अंग्रेजी अखबार डीएनए में मूर्खतापूर्ण प्रयोगों का सिलसिला जारी है. ताजी सूचना के मुताबिक डेली न्यूज़ एंड एनालिसिस प्रबंधन ने अखबार के साथ प्रसरित होने वाली ‘मी’ मैग्जीन का प्रकाशन बंद करने का फैसला ले लिया है. इस मैग्जीन में कार्यरत सभी लोगों को रिजाइन करने को कह दिया गया है. यह पत्रिका जीवनशैली, फैशन, गैजेट, पर्सनाल्टी आदि पर केंद्रित थी. मैग्जीन की एडिटर सत्या सरन हैं जो फेमिना की भी संपादक रह चुकी हैं.
डीएनए प्रबंधन का कहना है कि वे अखबार को समाचार पर ज्याद केंद्रित रखेंगे. फीचर व अन्य सिगमेंट पर काम करने का प्रबंधन का इराद नहीं है. इसी कारण मैग्जीन को बंद करने का फैसला लिया गया है. मैग्जीन को एक झटके में बंद करने के फैसले से प्रबंधन ने भले अपना खर्चा बचा लिया, कागज बचा लिया पर जिन लोगों को अचानक इस्तीफा देने को कहा गया है, वे तो संभलते संभलते संभल पाएंगे. मैग्जीन की संपादक सत्या सरन का कहना है कि वे कोई नया धंधा शुरू करने वाली हैं. पर बाकी लोग क्या करेंगे, वे खुद नहीं जानते. जी ग्रुप और भास्कर वाले डीएनए अखबार निकालते हैं और इस अखबार के शुरू होने से लेकर आज तक खूब सारा उछाड़-पछाड़ हुआ है. यह काम अभी तक बंद नहीं हुआ है. इस उछाड़-पछाड़ के कारण सबसे ज्यादा नुकसान यहां काम करने वाले कर्मियों को होता है.
अगर आपके पास डीएनए के अंदरखाने की कोई खबर हो या ‘मी’ की बंदी को लेकर कोई नई सूचना हो तो भड़ास4मीडिया तक पहुंचाएं, नीचे कमेंट करके या सीधे [email protected] पर मेल भेज कर. अनुरोध करने पर आपका नाम गुप्त रखा जाएगा.
Sudhir.Gautam
August 11, 2010 at 11:43 am
निहित उद्देश्यों की पूर्ती के लिए प्रोजेक्ट शुरू करना और बंद करना मानो एक खेल हो गया है…साथ ही ये परिचायक है तुरंत लाभ कमाने को उत्सुक उस मानसिकता का जो नए नए उद्यमियों को एक नए बाजार की तलाश में मीडिया कारोबार की और धकेल रहा है.
ऐसे में अनुभवी संपादक तो नया कारोबार करने की क्षमता के बूते इस आकस्मिक बंद को झेल जाने का माद्दा रखते ही हैं इसमें कोई दो राइ नहीं पर उन सैकड़ों कर्मचारियों का क्या जिन्हें एक दिन अचानक ये अप्रिय समाचार मिलता है.
ऐसे में आनन फानन बदलाव को अपनाने वाले साथियों को चाहिए के वे ठोक बजा कर निर्णय लें और ऐसी किसी अप्रिय घटना को समय रहते टालने की हर संभव कोशिश करें.
हालांकि ये महज चिंतन ही है पर संवादहीनता से संवाद की स्थति ज्यादा बेहतर विकल्प है.
धनपतियों को भी निवेश से पहले लाभ की चाहत में इतना अँधा नहीं होना चाहिए की वे अकुशल लोगों की भर्ती कर लें और आँख बंद कर लाभ की कामना करें वरन चौकस रहना चाहिए क्योंकि ये सही है की घाटे का व्यापार चलाने से बंद करना बेहतर, बर्बादी से बुराई का चुनाव उचित निर्णय है पर अचानक एक दिन ऐसा कर वे कितने चूल्हों की आग पर पानी दाल देते हैं, कितनों को हताशा के उस चोर पर पहुंचा देते हैं जहाँ आत्महत्या या ब्रेन हैमरेज सामान्य हो जाता है.
All are equally responsible, incompetent people, short sighted business man and people who when have job considered things for granted…
समझदारी इसी में है ऐसी किसी भी दुर्घटना का समय रहते निराकरण…ईश्वर हमें और सबको जो ऐसा होने से रोक सकते हैं सद्दबुधि दे और लड़ने की ताकत…साथ ही एक संवाद की जरूरत है अगर फिर भी ऐसी स्थति आ जाए तो विकल्प क्या है???
Rajesh Saxena
August 11, 2010 at 8:57 pm
bhaskar ke patan ke din hain bhaiya…….inhone zee ke saath milkar icl leage shuru ki, us main bure pite. phir socha ki times aur ht se mukabla kar lenge….lekin mumbai bhaskar ke liye vatarloo saabit huee. hazaron logo ki badduaon ka yahi hashra hota hai bhai….
bhagwan bhala kare.