”…एक मैडम हैं जो इस चैनल के लिए भारत ही नहीं, विश्व ही नही बल्कि ब्रम्हांड की खबरें भी देखती हैं. दिल्ली की एमसीडी से लेकर नासा तक इनका ही साम्राज्य है. तो उनका एक किस्सा. नागपंचमी के दिन उन्हें ओबी ले जाकर लाइव करने को कहा गया. कुछ अलग करने की चाह में उन्होंने कर डाली एक अजीब सी हरकत. आप शायद यकीन न करें लेकिन उन्होंने ऑन एयर सांप को दूध की बजाय कोल्ड ड्रिंक पिलाने की कोशिश की. सांप बेचारा ना ना में सर हिलाता रहा और मैडम कोशिश करती रहीं. खैर, ऑन एयर चल रहे इस ड्रामे को पांच सात मिनट बाद किसी तरह गिरवाया गया.
एक और साहब हैं जो बच्चे बन कर इस चैनल में आए थे और देखते देखते मर्द बन गए. अक्सर मुझसे पूछते हैं, “भइया, नार्थ कैम्पस किस डिस्ट्रिक में आता है”! मैं बेचारा बार-बार उन्हें समझाता हूं, बेटा तू चाहे हजार दफा पूछ ले लेकिन नार्थ कैम्पस तो साउथ डिस्ट्रिक में आने से रहा.
एक और सज्जन हैं जिनका नाम लोग पुलिस मुख्यालय के “प्रेस को बेवकूफ बनाइये” कार्यक्रम के अधिकारी की तर्ज पर गोलू रखते हैं. एक नंबर के दिलफेंक हैं और दिल के साथ अक्सर बकैती भी फेंक आते हैं, ये सोचे बगैर की पत्रकारों की दुनिया बड़ी छोटी है. एक और सज्जन हैं. नए-नए ही चैनल में आए हैं. पिछले आठ-दस महीनों में उनके इतने किस्से हुए की पूछो मत. आप भी एक सुन लीजिए. मीटिंग चल रही थी ब्यूरो की. किसी बात पर उनसे पूछा गया कि पीएमओ क्या है, जानते हो? उन्होंने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया- वो न, वहां किसी प्राइम मिनिस्टर का कत्ल हो गया था, तबसे उसे पीएमओ कहते हैं.
एक और सुनिए……. उन्ही सज्जन को एक बार रात में एक मर्डर केस को कवर करने के लिए भेजा गया… साहब बहुत लेट पहुंचे और बगल के किसी दूसरे के घर का दरवाजा खटखटा दिया… जो सज्जन बाहर निकले उनके मुंह पर आईडी लगाकर सीधे जवाब दाग दिया- “आपने किया है मर्डर”
वो शायद कुछ और पूछना चाहते थे लेकिन एन मौके पर जबान फिसल गई… और रिपोर्टर साहब किसी तरह अपनी जान बचा कर भागे…..एक और मोहतरमा हैं जिनको मैं कभी थैलीसीमिया तो कभी पीलिया तो कभी फ्लू कह के बुलाता हूं… मैडम की एक्सक्लूसिव ख़बरों में भी एक स्थानीय चैनल की “मनोहर” छवि छाई रहती है…”
ये सब आपने जो पढ़ा वो युवा पत्रकार जयंत चड्ढा ने लिखा है। कहां लिखा है, यह भी बता देते हैं। लिखा है अपने ब्लाग पर। जयंत की उम्र 26 वर्ष है, जैसा कि वे अपने ब्लाग प्रोफाइल में बताते है और खुद के बारे में कहते हैं-
”मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं. मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिन सोचे समझे जाने क्या क्या कहा है! मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं……. कभी कभी बहुत चालाक और कभी बहुत भोला भी… कभी बहुत क्रूर और कभी बहुत भावुक भी…. मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं… बहुत टूटे भी हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं… पर मैं भी एक आम आदमी की तरह् अपनी ज़िन्दगी से सन्तुष्ट नही हूं… मुझे लगता है कि मैं नास्तिक भी हूं थोड़ा सा… थोड़ा सा विद्रोही…परम्पराएं तोड़ना चाहता हूं… और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं… मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी…लेकिन बोल कर नहीं…बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं बहुत अकेला हूं… मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी…लोग कहते हैं लड़कों को नहीं रोना चाहिये…पर मैं रोता भी हूं…और मुझे इस पर गर्व है क्योंकि मैं कुछ ज्यादा महसूस करता हूं…”
तो ये हैं अपने जयंत जी जिनसे हम सभी उम्मीद कर सकते हैं कि उनकी संवेदना, उनके तेवर, उनका मिजाज और उनके विचार जरूर एक दिन कोई नया गुल खिलाएंगे। यह गुल उम्मीदों, सपनों और संभावनाओं से भरा होगा। वे जरूर हिंदी साहित्य और हिंदी मीडिया को कुछ नया, कुछ ताजा देंगे। जयंत के लेखन का अंदाज बताता है कि उनमें गजब की संभावनाएं हैं। जयंत अपने ब्लाग नई कलम पर इन दिनों एक सीरीज लिख रहे हैं- किस्सा ए न्यूज रूम नाम से। इसके तीन पार्ट वे अपने ब्लाग पर लिख चुके हैं। उपर आपने जो पढ़ा वो तीसरे पार्ट का एक अंश है। अब आपको पहले और दूसरे पार्ट के अंश पढ़ाते हैं-
”….न्यूज रूम में अन्दर घुसते हुए आपकी नजर एक व्यक्ति से टकराएगी जो जोर-जोर से चिल्ला रहा होगा…. “काटो-काटो-काटो” चौंकियेगा मत. दरअसल हम न्यूज़ वाले इस एक शब्द का इस्तेमाल कई-कई अर्थों में करते हैं, और काटना तो न्यूज़ रूम वालों की फितरत में है… एक-दूसरे को काटना, उनकी भावनाओं को काटना, उनकी प्रगति हो काटना, उनके विश्वास को काटना, तो उस शख्स के बगल वाली डेस्क यानि पहली डेस्क का नाम है असाइनमेंट डेस्क. इस डेस्क का नाम लेते ही एक लड़की याद आती है जो अक्सर मेरे कान में आकर बोलती है ”ऊपर चल, तेरे लिए चिकेन ले के आयीं हूं” या फिर फोन पर पूछती हुई कि “अभी तक शूट से लौटा नही…. तेरे लिए खीर ले के आई थी…”
गलत मत समझियेगा. मैं चटोरा नही हूं और वो भी शादी-शुदा है लेकिन घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर उसके बनाए खाने के स्वाद में अक्सर उसकी शक्ल कभी मम्मी तो कभी बहन जैसी हो जाती है. खैर, बात असाइनमेंट डेस्क की हो रही थी. दरअसल ये डेस्क एक भूल-भुलैया है. टेलीफोन की तारों की, बातों की, कागजों की, चलती-फिरती-बोलती तस्वीरों की और जिम्मेदारियों की भूल-भुलैया. इस डेस्क के बाशिंदे कैसे इन सब चीजों से आठ घंटे का वास्ता रख पते हैं, ये दुनिया का नौवां आश्चर्य है.
इस डेस्क को महज काल-सेंटर मत समझ लीजियेगा क्योंकि यहां सेल्स गर्ल वाली विनती या रिक्वेस्ट नही है. यहां से रहम की गुंजाइश रखना बेकार है. सालों-साल की पढ़ाई, टैलेंट और सारा ज्ञान किसी जुमा-जुमा आठ दिन की आई हुई लड़की के फोन आते ही धरा रह जाएगा आपका. इस डेस्क से जुडा एक किस्सा याद आ रहा है, मुलाहिजा फरमाएं….
हुआ यूं कि चुनावों के मौसम में लुधियाना शहर के एक रिपोर्टर ने असाइनमेंट डेस्क को फोन कर के दरियाफ्त किया कि “मैंने नरेन्द्र मोदी की रैली की फीड भेजी थी, उसे चलवाई क्यों नही?” उधर बैठी एक लड़की ने पूछा कि कौन नरेन्द्र मोदी? रिपोर्टर इस जवाब से हैरान रह गया. खैर, उसने मजे में बोला- अरे! कांग्रेस के लीडर हैं नरेद्र मोदी. उधर से हड़काया गया कि लिखनी चाहिए थी ना ये बात, लिखा होता तो चला देते ना अब तक. वो लड़की आज-कल हमारे चैनल के एक प्रोमो में नजर आती हैं. बुरा मत मानिएगा अगर कल को वो हमारी बास बन जाए या फिर एंकर बन आन एयर पूछे कि बताइए पुलिस ने क्या-क्या ब्रा-मद किया है वहां से….”
”….आज बात उस डेस्क की जिसे गोलियों का भी कोई डर नहीं. जी हां, बामुलाहिजा होशियार! ख़बरदार!! आज बात होगी न्यूज़ डेस्क की. यानि आउटपुट डेस्क की…असाइनमेंट के बाद की अगली डेस्क का नंबर आता है इस डेस्क का लेकिन न तो काम और न प्रभाव, किसी लिहाज से ये डेस्क असाइनमेंट से कम तो हरगिज नहीं बल्कि कई मामलों में बहोत ज्यादा ही है. इस डेस्क का विस्तार चैनल की सभी डेस्कों में सबसे ज्यादा है.
बाकी चैनलों से जुदा हमारे चैनल की ये डेस्क अपनी तरह से अनोखी ही है. आप इस डेस्क पर काम के वक्त हर आदमी को इस तरह से देख सकते हैं मानो मैराथन में हिस्सा लेने जा रहे हों. इसके उलट कई बार खबरों के ककहरे को जोकहरे में तब्दील होते भी मैंने इसी डेस्क में देखा है. कहतें हैं कि गलतियां इंसान से ही होती हैं, लेकिन यकीन मानिये अगर गलतियों के विश्व रिकॉर्ड की कोई बात होगी तो गिनीज बुक वाले इसी डेस्क के आस-पास मंडराते हुए नज़र आयेंगे…. आइये मिलवाते हैं कुछ खास-खास लोगों से… यानि ऐसे लोगों से जिन पर मुझे यकीन है कि वो बुरा नही मानेंगे. आज तो नहीं, कल तक इस डेस्क के एक अहम सदस्य थे, जिनका नाम था मिस्टर गूगल. किसी भी व्यक्ति, देश, राजनेता, फिल्म स्टार, समूह, रिश्ते, काम या विषय, किसी भी चीज का उनके सामने नाम भर ले लीजिये. अगले पन्द्रह मिनट तक भगवान भी साक्षात धरती पर उतर आयें तो आपको बचा नही सकते उस अथाह ज्ञान की बारिश से….
एक और सज्जन हैं… जिनकी डाइट माशा अल्लाह इतनी अच्छी है कि वो बड़ी से बड़ी खबर को भी आराम से पचा जाते हैं. बाद में दरियाफ्त करने में यही सुनने को मिलेगा. लिखित में मिला था क्या. भले ही पाकिस्तान में हुए ब्लास्ट में हजार-पांच सौ लोग मर गए हों और चैनल का पाकिस्तान तो छोड़िये गाजियाबाद में कोई रिपोर्टर न हो, उन्हें खबर लिखित में ही चाहिए….
एक लड़की है जिसे लोग नाम से कम और उसकी चाल से ज्यादा जानते हैं…. दिन भर फिरकी की तरह इधर से उधर भागने के साथ-साथ एक और काम है उनके पास….. हा हा… हु हु …. ही ही…. हें हें … कही कही…. कहें कहें….यानि हंसी के हर प्रकार हर विधा को बड़ी खूबसूरती से अंजाम देती हैं ये मैडम… पूरा ऑफिस ये सोच-सोच कर हैरान है कि आख़िर इस चैनल की नौकरी में ऐसा क्या बचा है कि वो इतना खुश रहती हैं…. लेकिन बावजूद इसके एक बात की गारंटी है… पूरी डेस्क में किसी भी काम को इन मैडम के हाथों में सौंप कर आप निश्चिंत हो सकते हैं…
एक और मैडम हैं जिनको देखकर यह लेखक खुश हो जाता है. उनके चेहरे पर खुद का सपना बस पूरा ही होता दीखता है. सपना लम्बी सी सड़क पर लम्बी सी गाड़ी पर चलने का. देखिये कब दया करतीं हैं मैडम. एक ब्राहमण ने कहा है की ये साल अच्छा है. एक और साहब हैं जो इस लेखक के ही शहर के हैं और मंदी के दौर में भी तरक्की पर हैं. मेरे अच्छे मित्र हैं और मैं उनसे अक्सर कहता फिरता हूं…. कभी फंसो…..”
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- पार्ट वन- कलम नई है सो कुछ गलतियां भी हो सकती है…
- पार्ट टू- होता है शबे रोज ही तमाशा मेरे आगे
- पार्ट थ्री- रुख हवाओं का जिधर था उधर के हम थे
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