कानपुर से खबर आ रही है कि कल सुबह करीब 2 से चार बजे के बीच दैनिक जागरण ग्रुप के चेयरमैन महेंद्र मोहन गुप्ता व दैनिक जागरण के कई अन्य वरिष्ठ लोगों के साथ पुलिस वालों की जमकर मारपीट हुई. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कानपुर में कनौडिया फेमिली की ओर से देर रात की पार्टी से खा-पीकर लौटते वक्त जागरण के लोगों की एक इंस्पेक्टर से रास्ते में किसी बात पर कहासुनी हो गई. इंस्पेक्टर दबा नहीं और न जागरण के नाम के प्रभाव में आया.
उल्टे, उसने जागरण वालों की दबंगई का बुरा मानकर उन लोगों को पीटना शुरू कर दिया. इस्पेक्टर का नाम है दिनेश त्रिपाठी. ये वही इंस्पेक्टर दिनेश त्रिपाठी हैं जिन्होंने बाबूपुरवा थाने में अमर सिंह और अमिताभ बच्चन के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था. कुछ लोगों का कहना है कि महेंद्र मोहन गुप्ता की भी पिटाई हुई जबकि कई लोग कहते हैं कि महेंद्र मोहन गुप्ता पिटे नहीं, केवल दैनिक जागरण, कानपुर के चीफ रिपोर्टर संजीव मिश्रा ही पीटे गए, महेंद्र मोहन तो बीच-बचाव कर मामले को निपटा रहे थे.
उधर, कुछ अन्य लोगों का कहना है कि पुलिस को जानकारी मिली थी कि कनौडिया फेमिली के लोग बार गर्ल्स को बुलाकर देर रात वाली खाने-पीने-नाच-गाने वाली पार्टी कर रहे हैं. डीआईजी प्रेम प्रकाश को मिली इस सूचना के बाद उन्होंने बाबूपुरवा थाने के इंस्पेक्टर को मौके पर पता लगाने के लिए भेजा. चर्चा के मुताबिक जब पुलिस वाले मौके पर पुहंचे तो वहां मौजूद कुछ धनाढ्य लोगों ने पुलिसकर्मियों से बदतमीजी कर दी. मौके पर जागरण के भी कई लोग मौजूद थे. इन लोगों ने भी पुलिस को दबाव में लेकर भगाने की कोशिश की.
सूत्रों के मुताबिक अपने अपमान से आहत पुलिस वालों ने कुछ जागरण वालों को मौके पर ही गिराकर पीट डाला. जानकारी मिलने पर महेंद्र मोहन गुप्ता भी पहुंचे. उन्होंने कई बड़े लोगों को फोन मिलाया और पुलिस वालों को दंडित करने की मांग कर डाली. बताया जा रहा है कि इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया है. सूत्रों के मुताबिक सारी कार्रवाई डीआईजी प्रेम प्रकाश के निर्देशन में हुई, सो उनके भी तबादले की आशंका जताई जा रही है.
पता चला है कि जागरण के लोगों को पूरे मामले को निपटाने में पसीने आ गए. बदनामी हुई सो अलग. इस प्रकरण के बारे में कुछ लोग अलग कहानी बता रहे हैं. इनके मुताबिक पार्टी से लौटते वक्त महेंद्र मोहन गुप्ता की पुलिस वालों से रास्ते में चेकिंग को लेकर बहस हो गई. बीच में संजीव मिश्रा कूद पड़े और पुलिस वालों को दबाव में लेने की कोशिश करने लगे. इसी पर मामला भड़क गया. जो भी हो, जागरण के नामी-गिरामी लोगों व पुलिस वालों के बीच मार-कुटाई का यह किस्सा आज पूरे प्रदेश में फैल गया.
लोग दबी जुबान से यह भी कहते सुने गए कि दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले अपने निजी जीवन में कितने अनैतिक हैं, यह इस वाकये से सबको पता चल गया है. साथ ही, यह भी कि मायावती सरकार में पुलिस वाले जब दैनिक जागरण के मालिकों को नहीं बख्श रहे हैं, कानून को अपने हाथ में लेकर खुलेआम सड़क पर मारपीट रहे हैं तो आम जनता का क्या हाल होता होगा.
Krshna Mohan
February 22, 2010 at 3:49 am
समरथ को नहीं दोष गुसाईं
Atul Mishra
February 22, 2010 at 8:13 am
DER RAAT KANPUR ME HO RAHI “UCHCHA STEREEY” “NANG NAACH PARTY” KI AWAJE PAAS SE GUJAR RAHE D.I.G. PREM PRAKASH KE KANO TAK PAHUNCHI, JISKE FALSWAROOP BABUPURVA THANA KE INSPECTOR DINESH TRIPATHI KO GARAM KIYA GAYA. GARMAYE TRIPATHI JI NE PARTY ME AA KAR ANAN FANAN ME SHAHAR KAPTAN DWARA DI GAYI SAARI GARMI PARTY PER NYOCHHAVAR KARDI, JISKE CHALTE YEH VAAKYA HO GAYA. AB HO GAYA SO HO GAYA , PER KUCHH TO GADBAD HAI…. BAAKI “BURA NAA MAANO HOLI HAI”!!!!!!
raj
February 22, 2010 at 9:10 am
lucknow ke patrakaron se sikho…itni pitai ke baad jawab dena hi hoga..jagran ke partrakaro tumhe jarurat hai lucknow ke patrakaro se sikhne ki…pitai ka jawab jamkar pitai se dena chaiye..
kamta prasad
February 22, 2010 at 12:10 pm
यशवंत जी, मार्क्सवादी हलकों में माना जाता है कि समाज में जब संगठित बुर्जुआजी नहीं होती तो स्टेट मशीनरी ही रूलिंग एलीट होती है। दूसरी बात यह कि स्टेट मशीनरी समग्रता में राज्य जो कि अपने यहां पूंजीवादी है, के दूरगामी हितों को ध्यान में रखकर काम करती है। एक-एक पूंजीपतियों के प्रति वह जवाबदेह नहीं होती माने राज्य और राज्य मशीनरी। स्टेट मशीनरी का गोचर अंग अर्थात सेना-पुलिस जब अपने पर उतर आये तो का राजा और का रंग। वैसे आपके द्वारा की गयी रिपोर्टिंग से जाहिर होता है कि यहां पर दीगर लोगों के अहं से उपजे अंतरविरोध काम कर रहे थे।
आखिर में एक बात मीडिया के 90 प्रतिशत लोगों की इस वाकये पर प्रतिक्रिया जानना दिलचस्प रहेगा। शायद निष्कर्ष पर हमारा पूर्वानुमान एक जैसा होगा।
Jaatak
February 22, 2010 at 12:37 pm
this isn’t the first time……jagran high command ek bar pehle bhi pit chuka hai…;D;D
viakas
February 22, 2010 at 1:14 pm
jagran ke patkaron ko peetne wale police walo par karwai honi chahiye
sudhir
February 22, 2010 at 4:38 pm
jagran wale dalal hai. uaise me yadi dalalo ke sath mar pit huwi to aacha hi hai.
Ramnandan
February 22, 2010 at 6:51 pm
Jagran ki khandani aadat hai sharaab peekar danga karne ki.Isliye Samaaj ka Aaina kahlana wale in akhbaron ko apne gireban me bhi jhaankna chahiye.Apne aap ko DADA samajhne wale in akhbaaron ke soormaon pe uchit penalty lagni chahiye…..
shailesh tiwari
February 22, 2010 at 7:18 pm
INSPECTOR DINESH TRIPATHI KO AISA NAHI KARNA THA MARR KHA S.I. KO THANA MAI WAPAS BULA LENA THA.
Pankaj Shukla
February 23, 2010 at 5:11 am
प्रिय यशवंत,
इस खबर का दूसरा पहलू भी हो सकता है जिसके बारे में काफी शोध की ज़रूरत है।
प्रेम प्रकाश की फील्ड में पहली तैनाती मुरादाबाद में एएसपी के तौर पर आईपीएस की ट्रेनिंग पूरी करने के तुरंत बाद हुई थी। प्रेम प्रकाश तेज़ तर्रार अफसर हैं और काम भी तब ठीक ठाक ही किया करते थे। लेकिन पता नहीं क्यों उनको तेज़तर्रार पत्रकारों और मीडिया से चिढ़ है।
अमर उजाला मुरादाबाद में तब मैं क्राइम रिपोर्टर था और पता नहीं क्यों पहले दिन से उनसे मेरी पट नहीं पाई। एक खबर पर चिढ़कर उन्होंने रात कोई दस बजे फोन करके एनकाउंटर कर देने की धमकी दी थी। मैं उनसे मिलने उसी वक्त मुरादाबाद रेलवे स्टेशन के सामने बने सरदार जी के ढाबे के सामने जा पहुंचा था। ये और बात है कि मैं उनके सामने ही बैठकर खाना खाता रहा और वहां उन्होंने कुछ भी बोलने की जहमत नहीं उठाई।
इससे पहले का एक और वाकया है। प्रेम प्रकाश ने एक दिन मुझे मोटरसाइकिल से जाते देखा और सिपाहियों से मेरी बाइक रुकवाई। हेलमेट सिर पर था। गाड़ी के कागजात पूरे और उनके पास आने के लिए जो रास्ता सिपाहियों ने बताया, उधर से ना आकर मैं पीली कोठी के सामने पूरा गोल चक्कर लगाकर वापस आया। लिहाजा ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का कोई केस मुझ पर बन नहीं पाया।
डीएस4 से जुड़े अफसर तो तब भी अंदरखाने अपनी खास रणनीति को अंजाम दिया करते थे, लेकिन अब सब कुछ खुले आम होता है। ना अफसर को किसी पार्टी के प्रति अपनी जातिगत निष्ठा छुपाने में लाज आती है और ना ही वो इस बात की शर्म करता है कि ग़ैर वाज़िब तरीकों से “शोहरत” पाकर वो सत्ता प्रतिष्ठान की गोद में बैठ जाना दरअसल उसके कंधे पर लगी अशोक की लाट का अपमान है।
लेकिन, जब हड़ताली कर्मचारी को थप्पड़ मारने वाला डीएम मीडिया के लाख हो हल्ले के बाद भी सरकार से तोहफे में कमिश्नरी पा जाए तो अफसर तो “सरकार” की निगाहों में आने के लिए ऐसे काम करेंगे ही। बाकी काम हम मीडिया वाले कर देते हैं, उनकी इस प्लानिंग का हिस्सा बनकर, उनकी इन हरकतों को प्रचारित करके।
पंकज
Rahul Tripathi
October 17, 2010 at 4:03 am
Ary bhai DANIK JAGRAN K PATRKAAAAAAR HAI Koi BHAGWAN TO HAI NHE jO —————————————————————- kuch b kray
mar teeek pdeeeeeeeeeeee
KASSS KISEEE K SATH KHDAAAA HUAAA HOTA TO SHAYAD YEH DIN N AAAAATA.
HAAAAA JANCH HONEEE CHAHIAAAAAAA
RAHUL TRIPATHI
DANIK PRABHAT
MERUT
Ranjeet
October 17, 2010 at 8:56 pm
jagran group ke logon ko ijjat aabru se kuch bhi lena dena hanin hai.
kapilakhanam
October 18, 2010 at 10:46 pm
ye sab jagranwalon ke liye joi nai baat nahin hai. isase pahle moradabad mein meerut edition ke editor cum malik majhola police chawki mein pit chuke hain. us samay mulayam ki sarkar thi aur mahendra mohan mp the. kisi akhabar ne ye khabar nahin chhapi. sach ko aage rakhnewale amarujala ne bhi nahin. chor-chor masere bhai. kapila
surinder singh
October 19, 2010 at 1:29 am
chahe jo ko bhi ho kanoon se badkar koi bhi nahi hai agar jagran walo ne galti ki hai to uski saza to unko milni hi chahiye so usey mili