जनवरी 2008 का पहला हफ्ता. वीओआई में हालात खराब हो रहे थे और मैं परेशान होकर मीडिया लाइन को अलविदा कहने की तैयारी कर चुका था. सुबह से ही मैं मन बनाकर गया था कि आज इस्तीफा दूंगा और फिर हिमाचल प्रदेश चला जाऊंगा. दिनभर ऑफिस में काम किया और लगभग सभी लोगों से विदा ले ली. इस्तीफा देने से पहले मैं चाय पीने के इरादे से बाहर निकल रहा था. जैसे ही गेट से बाहर निकला, किसी ने मुझे पुकारा. मुड़कर देखा तो अशोक जी खड़े थे. उन्होंने पूछा कि क्या बात हो गई है, क्यों छोड़कर जा रहे हो. मैंने उन्हें हाल-ए-दिल कह सुनाया. उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बड़े भाई की तरह समझाते हुए कहा- देखो आदर्श, समस्याओं से इस तरह नहीं भागा करते. समस्या किसे नहीं है, हमें भी है. हम तो परिवार वाले हैं, तब भी रुके हुए हैं. धैर्य रखो, सब बेहतर होता है. मेरी बात मानो तो एक काम करो कि एक महीने के लिए घर हो आओ. मन करे तो आ जाना और नहीं तो फिर तुम्हारी जैसी मर्जी. मुझे उनका विचार अच्छा लगा. मैं वाकई एक माह के लिए घर चला गया.
नई ऊर्जा के साथ वापस आया और ऑफिस ज्वाइन कर लिया. इसके बाद से बेशक वीओआई के हालात खराब हो जाते रहे हों लेकिन अंतत: आज भी मैं मीडिया में काम कर रहा हूं, निरंतर प्रगति कर रहा हूं. अगर उस दिन अशोक जी ने मुझे रोककर समझाया नहीं होता तो शायद मैं हिमाचल प्रदेश में कृषि कार्य में लगा होता. ऐसे थे अशोक जी. वीओआई में ही मेरी पहली बार उनसे मुलाकात हुई थी. मैंने ट्रेनी के रूप में प्रवेश किया था और टिकर संभाला करता था. उस वक्त वीओआई उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड चैनल ला रहा था. मुझे उस टीम में डाला गया और संयोग से अशोक जी को चैनल लॉन्च करने वाली टीम का हिस्सा बनाया गया था. वहीं पर मैंने एक स्क्रिप्ट लिखी थी और अशोक जी को वो पसंद आई थी. इसी कारण उन्होंने मुझे टिकर से हटाकर कॉपी सेक्शन में रखा था. वहां से निरंतर मौके मिलते रहे.
प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी अशोक जी ने हमेशा ही मेरी मदद की. वो एक अच्छे कॉपी राइटर होने के साथ-साथ एक अच्छे एंकर और वॉयस ओवर आर्टिस्ट भी थे. लेकिन जब भी वो कोई स्क्रिप्ट लिखते तो वीओ मुझसे ही कराते. यहां तक कि मैंने पहली बार एंकरिंग भी उन्हीं का सूट पहनकर की थी. वीओआई में हम सभी लोगों ने अच्छा बुरा समय देखा. जहां हम युवा लोग तनाव में कुछ उछल-कूद मचाते वो एकदम गौरवमयी मुस्कान लिए शांत बैठे रहते. इस दौरान उठापटक का दौर भी आया. जाने किन लोगों के इशारे पर बार-बार उनके विभाग बदले जाते रहे. कभी चैनल हेड बनाया जाता तो अगले ही दिन असाइनमेंट में जिम्मेदारी सौंपी जाती. कभी कॉपी की जिम्मेदारी सौंपी जाती तो कभी एंकरिंग की. लेकिन वो हर दायित्व को बिना एक शब्द कहे निभाते चले गए.
आज सुबह एकाएक मित्र का फोन आया और ये अशुभ समाचार सुना. सुनकर यकीन ही नहीं हुआ. ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने एक दो और लोगों को फोन किया. जब वहां से भी ऐसा ही जवाब मिला तो थोड़ा समझ आया कि वाकई अशोक जी हमारे बीच नहीं रहे. वजह कुछ भी रही हो. मीडिया की नौकरी स्वास्थ्य का नाश करने के लिए काफी है. ऊपर से वीओआई का प्रकरण. उफ! नुकसान तो हमने बहुत उठाया है. शायद पैसे की भरपाई हो जाएगी लेकिन इस नुकसान की भरपाई कैसे होगी? कुछ समझ में भी नहीं आ रहा. नाम के विपरीत आप इतना शोक दे गए? आपका दिया हुआ मंत्र सदैव मेरा पास रहेगा. इसी आधार पर आगे बढ़ता रहूंगा. जब भी समस्याएं आएंगी, आपके ही शब्द गूंजेंगे- समस्याओं से ऐसे नहीं भागा करते आदर्श!
लेखक आदर्श राठौर इंडिया न्यूज में असिस्टेंट प्रोड्यूसर हैं.