शिवराज पर भाग्य, भगवा, भगवान, तीनों हैं मेहरबान : साथी ने इसे अंधों का हाथी बना दिया : सूबे के सूबेदार की राजनितिक क्षमता, प्रशासनिक कौशल, जनता के बीच छवि, छलावा, छुकरपन, योजना, घोषणा, अमल, निपटारा, छुटकारा, लटके-झटके, तौर-तरीके और भी ना जाने क्या-क्या का आंकलन मूल्यांकन और प्रतिस्थापन का काम शुरू हुआ है. एक सीधे वाक्य में कहें तो “शिवराज सिंह चौहान की सीआर लिखी जा रही है.” ये प्रयोग शुरू किया है बेबाक निर्भीक निष्पक्ष और प्रयोगधर्मी साथी अवधेश बजाज ने. सभी जानते है की ये कौन हैं ओर जो नहीं जानते उनको जानना भी नहीं चाहिए. सीआर लिखी जा रही है उनके चर्चित और लोकप्रिय अख़बार बिच्छू में. आपको बहुत ही संजीदगी से इस अख़बार को पढ़ने और नोटिस करने की जरूरत है क्योंकि ये “बिच्छू” है. अब सोचेंगे कि ऐसा क्यों कहा, ऐसा क्या खास है इसमें. हां, खास है, वो ये कि आपने बिच्छू तो देखा ही है, बिच्छू देख कर आपको लगेगा जैसे कोई जीव आपको हाथ जोड़ कर नमस्कार कर रहा हो लेकिन बिच्छू तो जहरीला डंक मारता है. हां, मारता है. वो उसकी फितरत है. और जगजाहिर भी है. तभी तो कहते हैं कि बिच्छू का डेरा डंक पर. यानि हर चीज साफ़ है, खुल्लम खुल्ला है, डंके की चोट पर है. इसलिए कोई नहीं कह सकता कि मित्र बनकर हमला हो रहा है या खिल्ली उड़ाई जा रही है.
ताजा अंक जैसे ही हाथ में आया तो लगा कि अरे, ये क्या हो गया? बिच्छू ने ये कौन से नए गठबंधन का खुलासा कर दिया. हेडिंग ही ऐसी थी शिव ‘राज’ पर मीडिया मन्त्र. बिना चश्मे के मोटे अक्षर और साथी अभिलाष खांडेकर, विजय तिवारी, दीपक तिवारी, राजेश सिरोठिया, हृदयेश दीक्षित, अनुराग उपाध्याय, शिव अनुराग पटेरिया, धनंजय प्रताप सिंह, देशदीप सक्सेना, प्रकाश भटनागर, विजय मनोहर तिवारी, प्रवीण दुबे, जयश्री पिंगले, अजय त्रिपाठी, अनिरुद्ध तिवारी के साथ सूबेदार शिवराज सिंह का बड़ा सा फोटो छापा है. माथा ठनका कि अरे ये क्या हुआ. शिवराज ने प्रदेश की पत्रकारिता के किले को भी जीत लिया क्या, या इन साथियों का ह्रदय बदल गया और सब बीजेपी ज्वाइन कर रहे है. फिर चश्मा पहना और पेपर से हट कर मोबाइल पर नजर डाली कि बीजेपी दफ्तर से अब तक मैसेज क्यों नहीं आया कि ये पत्रकार आज बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं या कर चुके हैं. फिर अख़बार खोलकर पढ़ना शुरू किया तो असलियत सामने थी. तुंरत फोन लगा दिया साथी अवधेश को. फोन उठाते ही बोल पड़े, अरे यार तेरा नाम स्लिप हो गया. वो समझे मैंने उलाहना देने के लिए फोन किया है, परन्तु मैं तो कुछ और ही कहना चाहता था, खैर बात ख़त्म हुई और मैं अख़बार पढ़ने में जुट गया.
अब जब पढ़ लिया तो दिमाग के कीडे दौड़ने, उछलने, कूदने लगे और हाथों में कुछ लिखने कि कुलबुली शुरू हो गई. तो कलम उठा कर लिखना शुरू किया. सोचा यज्ञ में सभी बड़े धुरंधरों ने आहुति तो दे दी लेकिन मेरी आहुति के बिना यज्ञ अधूरा ना रह जाये तो पूर्णाहुति स्वीकार करिए. बाहर फोटो ना होने कि वजह से साथी शिव अनुराग पटेरिया का नाम भूल रहा था लेकिन वो जूलुस में शामिल हैं. इस सीआर राइटिंग में एक बात जो सबसे अच्छी है वो ये कि ये सभी भोपाल के स्थापित, 24गुना7 मैदान में सक्रिय और पल-पल ख़बरों से खेलने-लिखने वाले पत्रकार हैं. मेरी नजर में इन सभी का सूबेदार से कोई खास आग्रह-दुराग्रह भी नहीं है. इस शहर की पत्रकारिता में सभी से मेल मुलाकात होती रहती है. सो जो लिखा है या जो मुद्दे उठाये हैं, वो सूबेदार को कुछ ज्ञान तो जरूर देंगे.
मैं तो बात करना चाहता हूं कि जो लिखा है वो है क्या और सूबेदार के बारे में रायशुमारी कैसी और क्या रही. पहली बार में सभी को पढ़ कर लगता है कि “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखहिं तैसी” लेकिन इतना कह या लिख देने से नहीं चल सकता. फिर ध्यान से पढ़ा तो बात कुछ और निकली. लिखने वाले भी कम चतुर सुजान नहीं है. कोई कलम, कोई हाथ तो कोई पुचकार और फटकार के साथ बचा-बचा कर लिख रहे हैं. कुछ तो ऐसे भी हैं कि सखा बनकर चोट कर रहे हैं तो कुछ सरकारी नौकरों-नाते-रिश्तेदारों को गरिया कर लेखन और शिवराज के बीच पसंगा बराबर रखने की कसरत कर रहे हैं. आम धारणा है कि जब सत्ता पर चोट करनी हो तो कहावत याद रखो ..हिले मिले लबरों में रहियो प्रान जाएँ पर सांची ना कहियो… कि तर्ज पर भी कुछ लोगों ने दोनों तरफ काम ठीक रखने की जुगत भी निकाली है. इनके बीच में एक ऐसा भी है जिसने बात अपनी कविता में कही है. इस कविता को पढ़ कर ही लगता है कि सही-सही और समग्र चोट की गई है. साथी अनुराग की नजर सबसे जुदा और सटीक लगती है. खड़ी बात कहकर उसने कविता को जिन्दा रखने कि कोशिश भी की है.
उम्र विचार और तजुर्बे में अग्रज, जिनको गुरु भी कहता हूं, समाजवादी साथी विजय तिवारी का लिखा पढ़ा तो लगा “गुरु बुढा गईल है”. तभी तो शिवराज को रावण का किस्सा सुना रहे हैं और बता रहे हैं कि शिव कैसे औघरदानी हैं तो तुम भी वैसे ही बनो. गुरु ये भूल गए कि ये दानी शिव नहीं हैं, ये तो जनता से वोट मांगता है, ये क्या देगा. खैर सभी ने अपने अपने नजरिये से लिखा और खूब लिखा. पहली बार ऐसा सामूहिक प्रयोग भी हुआ. ये शब्द ब्रहम है और बाण भी है जो समय-समय पर अपना असर भी दिखायेंगे लेकिन अभी तो शिवराज पर भाग्य, भगवा और भगवान, तीनो मेहरबान हैं. कोई यदि इस सारे प्रयोग लेखन और आंकलन के बारे में एक लाइन में कहे तो यही कह सकता है कि साथी अवधेश ने सूबेदार को “अंधों का हाथी” बना दिया.