वीओआई के ग्रुप एडिटर किशोर मालवीय ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखर वरिष्ठ टीवी पत्रकार स्वर्गीय अशोक उपाध्याय के परिजनों को सरकारी मदद देने का अनुरोध किया है। पता चला है कि मंत्रालय इस अनुरोध पर गंभीरता से विचार कर रहा है। किशोर द्वारा भेजा गया पत्र इस प्रकार है-
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अशोकजी को हैदराबाद के पत्रकारों ने दी श्रद्धांजलि
वरिष्ठ पत्रकार अशोक उपाध्याय को श्रद्धांजलि देने के लिए हैदराबाद के प्रेस क्लब में रविवार को शोकसभा का आयोजन किया गया। प्रिंट और टीवी मीडिया से जुड़े सभी पत्रकारों ने अपने साथी के असामयिक निधन पर गहरा दुख प्रकट करते हुए उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की। हिंदी मिलाप के वरिष्ठ पत्रकार रवि श्रीवास्तव ने अशोक उपाध्याय के निधन को मीडिया के लिए अपूरणीय क्षति बताते हुए अपने साथ बिताए क्षणों की यादें ताज़ा कीं।
जीते जी मर जाना और करियर का मर जाना
अशोक और धर्मेंद्र के बहाने कुछ बातें : हम अभिशप्त हैं बीवी-बच्चों को लावारिस छोड़ जाने के लिए : चाहे एसपी हों या एसपी त्रिपाठी, सहयोगियों के हितों के खिलाफ अखबार मालिकानों को बुद्धि देने वाली इन प्रजातियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है : ज़माने ने मारे हैं जवां कैसे-कैसे! धर्मेंद्र सिंह की पत्रकारिता में और अशोक उपाध्याय की जीवन में मौत मुश्किल में डालने वाली है। दोनों ही खबरें क्रिसमस क्लांत कर गईं। मैं दोनों साथियों से परिचित नहीं हूं पर दोनों की तकलीफों से खूब परिचित हूं। हालांकि पत्रकारिता में बंधुआ होने की परंपरा की यह दैनंदिन घटनाएं हैं।
सांसों के बाद देह से भी मुक्त हो गए अशोकजी : कुछ तस्वीरें
चिर निद्रा में लीन अशोक उपाध्याय को परिजनों व दोस्तों-शुभचिंतकों ने यूं दी आखिरी विदाई….
अब हर क्रिसमस आंखों में आंसू भर देगी
[caption id="attachment_14886" align="alignleft"]कमल शर्मा[/caption]अशोक, हम तुम्हें भुला न पाएंगे : एक समय में ईटीवी, मध्य प्रदेश डेस्क पर काम करने वाले रजनीशकांत का मुझे तकरीबन ढाई बजे के करीब एसएमएस आया। पढ़ा तो धक्क रह गया। फिर पढ़ा, फिर पढ़ा…. कम से कम पांच सात बार पढ़ लिया झटपट-झटपट। अशोक उपाध्याय…. यह तो वे नहीं होंगे जो ईटीवी में मेरे बिजनेस डेस्क इंजार्च के रूप में काम करते हुए मित्र बन गए। खुद मैं अपने मन से बात करने लगा कि यार ये अशोक उपाध्याय हैदराबाद वाले ही हैं क्या या कोई और? रजनीशकांत को ही फोन लगाया, पूछा… ये अपने अशोक जी ही हैं या कोई दूसरे? उसने बताया- सर अपने अशोक जी ही नहीं रहे। तुरंत दिल्ली में इंडिया टीवी में कार्यरत भानु प्रकाश को फोन लगाया। भानु प्रकाश को इस नाम से जानता कौन है… उनका नाम तो सभी ने बाबा कर रखा है। तो… यह कह लीजिए बाबा को फोन लगाया- बाबा, ये बुरी खबर क्या है अशोक जी के बारे में। उन्होंने बताया- सर, सुबह ही पता चला।
और वे सपने सजाकर सो गए…
[caption id="attachment_16596" align="alignleft"]अशोक मिश्रा[/caption]हैदराबाद, डेली मिलाप और अशोक उपाध्याय : जिंदगी में ऐसा दिन आएगा बिल्कुल सोचा न था। एक दोस्त को दूसरे दोस्त पर संस्मरण लिखना पड़ेगा। भड़ास4मीडिया के जरिए वीओआई आफिस में अशोक उपाध्याय की मौत की दुखद खबर की सूचना मिली। पढकर यकबकएक ऐसा झटका लगा कि मानों सांस ही रुक गई हो। सोचने लगा कि अचानक यह क्या हो गया? खबर पढ़ी तो पता चला कि दफ्तर में काम करते-करते ही उन्होंने अंतिम सांस ली। इससे पहले यहां यह बता देना जरूरी है कि अशोक उपाध्याय टीवी पत्रकारिता में पिछले एक दशक के दौरान ही आए थे। इससे पहले वे हैदराबाद से प्रकाशित अग्रणी हिंदी अखबार डेली हिंदी मिलाप में सीनियर सब एडिटर पोस्ट पर कार्य कर रहे थे। फरवरी 1998 में दिल्ली से प्रकाशित जेवीजी टाइम्स के बंद हो जाने के बाद एकाएक मुझे वरिष्ठ पत्रकार रंजना कक्कड़ के सौजन्य से (जो अब इस दुनिया में नहीं हैं) डेली हिंदी मिलाप में वरिष्ठ उप संपादक पद पर काम करने का ऑफर मिला।
समस्याओं से ऐसे नहीं भागा करते आदर्श
[caption id="attachment_16594" align="alignleft"]आदर्श राठौर[/caption]जनवरी 2008 का पहला हफ्ता. वीओआई में हालात खराब हो रहे थे और मैं परेशान होकर मीडिया लाइन को अलविदा कहने की तैयारी कर चुका था. सुबह से ही मैं मन बनाकर गया था कि आज इस्तीफा दूंगा और फिर हिमाचल प्रदेश चला जाऊंगा. दिनभर ऑफिस में काम किया और लगभग सभी लोगों से विदा ले ली. इस्तीफा देने से पहले मैं चाय पीने के इरादे से बाहर निकल रहा था. जैसे ही गेट से बाहर निकला, किसी ने मुझे पुकारा. मुड़कर देखा तो अशोक जी खड़े थे. उन्होंने पूछा कि क्या बात हो गई है, क्यों छोड़कर जा रहे हो. मैंने उन्हें हाल-ए-दिल कह सुनाया. उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बड़े भाई की तरह समझाते हुए कहा- देखो आदर्श, समस्याओं से इस तरह नहीं भागा करते. समस्या किसे नहीं है, हमें भी है. हम तो परिवार वाले हैं, तब भी रुके हुए हैं. धैर्य रखो, सब बेहतर होता है. मेरी बात मानो तो एक काम करो कि एक महीने के लिए घर हो आओ. मन करे तो आ जाना और नहीं तो फिर तुम्हारी जैसी मर्जी. मुझे उनका विचार अच्छा लगा. मैं वाकई एक माह के लिए घर चला गया.
अशोक जी, हैंडओवर देने तो आ जाइए सर!
[caption id="attachment_16593" align="alignleft"]अतुल अग्रवाल[/caption]मंगलवार, 22 दिसंबर की बात है। यानि अशोक जी के निधन के करीब 48 घंटे पहले। रात के सवा 12 बजे के आस-पास अशोक जी दफ्तर आए। मैं काफी तनाव में था, एक-दो लोगों पर चिल्ला चुका था। अपना काम समेट ही रहा था कि वो मेरे केबिन में आकर बोले… गुड ईवनिंग अतुल जी। उनका ये अंदाज़ इतना सहज, इतना स्वाभाविक था कि मुझे अपना तनाव कमतर सा महसूस होने लगा। उन्होने मुझसे कहा कि क्या हुआ सर? मैने कहा कुछ नहीं अशोक जी, जैसा काम चाहता हूं, वैसा हो ही नहीं पा रहा है, वगैरह-वगैरह। वो सारी बातें बड़े मन से सुनते रहे और बोले, “अतुल जी, हम लोग गलत जगह फंस गए हैं। हमने लाइन ही गलत चुन ली है। हम यहां के लिए मिसफिट हैं। लालाओं की घुसपैठ से टीवी पत्रकारिता की दुनिया गंधा गई है। विडंबना देखिए, जिनके साथ काम कर रहे हैं उन्ही पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। न वो हम पर भरोसा करते हैं और न हम उन पर, फिर भी साथ-साथ चले जा रहे हैं।”
रोबदार आवाज, घनी मूंछ वाले मेरे अशोक भैय्या
[caption id="attachment_16592" align="alignleft" width="102"]विक्रम सिंह राजपुरोहित[/caption]भड़ास4मीडिया का नियमित पाठक हूं. कई बार किसी न किसी मुद्दे पर मन हुआ कि कुछ अपनी बात कहूं पर आज जो हृदयविदारक समाचार देखा तो मुझसे रहा नहीं गया. मन 11/8/2003 की उस शाम की तरफ लौट गया जब ईटीवी, राजस्थान में चयन के बाद मैं अपने कुछ साथियों के साथ हैदराबाद स्थित रामोजी फिल्मसिटी पहुंचा. मन में कौतुहल था. जिज्ञासा थी ईटीवी के समाचार प्रस्तोताओं से रूबरू मिलने की. अशोक जी को देखने की सबसे ज्यादा उमंग थी. रोबदार आवाज़, घनी मूंछें और धीर गंभीर व्यक्तित्व के अशोक जी से उस समय पहली मुलाकात कुछ खास नहीं थी. बड़े जोश से मैंने अपना परिचय दिया और सामने से बहुत ही सहज और हलकी-सी प्रतिक्रिया ने मन में दबे उस कौतुहल को काफी कम कर दिया जो अशोक जी के लिए बना हुआ था. दूसरे दिन जब हमें आराम के बाद डेस्क, स्टूडियो और समाचार वाचकों के कामकाज से रूबरू करवाने की प्रक्रिया शुरू हुई तो फिर से अशोक जी से मिलना हुआ.
5 तस्वीरें : वे तो अशोक थे, शोक इधर रह गया
अशोक उपाध्याय की ये पांचों तस्वीरें उपलब्ध कराने के लिए अतुल अग्रवाल का आभार….
जाब बदलने का फैसला जानलेवा साबित हुआ
इस तस्वीर में दाईं तरफ कोट पहने अशोक उपाध्याय दिख रहे हैं। तस्वीर जुलाई 2007 की है। तब वे ईटीवी, हैदराबाद में कार्यरत थे। उनके बगल में हैं अमित कुमार वर्मा जो इन दिनों ईटीवी, हैदराबाद में ही बुलेटिन प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं। अशोक उपाध्याय ईटीवी के हैदराबाद स्थित मुख्यालय में लंबे समय तक कार्यरत रहे।
‘क्रिसमस गिफ्ट नहीं चाहिए पापा, तुम लौट आओ’
अशोक उपाध्याय की मौत से जर्नलिस्ट स्तब्ध हैं। कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। आखिर किस तनाव ने अशोक उपाध्याय की जान ले ली? तनाव तो था, यह तो तय बात है। अशोक के लिए घातक सिद्ध हुआ उनका तनाव न शेयर करने की आदत और अंतर्मुखी व्यक्तित्व। वे उतना ही बोलते थे, जितना जरूरी होता था। नोएडा के सेक्टर 11 स्थित मेट्रो हास्पिटल में पिता अशोक के शव के पास उनका 11 साल का बेटा रोते हुए कह रहा था… पापा, मुझे क्रिसमस गिफ्ट नहीं चाहिए, बस तुम लौट आओ…. पापा प्लीज, बस तुम लौट आओ, मुझे कोई गिफ्ट नहीं चाहिए…..। उनकी पत्नी रो रहीं थीं… मित्तल ने मार दिया….। पत्नी और बेटे की रुलाई व बातें देख-सुन आसपास खड़े वीओआईकर्मियों की आंखें नम हो गईं। पिछले एक साल से वीओआई में जिस तरह अव्यवस्था रही, सेलरी नहीं मिली, बेरोजगारी के कई महीने झेलने पड़े, भुगतान नहीं मिला, बकाया के लिए मिले चेक बाउंस हुए, पीएफ के लिए पैसे काटे गए पर एकाउंट में जमा ही नहीं किया गया… उसने सैकड़ों वीओआई कर्मियों को अंदर से तोड़कर रख दिया।
वीओआई आफिस में अशोक उपाध्याय की मौत
[caption id="attachment_16584" align="alignleft"]अशोक उपाध्याय[/caption]दुखद खबर है। वायस आफ इंडिया के सीनियर प्रोड्यूसर और नाइट शिफ्ट इंचार्ज अशोक उपाध्याय का वीओआई आफिस में निधन हो गया। निधन आज सुबह करीब छह बजे के आसपास हुआ। पता चला है कि अशोक उपाध्याय ने पहले बेचैनी की शिकायत की। वे आफिस के अंदर के सोफे पर कुछ देर के लिए बैठे। फिर उन्हें गर्मी लगने लगी तो आफिस के बाहर निकल अपनी कार में ड्राइविंग सीट के बगल वाली सीट को पीछे झुकाकर लेट गए। करीब बीस मिनट बाद उन्हें खोजता हुआ एक सहकर्मी आया। पहले उनकी कार को खटखटा कर उन्हें जगाने की कोशिश की। जब वे नहीं उठे तो उन्हें झकझोरा। बस, उनका शरीर लुढ़क गया।