दैनिक जागरण प्रबंधन ने न तो आर्थिक सहायता दी और न ही कोई खोज-खबर ली : दैनिक जागरण के जमशेदपुर संस्करण के चिड़िया से रिपोर्टर राजेश सिंह 11 दिसंबर 2009 को सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें राउरकेला के इस्पात जनरल अस्पताल (आईजीएच) के आईसीयू में भर्ती कराया गया। एक माह से चल रहे इलाज के बाद भी उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है। 12 दिसंबर को झारखंड विधानसभा के मनोहरपुर क्षेत्र में मतदान होना था। वे 11 दिसंबर को क्षेत्र के तत्कालीन विधायक जोबा मांझी के कार्यक्रम की रिपोर्टिंग कर मनोहरपुर से घर लौट रहे थे।
इसी दौरान रास्ते में वे अपनी मोटरसाइकिल से गिरकर कोमा में चले गए। जागरण के जमशेदपुर कार्यालय को घटना की जानकारी दी गई, लेकिन प्रबंधन ने न ही किसी को देखने भेजा और न ही किसी तरह की कोई खोज-खबर ली। एक माह से अधिक समय से चल रहे इलाज पर परिवार वालों के तकरीबन तीन लाख रुपये खर्च हो गए हैं, लेकिन जागरण प्रबंधन ने फूटी कौड़ी की भी मदद नहीं की।
चक्रधरपुर अनुमंडल के पत्रकार संघ ने दस हजार रुपये की सहायता की। राजेश का अभी भी आईजीएच में इलाज चल रहा है और वे अभी भी होश में नहीं आए हैं। डाक्टरों के अनुसार, इलाज अभी लंबा चलेगा। ऐसी स्थिति में उनके परिवार की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। जागरण प्रबंधन के रवैए से अनुमंडल के पत्रकारों में काफी गुस्सा है लेकिन लोग उम्मीद लगाए हैं कि जागरण प्रबंधन अपने रिपोर्टर के इलाज में भरपूर आर्थिक सहायता करने के लिए आगे आएगा और इस तरह अपने कर्मियों का विश्वास जीतेगा।
braj kishore singh,hajipur, vaishali
January 16, 2010 at 4:59 am
यशवंत भाई कभी मार्क्स ने कहा था कि पूँजी का चरित्र नहीं बदलता.पूँजी का चरित्र अधिक-से-अधिक लाभ कमाना है और इसके सिवा कुछ नहीं.जागरण की स्थापना लाभ कमाने के लिए की गयी है और जो कंपनी अपने कर्मियों को ठीक-ठाक वेतन नहीं देती वो भला क्यों इलाज का खर्च उठाएगी?उसे तो इस बात से भी मतलब नहीं है कि इतने कम वेतन में कर्मी कैसे अपना स्वास्थ्य और परिवार की माली हालत ठीक रख पायेगा.
Alok Tomar
January 16, 2010 at 5:08 am
thanks. yashwant
govind goyal,sriganganagar
January 16, 2010 at 5:26 am
good luck.narayan narayan
anand bharti
January 16, 2010 at 6:00 am
Main bhi chandigarh me bhugat chuka hun. Mera bhi C.M ke awas ke saamne accident hua tha.Kisi ne koi khabar tak nahin li. Press club aur kuchh anjan patrakron ne mera ilaz karaya aur mere ghar ka chulha jalaye rakha. Jab ki HTke ek ghayal journalist ko unki company ne har madad ki.
sachin rathore
January 16, 2010 at 6:29 am
दौलत के इस दौर में संवेदनाओं की इच्छा न करें. ये कोई पहला उदहारण नहीं है, इस से पहले भी न जाने कितने लोग पत्रकारिता की भेंट चढ़ चुके हैं. कलम के सिपाही बने रहे, अर्थोपार्जन की तरफ ध्यान नहीं दिया और जब बुरा वक्त आया तो न उनके साथ अख़बार था, न उसके मालिक. या तो घटना की खबर लिखी नहीं जाती या फिर ऐसे लिखा जाता है – ‘फलां अख़बार के एक कर्मचारी के साथ ये दुर्घटना हो गयी.’ ऐसा लिखवाने वाला खुद उस अख़बार का संपादक होता है. जो ये भूल चूका होता है कि मुझे अपनी बिरादरी को सम्मान देना चाहिए. मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि जो श्रम कानून तमाम उद्योगों पर लागू होते हैं अखबार उनसे अछूते क्यों रह जाते हैं. यहाँ न कर्मचारियों की सुरक्षा पर किसी का ध्यान है न काम के घंटों पर और न सैलरी सिस्टम पर. मजबूत पत्रकार जो दुनिया भर कि बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाता फिरता है खुद कितना मजबूर है ये न जनता जानती है और न शायद सरकार. पत्रकारों को खुद ये तय करना होगा कि उनकी नियति कैसी हो. लेकिन एक बार जब ऊँची कुर्सी पर बैठ कर मोटा पैकेज मिलना शुरू होता है, तो पत्रकार भी इन चीज़ों को भूल जाना उचित समझते हैं और नीचे बैठे साथियों के वेल-फेयर पर कोई ध्यान नहीं देते.
ashish goswami
January 16, 2010 at 7:29 am
me apne comment is liye nahi likh reha hu ki me dainik jagran bhopal ka ex employe reha hu..balik is liye likh reha hu ki hamare time jo driector the mr. amitabh visnoi unke samay ek bar kisi driver ki car accident me deth ho gai thi ….tub Drictor , sapdak ji , AGM, & all staff ne apne apne samarthya anusar help ki…sath hi us ke bacche ka beema bhi karaya gya……sath hi aaj bhi kisi employe ko majer proublme aati to A/c se persnoly koi na koi pahuch kar help karta hai…
B.P.Gautam
January 16, 2010 at 8:47 am
Rajsh ki madad karo bhai
ambuj
January 16, 2010 at 3:16 pm
god bless you rajesh
Anil Kumar Singh
January 16, 2010 at 4:06 pm
आरदणीय भैया,
दैनिक जागरण जैसे अख़बार से संवेदना की उम्मीद करना रेत में पानी खोजने के बराबर है। आप जब तक इस अ़खबार के मालिक के काम के हैं तब तक आपकी थोड़ी बहुत पूछ होती है, लेकिन जब इस अख़बार के आकाओं को लगता है कि अमुक पत्रकार अख़बार के किसी काम का नहीं रहा उसी दिन उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता है। दैनिक जागरण का जन्म जनता की सेवा करने या अपने पत्रकार कर्मचारियों की बेहतरी के लिये नहीं हुआ है बल्कि इस अख़बार का जन्म ही पूंजीवाद को बढ़ावा देने के लिये हुआ है। इस स्थिति में इस अख़बार के मालिकों से किसी प्रकार की संवेदना की उम्मीद रखना बेमानी है। कर्मचारियों के ख़ून से पैसा बनाने वाले इस अख़बार का हश्र भी एक दिन आज जैसा होना है, और वो समय आज नहीं तो कल आयेगा ही। अगर यह अख़बार अपना चाल, चरित्र और चलन नहीं बदला तो ज़माने को बदलते बहुत देर नहीं लगती है।
आपका भाई
अनिल कुमार सिंह
Rishi Naagar
January 16, 2010 at 6:08 pm
Dear Yashwant ji,
दैनिक जागरण से कोई उम्मीद करना ही बेमानी है. यह संस्थान केवल चंद लोगो के लिये बना है और केवल प्रोफिट कमाने के लिये बना है. अपने निजी अनुभव की बात बताता हू, दिसंबर 2005 में मेरे माता-पिता-बहन का एक accident हो गया और मेरे पिता तो गंभीर हालत में ही तीन महीनो तक अस्पताल में रहे. इस दौरान मुझे और मेरी पत्नी को अस्पताल और घर में घायल पडी मा-बहन की देखभाल करना थी. जागरण वालो से और क्या उम्मीद करता, लोन देना तो दूर रहा, with pay leave भी ना मिली. इस घायल पत्रकार के लिये अपण ही कुच कर सकते है. अगर कोई योजना हो तो बताये. मेरा सहयोग जरूर मिलेगा. जागरण से उम्मीद न करे.
Shishir Kumar Das
January 22, 2010 at 7:01 am
Respected Yashwant Sir,
It has been said that, Media is the Mirror of society but whatever happened along with Mr.Rajesh is realy shameless and moreover trajic, beaing a student of journalism i would like to say ‘Dainik Jagrans managment should come forward to help his correspondent. My all gud wishes to Mr.Rajesh and i wish to god for his betterment of health!!
Regard’s
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Shihir Kumar Das
Student MS.c[Electronic Media]
Kushabhau Thakr Patrakarita Avam Jansanchar Vishwavidayla Raipur, [Chhattisgarh]
vinod yadav(india news)
January 26, 2010 at 7:14 am
राजेश की यह हालत इस बात का संकेत है की..पत्रकारों का बुरा दौर शुरु हो चुका है…एक पत्रकार खबर के लिए खुद को कितना सर्मपित करता है, इस दर्द को शायद किसी संस्थान की प्रबंधन नही समझ सकता, यह तो केवल क पत्रकार ही समझ सकता हूं..जिसे समाज के प्रहरी की उपमा दी गयी है, वह खुद आज इतना बेबस है, यह देखकर मन खिन्न हो जाता है, काश पत्रकारों के लिए भी कोई ऐसा संस्थान हो जो अपने कर्मचारी के दुख दर्द को अपना माने, क्योंकि कर्मचारी ही संस्थान की नीव होता है, मै एक बहुत छोटा पत्रकार हूं हाल ही मे अपने करियर की शुरुवात की इसलिए चाह कर ङी राजेश जी की मदद करने में असमर्थ हूं…लेकिन जागरण को राजेश जी बारे में सोचना चाहिए……
विनोद यादव, इंडिया न्यूज़ मुंबई