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बसंत कुमार तिवारी- रचना और संघर्ष का सफरनामा

Basant Tiwariकलम की साधना में जिंदगी गुजारने वाले  बसंत कुमार तिवारी पर वरिष्ठ पत्रकार संजय द्विवेदी का आलेख…

बसंत कुमार तिवारी एक ऐसे साधक पत्रकार हैं, जिन्होंने निरंतर चलते हुए, लिखते हुए, धैर्य न खोते हुए, परिस्थितियों के आगे घुटने न टेकते हुए न सिर्फ विपुल लेखन किया है, वरन एक स्वाभिमानी जीवन भी जिया है। उनके जीवन में भी एक नैतिक अनुशासन दिखता है।

Basant Tiwari

Basant Tiwariकलम की साधना में जिंदगी गुजारने वाले  बसंत कुमार तिवारी पर वरिष्ठ पत्रकार संजय द्विवेदी का आलेख…

बसंत कुमार तिवारी एक ऐसे साधक पत्रकार हैं, जिन्होंने निरंतर चलते हुए, लिखते हुए, धैर्य न खोते हुए, परिस्थितियों के आगे घुटने न टेकते हुए न सिर्फ विपुल लेखन किया है, वरन एक स्वाभिमानी जीवन भी जिया है। उनके जीवन में भी एक नैतिक अनुशासन दिखता है।

संजय द्विवेदी-

छत्तीसगढ़ की मूल्य आधारित पत्रकारिता के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बसंत कुमार तिवारी १८ जनवरी २००८ को अपने जीवन के  ७५ वर्ष पूरे कर चुके हैं। उनकी उपस्थिति रचना, संघर्ष और उससे उपजी सफलता की एक जीवंत मिसाल है जिससे पीढिय़ां प्रेरणा ले सकती हैं। वे राज्य के एक ऐसे विचारक, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार के रूप में सामने आते हैं, जिसने अपनी पूरी जिंदगी कलम की साधना में गुजारी।

छत्तीसगढ़ के प्रथम दैनिक महाकौशल’ से प्रारंभ हुई उनकी पत्रकारिता की यात्रा आज भी अबाध रूप से जारी है। सक्रिय पत्रकारिता से मुक्त होने के बाद भी उनके लेखन में आज भी निरंतरता बनी हुई है और ताजापन भी। सही अर्थों में वे हिंदी और दैनिक पत्रकारिता के लिए छत्तीसगढ़ में बुनियादी काम करने वाले लोगों में एक हैं। उनका पूरा जीवन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता को समर्पित रहा है। प्रांतीय, राष्ट्रीय और विकासपरक विषयों पर निरंतर उनकी लेखनी ने कई ज्वलंत प्रश्न उठाए हैं। राष्ट्रीय स्तर के कई समाचार पत्रों में उन्होंने निरंतर लेखन और रिपोर्टिंग की है।

अपने पत्रकारिता जीवन के लेखन पर आधारित प्रदर्शनी के साथ-साथ पत्रकारिता के इतिहास से जुड़ी समाचारों का सफर’ नामक प्रदर्शनी उन्होंने लगाई। इसका रायपुर, भोपाल, भिलाई और इंदौर में प्रदर्शन किया गया। उनके पूरे लेखन में डाक्युमेंट्रेशन और विश्वसनीयता पर जोर है, लेकिन इन अर्थों में वे बेहद प्रमाणिक और तथ्यों पर आधारित पत्रकारिता में भरोसा रखते हैं। संपादकीय पृष्ठ पर छपने वाली सामग्री को आज भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

बसंत कुमार तिवारी के पूरे लेखन का अस्सी प्रतिशत संपादकीय पृष्ठों पर ही छपा है। बोलचाल की भाषा में रिपोर्टिंग, फीचर लेखन और कई पुस्तकों के प्रकाशन के माध्यम से श्री तिवारी ने अपनी पत्रकारिता को विविध आयाम दिए हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति पर उनकी तीन पुस्तकों में एक प्रमाणिक इतिहास दिखता है। प्रादेशिक राजनीति पर लिखी गई ये पुस्तकें हमारे समय का बयान भी हैं जिसका पुर्नपाठ सुख भी देता है और तमाम स्मृतियों से जोड़ता भी है। वे मध्यप्रदेश में महात्मा गांधी की १२५ वीं जयंती समिति के द्वारा भी सम्मानित किए गए और छत्तीसगढ़ में उन्हें वसुंधरा सम्मान’ भी मिला। राजनीति, समाज, पत्रकारिता, संस्कृति और अनेक विषयों पर उनका लेखन एक नई रोशनी देता है। उनकी रचनाएं पढ़ते हुए समय के तमाम रूप देखने को मिलते हैं।

अपने लेखन की भांति अपने जीवन में भी वे बहुत साफगो और स्पष्टवादी हैं। अपनी असहमति को बेझिझक प्रगट करना और परिणाम की परवाह न करना बसंत कुमार तिवारी को बहुत सुहाता है। वे किसी को खुश करने के लिए लिखना और बोलना नहीं जानते। इस तरह अपने निजी जीवन में अनेक संघर्षों से घिरे रहकर भी उन्होंने सुविधाओं के लिए कभी भी आत्मसमर्पण नहीं किया। पं. श्यामाचरण शुक्ल और अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज नेताओं से बेहद पारिवारिक और व्यक्तिगत रिश्तों के बावजूद वे इन रिश्तों को कभी भी भुनाते हुए नजर नहीं आए।

मौलिकता और चिंतनशीलता उनके लेखन की ऐसी विशेषता है जो उनकी सैद्धांतिकता के साथ समरस हो गई है। उन्हें न तो गरिमा गान आता है, न ही वे किसी की प्रशस्ति में लोटपोट हो सकते हैं। इसके साथ ही वे लेखन में द्वेष और आक्रोश से भी बचते हैं। नैतिकता, शुद्ध आचरण और प्रामाणिकता इन तीन कसौटियों पर उनका लेखन खरा उतरता है। उनके पास बेमिसाल शब्द संपदा है। मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ की छ: दशकों की पत्रकारिता का इतिहास उनके बिना पूरा नहीं होगा। वे इस दौर के नायकों में एक हैं।  

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पत्रकारिता में आने के बाद और बड़ी जिम्मेदारियां आने के बाद पत्रकारों का लेखन और अध्ययन प्राय: कम या सीमित हो जाता है किंतु श्री तिवारी हमेशा दुनिया-जहान की जानकारियों से लैस दिखते हैं। ७५ वर्ष की आयु में भी उनकी कर्मठता देखते ही बनती है। राज्य में नियमित लिखने वाले पत्रकारों में शायद वे अकेले हों। उनका निरंतर लिखना और निरंतर छपना बहुत सुख देता है। वे स्वयं कहते हैं-मुझे लिखना अच्छा लगता है, न लिखूं तो शायद बीमार पड़ जाऊं।’  

उनके बारे में डा. हरिशंकर शुक्ल का कहना है कि वे प्रथमत: और अंतत: पूर्ण पत्रकार ही हैं। यह एक ऐसी सच्चाई है, जो उनके खरेपन का बयान है। वे वास्तव में एक ऐसे साधक पत्रकार हैं, जिसने निरंतर चलते हुए, लिखते हुए, धैर्य न खोते हुए, परिस्थितियों के आगे घुटने न टेकते हुए न सिर्फ विपुल लेखन किया है, वरन एक स्वाभिमानी जीवन भी जिया है। उनके जीवन में भी एक नैतिक अनुशासन दिखता है।

उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उम्र का असर उन पर दिखता नहीं है। वे हर आयु, वर्ग के व्यक्ति से न सिर्फ संवाद कर सकते हैं, बल्कि उनके व्यक्तित्व से सामने वाला बहुत कुछ सीखने का प्रयास भी करता है। उनमें विश्लेषण की परिपक्वता और भाषा की सहजता का संयोग साफ दिखता है। वे बहुत दुर्लभ हो जा रही पत्रकारिता के ऐसे उदाहरण हैं, जो छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का विषय है। उनका धैर्य, परिस्थितियों से जूङाने की उनकी क्षमता वास्तव में उन्हें विशिष्ट बनाती है। अब जबकि वे ७५ साल के हो चुके हैं और अपनी लेखनी से निरंतर बहुत सारे विषयों पर लेखन कर रहे हैं, हमारी शुभकामनाएं हैं कि वे शतायु हों और आने वाली पीढ़ी के लिए एक ऐसे नायक की तरह याद किए जाएं, जो उनकी प्रेरणा और संबल दोनों हो। 

इस आलेख पर आप अपने विचार लेखक संजय द्विवेदी को सीधे मेल कर सकते हैं,  उनकी मेल आईडी [email protected] पर।

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