ये पीड़ा तो हर किसी की है। पत्रकारिता जगत इतना भयावह व माफियाओं की मानसिकता पाले तथाकथित समाज के खेवनहारों का होगा, कभी सपने में भी सोचा नहीं था। मैं खुद हैरान हूं, पत्रकारिता के इस जगत की कुकुरगत्त देखकर। हिन्दुस्तान में, जबसे मैंने काम करना शुरू किया है, तभी से हर किसी का उत्पीड़न झेलते आ रहा हूं। शौकिया तौर पर मैं इस फील्ड में आया था लेकिन अब दिल भर गया… दहशत सी होने लगी है…।
इस देश का सबसे बड़ा माफिया… नेता… आतंकवादी… जो कुछ भी कहें, पर मेरे हिसाब से वह पत्रकार ही है। छोटा नहीं… बड़ा पत्रकार….। छोटा पत्रकार इतिहास बनाने की कोशिश करते-करते इस जहान से गायब हो जाता है और बड़ा पत्रकार कार… कोठियां….इज्जत बना शान से जीता है। उसकी शाम की महफिलें माफिया व भ्रष्ट नेताओं के साथ तो दिन गरीब पत्रकारों को धमकाने में मजे से गुजरती हैं। ये तो सबसे बडे दलाल बन गए हैं। एसी चेंबरों में बैठकर पत्रकारिता करने वाले ये बड़े संपादक छोटे पत्रकार का दुख दर्द ना तो समझना चाहते हैं और ना ही समाज को कोई दिशा दे सकते हैं। पत्रकारिता का चौथा स्तंभ यदि ठीक हो तो देश में भ्रष्टाचार के साथ ही अन्य सभी समस्याएं खुद ब खुद ठीक हो जाएंगी।
लेकिन ये होने से रहा….। समानता की बात करने वाले ये तथाकथित संपादक व पत्रकार ऐसा कभी नहीं होने देंगे। शायद यही घोर कलयुग होगा। पत्रकारिता की जमीन को इन्होंने लिजलिजी बना दी है। अब तो बस इन्तजार ही है सुनामी की प्रलय का जो इन पत्रकारिता के वीभत्स मुखौटों को अपने साथ बहा ले जाए ताकि देश-दुनिया में अमन चैन तो आए। ऐसा भी नहीं है कि सभी भ्रष्ट हों…..। मेरी बातों का मर्म समझने की कोशिश करना, ना कि व्यर्थ की बहस खड़ी करने की कोशिश करना। जो बेचारे पत्रकार पत्रकारिता के मिशन मे इमानदारी से डटे पड़े हैं उन्हें मेरा सलाम…!!!
ईश्वर शशि शेखर को सच का आईना देखने की हिम्मत दे…. बिना किसी दुर्भावना के….. या कहूं तो एक इमानदार पत्रकार की तरह वो नीचे तक झांक सकें कि पत्रकारिता व उनके पत्रकारों की क्या कुकुरगत्त हो रही है…. दो वक्त की सम्मानजनक रोटी के लिए अब क्या करना होगा…. बिना इमानदारी को बेचे हुए…….??
लेखक ने अपना नाम प्रकाशित करने से मना किया है. मेल आईडी भी देने से रोका है. बिना पहचान उजागर किए, उनकी बात को यहां इसलिए पब्लिश किया गया है क्योंकि इसमें किसी पर कोई निजी आक्षेप नहीं है.
sapan yagyawalkya
January 21, 2010 at 8:58 am
ye bat sach hai ki patrakar ke raste main kai chunoutiyan aati hain, lekin yadi aapka lakshya spast hai to chunoutiyon se lado aur aage badho. rahi baat samman se roti ki to apni jaruraton ko kam karke aur kaam badha ke roti kha sakte hain. patrakar ko khud ki yogyata se itna importent bana lena chahiya ki vo kampni ki jarurat ban jaaye.
sunil
January 21, 2010 at 9:25 am
बिलकुल सही लिखा आपने उन बड़े पत्रकारों के बारे में शायद ऐसा हाल हर तरफ ही है किसी एक को दोषी ठहराना उचित नहीं, आपका तो पता नहीं की आप इस लाइन में कब से है लेकिन मुझे मात्र एक वर्ष ही हुआ है इतने अल्पावधि में मुझे बहुत कुछ सिखने को मिला है वर्तमान पत्रकारिता की सच्चाई सामने आ गई है मैंने देखा है ईमानदारी की तो अब इस फिल्ड में कद्र ही नहीं है आज तो मैं केवल उस दिन को कोस रहा हु जब मैं इस लाइन में आया जल्द ही मैं भी आप सबको अपने अनुभवो से रु-ब-रु करवाऊंगा
arvind kumar shukla
January 21, 2010 at 10:05 am
hyfdf jkku
..............
January 21, 2010 at 10:54 am
yes i agree with u
Vinod Varshney
January 22, 2010 at 11:41 am
पहचान गुप्त रखने वाले पत्रकार की पीड़ा को सही नज़रिए से देखने की जरूरत है. हो सकता कि अपनी पीड़ा व्यक्त करने वाला पत्रकार उन बदमाशों में से एक हो जो तमाम किस्म की चमचागिरी के बल पर नौकरी पा गया हो. मैंने तो खुद मृणालजी के काल में महज़ चमचागिरी के बल पर कामचोरों को सुर्खरू बने देखा है. हो सकता है कि वह, वहां मौजूद अनेक रेकिटिअरों में से एक हो, जो आज अखबारों में भरे पड़े हैं. लेकिन वह सचमुच गरीब अल्प-वेतन भोगी ईमानदार पत्रकार भी हो सकता है. फिर, इस सचाई से आँख मोड़ लेना ठीक नहीं कि “हिन्दुस्तान” में वेज बोर्ड से तय न्यूनतम वेतन मानदंडों को जमींदोज कर दिया गया है. मैंने खुद देखा है कि योग्य नोजवानों को इतनी महंगाई में दिल्ली में किस तरह जीवन यापन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. तमाम युवक युवतियां पत्रकारिता के जज्बे से न सही, एक प्रोफेसन के रूप में, एक करियर आप्शन के रूप में अखबारों की नौकरियों में जा रहे हैं, और वहां जाकर वे पाते हैं कि न काम के घंटे तय हैं, न नौकरी की सुरक्षा, न वेज बोर्ड से तय न्यूनतम वेतन. अखबार में कान्ट्रेक्ट सिस्टम उन्हीं पत्रकारों पर लागू होना चाहिए जिन्हें कम से कम वेज बोर्ड से ३० प्रतिशत अधिक वेतन दिया जा रहा हो. इस मामले में नए क़ानून की जरूरत है.
ANIL KUMAR VERMA
January 21, 2010 at 12:40 pm
YES I AGREE WITH YOU.
Radha rawal
January 21, 2010 at 2:15 pm
जिस शख्स में अपनी बात कहने के लिए अपनी पहचान उजागर करने की हिम्मत न हो उसे पत्रकार बनने का नैतिक हक ही नहीं। बड़े संपादकों पर उंगली उठाइए। शौक से उठाइए। लेकिन उन तथाकथित छोटे पत्रकारों के बारे में भी तो कुछ कहिए जिन्होंने आठ-दस हजार की तनख्वाह में कोठियां तान ली हैं। शशि शेखर में लाखों बुराइयां हो सकती हैं। मैं उन्हें नहीं जानती। लेकिन अमर उजाला के लोग आज भी यह कहते नहीं थकते कि उन्होंने पत्रकारों को इज्जत और पैसा दोनों दिलवाए। तो हुजूर, कोसिए तो हिम्मत से कोसिए नहीं तो घाघरा पहनकर बैठ जाइए।
sp singh
January 21, 2010 at 3:54 pm
ye aaj ke jamne me koi nai bat nahi hai. behtar hota jisne bhe ye rona roya hai yoh apna nam open karta. agr usne aisa nahi kiya to pahle koi aur nahi yoh khud he is gunah ka doshi hai.
महाबीर सेठ
January 21, 2010 at 4:35 pm
राधा जी आपने खूब कही… मैं आपसे सहमत हूँ
shiv ram
January 21, 2010 at 5:40 pm
radha ne thik nahin kha hai. bhai ne shashi ji ke bare main nahin likha hai, us bechare ne to ummed bhari nazaron se shashi ji ki taraf dekha bhar hai.rahi batt kothiyan banane vaalon ki jo log 8-10 hazar main kothi banane ki kubbat rakhate hain vahi bade ban jate hain
ek patrkar
January 21, 2010 at 5:43 pm
bhai aap ki baat se kuch had tak sahmat hu …keyo ki galat sirf upper ke he log nahi hote ….ab yeah bhi depend karta hai ki aapka sampadak ya phir koi chaneel head kis tarah ke logo se ghirah pada hai ….aur rahi baat patrkarita ki toh ye bada he samvedanshil mamla hai ki anya profession ki tarah is me sureity naam ki cheez nahi hai ….hum log kisi asangathit mazdoor se kam nahi hai …..toh is baare ne media ki diggajo ko sochan chaheya …ek baat sabhi channel head ya phir sampadak mahoday logo se kehna chaunga ki kabhi kisi ki naukari lene me vishwash mat rakeyega …keyo ki kisi ki naukari lena aur usse fanshi ki saza sunana dono he barabar hai …..
Akhilesh Singh
January 22, 2010 at 6:01 am
Bhi aapne sahi bat khi aisa hi hota hai.
S P Yadav
January 28, 2010 at 3:01 pm
Bhai apne khoob kahi. sach to yahi hai ki chaploosi me koi kuch bhi kahe. jaroorat to is baat ki hai ki upar baithe log apne neeche valo ke baare me sakaratmak soch rakhe.
pawan
January 29, 2010 at 6:15 pm
kya patrkarita me is tarh se hoga ki hum gunahgar ka naam bhi na le sake..? aap ke baat agar kasi niskars par na ja sake to kam se kam mai ye manta hu ki chup rah kr sahte rahna hi shahi hai…
Abhi
January 31, 2010 at 9:31 am
patrakar ki pira sahi hai.patrakarbhi manav hai, uski bhi apni jroorate hai, usko apne v priwar ke bharan poshan ki aavsykta hoti hai.use bhi samaj me sir uthakar jeene ka hak hai. patra patrika sansthano me choti par baithe logo ko nichle star par kam kar rahe logo ke jeevan star par chintan karna chahiye.
ek patrakaar
February 9, 2010 at 5:46 am
patrakaar bhi manav hai. unche pad par baithe logon ya tathakahit sampadkon ka jarkhareed ghulam nahin hai.mahine bhar had tod mehnat karne ke baad use mazdooron se bhi kam salary milti hai.upar se sampadkon ya boss ki gaali alag khaani padti hai. chahhe boss ki hi galti kyon na ho.koi chutti milti nahin.leave maango toh das tarah ki baatein ya naukari se nikalne ki dhamki milti hai.