: लेह की राष्ट्रीय आपदा बनाम यशवंत की निजी विपदा : एक अखबार में कार्यरत पत्रकार साथी ने लेह पर आई विपदा के मामले में भड़ास4मीडिया के जरिए मदद अभियान शुरू करने की अपील की. इससे संबंधित उन्होंने मेल भेजा. मैंने उन्हें जो जवाब दिया, उससे वे थोड़े नाराज हुए और पलटवार किया. मैंने फिर उन्हें समझाने की कोशिश की है. पूरे पत्रचार को नीचे पढ़ सकते हैं. आप क्या सोचते हैं, अपनी राय जरूर दें. पत्र सार्वजनिक करने के पीछे उद्देश्य यही है कि ऐसे मुद्दों पर एक बार आम राय बन जाए तो आगे से इस तरह की स्थितियों में तदनुसार एक्शन लिया जाए. -यशवंत, भड़ास4मीडिया
date Tue, Aug 10, 2010 at 3:25 PM
subject An appeal
आदरणीय यशवंत जी ,
लेह में आई विपदा सर्वविदित है। जब से लेह में प्राकृतिक हादसे की खबर सुनी है तभी से मन व्याकुल है। मैं अभी तक दो बार लद्दाख गया हूं, पहले हिन्दुस्तान अखबार में करगिल युद्ध के पश्चात और फिर 2006 में 15 अगस्त पर बाइक से शांति अभियान के दौरान। अन्य सैलानियों की तरह मैं भी लद्दाख से बेहद प्यार करता हूं, इतना प्यार कि एक-एक संस्मरण मुझे आज भी याद है। जब भी लद्दाख गया इस संकल्प के साथ लौटा कि अगली बार जरूर आउंगा। इस साल भी जाने का कार्यक्रम था लेकिन हादसे के चलते स्थगित करना पड़ा। असली मुद्दे पर आता हूं। यशवंत जी, लद्दाखियों का निश्चल प्रेम सर्वविदित है और वो मेरे सभी पत्रकार भाई जो लद्दाख जा चुके होंगे इससे वाकिफ होंगे। साथ ही लद्दाख के सौंदर्य के बारे में भी वे भलिभांति परिचित होंगे। लद्दाखियों पर घटी इस विपदा पर हम पत्रकारों को भी कुछ करना चाहिए। यशवंत जी, आपसे अपील करता हूं कि अपने इस मंच के माध्यम से एक लेह राहत कोष बना कर कुछ सहायता राशि एकत्र करके लद्दाखियों की सहायता के लिए भिजवाने का कष्ट करें।
धन्यवाद
हरेन्द्र
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date Fri, Aug 13, 2010 at 8:12 PM
भाई, आपका सुझाव सही है लेकिन पत्रकार बेचारे खुद ही मरे मरे होते हैं, वे क्या देंगे. कोई पत्रकार अचानक मरता है तो उसे तो कोई मदद देता नहीं, लेह वालों के लिए ये लोग क्या करेंगे. वैसे, भी ये राष्ट्रीय आपदा है. कायदे से इसे अखबारों व चैनलों को मुहिम बनाकर मदद भेजनी चाहिए. इस मुद्दे पर अगर आप कोई लेख लिख सकें तो भेजिएगा.
मैं आपकी भावनाओं और संवेदनाओं को समझता हूं. मैं भी बहुत कुछ करना चाहता हूं लेकिन दिक्कत ये है कि भावना संवेदना उनमें हैं जिनके पास पैसे कम होते हैं और जो पैसे वाले होते हैं वे भावना शून्य व संवेदना शून्य बन जाते हैं.
उम्मीद है आपसे संपर्क बना रहेगा.
आभारी हूं इस मेल के लिए
आपका
यशवंत
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date Mon, Aug 16, 2010 at 10:59 PM
आदरणीय यशवंत जी,
मुझे खुशी हुई कि आपने मेरी भावनाओं के प्रति संवेदना दिखाई। लेकिन और ज्यादा खुशी तब होती जब आप संवेदना जताने के लिए कोई कदम भी उठाते। खैर मंच आपका है और मालिक आप हैं, क्या दिखाना चाहिए और क्या जताना चाहिए, मुझसे बेहतर जानते होंगे। लेकिन मैं गलत नहीं समझता कि एक एड के प्लेस को रिप्लेस करके अगर एक छोटी सी मुहिम चली जाती तो बेहतर होता। रही बात पत्रकारों की तो आपने वाजिब कहा कि ‘बेचारे खुद ही मरे मरे होते हैं, वे क्या देंगे. कोई पत्रकार अचानक मरता है तो उसे तो कोई मदद देता नहीं, लेह वालों के लिए ये लोग क्या करेंगे’।
लेकिन एक बात का जिक्र जरूर करना चाहूंगा, याद कीजिए वो वक्त जब आप पर हिन्दुस्तान टाइम्स ने केस किया था और केस लड़ने के लिए आपने पत्रकारों से चंदा मांगा था। चूंकि वह निजी हित था और इन्हीं बेचारे खुद ही मरे मरे पत्रकारों ने आपके आह्वान पर आपकी मुसीबत को देखते हुए आपकी मदद भी की थी। चूंकि लेह एक राष्ट्रीय आपदा है, इसलिए इसे अखबारों व चैनलों को मुहिम बनाकर मदद भेजने के छोड़ दिया जाए। क्या कोई चैनल या अखबार ऐसा है, जो अपनी जेब से मदद करेगा, वो भी बेचारे खुद ही मरे पत्रकार कर्मियों की सेलरी से काट कर ही मदद पहुंचाएंगे। कम लिखे को अधिक समझना और कोई गलत बात लिख दी हो तो यशवंत जी छोटा भाई समझ कर माफ कर देना।
धन्यवाद
हरेंद्र
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date Tue, Aug 17, 2010 at 9:44 AM
हरेंद्र भाई
आप सच कह रहे हैं. मैं सहमत हूं. शायद व्यस्तताओं के चलते संवेदना मेरी कम हो गई है या फिर संवेदना निज हित केंद्रित ज्यादा हो चुकी है. लेकिन मैं अपने उस बात पर कायम हूं कि मीडिया से जुड़ी अगर कोई विपदा, आपदा, मदद, बीमारी आदि होती है तो हम लोग कोशिश करते हैं कि सीधे पीड़ित के एकाउंट में मदद जाए. ताजा मामला हर्षिता का है जिससे जुड़ी लगभग छह सात खबरें प्रकाशित की गईं और उसे अच्छी मदद मिली. उसका आपरेशन सफल रह और वह बच गई. ऐसे न जाने कितने लोगों की प्रार्थनाओं, अपीलों, मदद के लेखों को हम लोग प्रकाशित करते रहते हैं. पर बंधु, लेह की आपदा के लिए हम लोग कोई मदद कंपेन नहीं चलाएंगे क्योंकि यह काम सरकार, संस्थाओं और अन्य मीडिया हाउसों का है. मीडिया सेंट्रिक किसी वेबसाइट की नहीं. मैं समझ सकता हूं, आपने ज्यादा उम्मीदें भड़ास4मीडिया और यशवंत से पाली हैं, इसलिए ना सुनकर कष्ट हो रहा है. पर आपको बता दूं, पंजाब केसरी, दी ट्रिब्यून जैसे कई अखबारों ने लेह के लिए आर्थिक मदद की कंपेन शुरू कर दी है और रोज डोनेट करने वालों के नाम छाप रहे हैं. मैं कोशिश करता हूं कि उनके मदद के अभियान के डिटेल पोर्टल पर प्रकाशित करा दूं ताकि जिन्हें हेल्प करना हो, वो उनके जरिए हेल्प कर दें. भड़ास4मीडिया की तरफ से एक छोटी राशि भी इसी अभियान में दे दी जाएगी. पर मुझे आश्चर्य है कि आप जिस संस्थान में काम कर रहे हैं, वहां के मालिकों, संपादकों, मैनेजरों के मन को झकझोरने के लिए आपने कोई पत्र नहीं लिखा? दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला जैसे अखबार और देश के टाप टेन न्यूज चैनल क्यों नहीं लेह के लिए कंपेन चलाते. इन चैनलों अखबारों के प्रधान संपादकों के पास बहुत ज्यादा ताकत व प्रभाव है, बनस्पति सड़क छाप यशवंत और भड़ास4मीडिया के.
मैं कुतर्क नहीं कर रहा, सिर्फ यह समझाने की कोशिश कर रहा कि मीडिया सेंट्रिक वेबसाइट से आपकी अपेक्षाएं बहुत ज्यादा है. मीडिया से जुड़ा कोई मदद का मामला हो तो जरूर बताइएगा. हम आपके साथ खड़े मिलेंगे. लेकिन दुनिया के हर गम का ठेका बिना संसाधन के चल रही वेबसाइट भड़ास4मीडिया का कतई नहीं है. मैं भी आपकी तरह कुछ बड़े लोगों को पत्र लिखकर अपील करता हूं कि वे अपने बड़े मीडिया हाउसों के जरिए लेह के लिए कंपेन शुरू करें.
उम्मीद है मेरी बात का बुरा नहीं मानेंगे.
आभार
यशवंत
Siddharth Kalhans
August 17, 2010 at 8:18 am
य़शवंत भाई आपका तकर् वाजिब है। पत्रकार भाई खास तौर पर दूर-दराज के रहने वाले अक्सर मुसीबत से घिरे रहते हैं और उनके पास मदद का कोई जरिया नही होता है। साथी पत्रकार लाख सहानुभूति रखे पर उनके टेंट में कुछ होता नही मदद करने को। भड़ास अगर उनकी ही मदद कर पाए यही बहुत है। दूसरी बात कि भड़ास को पढ़ने वालों में ज्यादा तादाद मीडिया के लोगों की है सो उनको पहले अपनों की मदद से जोड़ लें यही बहुत है। हर रोज अपना कोई साथी दवा के अभाव में मरता है तो किसी के बच्चे का नाम स्कूल से कट जाता है। मीडिया के साथी खुद अभाव के मारे हैं अगर चे वो अपने अखबारों के जरिए अपील कर लेह के लिए चंदा जुटा लें यह बहुत होगा। सही है कि मीडिया संस्थान इस पर पाठकों से डोनेशन ले उसे लेह पहुंचाने का काम करें। हम में से जो योग्य हों देने लायक वो किसी जरिए मदद दे सकते हैं। महत्वपूर्ण यह नही है कि मदद भड़ास के जरिए या किसी और के। मदद होनी चाहिए।