मार्कण्डेय ने आखिरी सांस ली

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मुंशी प्रेमचन्द की विरासत को सहेजने व संवारने वाले नई कहानी के पुरोधा प्रख्यात कथाकार मार्कण्डेय का निधन गुरुवार को दिल्ली में हो गया. वे कैंसर से पीड़ित थे. उन्हें आहार नली का कैंसर हुआ था. उनका इलाज दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट में चल रहा था. उनका पार्थिव शरीर दिल्ली से रीवांचल एक्सप्रेस से आज सुबह इलाहाबाद लाया गया.

मार्कण्डेय 80 वर्ष के थे. उनके निधन से परिजनों, इष्ट मित्रों समेत हिन्दी साहित्य सेवियों व साधकों में शोक की लहर दौड़ गयी. मार्कण्डेय अपने पीछे दो पुत्री डा. स्वस्ति सिंह, शस्या नागर व पुत्र सौमित्र समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये. उनका जन्म 5 मई 1930 को जौनपुर के बराई नामक गांव के किसान परिवार में हुआ था.

नयी कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर मार्कण्डेय की सात महानी संग्रह तथा दो समेत बारह किताबें प्रकाशित हो चुकी थी. वह ‘कथा’ पत्रिका के संपादक थे और जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में शामिल थे. उनकी पहली कहानी ‘गुलरा के बाबा’ चर्चित हुई. उनके चर्चित उपन्यासों में ‘अग्निबीज’, ‘सेमल के फूल’ रहे. इसके अतिरिक्त ‘सपने तुम्हारे थे’, ‘पत्थर परछाइयां’ एकांकियों का संग्रह शामिल है. ‘कहानी की बात’ उनका चर्चित आलोचनात्मक ग्रंथ है.

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