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साहित्य

बिहारी अस्मिता के संघर्ष की कहानी है ‘नई सुबह’

उपन्यास 'नई सुबह' के लोकार्पण समारोह में (बाएं से) अनय, विश्वंभर नेवर, डॉ.कृष्ण बिहारी मिश्र, डॉ.विजय बहादुर सिंह, गीतेश शर्मा, इसराइल अंसारी, विप्लवी हरेकृष्ण राय, डॉ.राम आह्लाद चौधरी और शंकर तिवारी.

उपन्यास के बहाने साहित्य और राजनीति के सम्बंधों पर जमकर हुई चर्चा : शंकर तिवारी के पहले उपन्यास ‘नई सुबह’ का लोकार्पण प्रख्यात आलोचक डॉ.विजय बहादुर सिंह ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिन्दी में उपन्यास विधा का ढांचा अब तक तैयार नहीं हुआ है और यह उसकी सेहत के लिए ठीक है क्योंकि ढांचा तैयार हो जाने के बाद इस विधा की आज़ादी छिन जायेगी और ढांचा केन्द्रीय तत्व हो जायेगा। उन्होंने कहा कि साहित्य की दृष्टि से राजनीति को देखा जाना चाहिए। राजनीति की दृष्टि से जब साहित्य को देखा जाता है और तो साहित्य पतित होता है संस्कृति पर अंकुश लगने शुरू होते हैं। राजनीति की दृष्टि से किया गया लेखन कैडर लेखन है। राजनीति जब पाठ्यक्रम तक तय करने लग जाये तो उसका विरोध जरूरी हो जाता है। कार्यक्रम कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद में प्रफुल्ल चंन्द्र कॉलेज, (सिटी कालेज साउथ) के हिन्दी विभाग की ओर से आयोजित था। इमरजेंसी के पूर्ववर्ती हालात और बाद की राजनीतिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास की चर्चा के क्रम में उन्होंने कहा कि राजनीतिक घटनाक्रम पर लिखे जाने के बावजूद इस उपन्यास में लेखक ने राजनीति नहीं की है, जो एक बड़ी बात है।

उपन्यास 'नई सुबह' के लोकार्पण समारोह में (बाएं से) अनय, विश्वंभर नेवर, डॉ.कृष्ण बिहारी मिश्र, डॉ.विजय बहादुर सिंह, गीतेश शर्मा, इसराइल अंसारी, विप्लवी हरेकृष्ण राय, डॉ.राम आह्लाद चौधरी और शंकर तिवारी.

उपन्यास 'नई सुबह' के लोकार्पण समारोह में (बाएं से) अनय, विश्वंभर नेवर, डॉ.कृष्ण बिहारी मिश्र, डॉ.विजय बहादुर सिंह, गीतेश शर्मा, इसराइल अंसारी, विप्लवी हरेकृष्ण राय, डॉ.राम आह्लाद चौधरी और शंकर तिवारी.

उपन्यास के बहाने साहित्य और राजनीति के सम्बंधों पर जमकर हुई चर्चा : शंकर तिवारी के पहले उपन्यास ‘नई सुबह’ का लोकार्पण प्रख्यात आलोचक डॉ.विजय बहादुर सिंह ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिन्दी में उपन्यास विधा का ढांचा अब तक तैयार नहीं हुआ है और यह उसकी सेहत के लिए ठीक है क्योंकि ढांचा तैयार हो जाने के बाद इस विधा की आज़ादी छिन जायेगी और ढांचा केन्द्रीय तत्व हो जायेगा। उन्होंने कहा कि साहित्य की दृष्टि से राजनीति को देखा जाना चाहिए। राजनीति की दृष्टि से जब साहित्य को देखा जाता है और तो साहित्य पतित होता है संस्कृति पर अंकुश लगने शुरू होते हैं। राजनीति की दृष्टि से किया गया लेखन कैडर लेखन है। राजनीति जब पाठ्यक्रम तक तय करने लग जाये तो उसका विरोध जरूरी हो जाता है। कार्यक्रम कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद में प्रफुल्ल चंन्द्र कॉलेज, (सिटी कालेज साउथ) के हिन्दी विभाग की ओर से आयोजित था। इमरजेंसी के पूर्ववर्ती हालात और बाद की राजनीतिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास की चर्चा के क्रम में उन्होंने कहा कि राजनीतिक घटनाक्रम पर लिखे जाने के बावजूद इस उपन्यास में लेखक ने राजनीति नहीं की है, जो एक बड़ी बात है।

कार्यक्रम के अध्यक्षीय वक्तव्य में ललित निबंधकार डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र ने कहा कि महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण दो ऐसी प्रतिभाएं हैं जिन्होंने कुर्सी की राजनीति नहीं की। उन्होंने कहा कि विधायक व सांसद चुन सत्ता के गलियारे तक पहुंचाने वाली आम जनता के पास इन नेताओं को कुर्सी से हटाने का भी अधिकार है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसी उद्देश्य के तहत आंदोलन किया था। इंदिरा गांधी के शासन काल में स्थिति लोकतंत्र के विरोध में हो गयी थी। जयप्रकाश नारायण स्थिति को सुधारने के लिए 72 साल की उम्र में इंदिरा गांधी के खिलाफ मैदान में उतरे। जब भी ऋषि सत्ता व राज सत्ता में टकराहट होती है ऋषि सत्ता की ही विजय होती है। शंकर तिवारी ने नई सुबह उपन्यास में जेपी आंदोलन को उपन्यास की विषय वस्तु बनायी है और व्यवस्था में बदलाव की ललक उपन्यास में दिखायी है, जो सराहनीय है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए कथाकर डॉ. अभिज्ञात ने कहा कि मौजूदा राजनीति में व्याप्त अवसरवादिता को इस उपन्यास ने उजागर किया है। युवकों के स्वप्नों के साथ राजनीतिक छल को पूरी शिद्दत से उकेरा गया है। पत्रकार गीतेश शर्मा ने कहा कि जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा तो दिया किन्तु उसका कोई खाका प्रस्तुत नहीं किया। उन्होंने जो पांच सूत्र दिये थे उसमें दहेज प्रथा हटाने जैसे मुद्दे थे जो क्रांति नहीं समाज सुधार से जुड़े थे। कथाकार अनय ने कहा कि शंकर तिवारी ने राजनीति के जोड़तोड़ की तो चर्चा की है किन्तु उसमें प्रतिपक्ष गायब है। कवि-आलोचक डॉ. सुब्रत लाहिड़ी ने उपन्यास में वर्णित एक संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि उपन्यास में बिहारी अस्मिता की बात कही गयी उसमें कोई हर्ज नहीं किन्तु इस बात की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि बंगाल में भाषा और क्षेत्रीयता को लेकर कोई भेदभाव नहीं है, और यहां का समाज किसी को मुद्दों पर समर्थन देता है या विरोध करता है। वरिष्ठ पत्रकार विश्वंभर नेवर ने कहा कि उपन्यास मौजूदा राजनीति से मोहभंग की कहानी है। राजनीति का मौजूदा स्वरूप उपन्यास के नायक को निराश और हताश करने वाला है। डॉ. राम आह्लाद चौधरी ने उपन्यास पर आलेख का पाठ किया। उन्होंने कहा कि उस उपन्यास में बिहारी अस्मिता का संघर्ष झलकता है जो इसे विश्वसनीय और महत्वपूर्ण बनाता है। उपन्यास में मूल्य की तलाश पर जोर दिया गया है। कथाकार विमलेश्वर ने कहा- उपन्यास का फलक बहुत विस्तृत है और इसमें दो उपन्यासों की सामग्री है। विप्लवी हरेकृष्ण राय ने कहा कि उपन्यास अंततः पाठकों को अपने साथ बांधे रखने में कामयाब है। कार्यक्रम में पत्रकार इसराइल अंसारी भी उपस्थित थे।

शंकर तिवारी ने इस अवसर पर बताया कि इस उपन्यास के लेखन और परिदृश्य के अध्ययन में पंद्रह साल लगे हैं। वे फिर एक उपन्यास लिखने की सोच रहे हैं लेकिन वह भी विशद अध्ययन के बाद सामने आयेगा संभव है दस साल लग जायें। उन्होंने कहा कि नई सुबह उपन्यास में उन्होंने किसी खास राजनीतिक दल को अपना निशाना नहीं बनाया है बल्कि तथ्यों के आधार पर उसके भ्रष्टाचार में लिप्त चरित्र को स्पष्ट किया है।

 

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0 Comments

  1. sandhya

    February 13, 2010 at 5:25 am

    Es upanayas ko maine padha hai .yah apne aap me ek sarthak bahas ki maang karta hai. esme na to JP movement ka mahima mandan kia gaiya hai aur na kisi political party ki alochana balki esme bhartiya rajniti ki girawat ko dikhaya gaiya hai.ek yuaak ki rajniti se mohabhang ki katha hai aur uske sangharsh ke madhyam se hamare apne samay aur samaj ke sachaaeieon ko ujagar kia gaiya hai. tiway ji ko etna rochak aur mahatwapurna upanayas likhane ke lei badhai

  2. sandhya

    February 13, 2010 at 5:35 am

    Shankar tiwary ka upanayas “Nai Subah” sachmuch badi emandari se aur badi baybaki se likha gaiya hai. yah hamare apne samay ka sach hai.[img][/img]

  3. praveen

    February 13, 2010 at 6:02 am

    Tiwary ji badhai ho.Bihari asmita ke sangharash ki gatha aapne bakhubi pesh ki hai.bade lajwab shyalli me aapne ghatia rajniti karnewalo ki pol kholi hai. aap ne jo kuch likha hai wah aap ke sahas ko darsata hai aur emmandari ko bhi. par mahila characters ke prati aap emandari nahi dekha sake hain. jo bhi ho bahut dino bad ek achha upanayas aankho ke samne se gujar raha hai.
    praveen

  4. pramila

    February 13, 2010 at 12:15 pm

    Aaj jab sach ko kahne ka khatra koi nahi uathna chata us samay me tiwary ji apne upanayas ” Nai Subah”: ke jareiya sach ko sach kahne ka jokhim uatha rahe hain
    Pramila thakur

  5. madhu

    February 13, 2010 at 12:20 pm

    Shankar Bhaiya ko sabse pahle badhai. aapka upanayas maine sabse pahle padha tha aur aaj jab uski chrcha ho rahi hai to mujhe bahut khusi ho rahi hai keyo ki yah upanayas hamare education ke system aur naukri ke leiy kaise jodtod ki jati hai uska bhi bada sunder yatarth prastut karta hai.

    madhu

  6. saurabh13

    February 13, 2010 at 12:36 pm

    ye kahte huye aaj bilkul hin sankoch nahin ho raha hai ki jab roam jal raha tha toh niro bansi baja rahe the…..aaj bharat itni samasyayon se jal raha hai aur hamare buddhijivi patrakar khud ko media tycoon kahne wale thackrey ka virodh pradarsan karne k liye film dekh rahe hain….. wo jinke hath me itna bada audio visual aur satellite ka hathiyaar hai use jung lagne k liye chhod free movie tkt ka intezaam kar rahe hain aur usper se besharmi ye ki khule aam facebook per apni izhare nakabiliat se parda bi utha rahe hain. Ajit anjum jee aur asutosh jee kripya apni bhumka iss rang manch per kuch toh dhang se nibhayiye….kripa hogi.

  7. MINU

    February 16, 2010 at 2:20 pm

    Nai Subah Par kolkata me kafi bahas ho rahi hai. koi es upanayas ko political maan raha hai to koi esko aatmakatha maan raha hai. par jo bhi hai es upanayas ne ek bahas to ched dia hi hai. har kisi ko esmen ana sach dikhai de raha hai.
    minu

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