प्रभाष जोशी के जन्मदिन पर एक साथी का जाना

: जनसत्ता के लोग दोतरफा आलोचनाओं के शिकार होते रहे हैं पर ऐसे किसी आयोजन में उन्हें पूछा भी नहीं जाता जिसकी वजह जनसत्ता अखबार और प्रभाष जोशी हों : इस बार प्रभाष जोशी के जन्मदिन पर जनसत्ता से शुरू से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार सतीश पेडणेकर को विदाई दी गई। प्रभाष जोशी को याद किया गया और एक ऐसे साथी को विदा किया गया जो शुरू से प्रभाष जी की टीम का हिस्सा रहे।

प्रभाष जोशी ही नहीं, आलोक तोमर और उनकी पत्नी सुप्रिया का भी किया गया अपमान

प्रभाष जी के निधन के बाद उनकी स्मृति को संजोने के लिए न्यास बनाने का विचार उनके करीबी लोगों व परिजनों के दिमाग में आया तो न्यास के नामकरण का काम आलोक तोमर ने किया. आलोक तोमर के मुंह से निकले नाम को ही सबने बिलकुल सही करार दिया- ”प्रभाष परंपरा न्यास”. प्रभाष जोशी नामक शरीरधारी भले इस दुनिया से चला गया पर प्रभाष जोशी संस्थान तो यहीं है. प्रभाष जी की सोच, विचारधारा, सरोकार, संगीत, क्रिकेट, लेखन, जीवनशैली, सादगी, सहजता… सब तो है..

प्रभाषजी के जन्मदिन पर इंदौर में उड़ाया गया उन्हीं का मजाक!

यह शुद्ध शुद्ध प्रभाष जोशी का मजाक उड़ाने जैसा है. और मजाक उड़ाने का बंदोबस्त किया प्रभाष जोशी पर बने न्यास ने. इंदौर प्रेस क्लब और प्रभाष परंपरा न्यास के तत्वावधान में दो दिनी आयोजन प्रभाष जोशी के जन्मदिन के बहाने और भाषाई पत्रकारिता महोत्सव के नाम पर इंदौर में चल रहा है. इस आयोजन में जो लोग मंच पर बिठाए गए उनमें राजीव शुक्ला भी हैं.

पत्रकारिता की पेशागत चिंताएं दूर करे मीडिया : उपराष्‍ट्रपति

: खुद की आलोचना के समय खामोश हो जाता है यह उद्योग : मीडिया के विनियमन और पेशेवराना आचार नीति की जरूरत के मुद्दों को गहराई से रेखांकित करते हुए उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने शुक्रवार को कहा कि लोकतंत्र की चौथे स्तंभ को पत्रकारिता के पेशे के बारे में अलग- अलग चिंताओं को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए.

पत्रकारों को चाहिए तीसरा प्रेस आयोग!

पत्रकारों को तीसरा प्रेस आयोग क्यों चाहिए? पहले के दो प्रेस आयोगों की तरह क्या ये आयोग भी सरकारी रंग रौगन से सजा होगा या फिर उसे जन आयोग की शक्ल दी जानी चाहिए? या तीसरे प्रेस आयोग का गठन किसी पत्रकार के नेतृत्व में हो और उसमें सरकारी और पत्रकार बिरादरी की भागीदारी एक बराबर हो? ऐसे ही तमाम मुद्दों पर चर्चा प्रभाष परंपरा न्यास की एक संगोष्ठी में हुई।

मैं राम बहादुर राय, छुट्टा पत्रकार हूं

दरियागंज (दिल्ली) में ”प्रज्ञा” आफिस में कल शाम एक बैठक हुई. प्रभाष न्यास की तरफ से. एजेंडा था मीडिया के हालात पर चर्चा करना और प्रभाष जी की स्मृति में होने वाले आयोजन को फाइनलाइज करना. रामबहादुर राय ने संचालन किया और नामवर सिंह ने अध्यक्षता. बैठक की शुरुआत हो जाने के बाद राम बहादुर राय अचानक उठ खड़े हुए और बीच में बोलने के लिए मांफी मांगते हुए बोल पड़े.

पत्रकारिता और लोकतंत्र को बचाने के लिए लड़नी होगी लंबी लड़ाई : दुआ

नई दिल्‍ली. पत्रकार और सांसद एचके दुआ ने कहा है कि खबरों की साख बनाचे के लिए लोग प्रतिरोध का रास्‍ता अपनाएं. पत्रकारिता और लोकतंत्र बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी. पत्रकार प्रभाष जोशी ने जिंदगी के आखिरी दिनों में इसकी शुरुआत कर दी थी. वे गाजियाबाद के वसुंधरा में स्थित मेवाड़ संस्‍थान में आयोजित प्रभाष जोशी की पहली बरसी पर बोल रहे थे. यह आयोजन प्रभाष परंपरा न्‍यास और मेवाड़ संस्‍थान ने किया.

प्रभाष जोशी की याद में वेबसाइट शुरू

प्रभाष जोशी के गुजरने के बाद उनकी यादों, उनके काम, उनसे जुड़े लोगों की राय, परिचर्चा, लेख, संस्मरण आदि के लिए एक वेबसाइट का निर्माण कराया गया है. इस वेबसाइट पर केएन गोविंदाचार्य, रामबहादुर राय, दिलीप चिंचालकर, वेदप्रताप वैदिक, राजकिशोर समेत कई लोगों के लेख, अनुभव, संस्मरण, विचार हैं. पेड न्यूज से संबंधित प्रेस काउंसिल की पूरी रिपोर्ट भी जारी की गई है. वेबसाइट के बारे में जानकारी प्रभाष जोशी के जन्मदिन पर कल आयोजित समारोह में दी गई.

सात काम सौंप गए प्रभाष जी

प्रभाष जी से मेरा पहला परिचय जेपी आंदोलन के समय में उस समय हुआ जब वे रामनाथ गोयनका के साथ जयप्रकाश नारायण से मिलने आए थे। उस समय की वह छोटी सी मुलाकात धीरे-धीरे प्रगाढ़ संबंध में बदल गई। बोफोर्स मुद्दे को लेकर जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ आवाज उठने लगी तब उन्होंने मुझे भारतीय जनता पार्टी में भेजने के लिए संघ के अधिकारियों से बात की। उनका मानना था कि जेपी आंदोलन के दौरान जो ताकतें कांग्रेस के खिलाफ सक्रिय थीं, उन्हें फिर से एकजुट करने में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। वीपी सिंह की सरकार बनने के पहले और बाद में भी मेरा उनसे लगातार संपर्क बना रहा।

प्रभाष जोशी पर पुस्तक का लोकार्पण 28 को

प्रभाष जोशी की स्मृति में प्रकाशित संचयन ‘हद से अनहद गए’ का लोकार्पण 28 जनवरी को यहां गांधी शांति प्रतिष्ठान में होगा। लोकार्पण कुलदीप नैय्यर करेंगे। पुस्तक में प्रभाष जोशी पर लिखे गए 37 लेख संकलित हैं। तकरीबन डेढ़ सौ पृष्ठों की पुस्तक का संचयन और संपादन रेखा अवस्थी, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और स्मित पराग ने किया है।

पत्रकारिता के नए नायक कहां से आएं

प्रभाष जोशी की मृत्यु के बाद उनके बारे में जितना लिखा गया और उन्हें भाव-भरी श्रद्धांजलियां अर्पित की गईं, वह एक ऐतिहासिक घटना है। उन सभी में यह स्वीकार किया गया कि प्रभाष जी बड़े पत्रकार और संपादक थे। इस स्थापना में यह भविष्यवाणी निहित थी कि अब ऐसा व्यक्तित्व हमें देखने को नहीं मिलेगा। जहां पहली स्थिति आत्मगौरव की भावना का संचार करती है, वहीं दूसरी स्थिति मायूसी के भंवर में डालने वाली है।

धंधेबाज अखबारों-चैनलों को छोड़ेंगे नहीं

प्रभाष जोशीमीडिया पर लोक निगरानी : यह जानते हुए भी कि पिछड़ों, दलितों और वाम सरोकारों के तथाकथित रक्षकों की राय में मीडिया की सबसे बड़ी समस्या यह नहीं है, हमने हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के दौरान मीडिया के बर्ताव और व्यवहार का अध्ययन करवाना शुरू कर दिया है। लोकहित के लिए जीवन भर पत्रकारिता करने वाले कुछ दुर्लभ पत्रकारों के साथ भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षक और विद्यार्थी, नयी दिल्ली के मीडिया स्टडी सेंटर की मीडिया लैब, मुंबई के मेंटॉर स्कूल और दूसरी और मीडिया संस्थानों ने अपने साधन और लोग इस अध्ययन में लगाये हैं। इससे अपने अखबारों और खबर चैनल के उम्मीदवारों और पार्टियों से काला धन लेकर विज्ञापनों और प्रचार सामग्री को खबर बना कर छापने और प्रसारित करने का काला धंधा तो सही है कि रुकेगा नहीं। लेकिन चुनाव के बाद एक विश्वसनीय अध्ययन जरूर हाथ में होगा।

प्रमोद रंजन को प्रभाष जोशी का करारा जवाब

प्रभाष जोशीसमकालीन पत्रकारिता के गांधी उर्फ प्रभाष जोशी ने जिस साहस के साथ मीडिया हाउसों द्वारा खबरों का धंधा करने का विरोध किया और इसके खिलाफ खुलकर सड़क पर उतरे, वह न सिर्फ अचंभित करता है बल्कि हौसला भी देता है कि न सही युवा, कोई बुजुर्ग तो है जो अभिभावक की तरह मीडिया के अंदर के सही-झूठ, स्याह-सफेद के बारे में बता कर लड़ने को सिखा-समझा रहा है। मीडिया को जिनसे खतरा है, उस तरफ ज्यादातर पत्रकार आंख मूदे हैं क्योंकि आखिर पत्रकार को किसी मीडिया घराने से ही पैसा पाना-कमाना और बनाना है।

चारों तरफ चुप्पी पर नेट पर बड़ी घमासान : प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशीपैसे लेकर खबर छापने के मामले पर जनसत्ता में फिर लिखा प्रभाष जोशी ने : पटना में इस बार एक नए पाठक मिले। नए तो वो मेरे लिए हैं। नहीं तो उमर और अनुभव में तो वे मुझसे भी पुराने हैं। बिहार चैंबर्स आफ कॉमर्स के अध्यक्ष रह चुके हैं। युगेश्वर पांडेय। कहने आए थे कि पिछले लोकसभा चुनाव में अखबारों ने खबरें बेचने का जो काला धंधा किया उसका भंडाफोड़ करके मैंने अपना पत्रकारीय धर्म निभाया है। जहां भी जाता हूं ऐसा कह कर हौसला बढ़ाने वाले आते हैं। लेकिन पांडेय जी जाते-जाते कह गए- देखिए आपने नाम लेकर उदाहरण देकर इतना सीधा-साधा और सख्त लिखा। लेकिन क्या बेशर्मी है कि किसी ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया। सब चुप्पी साध गए हैं।

सार्थक पत्रकारिता का ये सारथी

प्रभाष जोशी

जीवन के 72 बसंत पार कर चुके मनीषी, गांधीवादी विचारक और सार्थक पत्रकारिता के सारथी प्रभाष जोशी अनुपम और अतुलनीय हैं। सोचता हूं उनसे जुड़ी स्मृतियों का क्रम कहां से शुरू करूं। चलिए, उनसे अपनी पहली मुलाकात से ही प्रारंभ करता हूं। मैं आनंदबाजार प्रकाशन समूह के हिंदी साप्ताहिक ‘रविवार’ में उप संपादक के रूप में काम कर रहा था। सुरेंद्र प्रताप सिंह यहां से दिल्ली जा चुके थे और उदयन शर्मा जी हमारे नये संपादक बन कर आ गये थे।

72 के हुए प्रभाषजी

[caption id="attachment_15240" align="alignleft"]प्रभाष जोशीप्रभाष जोशी : तुम जियो हजारों साल[/caption]एक जमाने में मीडिया को ‘जनसत्ता’ का मुहावरा तथा हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा देने वाले और आज के जमाने में खबरों की धंधेबाजी के खिलाफ बढ़-चढ़ कर अभियान चलाने वाले लिविंग लिजेंड प्रभाष जोशी का 15 जुलाई को जन्मदिन है। वह जीवन के 72 बसंत पार कर चुके। वह अपना आत्म-वृतांत भी लिखना चाहते हैं। शीर्षक दिया है ‘ओटत रहे कपास’। 5 अप्रैल सन् 1992 को पहली बार उन्होंने ‘कागद कारे’ लिखा था। इसे 2012 तक लिखेंगे, यानी पूरे बीस साल तक। 75 की उम्र तक। 75 के बाद कुछ नहीं लिखेंगे। वह कहते भी हैं कि ‘20-25 साल की उम्र में जैसा सोचा करता था, वैसा हो गया हूं।‘ ‘जनसत्ता’ में प्रभाषजी के वरिष्ठ सहयोगी रहे हैं पत्रकार जवाहरलाल कौल

सबसे भ्रष्ट चुनावी मालिक-संपादक कौन?

[caption id="attachment_15001" align="alignnone"]प्रभाष जोशीप्रभाष जोशी : सच बोलने का साहस रखने वाला पुरोधा[/caption]

प्रभाष जोशी को मैंने अपना हीरो कभी नहीं माना। इसके पीछे दो तीन वजह हैं। एक तो उनका अतिशय क्रिकेट प्रेम मुझे कभी नहीं सुहाया। ‘कागद कारे’ जैसे महत्वपूर्ण स्पेस में क्रिकेट पर कागज काला करना मुझे पत्रकारिता के साथ ज्यादती करने जैसा लगता है। हालांकि ढेर सारे लोग प्रभाष जी को उनके क्रिकेट प्रेम की वजह से ही चाहते हैं लेकिन मुझे अब भी लगता है कि क्रिकेट नामक खेल को दुनिया भर की जनता को बेवकूफ बनाने, कंपनियों को करोड़ों रुपये कमाने और जेनुइन मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए इतना हाइप दिया जाता है। क्रिकेट को लेकर मैं गलत हो सकता हूं, इसका मुझे पूरा यकीन है। (जब सभी नकटे हों तो एकाध नाक वाले खुद को सामान्य नहीं मान सकते) 

”मैंने वोट देने के लिए पैसे नहीं मांगे थे लेकिन वे मेरी खबर छापने के लिए पैसे मांग रहे हैं”

”राज्यसभा के चुनाव में उन्हें वोट देने के लिए मैंने पैसे नही मांगे थे, मगर मेरी खबर छापने के लिए वो पैसे मांग रहे हैं।”  ये बात लखनऊ से भाजपा के प्रत्याशी लालजी टंडन ने यू.पी. के एक अखबार मालिक के बारे में चुनाव के दौरान प्रेस कांफ्रेंस में कही थी। इस प्रकरण का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने अपने भाषण में किया। इंदौर में पिछले दिनों आयोजित संगोष्ठी में प्रभाष जोशी ने चुनाव के दौरान मीडिया के कारोबारी स्वरूप लेने की जमकर धज्जियां उड़ाई और उसकी कारगुजारियों का कच्चा चिठ्ठा श्रोताओं के सामने पेश किया। एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीज ने भी मीडिया के इस अतिरेकपूर्ण आचरण की निंदा की। ये दोनों धुरंधर पत्रकार चुनाव के नतीजे आने के एक दिन पहले यानी 15 मई को इंदौर की सामाजिक संस्था ‘सम-सामयिक अध्ययन केन्द्र’ द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

काला पैसा बनाने के लिए पाठकों से धोखाधड़ी

प्रभाष जोशीचुनावी खबरों को बेचने का काला धंधा ऐसा नहीं है कि अखबारों ने छुपाते-लजाते किया हो। स्ट्रिंगर से लेकर संपादक-मालिक तक व छुटभैये कार्यकर्ता से लेकर उम्मीदवार, उसकी पार्टी व प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तक, सब जानते थे कि अखबारों में चुनावी खबरें पैसे और वह भी काले पैसे से छप रही हैं। राजनीतिक लोगों की बेशर्मी तो फिर भी समझी जा सकती है, क्योंकि उनमें से अधिकतर अखबारों में छपे को अपना प्रचार मानकर ही चलते हैं। पर अखबारों, खासकर हिंदी-अंग्रेजी के राष्ट्रीय दैनिकों, जो अपनी गिनती दुनिया के सबसे बड़े अखबारों में और सबसे ज्यादा पाठकों वाले अखबारों में करवाते हैं और अपनी पत्रकारिता की तारीफ करते नहीं थकते, वे भी खबरों की अपनी पवित्र जगह बेचते हुए आंखों की शर्म भी नहीं रखते थे।

‘पहले पन्ने पर छाप दो कि यह अखबार झूठा है’

[caption id="attachment_14855" align="alignleft"]प्रभाष जोशीप्रभाष जोशी[/caption]उनका कुछ नाम भी है और काम भी। बरसों से हमारे दोस्त हैं। लेखक और समाजसेवी पिता के कारण बचपन से पत्रकारिता करने लगे। समाज को बदलने और बनाने की तलवार मान कर। पिछले आठ-दस साल से कोई अख़बार उन्हें नहीं रखता। सब इज्जत करते हैं। अपनी रोजी चलाने और रुचि बनाए रखने के लिए तरह-तरह के काम करते हैं। जैसे इस बार उनके एक दोस्त लोकसभा का चुनाव लड़े तो उनका मीडिया प्रबंधन किया। वह सब अपनी आंखों से देखा और महसूस करते हुए विचलित हुए जो आजकल हमारे अख़बार और टीवी चैनल कर रहे हैं। उनने डायरी लिखी। उसके कुछ पन्ने यहां देकर अपनी बात कह रहा हूं। आगे की कार्रवाई की रणनीति के तहत न उनका नाम दे रहा हूं न उनकी डायरी में आए नाम।


इन्हें सिर्फ प्रिंटिंग प्रेस चलाने का रजिस्ट्रेशन मिले : प्रभाष जोशी

संबोधनचुनाव के दौरान पैसा लेकर उम्मीदवारों के हक में विज्ञापननुमा खबरें छापने के खिलाफ देश भर के जाने-माने संपादक प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी की अगुवाई में शीघ्र ही अभियान चलाएंगे। संपादकों का प्रतिनिधिमंडल, मुख्य चुनाव आयुक्त एवं प्रेस परिषद के अध्यक्ष से भेंट करेगा। प्रभाष जोशी ने रविवार को हरियाणा के रोहतक शहर में लेखक एवं पत्रकार पवन कुमार बंसल की किताब ‘खोजी पत्रकारिता क्यों और कैसे’ के विमोचन अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रतिनिधिमंडल भारतीय प्रेस परिषद से मिलकर अनुरोध करेगा कि वह विज्ञापननुमा खबरों का अध्ययन कर सरकार से ऐसी खबरें छापने वाले अखबारों का रजिस्ट्रेशन रद करने और सिर्फ प्रिंटिंग प्रेस चलाने का रजिस्ट्रेशन देने का आग्रह करे।

गोयनका लोगों के बारे में गालियों से बात करते थे : प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशीहमारा हीरो – प्रभाष जोशी

प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी का इंटरव्यू करने भड़ास4मीडिया की टीम उनके वसुंधरा स्थित निवास पहुंची तो शुरुआती दुआ-सलाम के बाद जब उनसे बातचीत शुरू करने का अनुरोध किया गया, तो उन्होंने हंसते हुए कहा- भई अपन के अंदर ‘भड़ास’ नाम की कोई चीज है ही नहीं। हालांकि जब प्रभाष जी से बात शुरू हुई तो बिना रूके दो घंटे से अधिक समय तक चली। इंटरव्यू में प्रभाष जी नए-पुराने सभी मुद्दों पर बोले।