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हलचल

”हर उस रात का हिसाब लूंगा जो रोते-रोते काटी है”

adarsh rathoreपांच साल पहले मैंने एक सपना देखा। पत्रकार बनने का सपना। मेरी उम्र तब 15 साल थी। दूरदर्शन के न्यूज़ रीडर निशांत चतुर्वेदी के आकर्षक अंदाज़ में खबरें पेश करने से मैं बेहद प्रभावित था। तभी से मैंने एंकर बनने की ठान ली। 2005 में इंटर पास करने के बाद दिल्ली का रुख किया। मैंने साउथ दिल्ली के टेक वन स्कूल ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में दाखिला लिया। इंट्रेंस टेस्ट और अन्य प्रकियाओं के बाद इस संस्थान में दाखिला ले लिया। यहां विधिवत डिग्री के साथ “प्लेसमेंट” की गारंटी भी दी गई थी। 

adarsh rathore

adarsh rathoreपांच साल पहले मैंने एक सपना देखा। पत्रकार बनने का सपना। मेरी उम्र तब 15 साल थी। दूरदर्शन के न्यूज़ रीडर निशांत चतुर्वेदी के आकर्षक अंदाज़ में खबरें पेश करने से मैं बेहद प्रभावित था। तभी से मैंने एंकर बनने की ठान ली। 2005 में इंटर पास करने के बाद दिल्ली का रुख किया। मैंने साउथ दिल्ली के टेक वन स्कूल ऑफ़ मास कम्युनिकेशन में दाखिला लिया। इंट्रेंस टेस्ट और अन्य प्रकियाओं के बाद इस संस्थान में दाखिला ले लिया। यहां विधिवत डिग्री के साथ “प्लेसमेंट” की गारंटी भी दी गई थी। 

इस चार कमरों के कॉलेज में एक बड़ा सा पोस्टर लगा था जिसमें 30 लोगों की नाम सहित फोटो थी। ऊपर लिखा था “हमारे द्वारा प्लेस कराए गए छात्र”। एक फोटो के लिए जगह खाली थी जिसमें “YOU ARE NEXT” लिखा था। मैं इस जगह पर अपना फोटो देखने के सपने संजोने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता गया इस कॉलेज की कलई खुलती गई। यहां न कोई लाइब्रेरी थी, न कंप्यूटर लैब, न कोई कैमरा, न ही कोई लाईट। पढ़ाने के नाम पर आने वाली फैकल्टी भी कोई और नहीं, मीडिया में कार्यरत कुछ धन-पिपासु लोग थे जो अपने आफिसों से चंद रुपयों के लिए भाग कर आया करते थे और पढ़ाई के नाम पर अपने-अपने साथ घटे बेहूदा वाकयों को “अनुभव बांटने” के नाम पर सिखाया करते थे।

खैर, जैसे-तैसे रोते-पीटते तीन साल बीते। इस दौरान तक 23000 रुपये प्रत्येक सेमेस्टर के हिसाब से 1,38,000 रुपये फीस के रूप में मैं दे चुका था। रहने और खाने-पीने का भी मिला लिया जाए तो पूरा व्यय लगभग दोगुना हो जाए। मैं याद नहीं करना चाहता कि कैसे ये तीन साल बीते। जिसका मन करता था, वो उठ कर चला आता था और हमें पढ़ा देता था। हद तो ये थी कि एक ग्रेजुएट लड़का जो हमारे कॉलेज में काउंसलर, क्लर्क और डायरेक्टर के पर्सनल सेक्रेटरी के रूप में काम करता था, हमें पढ़ाने आ गया। ये मेरा ही अकेला प्रतिरोध था क्लास में जो वो बिना एक शब्द कहे चला गया।

ज़रा सोचिए, आज जब देश में एलिमेंट्री एजुकेशन लागू हो रही है जिसके तहत पोस्ट ग्रेजुएट टीचर्स ही कक्षा 9 और 10 को पढ़ाएंगे तो भला स्नातकों को एक स्नातक कितना सिखा सकता है?  इसके अलावा लाइब्रेरी से लेकर कैमरा आदि की तमाम सुविधाओं के लिए मैं अकेला लड़ता रहा। इक्का-दुक्का लोगों को छोड़कर कोई भी मेरा साथ नहीं देता था। शायद वे लोग सोचते होंगे कि अगर वो विरोध करेंगे तो शायद उन्हें प्लेसमेंट के समय दिक्कत पेश आएगी। लेकिन उनका ये भ्रम भी हवा होना था।

आज हम सबका कोर्स पूरा हो चुका है। हमारे कॉलेज ने आज तक किसी की प्लेसमेंट तो क्या, किसी को इंटर्नशिप भी नहीं दिलाई थी। लेकिन ये अकाल टूटा और मुझे और मेरे मित्र अमृत को सहारा में इंटर्नशिप करने का मौका मिला। ये एक ऐतिहासिक घटना थी। हमारे कॉलेज को चलते हुए पूरे 6 साल हो गए थे। इस पूरे अर्से में हम दो ही अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें कॉलेज की तरफ़ से इंटर्नशिप दिलाई गई थी। इससे पहले हर साल न जाने कितने ही सपने इस कॉलेज की दहलीज़ पर चकनाचूर हुए थे।

मैंने न जाने कितने ही लोगों को उदास होकर दिल्ली छोड़ते देखा था। मैं डरता था कि क्या मुझे भी इसी तरह जाना पड़ेगा? लेकिन मैंने ठान लिया था कि मैं इस तरह हारुंगा नहीं। मैंने हमेशा से अपने हक की लड़ाई लड़ी है। मैं यहां पल-पल जला हूं। रातों को नींद नहीं आती थी। मेरे सामने मेरे माता-पिता का चेहरा आ जाता है जो शायद अपने हाथ तंग रखकर मेरे लिए यहां पैसा भेजते हैं। तीन साल में मुझे कभी पैसे की कमी नहीं आई। मुझे गुस्सा ये था कि मैं अपने माता-पिता की मेहनत की कमाई का सदुपयोग नहीं कर पा रहा। जब कभी फीस लेने की बात आती थी तो कॉलेज से घर पर फोन पर फोन और यहां  तक कि टेलीग्राम तक की जाती थी।

खैर कोर्स पूरा हुआ। विश्वविद्यालय ने रिजल्ट आउट कर दिया। अब मैं स्नातक हूं। सोचा तीन साल जो हुआ सो हुआ, जो देना था इन्हें, वो दिया। अब मेरी मांगने की बारी है। कहा कि कहां है आपका प्लेसमेंट सेल? बस फिर क्या था कोर्स पूरा होते ही हमें तो पराया कर दिया गया। मुझे तो पहचान लिया जाता रहा लेकिन बाकि लोगों को तो मैनेजमेंट ने पहचानने से ही इंकार कर दिया। अब तो वहां नए एडमिशन के बाद नए छात्र आ गए हैं। हमें पूछे भी कौन। हमारे डायरेक्टर कारें बदल रहे हैं, कभी दुबई तो कभी मुंबई की फ्लाइट पकड़ते हैं। हमनें सोचा था कि कहीं तो मौका मिलेगा। कम से कम कहीं इंटरव्यू तो करा दें बाकि हम खुद कर लेंगे लेकिन पता चला जो नकली “भोकाल” बना रखा था वह यूं ही था। जो बड़ी-बड़ी हस्तियों के साथ फोटो खिंचवा रखे हैं वो उनके आगे-पीछे घूम कर “जुगाड़” से खिंचवाए गए हैं। 

आज पूरे तीन साल हो गए और YOU ARE NEXT वाला वो स्थान अभी भी खाली है, पोस्टर उन्हीं पुराने चेहरों के साथ लगा है। आज मेरी ये हालत है कि चैनलों, अखबारों के चक्कर काट-काट कर थक गया हूं। मेरे साथ के कुछ लोग किसी सोर्स या किसी जुगाड़ से आज चैनलों में पैसा काट रहे हैं और मैं अपने पेइंग गेस्ट में बैठा इसी तरह के लेख लिख रहा हूं। इस बात का मुझे पहले पता होता कि यहां प्रतिभा  और योग्यता नहीं बल्कि सिफारिश की कीमत है तो मैं बजाए कोर्स करने के, किसी नेता की चमचागिरी कर रहा होता। वैसे तो आपको कभी भी वैकेंसीज़ का पता नहीं चलेगा और पता चलता भी है तो वहां भी मामला पहले से तय रहता है। आज तो मीडिया हाउसेज को चाचे और भतीजे ही मिलकर चला रहे है। अगर आपका कोई चाचा नहीं है तो भूल जाइए।

कुछ लोग कहते  हैं कि मैं जो लिखता हूं उसमें संघर्ष नहीं, पलायनवाद झलकता है। मैं कोसता रहता हूं चीज़ों को और कुछ करता नहीं। करूं भी तो क्या? इतना समय नहीं कि मैं अपने कॉलेज पर फर्जीवाड़ा करने के लिए केस करूं, इतना समय भी नहीं कि किसी नेता के आगे-पीछे चक्कर काटूं या अपने किसी दूर के रिश्तेदार से मिन्न्तें करूं। इतना साहस है नहीं कि रोज़ चैनलों के चक्कर काटूं। वहां तो रिसेप्शन से आगे बढ़ने दिया नहीं जाता और रिज्यूमे को वहीं से डस्टबीन में डाल दिया जाता है। ये संघर्ष ही तो है, मैं खुद से संघर्ष कर रहा हूं।

कभी कभी मन होता है कि यहां कुछ भी होने वाला नहीं, अभी उम्र ही क्या हुई है। लाइन चेंज कर लें और एमबीए कर लें…। लेकिन नहीं!  अंदर से आवाज़ आती है कि मैं अपने और माता-पिता के सपनों को पैसाखोर लोगों की भेंट नहीं चढ़ने दूंगा, भले ही साल लग जाएं। मैं शून्य से शुरुआत करने को तैयार हूं। मुझे ध्यान है हर एक उस चेहरे का जिसने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेरे जैसे न जाने कितने लोगों के सपनों को तोड़ा है। मुझे हर वो शख्स याद है जो वादा करता था कि मैं एक दिन उसी के साथ काम करूंगा। मैं मुर्दा दिल नहीं हूं, न ही कायर हूं, मुझे हिसाब लेना है एक-एक पाई का, एक एक पल का और हर उस रात का जो मैंने रोते-रोते काटी हैं।

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लेखक आदर्श राठौर पत्रकारिता की डिग्री लेने के बाद मीडिया क्षेत्र में रोजगार की तलाश कर रहे हैं। उनसे उनकी मेल आईडी [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।
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0 Comments

  1. Amrrndrakumar

    January 26, 2010 at 9:33 pm

    Tu thak ke na baith abhi uaran baki hai,????????????????????
    khatm hua jamee abhi assman baki hai…………………….
    appe ke sath jo hua wo ………………. ek suuat hai……………..
    ………..na jane ketne ……………..drende aur melne baki hai…………
    Think strong …………..appne sprit ko bane rakhe………….

    good luck

  2. antra tiwari

    March 9, 2010 at 11:09 pm

    aadarsh ji aapki aapbiti sunkar mujhe bhi apne college ki thagi yaad aa gayi.kuch isi tarah ki batein hame bhi admission lene se pahle kahi jati thi,lekin waha se nikalane par asali sach se samna hua.fees ke naam par moti rakam vasooli gai,lekin placement to door….internship tak ke liye college ne help nahi ki.yaha to ye haal hai ki agar koi student apne dam par kisi acche channel ya phir newspaper me job pa leta hai to,credit college leta hai.ye haal kisi aise-waise sansthan ka nahi balki devi ahilya vishwavidyala indore ke patrakarita avam jansanchar adhyanshala ka hai.kair ladai to hamne bhi jari rakhi hai,aapse aur bhi inspiration mila hai

  3. sweety

    February 18, 2010 at 11:29 am

    tumhare saath jo hua voh mein samajh sakti hu kyuki mujhebhi mera future tumhari tarah hi nazar aa raha hai aur mujhe yeh b pata hai ki mein bhi waise hi sanghrsh karungi jaise tumne kiya kyuki mein bhi ik media acdamy se studiy kar rahi hun par itna zarur keh sakti hun ki himmat mat harna gud luck………………..

  4. AMRENDRA

    April 5, 2010 at 11:14 am

    AISA HAI AADARSH KI YE SIRF TUM NAHI BOL RHO YE TO PURI AAWAM BOL RHI HAI, KHAIR TENSION MAT LO TUM GOVT P.R.O. KA EXAM DO ISME SIFARISH NAHI BALKI TALENT HI DEKHI JAYEGA YA PHIR NET KI TYARI KRO ISME MASS COMM HI DEKHA JATA .

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