प्रधानमंत्री ने काले कानून को भले ही फिलहाल न लागू करने की बात कही है लेकिन पत्रकार इस कानून को पूरी तरह रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। काला दिवस मनाने के बाद पत्रकारों ने मीडिया के नए माध्यम ब्लाग के जरिए अपनी बात दुनिया भर में पहुंचाने की कवायद शुरू कर दी है। टीवी एडीटरों की तरफ से पहले रिटर्न आफ सेंसर नामक ब्लाग बनाया गया तो अब दूसरा ब्लाग बनाया गया है मीडिया इन डेंजर नाम से। इस ब्लाग में प्रस्तावित काले कानून के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे पढ़ने के बाद पता चलता है कि अगर यह कानून वाकई लागू कर दिया गया तो मीडिया की आजादी मात्र दिखावे की रह जाएगी। आप सभी मीडियाकर्मियों से अनुरोध है कि काले कानून के खतरनाक बिंदुओं का अध्ययन गंभीरता से करें और इसके बारे में सभी सजग लोगों को जागरूक करें।
न्यूज चैनलों पर मनमर्जी थोपने की खतरनाक कोशिश
केंद्र सरकार की तरफ से न्यूज चैनलों पर अपनी मनमर्जी थोपने की खतरनाक कोशिश की जा रही है। Cable Television Network Rule के प्रावधान में बदलाव करते हुए जो गाइडलांइस तैयार की गई है वो अगर लागू हो गई तो समझिए न्यूज चैनलों की आजादी का गला घोंट दिया गया। लोकतंत्र के चौथे खंभे को ध्वस्त कर उसे अपना गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है सरकार। यकिन ना हो तो सरकार द्वारा प्रस्तावित रेगूलेशन की बानगी देखिए तो आप खुद समझ जायेंगे कितनी खतरनाक है सरकार की ये कोशिश। प्रस्तावित गाइडलाइंस की पहली लाइन में ही कहा गया है कि violent law & order situation को नहीं दिखा सकते। Violent law & order sitauation के तहत किसी भी तरह का प्रदर्शन, किसी भी तरह का धरना, विरोध, जनता का आंदोलन, सरकार के फैसले के खिलाफ जनआक्रोश इस रेगूलेशन के तहत आ सकता है। इस नियम के तहत कोई भी अफसर अपने हिसाब से इन तमाम घंटनाओं को परिभाषित करने की कोशिश कर सकता है। और न्यूज चैनलों पर प्रसारित होने पर मीडिया के खिलाफ कारवाई कर सकता है जो मीडिया की आजादी और अभिव्यक्ति पर भी अंकुश है। रेगुलेशन लागू हो गया तो आने वाले दिनों में समाज और सरकार से जुड़े किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन या जनआक्रोश को न्यूज चैनलों की खबरों में जगह देना नामुमकिन होगा।
- प्रस्तावित रेगुलेशन में किसी शख्स का narco analysis test, या lie detector test या judicial confesation(अदालत में कबूलनामा) फिर जाने के दौरान सामने आया तो कोई भी तथ्य न्यूज चैनल नहीं दिखा सकेंगे। अब सबसे बड़ा सवाल उठता है क्या किसी अपराधी का, स्मग्लर का या माफिया का lie detector test या narco analysis test दिखाना राष्ट्रहित के खिलाफ कैसे है ?
- सबसे बड़ा सच तो ये है कि lie detector test या narco analysis test सरकारी जांच ऐजेंसियों की ओर से करवाया जाता है, और उन्हीं की तरफ से कभी खुले तौर पर तो कभी गुप्त तरीके से न्जूज चैनलों को मुहैया भी करवाया जाता है। अब सबसे बड़ा सवाल उठता है क्या किसी अपराधी, स्मग्लर या माफिया का lie detector test या narco analysis test दिखाना राष्ट्रहित के खिलाफ कैसे है ?
- दूसरी बात ये कि सरकार को किसी अपराधी का narco analysis test या lie detector test के चलाए जाने पर ऐतराज जताने की बजाए उन्हें पहले अपने सिस्टम को ठीक करना चाहिए। ताकि सरकारी महकमे से lie detector test या narco analysis test की रिपोर्ट या सीडी मीडिया में लीक ना हो। इसलिए सरकार को पहले अपने घर को ठीक करना चाहिए।
- मीडिया का काम है सूचना जुटाना और उन्हें प्रकाशित या प्रसारित करना। इस हिसाब से देंखे तो किसी भी सरकारी दफ्तर से लीक हुई किसी भी फाइल या किसी भी सूचना को प्रसारित या प्रकाशित करना अपराध की श्रेणी में आ सकता है। और निश्चित रुप से सरकारी की कोशिश सेंसरशिप जैसे हालात पैदा करना है। जिसे कबूल नहीं किया जा सकता।
- इस रेगुलेशन में सबसे खतरनाक बात ये है कि न्यूज चैनल में चलने वाली किसी भी खबर को राष्ट्रहित के खिलाफ बताकर कारवाई करने का अधिकार डीएम, एसडीएम, पुलिस कमिश्नर या ऐसा कोई गजटेड अफसर को दे दिया गया है।
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