सवाल हिसार में कांग्रेस की गई या बची ज़मानत का नहीं

: हरियाणा को गुजरात हुआ समझिए : सवाल हिसार में कांग्रेस की गई या बची ज़मानत का नहीं, हरियाणा में नेस्तनाबूद हुई अस्मत का है. जैसे उसने कभी महाराष्ट्र में मराठों, यूपी में ब्राह्मणों और पंजाब में सिखों को खोया वैसे ही उसने हरियाणा में जाटों और गैरजाटों दोनों को खो दिया है. हिसार के चुनाव और उसके परिणाम को मतदाताओं के जातिगत तौर पर हुए बंटवारे के रूप में देखिए.

हिसार में खामखा वाहवाही लूटेंगे अन्नावाले

जगमोहन फुटेला: क्योंकि हिसार कभी कांग्रेस का था ही नहीं : मैंने एक न्यूज़ चैनल पे देखा. सी वोटर के एग्जिट पोल के सहारे वो बता रहा था कि हिसार में अन्ना टीम के हक़ में फैसला आता है या कांग्रेस के! ये अन्ना आन्दोलन की प्रशंसा है तो ठीक हैं. भक्ति है तो भी ठीक है और चमचागिरी हो तो तब भी उनकी मर्ज़ी. लेकिन ये व्यावहारिक नहीं है. ये सच नहीं है.

हिसार चुनाव में दो रीजनल न्यूज चैनलों की राजनीति

जगमोहन फुटेला: टोटल तो एक बहाना है… : टोटल टीवी या उस के मालिकों में इतना दम नहीं है कि हरियाणा में अपना प्रसारण बंद होने पर वे खापों की पंचायत बुलवा कर उन से सरकार के खिलाफ संघर्ष का ऐलान करा सकें. ये मान लेना भी सरासर गलत होगा कि चैनल चौटाला का है या कि टोटल के हक़ में खाप का फतवा उन ने जारी कराया होगा. सहानुभूति हो सकती है.

दीपक चौरसिया ने अन्ना का अपमान किया!

जगमोहन फुटेलासन अस्सी के दशक के शुरू में मेरी पहली नौकरी लगी तो मैं उपसंपादक था और मेरी पहली तालीम ये कि जब भी किसी मसले पर किसी भी संस्था का सहमति या विरोध में कोई प्रेस नोट आए तो उसमें लिखे नामों में से कम से कम आधे ज़रूर छाप देना. बाकी आधे अगली बार.

यों पतन को प्राप्त हुआ चंडीगढ़ प्रेस क्लब

अपन प्रेस क्लब और उसके पतित पथ की बात करें, उस से पहले एक छोटा, सच्चा किस्सा. आखों देखा, मेरे गाँव का. कोई बीस तीस शिकारी कुत्ते ले के शिकारियों ने हांका लगाया हुआ था कि गन्ने के खेतों से जान बचाता एक हिरन निकला. जान जाती देख शायद जानवर को भी अकल आई. उधर खेतों में कहीं एक बुज़ुर्ग किसान था. हिरन सीधा उसके पास आ बैठा. किसान मेंड़ बना रहा था. बनाता रहा.

भ्रष्टचारियों की बजाय व्हिसल ब्लोअर के पीछे हाथ धोकर पड़ने वाला एक पत्रकार

जगमोहन फुटेला: ट्रिब्यून की बेशर्म पत्रकारिता :  परसों सी.बी.आई. ने पंजाब के एक सीनियर भाजपाई मंत्री के लिए रिश्वत लेते संसदीय सचिव को पकड़ा, कल मंत्री को सी.बी.आई. ने पूछताछ के लिए बुलाया है और आज ट्रिब्यून में एक खबर है. खबर में शिकायतकर्ताओं की ऐसी तैसी की गयी है. कहा गया है कि शिकायतकर्ता मनप्रीत उस देवेंदर का दोस्त है जो मंत्री के लिए दलाली करते हुए पकड़ा गया है.

मेरे लिए तो वे भगवान थे

चिरायु हों सभी पत्रकार लेकिन आलोक के साथ एक युग का अंत हुआ है. उन सा न कोई था, न कोई होगा. उस शब्दावली, उस शैली और उस तेवर को दुनिया तरसेगी. मेरे लिए तो वे भगवान थे. उत्तराखंड के एक गाँव से उठ कर जनसत्ता (चंडीगढ़) की मेरिट में मैं उन्हीं का अनुसरण कर टाप कर पाया था.

कुछ तो शर्म करो ‘टाइम्स नाऊ’ वालों!

दायें बैठे गेस्ट पे सवाल दाग महान मुख्य सम्पादक का हमेशा बायें देखना ही काफी नहीं था. अब तो उनके चिरकुटों को भी झेलना पड़ रहा है. बाजारू और छिछले अखबारों की तरह सबसे पहले ब्रेक और फिर अपनी खबर का असर बताने के अब आदी हो चुके टाईम्स नाऊ ने 19 जनवरी के दिन तो निहाल ही कर दिया. अपने मुख्य संपादक को खिड़की में लेकर चैनल ने शपथ ग्रहण समारोह से कोई दो घंटे पहले बताना शुरू किया कि उनके हाथ बनने वाले मंत्रियों के नामों की सूची लगी है उनके विभागों के बंटवारे के साथ.

It’s all politics, General..!

जगमोहन फुटेलाThe ones who do not die of enemy’s bullet can end up with the kindness of friends, they say. It’s not apparent so far if General Deepak Kapoor applied for a plot in Gurgaon. He might have been approached to have one there, if yes. Or accept at least if generosity of the state government showers upon him. You never know, he might have been wooed to vie for one but not for the reason being given. Fact lies with the politics.

शाबास संजीव!

जगमोहन फुटेलामैं ब्यूरो देखता था जब सीधा सादा कुछ अनाड़ी सा दिखने वाला एक लड़का आया मेरे पास. उसके पास भाषा नहीं थी, उच्चारण भी गड़बड़. स्ट्रिंगरों के साथ होने वाले शोषण से भी अनजान. उसके कपड़े-जूते, हाथ में एक छोटा सा पुराना (शायद किसी से माँगा हुआ) कैमरा और हालत देख कर तरस भी आ रहा था. शुरुआती बातचीत में ही मैं समझ गया था कि पत्रकार होने की उसकी ललक ने एक बार उसे बेगारी और बेरोज़गारी के दुष्चक्र में फंसाया तो बांह पकड़ के बाहर निकालने वाला भी उसके परिवार में कोई नहीं. तर्क-वितर्क का जोड़-घटाव लगातार कह रहा था कि उसे साहिर साहब के गुमराह वाले शेर की तरह कोई अच्छा सा मोड़ देकर छोड़ दूं. लेकिन दिल था कि दिमाग की मानने को तैयार नहीं था. मुझसे मिल-सी नहीं पा रहीं थीं पर, उसकी उन छोटी छोटी आँखों के भीतर बहुत भीतर तक दिख रहा एक आत्मविश्वास था.

…तो वो मां, और अब ये बहन हाजिर हैं

: पुलिसिया कहर का शिकार हर चौथे पत्रकार का परिवार :  जबसे मैंने अपने मां के साथ हुए बुरे बर्ताव का प्रकरण उठाया है, मेरे पास दर्जनों ऐसे पत्रकारों के फोन या मेल आ चुके हैं जिनके घरवाले इसी तरह की स्थितियों से दो चार हो चुके हैं. किसी की बहन के साथ पुलिस वाले माफियागिरी दिखा चुके हैं तो किसी के भतीजे के साथ ऐसा हो चुका है. इंदौर से एक वरिष्ठ पत्रकार साथी ने फेसबुक के जरिए भेजे अपने संदेश में लिखा है- ”यशवंत जी, मैं आप के साथ हूं. मेरे भतीजे के साथ भी ऐसा दो बार हो चुका है. मैं आप की पीड़ा समझ सकता हूँ. मैं एक लिंक भेज रहा हूँ, जहाँ मैने आप की ओर से शिकायत की है. सड़क पर मैं आप के साथ हूँ.” इस मेल से इतना तो पता चलता ही है कि उनके भतीजे पुलिस उत्पीड़न के शिकार हो चुके हैं. अब एक मेल से आई लंबी स्टोरी पढ़ा रहा हूं जिसे लिखा है पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन फुटेला ने. फुटेला ने अपने राइटअप का जो शीर्षक दिया है, ” …तो वो मां, और अब ये बहन हाज़िर हैं…”, उसे ही प्रकाशित किया जा रहा है. जितने फोन संदेश व मेल संदेश आए, उसमें अगर मैं अनुपात निकालता हूं तो मोटामोटी कह सकता हूं कि हर चौथे पत्रकार का परिजन पुलिस उत्पीड़न का शिकार है. श्रवण शुक्ला वाले मामले से आप पहले से परिचित हैं.

इतिश्री की ओर अग्रसर चंडीगढ़ प्रेस क्लब!

जगमोहन फुटेलादेश का आकार में सबसे बड़ा, किसी समय सबसे अमीर और ‘सिटी ब्यूटीफुल’ के नाम को सार्थक करता अति खूबसूरत चंडीगढ़ प्रेस क्लब कंगाल हो जाने की कगार पर है. क्यों? कहानी लम्बी है. पहले इस क्लब का इतिहास समझ लें. फिर ताकत. फिर असलियत. मनु शर्मा के दादा और विनोद शर्मा के पिताश्री पंडित केदार नाथ शर्मा के घर से आये प्लेट, गिलासों, चम्मचों के सहारे सफ़रजदा हुआ यह क्लब.

‘गोल्डन शेक हैण्ड’ चाहते थे संजय गुप्ता

जगमोहन फुटेलानिशिकांत ठाकुर क्लर्क थे, पैसे न होने से मेरे घर में सोते, नहाते, नाश्ता करते : नरेन्द्र मोहन पीठ पीछे भी मेरे नाम के साथ ‘जी’ लगाना नहीं भूलते थे : तसल्ली ये है कि नरेंद्र मोहन दैनिक जागरण की जगहंसाई देखने के लिए दुनिया में नहीं हैं : पंद्रह साल तक चले मुकदमे के दौरान मेरा इकलौता बच्चा जज बन गया, मेरी एक बहन हाई कोर्ट की जज हो गई : हम खुश हैं कि इतने बड़े साम्राज्य के साथ इतने लम्बे संघर्ष से हम एक मिसाल बन के उभरे हैं : पत्रकारिता में मैं इंडियन एक्सप्रेस के अश्विनी सरीन को ये बताने के लिए आया था कि वे अगर पांच हज़ार रूपये में पैंतीस साल की एक अधेड़ महिला को खरीद कर देश व महिलाओं की हालत का पर्दाफाश कर सकते हैं तो मैं सिर्फ सौ रुपये में महज़ सोलह साल की एक लड़की को खरीद सकता हूँ.

फुटेला ने कोर्ट में जागरण को हराया

जगमोहन फुटेलाबहाली के बदले जागरण ने 5 लाख रुपये दिए : किसी अख़बार और पत्रकार के बीच इस देश में सबसे लम्बा चला मुकदमा आखिरकार पत्रकार ने जीत लिया. तबादले और बर्खास्तगी हुए. सब-जज से लेकर हाई कोर्ट तक आधा दर्जन मुकदमे चले. चंडीगढ़ की लेबर कोर्ट में 15 साल तक यह विवाद चला. आखिरकार अखबार ने हार मान ली. उसे पत्रकार को बहाली के बदले मोटी रकम देनी पड़ी. विवाद दैनिक जागरण और जगमोहन फुटेला के बीच था. फुटेला जागरण,  नोएडा की शुरुआत से ही संपादक कमलेश्वर की टीम में और सन ९० से चंडीगढ़ ब्यूरो चीफ थे. राजीव गांधी के अंतिम संस्कार की कवरेज के लिए उन्हें खासतौर पर दिल्ली बुलाया गया. उनकी उस स्टोरी को उस दिन के हिंदी अखबारों में सबसे बेहतर मानते हुए उन्हें बीच में राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख भी बनाया गया था.