इस बार मैंने अपेक्षाकृत कम जोश दिखाया क्योंकि कल की मुलाकात के बाद मुझे लगा कि वो बहुत अंतर्मुखी स्वाभाव के हैं, लेकिन मेरी सोच के विपरीत हर बात में सर सर बोलने की हमारी आदत को अशोक जी ने यह कह कर बदला कि तुम हमारे छोटे भाई जैसे हो इसलिए सर नहीं, भैया ही कहो. बस, उस दिन से उनके बारे में बनी गलत धारणा ख़त्म हुई और प्रोफेशनल लाइफ के बीच एक प्यारा-सा रिश्ता कायम हुआ “अशोक भैया” के साथ. मेरे साथ आये अमित, प्रदीप जी, राघवेन्द्र जी और कुछ और साथियों के साथ अशोक भैया काफी वक्त बिताते थे. उनसे कुछ सीखने के लिए हम डेस्क पर तो रोजाना ही पूछते रहते थे लेकिन वो मूड में तब होते थे जब ईटीवी बिल्डिंग के बाहर बने कैंटीन के बाहर बैठ कर सिगरेट पीते थे. अशोक भैया अंतर्मुखी ज़रूर थे लेकिन जितना आदर और सम्मान उनको राजस्थान डेस्क से मिलता था, उतना ही पूरे ईटीवी से जुड़ा हर शख्स देता था.
उनकी शख्सीयत के साथ उनकी आवाज़ की बात भी कुछ अलग ही थी. उनकी आवाज़ का मैं ज़बरदस्त कायल था. शायद यही वजह रही कि मैं पत्रकारिता की दुनिया से दो साल के लिए बिग 92.7 एफएम में बतौर आरजे/ पीआरओ भी रहा. हम लोगों को कुछ महीने ही रहना था हैदराबाद डेस्क पर. फिर अपने-अपने जगहों पर जाकर मोर्चे सँभालने थे और वो ढाई महीने कब निकल गए, पता ही नहीं चला. कब वो रुबाबदार चेहरा अब अपने अशोक भैया में तब्दील हो गया, ये भी पता नहीं चला. जब हम हैदराबाद से राजस्थान लौटने वाले थे तब ईटीवी गुजरात की टीम के साथ आखिरी बार गरबा करते हुए मैंने अशोक भैया को खूब हंसते खिलखिलाते देखा था. उस दिन अशोक भैया के साथ हमने बहुत डांस भी किया.
अशोक जी की लम्बाई भी उनके व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा थी. उस वक्त मैं और मेरे साथी अमित सोनी, दोनों ही डेस्क पर सबसे लम्बे लोगो में शुमार होते थे. एक ही शहर एक ही कॉलेज के होने के नाते एक साथ घूमते थे. तब अशोक भैया हमको मजाक में कहते थे कि तुम दोनों साथ मत रहो यार, अब तक तो सबसे लम्बों में मैं ही आता था लेकिन तुम दोनों ने तो मुझे भी पीछे छोड़ दिया. अशोक भैया न सिर्फ कद से बल्कि अपने व्यहार और अपनेपन से भी बहुत ऊँचे थे. ये अफ़सोस वाली बात है कि ईटीवी छोड़ने के बाद वो वीओआई में गए और मैं रेडियो की दुनिया में. जब फिर से उनके साथ वाले समूह (वीओआई) से जुड़ा तबसे आन्दोलन और उठापटक के बीच कभी उनसे बात भी नहीं कर पाया. अभी कुछ दिन पहले ही मैंने ऑरकुट में उनको ढूंढ ही लिया था और हाथों हाथ फ्रेंड रिक्वेस्ट भी भेजी थी लेकिन वो उसे एक्सेप्ट करने से पहले ही हम सबको अकेला छोड़ गए. ऑरकुट की ये अधूरी फ्रेंड रिक्वेस्ट हर समय आपकी याद दिलाती रहेगी भैया और आपके सिखाये हुए पत्रकारिता और एंकरिंग के टिप्स के बीच आपकी वो निश्चल और मोहक हंसी मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा. अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अशोक भैया को…. इन शब्दों के साथ…
एक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी
जाते जाते तुमने आवाज तो दी होगी
हर वक्त यही है गम
उस वक़्त कहा थे हम कहा तुम चले गए
लेखक विक्रम सिंह राजपुरोहित वीओआई के जोधपुर जोन के जोनल एडिटोरियल हेड हैं. उनसे संपर्क 09783214000 के जरिए किया जा सकता है.