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खबर के 500 व फोटो छपवाने के हजार लगेंगे!

बलिया के सामाजिक कार्यकर्ता और विद्यालय प्रबंधक जुबैर खान आजकल अखबार वालों से दुखी हैं. उन्होंने अपनी पीड़ा भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष के पास लिखित रूप में भेज दी है. पेड न्यूज का चलन कैसे है जारी, इस बारे में समझा जा सकता है जुबैर के पत्र से. जुबैर ने पत्र में अपना पूरा पता व संपर्क नंबर भी भेजा है. इसके आधार पर कहा जा सकता है कि जुबैर सचमुच मीडिया के मारे हैं. उनका पत्र इस प्रकार है…

<p style="text-align: justify;">बलिया के सामाजिक कार्यकर्ता और विद्यालय प्रबंधक जुबैर खान आजकल अखबार वालों से दुखी हैं. उन्होंने अपनी पीड़ा भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष के पास लिखित रूप में भेज दी है. पेड न्यूज का चलन कैसे है जारी, इस बारे में समझा जा सकता है जुबैर के पत्र से. जुबैर ने पत्र में अपना पूरा पता व संपर्क नंबर भी भेजा है. इसके आधार पर कहा जा सकता है कि जुबैर सचमुच मीडिया के मारे हैं. उनका पत्र इस प्रकार है...</p>

बलिया के सामाजिक कार्यकर्ता और विद्यालय प्रबंधक जुबैर खान आजकल अखबार वालों से दुखी हैं. उन्होंने अपनी पीड़ा भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष के पास लिखित रूप में भेज दी है. पेड न्यूज का चलन कैसे है जारी, इस बारे में समझा जा सकता है जुबैर के पत्र से. जुबैर ने पत्र में अपना पूरा पता व संपर्क नंबर भी भेजा है. इसके आधार पर कहा जा सकता है कि जुबैर सचमुच मीडिया के मारे हैं. उनका पत्र इस प्रकार है…

सेवा में,

अध्यक्ष

भारतीय प्रेस परिषद

महोदय,

पिछले दिनों अखबार और उसके द्वारा बेची जा रही खबरें काफी चर्चा में रहीं। लेकिन अखबारों द्वारा बेची जा रही खबरों की यह प्रवृत्ति अनवरत चल रही है। जिसको दिन-प्रतिदिन मुझे मेरे जनपद बलिया में झेलना पड़ता है। मैं सामाजिक कार्यकर्ता और विद्यालय का प्रबंधक हूं। मेरे विद्यालय में विभिन्न सामाजिक कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा मैं अपनी संस्था के माध्यम से विभिन्न समाज कल्याण के कार्यक्रम करवाता रहता हूं। जिसकी विज्ञप्ति मैं अपने जिले के दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, आज को भेजता हूं। मुझसे सिर्फ खबर के लिए पांच सौ और कार्यक्रम का फोटो छापने के लिए एक हजार की मांग करते हैं। कभी-कभी तो कहते हैं कि पांच हजार का विज्ञापन दीजिए छपता रहेगा बार-बार आपको न पैसा देना पड़ेगा और न ही हमें मांगना पड़ेगा। कई बार मुझे अखबारों के दफ्तरों में जलील होना पड़ा। वे कहते हैं कि पैसा नहीं देते हो, खबर छपवाने का बहुत शौक पाला है। कहते हो कि जेब में पैसा नहीं है तो इतना महंगा कपड़ा कैसे पहनते हो। कई बार मैंने क्षेत्र में स्वास्थ्य शिविर लगवाए तो उसकी खबर देते वक्त पत्रकार कहते हैं कि डाक्टरों को देने के लिए पैसा है हमको देने के लिए नहीं, हमारे यहां खाली हाथ चले आते हो, हमें ता नरेगा से भी कम वेतन मिलता है।

महोदय संवादाताओं द्वारा खबर के लिए पैसा मांगना उनकी मजबूरी भी है क्योंकि किसी को हजार रुपए मिलता है तो किसी को पांच सौ और किसी को मिलता ही नहीं पर उन्हें अपने स्थानीय संपादकों से लेकर उपर तक पैसा पहुंचाना होता है जैसा वे बताते हैं। ऐसे में हम चाहते हैं कि आप तत्काल हस्तक्षेप करते हुए हम जैसों और छोटे पत्रकारों के शोषण को बंद करवाएं। उन्हें न्यूनतम गरिमामय वेतन देने का प्रावधान बनाएं ताकि यह सामाजिक कुरुति रुक सके। या फिर पैसा देकर खबर छपवाने को ही वैध एक नियम और शुल्क निर्धारित कर दिया जाय ताकि न मांगने वाले को लगे की वह कुछ गलत कर रहा है और न देने वाले को लगे कि उसे लूटा जा रहा है।

द्वारा-
जुबैर खान
पुत्र मो0 लाल बाबू खान
हल्दी कोठी के सामने
ग्राम-पोस्ट बहेरी बलिया उ0प्र0
मो0-09919543054, 09580205800

 

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0 Comments

  1. prakash

    April 23, 2010 at 11:29 am

    bahut khoob jubairji paise mangne ke maamle me mai aap se sahamat hun, kam se kam itni himmat to apne dikhai. lekin shiksha ke chhetra me apki prabandhak biradari ne bhrastachaar ke saare ricord bhi tode hain. chaahe scholarship ghotala ho ya students se nakal ke naam par andha dhund vasooli ho. Haalat ye hai ki shikshak aur prabandhak shikshan karya ke alaawa har karya me lipt hain. Mai bhi bhukt bhogi hu apni wife ko bed karaana kitnaa mahanga padaa mai hi jaanta hun. garib kissan ke bachho ko rote dekha hai. patrakaar bhi shayad isi soch se aap jaiso ko mota bakra samjhte ho. agar aap kuchh hat kar hai to koi baat nahi

  2. rajesh k. Tyagi

    April 23, 2010 at 4:13 pm

    bhai agar paise nahin mangenge to phir sadak par paise mangne ki naubat aa jayegi. aur to aur muft ka mall aise hi nahin chapta.

  3. UDAY

    April 24, 2010 at 8:20 am

    भाई जुबैर जी !
    आपका दर्द समझा जा सकता है.बहुत हद तक यह सही है की अखबार नवीस ख़बरों के लिए पैसे मांगते हैं.लेकिन आप जिस धंधे ( जी हाँ ! सामाजिक कार्य और शिक्षण संस्थान चलाना आज की तारीख में धंधा ही हो गया है,इस बात से तो आप भी सहमत होंगे.) में हैं ज़रा उस पर भी तो गौर फरमाइए … एडमिशन फार्म से लेकर प्रवेश पत्र और उसके बाद भी बहुत कुछ…… के नाम पर कितना वसूलते हैं आप और आप जैसे न जाने कितने लोग . एक पत्रकार ने अगर आपसे कुछ मांग ही दिया तो इतनी है तौबा मचाने की क्या जरुरत है.
    सच तो यह है की इन सब चीजो की शुरुआत तो आप ही जैसे लोग करते हैं .अपने फ़ालतू के क्रिया कलापों का कूड़ा करकट अखबार में छपवाने के लिए बेचैन रहते हैं.

  4. chandan roy

    April 26, 2010 at 8:21 am

    ek asal mudda ab manch par aaya hai… dono hi baaten do tarah se sach hai.
    pahli ye ki akhbaar navis aisa karte hai.. paise mangte hai? kya kare bechare ..1000- 1500 ki naukri kar prabandhan khud hi unhe aise gaddhe me dhakel raha hai.. jabki ngo bhi apni khabre chhapwakar lakhon ke fund se ware nyare kar rahe hai?
    ye jawabdehi kaun tay karega? Sarkar??? media? patrakar? Ngo? aakhir kaun?
    [b][/b][img][/img][img][/img][img][/img]

  5. punit kumar srivastava

    April 26, 2010 at 4:32 pm

    bandu jubair khan ji aapne to ek achi baat samaj ke samne layi hai . magar aap ye batae ki jab ap school chalata hai to aapko add dena chahiye kouki media ek carporete chetra hai. aapne kha ki aapse media ke logo ne kabar ke badale paise ki mang ki aap ne sabhi maramukh char akbaro per nisana sadha hai.ye kahi n kahi aapki dvesh ki bavna se bhi prerit lagta hai . kyuki us vakt aapke school me exam bhi chal rahe the .aapne jo aarop lagaya hai sayad vo satya ho magar isa hi kaam aap jaise prabandhko ke dvara bhi kiya jata hai exam ke samay .us samay aap ki sikayat agar akhabar vale samachar patra me nikhal de to iska matalab ye nahi ki aap hi unke bare me galat baat kahe
    punit srivastava
    city reporter/photographer
    aaj hindi dainik (mau ,up)
    9454802112

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