोलना और लिखना सीखेंगे।
bahut bahut badai ho gagmohan ji. jeet hamesh sach ki hothi hai. un logo ki nahi jo dalali kar ka age badtha hai. nishikant thakur un dalal mai sa hi 1 hai. clerk sa gm tak ka safar unaki dalali ka reward hai. baat chahe ladakiyo ki dalai ki ho ya kuacha or. aisa dalalo ka age apaki jeet ko koi roka nahi saktha tha. ummed hai ki apaki ya engery age bhi bani rahgi.>:(
Hindustan ke media ithaas ki sabse Badi Ladai Ladne or Jitne ki Badhai Dene ke Liye mere Pass Alfaazo ki Kami Hai … Mujhe lagta hai es taarif ke aage Saarain Shabad Boney lagte Hai … Ithaas ke panno main darz yeh JEET Media ke liye sabse badi misaaal Hai…. 13 saal main kitne din hote hai eska hisaab lagana tak mushkil hai …ladai ladna kitna mushkil hoga yeh sochane se bhi dar lagta hai…. or fir aap to wo Farishta hai Jinhone Punjab , Haryana , Himachal ke apne Media sathion ke liye Bhi lambi ladai ladi …. or un logo main main bhi Shaamil Hoon … Aapki Priya Anuj ….. Sanjeev Sharma Paonta Sahib
09805558404