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दुख-दर्द

टीवी जर्नलिस्ट बनकर मकान कब्जाने की कोशिश

लखनऊ के महानगर इलाके में एक फर्जी पत्रकार ने जाली दस्तावेज तैयार करके रिटायर मेजर के मकान पर कब्जे का प्रयास किया। ताला तोड़ा ही था कि भवन स्वामी अपने रिश्तेदारों के साथ पहुंच गया। दोनों पक्ष झगड़ते हुए महानगर कोतवाली पहुंचे। वहां फर्जी पत्रकार ने जमकर हंगामा किया। इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट दर्ज करके फर्जी पत्रकार को हवालात में ठूंस दिया।

<p align="justify">लखनऊ के महानगर इलाके में एक फर्जी पत्रकार ने जाली दस्तावेज तैयार करके रिटायर मेजर के मकान पर कब्जे का प्रयास किया। ताला तोड़ा ही था कि भवन स्वामी अपने रिश्तेदारों के साथ पहुंच गया। दोनों पक्ष झगड़ते हुए महानगर कोतवाली पहुंचे। वहां फर्जी पत्रकार ने जमकर हंगामा किया। इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट दर्ज करके फर्जी पत्रकार को हवालात में ठूंस दिया। </p>

लखनऊ के महानगर इलाके में एक फर्जी पत्रकार ने जाली दस्तावेज तैयार करके रिटायर मेजर के मकान पर कब्जे का प्रयास किया। ताला तोड़ा ही था कि भवन स्वामी अपने रिश्तेदारों के साथ पहुंच गया। दोनों पक्ष झगड़ते हुए महानगर कोतवाली पहुंचे। वहां फर्जी पत्रकार ने जमकर हंगामा किया। इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट दर्ज करके फर्जी पत्रकार को हवालात में ठूंस दिया।

पुलिस के मुताबिक, रिटायर मेजर गोविंद पुरवानी का महानगर में मकान है। इसे सुल्तानपुर के संतोष सिंह ने किराए पर लेकर ब्वायज हास्टल खोल रखा है। संतोष से इकरारनामा की अवधि 31 मार्च तक है। गोविंद पुरवानी नैनीताल में रहते हैं। वहां उनका होटल है। होली के मौके पर गोविंद हजरतगंज के गोखले मार्ग पर अपनी बेटी विनीता कोहली के घर आए थे। बुधवार दोपहर किराएदार संतोष सिंह ने फोन पर सूचना दी कि कुछ लोग मकान के ताले तोड़कर कब्जा कर रहे हैं। इस पर गोविंद पुरवानी अपने रिश्तेदारों को साथ लेकर मौके पर पहुंचे। कब्जा कर रहे एक युवक ने खुद को एक न्यूज चैनल का पत्रकार निखिल शर्मा बताते हुए मकान पर मालिकाना हक जताया और दस्तावेज दिखाने लगा। गोविंद ने अपने वकील बुला लिए।

तीखी झड़प के बाद दोनों पक्ष महानगर कोतवाली पहुंचे। वहां निखिल ने पुलिस को रौब में लेते हुए गोविंद को फटकार लगानी शुरू कर दी। दोनों पक्ष को भिड़ता देख इंस्पेक्टर ने हस्तक्षेप किया। इस बीच निखिल ने कई साथी बुला लिए। कोतवाली में जमकर हंगामा किया। इंस्पेक्टर ने संबंधित न्यूज चैनल के अधिकारियों से बात की। उन्होंने निखिल के पत्रकार होने से इनकार कर दिया। हंगामे के दौरान गोविंद की बेटी विनीता भी कोतवाली पहुंचीं और निखिल पर फर्जी दस्तावेज तैयार करके मकान पर कब्जे के प्रयास का आरोप लगाते हुए तहरीर दी। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करके निखिल को हवालात में बंद कर दिया। साभार : अमर उजाला

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0 Comments

  1. avinash mishra

    March 10, 2010 at 5:13 am

    nikhil sharma ek tej taraar patrakaar hai………….jo kuch bhi hua wo durbhagyapurna hai aur saaf chavi ke patrakar ko ek badi saajish me fasane ki kosish hai. nikhil is a good journalist n a good human being………media jagat me uske teji se badate kadamo dekh kar ye lagta hai ki ek din in sab pareshaniyo se nikal kar wo media jagat ko naye mukaam par pahuchayega…………..no doubt one day he will make a day……………god bless him

  2. Rizwan Chanchal Lucknow

    March 9, 2010 at 2:36 am

    Nikhil ke sath yadi mahanagar Inspector dwara yeh sazis rachi gayee hai to nikhil ke sahyog me sabvhi patrakaron ko aage aana chahiye aur nikhil ka sath dene ke sath -sath sajis rachne walon ke khilaf awaz uthani chahiye .

  3. Rahul frm Lucknow

    March 7, 2010 at 2:14 am

    निखिल ने कोई गलती नही की उसकी गलती सिर्फ इतनी है की उसने अपने सम्मान की खातिर इंस्पेक्टर महानगर को दो तमाचे जड़ दिए जिससे इंस्पेक्टर पगला गया था की एक मामूली से रिपोर्टर ने सभी के सामने उसके मार दिया में बहुत खुश हूँ की उसके ऐसा करके पत्रकारिता का सम्मान तो रखा आए दिन सुनने को मिल रहा है की फला रिपोर्टर मारा गया इन सबसे हटकर निखिल ने सभी पत्रखारो का सम्मान बरक़रार रखा इंस्पेक्टर महानगर और सीओ कितने बडे सनकी है कोई पत्रकार नाम की बड़ी हस्ती लखनऊ आकर उनसे मिले तब पत्रकार जी को पता चल जायेगा की निखिल ने जो भी किया ठीक ही किया इंस्पेक्टर महानगर निखिल को गाली दे रहा था माँ बहन की कौन पत्रकार बर्दास्त करता ये सिर्फ वही बर्दाश्त करते जो पांच सो rup देकर प्रेस का कार्ड बनवा कर आए पत्रकारिता में लकिन निखिल; तो ऐसा नही है उसने तो पत्रकारिता की पढाई की है फर्जी पत्रकार तो है नही जैसा की अमर उजाला ने छापा है इस पेपर के पास छापने के लिए तो कुछ है नही इसके जो बडे रिपोर्टर है वो खुद बडे बडे दलाल है थाना बांधने वाले दलाल जैसा बचपन में सुनता था पत्रकारों के बारे में अमर उजाला के इस रिपोर्टर को एक और थाना बांधने का इससे बढ़िया मौका और कब मिलता सच्चाई तो यही है की जबसे dig प्रेम प्रकाश का कानपुर ट्रान्सफर हुआ है तब से दलाल पत्रकार फिर से सक्रिय हो गये है निखिल ने किसी मकान की कोई रजिस्ट्री नही कराइ उसकी रजिस्ट्री तो खुद इंस्पेक्टर ने की और उसी ने दूसरे को पार्टी बनाकर और उसपर दबाव बनाकर निखिल पे केस दर्ज करवाया इंस्पेक्टर ने ऐसा इसलिए किया की निखिल ने उसको मारा और सबसे बड़ी वजह न्यूज़ २४ के चीफ ने मंत्री दद्दू प्रसाद को कुछ दिन पहले anexi में उसकी बदतमीजी की वजह से खूब डाट खिलाई थी सरकार से यही निखिल के जेल जाने की वजह है जो कह रहे की न्यूज़ २४ के चीफ ने निखिल की हेल्प नही की बिलकुल गलत है निखिल क्या कोई रिपोर्टर पे ऐसा blame लगता तो उसकी हेल्प सामने आकर कोई न करता २४ के चीफ निखिल की उस दिन से और अबतक जितनी हेल्प हो रही वो कर रहे है वो भी सामने आकर अगर निखिल गलत होता तो वो उसकी बिलकुल हेल्प न करते इसलिए उनपर ऊँगली उठाना गलत है वो तो पूरी तरह से निखिल के साथ है आज भी

  4. सलीम अख्तर सिद्दीकी

    March 6, 2010 at 7:52 am

    bhyya शुभचिंतक पत्रकार mera likha hee teep kar maar diya. kuch to sharam karo. lagta hai aap bhee 500 rupye deakar patrkaar bane ho.

  5. sakshi

    March 6, 2010 at 12:42 am

    whichever happend with NIKHIL it is all because of this system.no doubt nikhil is culprit but who forced him to do so ? the circumstances or the bloody system of the seniors. when one was not getting his salary from no of months what we accept from him. may God help nikhil and the system.

  6. एक शुभचिंतक पत्रकार

    March 5, 2010 at 5:14 am

    यशवंत भाई सादर वंदे, आए दिन पत्रकारों व पत्रकारिता की धज्जियां उड़ाने वाली खबरें देखने,सुनने व पढऩे को मिल रही है। भाई अब मुझसे रहा नहीं गया और मैं भी कुछ लिखकर भेज रहा हूं अगर संभव हो और प्रकाशन योग्य हो तो स्थान दीजिए।
    बेंगलूरु से एक शुभचिंतक पत्रकार

    देश में सूचना क्रांति से समाचार पत्रों व इलेक्ट्रिक चेनलों की बाढ़ सी आ गई है। भले ही कुछ समाचार पत्रों का ज्यादा पुराना या यों कहे कि दमदार अस्तित्व नहीं है जो पाक्षिक या साप्ताहिक की श्रेणी में आते हैं,लेकिन वे खुद को किसी बड़े समाचार पत्र समूह के पत्रकार या संपादक से कम नहीं मानते। आज चारों तरफ प्रेस वाला बनने की होड़ सी लगी है। भले ही पांचवी पास हो और उसे १२ का पहाड़ा भी ठीक से नहीं आता लेकिन वह चाहता है पत्रकार बनना, और जुगत भिड़ाकर बन भी जाता है एक पत्रकार। आज ऐसे कई समाचार पत्र हैं जिनमें काम करने वाले पत्रकार वैसे तो बारहवीं या इससे अधिक योग्यताधारी हैं लेकिन वे पत्रकारिता की एबीसी भी नहीं जानते। पर समय का फैर है कभी कभार बिल्ली के भाग का छिंका टूटना होता है तो उनका भाग्य भी उनका साथ देता है और वे येन-केन-प्रकरेण बन जाते हैं रिपोर्टर। मैंने भी ऐसे कई लोग देखे हैं जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं था लेकिन अब वे अपना पुराना व्यवसाय या पंक्चर की दुकान बंद कर पत्रकार बन गए हैं और पूरे शहर में उनका दबदबा है। दबदबा इसलिए नहीं कि वे पत्रकार हैं और दूध का दूध पानी का पानी कर देंगे बल्कि इसलिए कि लोग उनके पिछले कारनामों को याद कर उनसे पंगा लेना चाहते। नहीं तो क्या पता वे मीडिया के चोले में कब कौनसा खेल खेल जाए किसी को मालूम भी नहीं पड़ता। जहां तक कवरेज की बात आती है ये पत्रकार बंधु इसशर्ट किए चश्मा लगाकर अपनी बाईक पर शान से रोड पर अधिकार पूर्वक चलते हैं और मजाल है कि कोई उनके रास्ते में आने की गुश्ताखी करे। जहां पर खाना या शानदार तोहफा मिलने की संभावना होगी वहां पर ये पत्रकार बंधु जाना नहीं भूलते,भले ही इसके लिए उनको अपना वीकली ऑफ भी क्यों न खराब करना पड़े। आजकल प्रेस होने वाला आसान भी बहुत हो गया है। किसी साप्ताहिक समाचार-पत्र के मालिक-सम्पादक को पांच सौ रुपए का नोट थमा दीजिए बस एक घंटे में आपके पास आई-कार्ड आ जाएगा। इतने पैसे तो केवल संवाददाता बनने के लगते हैं। चीफ रिपोर्टर या ब्यूरो चीफ बनना चाहते हैं तो जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ती है। कार्ड हाथ में आने के बाद अब आपके घर में जितने भी वाहन हैं, सब पर शान से प्रेस लिखवाएं और सड़कों पर रौब से घूमें। इससे कोई मतलब नहीं है कि आपको अपने हस्ताक्षर करने आते हैं या नहीं। कभी एक भी लाईन लिखी है या नहीं। आपके पास किसी अखबार का कार्ड है तो आप प्रेस वाले हैं। ऐसा भी देखने में आया है कि गैर कानूनी काम करने वाले भी अपने पास दो-तीन अखबारों के कार्ड रखते हैं। पैसे देकर कार्ड बनाने वाले अखबारों के तथाकथित मालिक और सम्पादक भी अपनी जान बचाने के लिए कार्ड के पीछे एक यह चेतावनी छाप देते हैं कि यदि कार्ड धारक किसी गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है तो उसका वह खुद जिम्मेदार होगा और उसी समय से उसका कार्ड निरस्त हो जाएगा। अब तो कुछ तथाकथित न्यूज चैनल भी ब्यूरो चीफ बनाने के नाम पर रुपए तक वसूल रहे हैं। न्यूज चैनल कभी दिखाई नहीं देता लेकिन उसके संवाददाता कैमरा और आईडी लेकर जरुर घूमते नजर आ जाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। बड़े अखबारों के एकाउंट सैक्शन, विज्ञापन सैक्शन और मशीनों पर अखबार छापने वाले वाले तकनीशियन भी अपने वाहनों पर धड़ल्ले से प्रेस लिखकर घूमते है। यहां तक की अखबार बांटने वाला हॉकर भी प्रेस शब्द का प्रयोग करते देखा जा सकता है। यही कारण है कि सड़कों पर चलने वाली प्रत्येक पांचवी या छठी मोटर साइकिल, स्कूटर और कार पर प्रेस लिखा नजर आ जाएगा। यकीन नहीं आता तो अपने शहर की किसी व्यस्ततम सड़क पर पांच-दस मिनट बाद खड़े होकर देख लें। शहर में वाहनों की चैकिंग चल रही है तो वाहन पर प्रेस लिखा देखकर पुलिस वाला नजरअंदाज कर देता है। मोटर साइकिल पर तीन सवारी बैठाकर ले जाना आपका अधिकार हो जाता है, क्योंकि आप प्रेस से हैं। किसी को ब्लैकमेल करके भारी-भरकम पैसा कमाने का मौका भी हाथ आ सकता है। भाई नाम मत देना नाम मैं कोई दिलचश्पी नहीं है प्लीज़

  7. Deepak Mishra,

    March 5, 2010 at 4:54 am

    निखिल के साथ जो हुआ वो दुखद है. निखिल पूरे समर्पण से न्यूज़ २४ में काम कर रहा है, निखिल किसी बड़ी साजिस का शिकार हुआ है, इसकी जाँच होनी चाहिए.

  8. Neeraj Kumar

    March 17, 2010 at 1:14 pm

    Nikhil ke sath jo kuch bhi ho raha hai wah thik nahi hai,Nikhil ko mai personally janta hu jo kuch bhi hua wo ek badi saajish me fasane ki kosish hai aur uska career kharab karne ki.Nikhil ne lucknow ke media jagat me itne kam time me thik thak mukaam hasil kar liya tha shayad yahi wajh ho uske saath beetne wale aaj ki.

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