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72 के हुए प्रभाषजी

[caption id="attachment_15240" align="alignleft"]प्रभाष जोशीप्रभाष जोशी : तुम जियो हजारों साल[/caption]एक जमाने में मीडिया को ‘जनसत्ता’ का मुहावरा तथा हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा देने वाले और आज के जमाने में खबरों की धंधेबाजी के खिलाफ बढ़-चढ़ कर अभियान चलाने वाले लिविंग लिजेंड प्रभाष जोशी का 15 जुलाई को जन्मदिन है। वह जीवन के 72 बसंत पार कर चुके। वह अपना आत्म-वृतांत भी लिखना चाहते हैं। शीर्षक दिया है ‘ओटत रहे कपास’। 5 अप्रैल सन् 1992 को पहली बार उन्होंने ‘कागद कारे’ लिखा था। इसे 2012 तक लिखेंगे, यानी पूरे बीस साल तक। 75 की उम्र तक। 75 के बाद कुछ नहीं लिखेंगे। वह कहते भी हैं कि ‘20-25 साल की उम्र में जैसा सोचा करता था, वैसा हो गया हूं।‘ ‘जनसत्ता’ में प्रभाषजी के वरिष्ठ सहयोगी रहे हैं पत्रकार जवाहरलाल कौल

प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशीएक जमाने में मीडिया को ‘जनसत्ता’ का मुहावरा तथा हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा देने वाले और आज के जमाने में खबरों की धंधेबाजी के खिलाफ बढ़-चढ़ कर अभियान चलाने वाले लिविंग लिजेंड प्रभाष जोशी का 15 जुलाई को जन्मदिन है। वह जीवन के 72 बसंत पार कर चुके। वह अपना आत्म-वृतांत भी लिखना चाहते हैं। शीर्षक दिया है ‘ओटत रहे कपास’। 5 अप्रैल सन् 1992 को पहली बार उन्होंने ‘कागद कारे’ लिखा था। इसे 2012 तक लिखेंगे, यानी पूरे बीस साल तक। 75 की उम्र तक। 75 के बाद कुछ नहीं लिखेंगे। वह कहते भी हैं कि ‘20-25 साल की उम्र में जैसा सोचा करता था, वैसा हो गया हूं।‘ ‘जनसत्ता’ में प्रभाषजी के वरिष्ठ सहयोगी रहे हैं पत्रकार जवाहरलाल कौल

उन्होंने अपनी उन दिनों की स्मृतियों को भड़ास4मीडिया के साथ साझा किया। जवाहरलाल जी कहते हैं- प्रभाष जी में, मुझे अपने कार्यकाल में, और आज भी, तीन बातें मुख्य रूप से देखने को मिलती हैं। एक तो वह भाषा के बहुत अच्छे कारीगर हैं। भाषा को कब, किस दिशा में ले जाना है, कहां ले जाना है, इस समय भी मुझे उनसे बेहतर हिंदी पत्रकारिता में कोई और नहीं दिखता। दूसरी मुख्य बात रही है, उनके स्वभाव का अडिग जुझारूपन, जिसकी वजह से वह तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी अविचलित बने रहे हैं। ‘जनसत्ता’ के उन दिनों में वह अपने साथियों से चाहे जितना भी असहमत होते थे, लेकिन किसी को दबाने की कोशिश नहीं करते थे। इसी तरह उनमें एक और खास बात रही, वैचारिक असहमतियों के बावजूद जबरदस्ती किसी पर अपनी बात न थोपना।

जवाहरलाल कौल बताते हैं कि मैं उन दिनों ‘जनसत्ता’ का संपादकीय पृष्ठ देखा करता था। प्रायः उस पेज की सामग्री को लेकर हमारी आपसी असहमतियां उभर आया करती थीं, लेकिन वह मेरे रचनाकर्म में कभी कोई ऐसा हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं करते थे, जिससे लगे कि मुझे रोका जा रहा है। विचारों के प्रति उनकी इसी उदारता के चलते ‘जनसत्ता’ में वे लोग भी लगातार प्रकाशित होते रहे, जिनसे प्रभाष जी वैचारिक स्तरों पर स्पष्टतः असहमत हुआ करते थे।

पत्रकारिता के लिविंग लिजेंड प्रभाषजी के जन्मदिन पर 15 जुलाई 09 को दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में शाम साढ़े सात बजे एक अनौपचारिक कार्यक्रम रखा गया है। इसमें उनके मित्र, करीबी और परिजन शिरकत करेंगे।

प्रभाष जी को आप भी कहें- हैप्पी बर्थ डे ! जन्मदिन मुबारक !! तुम जियो हजारों साल !!! 

प्रभाष जी तक अपनी शुभकामना पहुंचाने, प्रभाषजी से अपनी बात कहने के लिए आप [email protected] का सहारा ले सकते हैं।


 प्रभाष जी का भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित हो चुका विस्तृत इंटरव्यू पढ़ने के लिए क्लिक करें- इंटरव्यू

 

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