विषयः दूसरों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाली मीडिया अपने कर्मियों के प्रति कितनी संवेदनशील?
गुजरात के पत्रकार तो न घर के रहे न घाट के
मीडिया अपने कर्मियों के प्रति जरा भी संवेदनशील नहीं है। कहते हैं- घर की मुर्गी दाल बराबर। गुजरात में एक बिजनेस अखबार ने राजकोट के बाद अहमदाबाद और मुंबई से गुजराती में प्रकाशित हो रहे संस्करण भी सितंबर में बंद कर दिए हैं। बेरोजगार बने पत्रकार। पद से उतरने के बाद ये पत्रकार जिन्हें वे सोर्स के नाम से जानते हैं, जो दिन में चार बार खुद का इंटरव्यू छपवाने के लिये इन पत्रकारों को फोन करते थे, वे सब अब फोन तक नहीं उठाते।
गुजरात के पत्रकार मानो न घर के रहे हैं, न घाट के। बेरोजगार हुए पत्रकार आज जहां भी उम्मीद की छोटी सी किरण दिखती है, तुरंत मोबाइल उठाकर डायल कर लेते हैं। मीडिया खुद कब जिम्मेवार बनेगा, यह तो पता नहीं, लेकिन मेरा सुझाव है कि सबसे पहले हम खुद एक दूसरे की केयर करना शुरू करें। गुजरात के जितने भी पत्रकार आज बेरोजगार हैं- उनमें से ज्यादातर युवा पत्रकार हैं। कई बेहतरीन पत्रकार हैं। हमारे पत्रकार संगठनों, संस्थानों, एसोसिएशन्स को इस बारे में मिलकर सोचना चाहिये। कोई भी पत्रकार या संगठन इनकी मदद करना चाहता है या इनके रोजगार के बारे में सोचना चाहता है तो यशवंत जी के माध्यम से मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
राधा शाह, वरिष्ठ पत्रकार, अहमदाबाद
पत्रकार रिंग मास्टर के इशारे पर उठते-बैठते हैं
आज के युग में पत्रकारिता की छदमवेशिता और दोमुंहापन का रूप अत्यंत घिनौना हो गया है। पत्रकार सर्कस के पिंजरे में बंद शेर के समान हैं जो रिंग मास्टर के कोड़े के इशारे पर उठते और बैठते हैं। यह रिंग मास्टर और कोई नहीं बल्कि मैनेजमेंट है। जो पत्रकार रिंग मास्टर के इशारे पर नहीं चलता है वही हटाया जाता है। उसके हटाए जाने पर उसके साथी पत्रकार विरोध की भंगिमा भी अख्तियार नहीं करते हैं क्योंकि वो रिंग मास्टर से डरते हैं। इस स्थिति पर अमरेंद्र कुमार का लिखा लघु उपन्यास सामने का सच जीवंतता के साथ प्रकाश डालता है।
विवेक सिन्हा, कैमरामैन, लखनऊ
छोटे स्वार्थों के लिए परेशान करते हैं बड़े ओहदे पर बैठे लोग
मीडियाकर्मियों को निकाले जाने वाला मुद्दा आपने बेहद अच्छे तरीके से उठाया है। दुनिया जहां की चिंता मीडिया करता है लेकिन मीडिया के अंदरखाने में जितना शोषण है, जितना मक्कारीपन है, शायद ही कहीं और जगह इस तरह की बातें और उदाहरण देखने को मिलते हैं। एक पत्रकार का सबसे बड़ा पत्रकार दूसरा पत्रकार ही तो होता है। अखबार और न्यूज चैनल के बनिये मालिकों के छोटे से स्वार्थों के लिए संपादक या बड़े ओहदे पर बैठे पत्रकार अपने अधीन काम करने वालों की खबरें रोक लेते हैं। यहां तक कि उन्हें नौकरी से भी निकाल देते हैं।
भड़ास4मीडिया की यह पहल बेहद अच्छी है और पत्रकारों की मंडलियों को शर्म आनी चाहिए कि जो गलत आज वो किसी दूसरे के साथ करवा रहे हैं, कल उनकी भी बारी हो सकती है। मीडिया वालों को घमंड और खुद को ज्ञानी समझने की गहरी नींद से जगाना बेहद जरूरी है।
अर्जुन प्रताप, पत्रकार, दिल्ली
यशवंत जी, बेहद साहसिक काम कर रहे आप
आदरणीय यशवंत जी, आपने जो यह विषय उठाया है और जो काम कर रहे हैं, वह बेहद साहसिक है। आपका काम इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि मीडिया को जो करना चाहिए वो नहीं कर रहा है। मैं हमेशा आपके साथ हूं। मैं अपनी मैग्जीन खुद निकाल रहा हूं। यह मैग्जीन हिंदी में है। मैं आप द्वारा उठाए गए मुद्दों को अपनी मैग्जीन में प्रकाशित करना चाहता हूं, अगर आप अनुमति दें तो।
विनय कुमार जायसवाल, वरिष्ठ पत्रकार, बरेली
उपरोक्त सभी नाम बदले हुए हैं। आप भी इस विषय पर अपने अनुभवों या विचारों को हम तक पहुंचाना चाहते हैं तो [email protected] पर लिख भेजें। आपके अनुरोध करने पर आपका नाम प्रकाशित नहीं किया जाएगा।