आज जब लिखने बैठा हूं तो गोरखपुर पहुंच चुका हूं। इलाहाबाद के अनुभवों से शुरुआत करता हूं। प्रयाग की पावन भूमि पर उतरने के बाद हम लोग बचपन के मेरे मित्र और आईसीआईसीआई बैंक में कार्यरत देवेंद्र त्रिपाठी के यहां जाकर रुके। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हस्ताक्षर शिविर सुबह 10 बजे लग गया। यह 2 बजे तक चला। छात्रों ने भरपूर सपोर्ट दिया। हस्ताक्षर करने के बाद एक लड़की हमारे साथी अमित चौधरी के पास आई। उसने कहा- बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप लोग। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। भगवान आपको जरूर कामयाबी देगा। उसने बेस्ट आफ लक कहा और चली गई। ऐसी ही ढेरों शुभकामनाएं साथ लेकर हम लोग 7 नवंबर की सुबह काशी के लिए रवाना हो गए। चलते वक्त मेरे मित्र देवेंद्र ने मेरी जेब में ‘चंदा है’ कहते हुए एक बड़ा नोट डाल दिया।
मैने मना भी नहीं किया क्योंकि मुझे उसकी जरूरत थी। 8 नवंबर को काशी का कार्यक्रम तय था। बीएचयू का अनुभव कड़वा रहा। वजह स्टूडेंट नहीं बल्कि बीएचयू प्रशासन बना। बीएचयू में हस्ताक्षर अभियान काफी बढ़िया चल रहा था। विश्वनाथ टेंपल पर छात्रों से मिलने के बाद हम ब्रोचा हास्टल पहुंचे। मीडिया के साथियों के कहने पर हमने अपना बैनर निकाला। तभी प्राक्टोरियल बोर्ड की टीम ने आकर आपत्ति जताई। हमारे बैनर पर युवाओं को क्रांति की प्रेरणा देने वाले भगत सिंह की तस्वीर देखकर उन्होंने मुझे कम्युनिस्ट की उपाधि दे डाली। आनंद प्रधान, जो अपने समय में बीएचयू के मशहूर छात्र नेता व छात्र संघ अध्यक्ष रहे और आईआईएमसी में मेरे गुरु रहे, के बारे में मेरे मुंह से सुनने के बाद उन्होंने मुझे पूरी तरह से कम्युनिस्ट घोषित कर दिया। बाद में दैनिक हिंदुस्तान के रिपोर्टर ब्रजेश यादव के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ।
बीएचयू प्रशासन की नासमझी और संवेदनहीनता पर दुख हुआ। सोचने लगा, क्या वाकई अपना देश आजाद है? अगर है तो प्रशासन की मानसिकता कतई आजाद भारत वाली नहीं है। ये लोग अब भी अंग्रेजों के जमाने की शासन पद्धति को फालो कर रहे हैं। बीएचयू के बाद हम लोग काशी के दूसरे बड़े विद्या केंद्र विद्यापीठ पहुंचे। यहां मिले सपोर्ट से खुशी हुई। छात्र नेताओं से खूब सहयोग मिला। शाम को हम लोग वाराणसी स्टेशन पर थे। आईआईएमसी के जमाने से मेरे मित्र और आजकल एक बड़े टीवी चैनल में जर्नलिस्ट संदीप ने फोनकर सूचित किया कि पैसा भेज दिया है, चेक कर लेना। सूचना मिलते ही तुरंत एटीएम की ओर भागा।
लौटते हुए मन हलका था क्योंकि जेब कुछ भारी हो गई थी।
भड़ास4मीडिया में मेरा नंबर आने के बाद कई लोगों ने मुझे फोन किया, काफी अच्छा लगा। एक अपील करना चाहता हूं, अपने मीडियाकर्मी भाइयों से। राज ठाकरे की विषैली राजनीति के खिलाफ हम साथियों से जो बन पा रहा है, करने निकल पड़े हैं। हमें आपके सपोर्ट की जरूरत है। हम लोगों के आने जाने और रहने-खाने का जो खर्चा है, उसे फिलहाल दोस्त-मित्र उठा रहे हैं। आपसे भी अपेक्षा है कि जो बन पड़े, हम लोगों की मदद करें ताकि इस अभियान को मंजिल तक पहुंचाया जा सके।
आने वाले दिनों का प्रोग्राम इस तरह है- 10 नवंबर को गोरखपुर। 11, 12, 13 को पटना। 14 को अलीगढ़। 16 को मेरठ। 17, 18, 19 को दिल्ली। प्रोग्राम आपके सामने है। आप लोग अपने शहर में अगर मिलने आएंगे और सपोर्ट करेंगे तो हम लोगों का उत्साह बढ़ेगा।
अमर उजाला, अलीगढ़ के रिपोर्टर अशोक कुमार चार अन्य अलीगढ़ी युवाओं के साथ राज ठाकरे की विषैली राजनीति के खिलाफ अभियान पर निकले हुए हैं। वे सुल्तानपुर, लखनऊ के बाद इलाहाबाद और वाराणसी पहुंचे। भड़ास4मीडिया के पाठकों के लिए उन्होंने प्रयाग और काशी के अपने अनुभवों को लिख भेजा है। आप अशोक से 09410644962 पर फोन कर या [email protected] पर मेल कर संपर्क कर सकते हैं। अशोक के अभियान के बारे में ज्यादा जानने के लिए क्लिक करें- राज को सबक सिखाने चला कलम का सिपाही और थैंक्स लखनऊ, जो तुम्हारा ऐसा साथ मिला !!