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पत्रकारों की आह ले डूबी उपाध्याय को

समझ में नहीं आता, ये मुसाहिब क्यों इतराते हैं, जब उड़ान भरते ही इनके पर कतर दिए जाते हैं… अभी तीन सप्ताह पूर्व उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सम्हाले अजय कुमार उपाध्याय को जब देवीपाटन मण्डल का अपर आयुक्त बनाकर गोण्डा भेजे जाने की जानकारी मिली तो मुझे सहसा एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की उपरोक्त टिप्पणी याद आ गई। ये अधिकारी मंचों पर कविता पाठ नहीं करते किन्तु अपने लोगों के बीच गुनगुनाते रहते हैं।

<p align="justify"><strong>समझ में नहीं आता, ये मुसाहिब क्यों इतराते हैं, जब उड़ान भरते ही इनके पर कतर दिए जाते हैं... </strong>अभी तीन सप्ताह पूर्व उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सम्हाले अजय कुमार उपाध्याय को जब देवीपाटन मण्डल का अपर आयुक्त बनाकर गोण्डा भेजे जाने की जानकारी मिली तो मुझे सहसा एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की उपरोक्त टिप्पणी याद आ गई। ये अधिकारी मंचों पर कविता पाठ नहीं करते किन्तु अपने लोगों के बीच गुनगुनाते रहते हैं। </p>

समझ में नहीं आता, ये मुसाहिब क्यों इतराते हैं, जब उड़ान भरते ही इनके पर कतर दिए जाते हैं… अभी तीन सप्ताह पूर्व उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सम्हाले अजय कुमार उपाध्याय को जब देवीपाटन मण्डल का अपर आयुक्त बनाकर गोण्डा भेजे जाने की जानकारी मिली तो मुझे सहसा एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की उपरोक्त टिप्पणी याद आ गई। ये अधिकारी मंचों पर कविता पाठ नहीं करते किन्तु अपने लोगों के बीच गुनगुनाते रहते हैं।

अपने निष्पक्ष कार्यप्रणाली तथा स्पष्टवादिता के कारण वे अक्सर सत्ता पक्ष के लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे और परिणामस्वरूप उनके सरकारी सेवा का अधिकांश कार्यकाल सचिवालय में ही बीता। जिले में कभी तैनाती भी मिली तो कार्यकाल बहुत सीमित रहा। बहरहाल, उन्होंने बहुत दुनिया देखी है और एक लम्बा अनुभव है। मुश्किल से डेढ़ बरस उनकी सेवानिवृत्ति को बचे हैं। ऐसे में उनके अनुभव का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं। यह उनकी स्पष्टवादिता ही है कि वे खुलेआम कहते हैं कि मैं सरकारी नौकर हूं। इतना ही नहीं, वे अपने मातहतों को भी हमेशा इस बात को ध्यान में रखकर काम करने की नसीहत देते हैं।

खैर, अब चलते हैं मुद्दे पर। अजय कुमार उपाध्याय मीडिया के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम हैं। ये उपाध्याय जी वहीं शख्सियत हैं जो बसपा में कभी दूसरे नम्बर का दर्जा रखने वाले सतीश चन्द्र मिश्र के करीबी थे। पीसीएस अधिकारी होने के बावजूद वे करोड़ों के बजट वाले सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के निदेशक थे, जो सामान्तया आईएएस अधिकारी हुआ करता है। इतना ही नहीं, अपनी पहुंच के बूते ही वे सचिव पद का भी काम देख रहे थे। उनके ऊपर सीधे विजय शंकर पाण्डेय ही हुआ करते थे, जो विभाग के प्रमुख सचिव थे और अपर कैविनेट सचिव का भी काम देखते थे। वे भी मिश्र जी के काफी करीबी समझे जाते थे। प्रदेश स्तर के अधिकारी बनने के बाद अजय कुमार उपाध्याय ने मुख्यमंत्री की खैर-ख्वाही के चक्कर में एक साथ पूरे उत्तर प्रदेश के पत्रकारों से पंगा ले लिया।

हुआ यूं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय सहित सभी इकहत्तर जनपदों में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं संवाद समितियों में कार्यरत पत्रकारों की नई प्रेस मान्यता करने तथा नवीनीकरण करने के लिए प्रेस मान्यता नियमावली में संशोधन कर दिया। उन्होंने व्यवस्था बना दी कि एक निश्चित धनराशि प्रतिमाह मानदेय के रूप में प्राप्त करने वाले पत्रकारों को ही प्रेस मान्यता दी जा सकेगी तथा उन्हीं का नवीनीकरण किया जा सकेगा। नई नियमावली को लेकर राज्य के पत्रकारों ने सूचना निदेशक तथा प्रमुख सचिव से मिलकर प्रतिवेदन भी दिया किन्तु कहीं से कुछ भी हासिल नहीं हुआ। चूंकि उतनी धनराशि मानदेय के रूप में बहुत ही कम समाचारपत्र अपने संवाददाताओं को मानदेय के रूप में प्रदान करते हैं, इसलिए न केवल नए पत्रकारों की प्रेस मान्यता होने का रास्ता बंद हो गया, अपितु विभाग द्वारा वांछित वेतन प्रमाण पत्र न दे पाने के कारण पहले से मान्यता प्राप्त प्रदेश भर के सैकड़ों पत्रकारों की मान्यता बीते 28 फरवरी 2010 को समाप्त हो गई।

इस आदेश की चपेट में गोण्डा के भी पत्रकार आ गए। आज स्थिति यह है कि गोण्डा में अमर उजाला को छोड़कर जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, आज, स्वतंत्र भारत, अमृत प्रभात, पायनियर, टाइम्स आफ इंडिया, नार्दन इंडिया पत्रिका, राष्ट्रीय स्वरूप जैसे किसी भी समाचारपत्र के संवाददाता की प्रेस मान्यता नहीं है। सूचना निदेशक की इस कार्यप्रणाली से पूरे प्रदेश के पत्रकारों में बसपा सरकार के प्रति काफी आक्रोश था। निश्चित रूप से आने वाले विधानसभा के चुनाव में इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा किन्तु इससे पूर्व मुख्यमंत्री का माला प्रकरण हो गया और मीडिया ने इसे उछालना शुरू किया तो अजय कुमार उपाध्याय को प्रकरण को रफा-दफा करने के लिए लगाया गया किन्तु उनसे पहले से ही खार खाए बैठी मीडिया ने उन्हें तवज्जो नहीं दी तो नतीजा सामने है। उन्हें पहले तो सूचना निदेशक जैसी मलाईदार कुर्सी से हटाया गया और बाद में देवीपाटन मण्डल का अपर आयुक्त बनाकर गोण्डा भेजा गया है।

अपर आयुक्त का पद वैसे भी कम महत्वपूर्ण माना जाता है और नवसृजित जनपदों में तो इनकी स्थिति और भी खराब होती है। यहां इनके लिए न तो पर्याप्त स्टाफ है और न ही बेहतर संसाधन। अब इन्हें शायद महसूस हो कि पत्रकारों से उन्हें ऐसा पंगा नहीं लेना चाहिए। उन्हें अपने पूर्वाधिकारी सूचना निदेशक रह चुके उस वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की कविता की इस लाइन को जरूर याद रखना चाहिए और किसी को महज खुश करने के लिए ऐसा कृत्य नहीं करना चाहिए जिससे बहुमत प्रभावित होता हो। उपाध्याय की कार्यप्रणाली से प्रदेश में पत्रकारों का बहुमत प्रभावित हुआ तो मुख्यमंत्री उन्हें सूचना निदेशक बनाए नहीं रख सकीं। अब वे पुनः अपनी स्थिति पर लौट आए हैं।

लेखक जानकी शरण द्विवेदी प्रेस क्लब गोंडा के सचिव हैं और उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महामंत्री हैं.

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0 Comments

  1. Ramendra singh

    April 9, 2010 at 10:36 am

    bhaie divedi jee
    Ab yah aap kie jimmedari haie kie upadhyay jee kie juta ka mala pahna kar khoob swagat kare, jisse us dog ko yah pata chale kie sab din rahat na ek samana. upadhaya bahut bada kutta haie. yah sala jaha jayega lat khayega tab hie thiek hoga. yah gadhe kie aulad haie.
    Ramendra singh
    Lucknow.

  2. prakash

    April 8, 2010 at 12:24 pm

    …… aise gaye maya mili na ram

  3. ravindra singh kushwah

    April 7, 2010 at 4:49 pm

    unity is strong forc. letest case is a better message.

    from-Ravindra singh kushwah
    peoples gwl

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