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हम किसका मुंह तक रहे हैं?

विशेष संपादकीय : कल्पेश याज्ञनिक : मुट्ठी भर मठाधीश, पांच लाख निर्दोषों को छल रहे हैं। पूरे 26 बरस से। तब ये बेगुनाह निर्ममता से बर्बाद कर दिए गए। अब निर्लज्जता से प्रताड़ित किए जा रहे हैं। कानून के नाम पर। किंतु अन्याय की सीमा होती है। न्याय करने वाले हर व्यवस्था में होते ही हैं। दुखद यह है कि उन्हें झकझोरना पड़ता है। भोपाल गैस त्रासदी मामले में अदालती आदेश के बाद ऐसा करने का समय आ गया है। दो ही विकल्प हैं। या तो सुप्रीम कोर्ट अपने ही स्तर पर 1996 में जस्टिस ए.एम.अहमदी की कलम से बदलीं, कमजोर कर दी गईं धाराओं की समीक्षा करे।

<p style="text-align: justify;"><strong>विशेष संपादकीय : कल्पेश याज्ञनिक : </strong>मुट्ठी भर मठाधीश, पांच लाख निर्दोषों को छल रहे हैं। पूरे 26 बरस से। तब ये बेगुनाह निर्ममता से बर्बाद कर दिए गए। अब निर्लज्जता से प्रताड़ित किए जा रहे हैं। कानून के नाम पर। किंतु अन्याय की सीमा होती है। न्याय करने वाले हर व्यवस्था में होते ही हैं। दुखद यह है कि उन्हें झकझोरना पड़ता है। भोपाल गैस त्रासदी मामले में अदालती आदेश के बाद ऐसा करने का समय आ गया है। दो ही विकल्प हैं। या तो सुप्रीम कोर्ट अपने ही स्तर पर 1996 में जस्टिस ए.एम.अहमदी की कलम से बदलीं, कमजोर कर दी गईं धाराओं की समीक्षा करे।</p>

विशेष संपादकीय : कल्पेश याज्ञनिक : मुट्ठी भर मठाधीश, पांच लाख निर्दोषों को छल रहे हैं। पूरे 26 बरस से। तब ये बेगुनाह निर्ममता से बर्बाद कर दिए गए। अब निर्लज्जता से प्रताड़ित किए जा रहे हैं। कानून के नाम पर। किंतु अन्याय की सीमा होती है। न्याय करने वाले हर व्यवस्था में होते ही हैं। दुखद यह है कि उन्हें झकझोरना पड़ता है। भोपाल गैस त्रासदी मामले में अदालती आदेश के बाद ऐसा करने का समय आ गया है। दो ही विकल्प हैं। या तो सुप्रीम कोर्ट अपने ही स्तर पर 1996 में जस्टिस ए.एम.अहमदी की कलम से बदलीं, कमजोर कर दी गईं धाराओं की समीक्षा करे।

या फिर केंद्र सरकार इस केस को फिर से खुलवाए। दोनों ही बातें संभव हैं। देश हित में हैं। हमें किंतु इसके लिए आक्रामक मुद्रा अपनानी होगी। तंत्र से लड़ाई आसान नहीं होती। किंतु जहरीली गैस की भयावह यादों को सीने में दबाए, इतने बरसों से हर पल, हारी-बीमारी-बेकारी-बेबसी से लड़ ही तो रहे हैं हम। एक और लड़ाई।

अब कुछ पथरीले, खुरदुरे व्यावहारिक सच। जब चारों ओर मौत फैली थी तब लोकतंत्र के तीनों स्तंभों में कहीं गर्जना नहीं उठी कि यूनियन कार्बाइड के दोषी वॉरेन एंडरसन को ऐसे रहस्यमय ढंग से छोड़ क्यों दिया? एक मामूली वाहन चालान बनने पर भी पुलिस डपटती है कि थाने चलो- यहां 25 हजार मौतों के जिम्मेदार की जैसे राजकीय अतिथि सी सेवा की गई। वो भी मुख्यमंत्री के स्तर पर। वो भी प्रधानमंत्री को विश्वास में लेकर। उस दिन की वीडियो क्लिप में यदि आप गौर से देखें तो लग ही नहीं रहा कि अर्जुन सिंह किसी सादे से हादसे का भी मुकाबला करके आए हों। बड़े ही आत्मविश्वास और प्रभावी शैली में वे पत्रकारों से त्रासदी को लेकर बात कर रहे थे। साथ बैठे राजीव गांधी गंभीर तो दिख रहे हैं लेकिन पूरी तरह अजरुनसिंह से प्रभावित।

जाहिर है उन्होंने ही प्रधानमंत्री को मना लिया होगा। और यदि नहीं- तो वे राष्ट्र के सामने क्यों नहीं लाते कि भोपाल के गुनहगार को क्यों जाने दिया? क्यों? किसी को पता नहीं। क्योंकि किसी ने इन्हें झंझोड़ा नहीं। पक्ष तो होता ही है रीढ़ की हड्डी के बिना। विपक्ष को क्यों सांप सूंघ गया था? और बाद में भी किसने कुछ किया? देखें एक नजर : नरसिंह राव सरकार ने उसे अमेरिका से बुलाने के प्रयास कमजोर कर दिए। अटल सरकार ने तो एक कदम आगे बढ़कर कार्बाइड के भारतीय प्रमुख केशुब महिंद्रा को पद्म पुरस्कार के लिए चुना।

दूसरी कड़ी हैं नौकरशाह। आज वे टीवी चैनलों पर एक-दूजे को दोषी सिद्ध करने की होड़ में लगे हैं। तब अपने पुंसत्व को ताक में रख गुपचुप उन्हीं आदेशों का पालन करने में लगे थे, जो उनकी आत्मा पर बोझ बन गए होंगे। पीसी अलेक्जेंडर, ब्रह्मस्वरूप, मोतीसिंह और क्या स्वराज पुरी? हर छोटी-बड़ी बात पर नोटशीट पर टीप लिखने के आदी। ‘पुनर्विचार करें, समीक्षा करें’ लिखकर हर फैसले में अंड़गा बनने के जन्मजात अधिकारी ये नौकरशाह आज किस मुंह से आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं?

तीसरी कड़ी है कानून के रखवालों की। चाहे केस तैयार करने वाली पुलिस-सीबीआई हो या फिर लड़ने वाला प्रॉसिक्यूशन हो या कि तत्कालीन न्यायमूर्ति हों। सभी पर प्रश्नचिह्न है। आखिर न्याय के सर्वोच्च ओहदे पर बैठे अहमदी ऐसा कैसे कर सकते हैं? सीबीआई, केंद्र या राज्य सरकार- कोई तो १९९६ के उस फैसले को चुनौती देता? इन सबसे हटकर बड़ा प्रश्न। सरकार चाहें तो क्या नहीं कर सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने तो अफजल गुरु को फांसी सुना दी है। चार साल हो गए। क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट ने तो शाहबानो को गुजारा भत्ता दिए जाने का फैसला दिया था। सरकार ने एक कानून बनाकर उसे खत्म कर दिया। केरल के मल्लापेरियार बांध से तमिलनाडु पानी लेता था। सुप्रीम कोर्ट ने बांध की ऊंचाई बढ़ाने का फैसला दिया तो केरल ने विधानसभा में कानून बदलकर उस फैसले को निर्थक कर दिया। इंदिरा गांधी ने किस ताकत के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अनदेखा किया था- वह देश को भलीभांति याद है। सब सरकार के हाथ में है। किंतु भोपाल के लाखों पीड़ितों के लिए कोई नेता, अफसर, कानून का रखवाला आगे न आया।

दैनिक भास्कर अतीत के अंधेरे को अपने करोड़ों पाठकों के माध्यम से मिटाना चाहता है। भोपाल त्रासदी में पहले दिन से भास्कर की कलम सिर्फ पीड़ितों के पक्ष और सत्ताधीशों की गलत बातों के विपरीत चली है। आज इस अभियान में सांसदों को, सरकार को, सुप्रीम कोर्ट को यदि हम एक पोस्टकार्ड लिखकर, याचिका लगाकर केस पुन: खुलवाने की आवाज उठाएंगे तो मानवता के बड़े अभियान में सहभागी होंगे। पीड़ितों को सफलता निश्चित मिलेगी। क्योंकि सारा देश उनके साथ है।

(दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर कल्पेश याज्ञनिक का लिखा यह विशेष संपादकीय आज दैनिक भास्कर अखबार में प्रकाशित हुआ है)

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0 Comments

  1. Dr Matsyendra Prabhakar

    June 13, 2010 at 11:24 am

    Shri Kalpesh Yagyanik jee, Desh men loktantra ke rakshak mane jane wale char pramukh stambhon men se kam se kam teen ki aatma to poori tarah mar chuki hai, aur iss se desh ka sarvabhum charitra chheenz raha hai. Iss ko bachaye rakhne men ek patrakarita kshetra men hi thodi-bahut sambhavna bachati hai jis ki ummeed aap ke ‘VISHESH SAMPADKIYA’ ne jagai hai; varna to patrakarita kshetra ke bhi bahut se mathadheesh sarkar aur congress tatha anya rajneetik netaoan ki hi khairkhwahi men apne-apne tarike se seedhe ya prakarantar men jut gaye hain, Yah hal ke adalti faisle ke din se hi chal raha hai. Kendra sarkar aur vahudha congress ki chaploosi men vibhinna akhbaron ke panne aur channelon ke vishesh bulletin pesh kiye ja rahe hain, kaie log to andhere men teer chalati hue ya America ko doshi thahra apne rashtriya kartavyon ki ‘itishree’ kar le rahe hain. Goya ve yah samajhte hain ki unki in chalakiyon ki aam logon ko samajh nahin hai, America vyapari hai, vyapari ka pahla dharma apne ko bhi pahle ‘karobar’ ke liye hi bachana hota hai, lekin vyastha ka dayitva hai ki yah aise vyaparion ki sabhi gatividhiyon par nazar rakhe, hamare yahan ki poori vyastha ne to bahut pahale hi America ke aage samarpan kar diya tha, bachi-khuchi kasar ab Manmohan sarkar ne poori kar di hai; lekin kya aam aadmi hath par hath dhare baitha rahega. Kya loktantra men kanoon ki raksha sirf vyawastha ke bharose hi chhod dena uchit rahega. Zaroorat hai ek sashakta aandolan ki. Hum Kalam ke sipahion ko iss ki pahal karni chahie, ab bhi nahin chete to hamare sathion ki madad se vatan ke alambardar vatan bech denge. Hum aap ke sath hain. Jan jagrookparak sampadkiya ke liye badhai aur sahsik lekhan ke liye dhanyavad.

  2. अमित गर्ग. राजस्थान पत्रिका. बेंगलूरु

    June 13, 2010 at 12:52 pm

    आदरणीय कल्पेश जी,
    आपने अपने विशेष संपादकीय के जरिए भोपाल गैस त्रासदी के समले पर तीन पायों की बहुत सी बातों से पर्दा उठाने की कोशिश की है, लेकिन चौथे पाये को आपने छूने तक की भी जहमत नहीं उठाई है। तीन पायों की कमजोरी के साथ चौथे पाये की भी कहीं ना कहीं कमजोरी रही है ये आप भी जानते हैं, प्रताडि़त भी जानते हैं और अब आम जनता भी। आपने आम आदमी से पोस्टकार्ड लेखन के जरिए मामले को दोबारा खुलवाने की मांग की है, जो काबिले तारीफ है। लेकिन, आप इस मसले पर मीडिया से भी उसकी जिम्मेदारी के निर्वाह की मांग करने के साथ पहली पहल स्वयं की ओर से करेंगे तो और भी ज्यादा बेहतर होता। इससे न केवल प्रताडि़तों में उम्मीद की एक किरण जागेगी बल्कि, मीडिया को भी अपनी गलतियों का अहसास होगा और भूल का सुधार भी किया जा सकेगा।

  3. अनिता

    June 13, 2010 at 1:27 pm

    कल्‍पेश जी पहले आप जो भास्‍कर में अपने स्‍टॉफ के प्रति अन्‍याय करते हैं। जूनियरों पर अत्‍याचार करते हैं और आपका जो घंमडी स्‍वभाव है उसका भी भोपाल गैस त्रासदी के साथ इलाज करिए। राजस्‍थान पत्रिका और नई दुनिया को आप अखबार ही नहीं मानते और वे ही बढ़े जा रहे हैं। पूरे भास्‍कर में चुपचाप जासूसी करा लीजिए, आपके चमचों को छोड़कर हर कोई आपको जमकर कोसता है क्‍योंकि लोगों को प्रताडित करने में आपको आनंद आता है।

  4. Rajat

    June 13, 2010 at 4:15 pm

    कल्पेश जी, इस विशेष संपादकीय में आपकी पीड़ा साफ झलक रही है। आपने लोकतंत्र के तीन स्तंभों को जिम्मेदार ठहरा दिया, लेकिन चौथे स्तंभ मीडिया को भूल गए। उस समय जब जनता के साथ छलावा हो रहा था तो मीडिया क्यों इतने साल तक चुप बैठा रहा। मीडिया के मठाधीशों ने भी तो अर्जुनसिंह और राजीव गांधी की चमचागिरी कर अपने उल्लू सीधे कर लिए, लेकिन जनता की तकलीफ पर ध्यान नहीं दिया। आज आपके अखबार को गरीब जनता की तकलीफ कैसे याद आ गई, जबकि वहां तो बैठकों में रिपोर्टरों को साफ कह दिया जाता है कि गरीबों के बारे में खबर मत लिखो, वे थोड़े ही हमारा अखबार खरीद सकते हैं। सिर्फ टीजी का ध्यान रखो। यदि आप लोग उसी समय अपनी कलम को तीखा रखते तो यह नौबत ही नहीं आती, लेकिन व्यवसायियों के दबाव में आप जैसे लोग भी चुपचाप तमाश देखते रहे। अब यदि आफ वाकई जनता को इंसाफ दिला सके तो यह आपके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

  5. ऋषि कुमार सिंह

    June 13, 2010 at 8:01 pm

    लोक जीवन इतना व्यथित हो चुका है कि अब बहुत कुछ इसी तेवर और हिम्मत के साथ कहने का वक्त आ गया है। न केवल पत्रकारिता को जनहित में ले जाने के लिए बल्कि बेशर्म होती राजनीति को असल राजनीति के रास्ते पर लाने के लिए ऐसा लेखकीय हस्तक्षेप जरूरी है। शोषण का आधार बन चुकी सत्ता से संवाद करने के लिए कहने-सुनने के तरीके में बदलाव भी जरूरी है। दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर कल्पेश याज्ञनिक का लिखा सम्पादकीय समय की मांग है।

  6. Kundan Vashishtha

    June 14, 2010 at 8:43 am

    Adarniya Kalpesj g 14 June ka Patrika bhi padhne ki jahmat uthaen. Gulab Kothari ne kiski bakhiya nahi udheri hai. kendra, rajya sarkaro se lekar vyavathapika, karyapalika, nyayapalika aur yahan tak ki media ko bhi ghere me lete hue Kothri ne nishpaksha patrakarita ka udaharan bhi pesh kiya hai.

  7. sanjay

    June 14, 2010 at 3:55 pm

    Anita ji bahut gusse me dikh rahin hai aur kiski kahani bayan kar rahin hai?
    Kalpesh ji badhiya lkha hai. Sach to ye hai Soye sabhi rahe. Aaj jab faisla aaya to chand din ka masala mila hai chnls walon ko.
    Mission kahan ab pura profession hai media.
    Varna Imandar Kalam ki taqat Satta palat kar de..
    Shai hai na..

  8. sangeeta

    July 18, 2010 at 6:30 pm

    achi soch hain….sach kaha hain kisi ne…der aaye par doorust aaye…..:o

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