अभी-अभी छपकर एक किताब आई है। नाम है- ‘स्वागत है नन्हे कदमों का’। लेखक हैं अमित शर्मा। किताब में क्या है, मुनि तरुण सागर के ‘आमुख’ से सुनिए…‘लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है प्रेस। प्रेस और पब्लिक, इन दोनों का गहरा संबंध है। इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। पब्लिक के हर सवाल का जवाब प्रेस देती है, लेकिन आज मीडिया स्वयं सवालों के घेरे में है। ऐसे समय में प्रेस से जुड़े हुए लोगों, पत्रकारों से समाज उम्मीद करता है कि वे संघर्ष का मार्ग अपनाएं और अपने आदर्श को निभाएं।’ इसी प्रवाह में लेखक अमित शर्मा कहते हैं- ‘इस पुस्तक की थीम दिमाग में आने के साथ ही एक शंका भी थी कि कहीं आलोचकों का शिकार न हो जाऊं! लेकिन पुस्तक के कच्चे खाके पर प्रतिक्रिया मिली कि अच्छा है, नए पत्रकारों के लिए ‘नन्हा’ ही लिखें तो ज्यादा अच्छा है।’ पुस्तक के पहले ही अध्याय में ‘स्वागत है कलम नगरी का’। इस अध्याय का पहला सवाल ढेर सारे सवालों की पदचाप बन कर उभरता है कि- ‘क्या आपने कभी किसी के पेरेंट्स को यह कहते सुना है कि मेरा बच्चा बड़ा होकर पत्रकार बनेगा?’
इतने से पूरी किताब का ध्येय समझ में आ जाता है। यह मूलतः जर्नलिज्म के स्टूडेंट्स के लिए है। साथ ही, उनके लिए भी, जो पत्रकारिता के पेशे में दस-बारह साल घिस चुके हैं। पुस्तक में कुछ अभिनव प्रयोग किए गए हैं। पुस्तक के प्रथम खंड में विभिन्न परिस्थितियों के लिए पत्रकारों को नसीहत है। मसलन, बड़ों से सीख, हवा में न उड़, ‘ना’ शब्द डिक्शनरी से हटा दें, मीटिंग में एक्टिव रहें, काम ही गॉड फादर आदि-आदि। दूसरे संक्षिप्त खंड में महामस्तकाभिषेक महोत्सव की कवरेज, महात्मा गांधी की पोती से मुलाकात पर रिपोर्ताज और कई अहम अनुभव संक्षेप में प्रस्तुत किए गए हैं।
पुस्तक की पूरी थीम एक वाक्य में कहें तो यह मीडिया के उल्लेखनीय अनुभवों पर आधारित है। मसलन, …’जर्नलिज्म में नए आने वाले साथी के साथ और कुछ हो, न हो, ये जरूर होता है कि काम वह करे, भुना कोई और ले जाए।’ सचमुच यही हालात हैं आज की अखबारी कार्यशालाओं के। फिर भी ‘जर्नलिज्म में यदि छोटे से बड़े समूह की ओर आरोही क्रम में करियर बढ़ाएं तो आपको फायदा होगा।…सीधे बड़े ग्रुप से शुरुआत करने वाले एफर्टलेस जर्नलिज्म के शिकार हो जाते हैं।’
प्रकाशक से लाख बहस के बावजूद इस पठनीय, संग्रहणीय पुस्तक की कीमत मात्र 25 रुपये रखी गई है। और नीचे लिखा गया है….’ताकि आप खरीद कर पढ़ें।’ पुस्तक का वजन इतने से समझ आता है कि विगत 13 जुलाई को छपकर आते ही इसकी साढ़े चार सौ प्रतियां बिक गईं। पुस्तक का भूमिका पृष्ठ खाली रखा गया है ताकि जो पढ़े, वही स्वयं प्रतिक्रिया लिख ले। पुस्तक के अंत में प्रस्तुत लंबी कविता (‘ख्वाबों में लंकेश’) में उन पत्रकारों पर प्रहार किया गया है, जो मिशन को भूलकर बाजारवाद का शिकार हो चले हैं-
बस जेब गरम रखना
मैं सब कुछ अरेंज करा दूंगा,
एक ही प्रेस कांफ्रेंस में तुम्हें
हर अखबार की लीड बना दूंगा,
मैं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का प्रतीक हूं,
राई को पहाड़
और पहाड़ को राई कर देता हूं,
सब जानते हैं
कि मैं और क्या-क्या कर देता हूं।
पुस्तक प्राप्त करने का पता- अमित शर्मा, 38, श्रीराम विहार-ए, मान्यावास, न्यू सांगानेर रोड, मानसरोवर, जयपुर-302020
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जंगल बुक : यह हिंदी पत्रिका छत्तीसगढ़ अंचल से प्रकाशित हो रही है। संपादक वी.वी. रमन किरण के नेतृत्व में प्रकाशित हो रही 44 पृष्ठों और 15 रुपये मूल्य की इस पत्रिका का पहला अंक जनवरी 2009 को बाजार मे आया था। पत्रिका में मुख्यतः जंगल, जमीन, जल, पर्यावरण विषयक सामग्री प्रमुखता से प्रकाशित हो रही हैं। साथ में यात्रा वृत्तांत, स्वास्थ्य, साहित्य और बच्चों पर भी पठनीय मैटर दिए जा रहे हैं। कवर पेज रंगीन हैं और अंदर के 40 पृष्ठों पर सामग्री श्वेत-श्याम। सामग्री चयन की दृ्ष्टि से पत्रिका पठनीय है। पत्रिका की लीड रिपोर्ट बॉयोस्फियर रिजर्व की बदहाली पर केंद्रित है। इसकी स्थापना 30 मार्च 2005 को हुई थी। यह छत्तीसगढ़ का एक मात्र और देश का 14वां बॉयोस्फियर है। रिपोर्ट बताती है कि यहां की नैसर्गिक संपदा से निरंतर किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके अलावा इस विशाल वनांचल से जुड़ी कुछ अन्य स्टोरी भी पत्रिका की गंभीरता को रेखांकित करती हैं।
दस्तक टाइम्स : यह हिंदी पत्रिका लखनऊ, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित हो रही है। पत्रिका के संपादक हैं रामकुमार सिंह। कुल पृष्ठ 52 और पाक्षिक कीमत है 15 रुपये। ग्लेज्ड पेपर युक्त सभी पृष्ठ रंगीन, आकर्षक साज-सज्जा के साथ कंटेट की दृष्टि से लगता है कि पत्रिका अवश्य ही विशाल पाठक वर्ग को आकर्षित करने में सफल होगी। पत्रिका के जुलाई अंक की कवर स्टोरी उत्तरांचल के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के शपथ ग्रहण के साथ ही शुरू उनकी राजनीतिक उठापटक पर केंद्रित है। साथ में अन्य रिपोर्ताज भी पठनीय और सूचनापरक हैं। मंत्रियों की अय्याशी पर खामोश मीडिया को रेखांकित करती अनिल चमड़िया की रिपोर्ट भी इस अंक का विशेष आकर्षण है। खतरे में हैं उत्तराखंड के जंगल और गुस्से में हैं जानवर। देहरादून से सविता पाठक की रिपोर्ट बताती है कि इस राज्य के गठन के बाद से किस तरह 189 लोग गुलदारों के हमले के शिकार हो चुके हैं और तीन सौ से ज्यादा लोग लहूलुहान। राजस्थान से है बच्चों के खून के सौदागरों की व्यथा-कथा और महाराष्ट्र से आमची मुंबई में बेगाने हुए कोली समुदाय की बदहाली का सच बयान किया गया है।
मध्य प्रदेश रविवार डाइजेस्ट : यह हिंदी पत्रिका मध्यप्रदेश के इंदौर शहर से प्रकाशित हो रही है। प्रधान संपादक हैं डॉ.सुभाष खंडेलवाल। अपेक्षित आकार, बेहतर पृष्ठ सज्जा, पेपर क्वालिटी, कंटेट के साथ 86 पृष्ठों वाली इस पठनीय एवं सूचनापरक मासिक पत्रिका की कीमत है 15 रुपये। पत्रिका का मुख्य स्वर राजनीति है। साथ में संगीत, संस्कृति, सेहत, कहानी, खेल और मनोरंजन जगत की पठनीय सामग्रियां भी पत्रिका की पठनीयता को लोकरंजक बनाती हैं। परिक्रमा इसका गॉशिप स्तंभ है, जिसमें मुख्यतः राजनीतिक चेहरे निशाने पर होते हैं। अपेक्षित पृष्ठ संख्या के साथ पत्रिका में अर्थ जगत के फर्जीबाड़े हैं, कला दीर्घा है तो यूथ और महिलाओं के लिए रोचक-रोमांचक लेख भी । साथ में धर्म और घर-परिवार की भी ढेर सारी बातें। कुल मिलाकर पत्रिका अपनी भरपूर बहुरंगी सामग्री से पाठकों को पूरी तरह आश्वस्त करती दिखती है।
हैलो हिंदुस्तान : बेस्ट क्वालिटी के ग्लेज्ड पेपर पर छपी 58 पृष्ठों वाली यह हिंदी पत्रिका भी मध्यप्रदेश के इंदौर शहर से निकल रही है। इसके संपादक हैं प्रवीण शर्मा। अपनी पठनीय, खोजी और सूचना परक सामग्री के नाते ही इस पत्रिका ने बहुत कम समय में अपने प्रदेश की सीमा लांघ कर छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तरांचल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक तक अपने नेटवर्क का विस्तार कर लिया है। पत्रिका का मुख्य स्वर राजनीति नहीं, फिर देश और विश्व पटल की प्रमुख सियासी हलचलों पर प्रस्तुत विभिन्न खोज परक रिपोर्ट पत्रिका के विविधतापूर्ण व्यक्तित्व को निखारती हैं। मंदी की मार के बावजूद मीडिया मार्केटिंग के सिरे से यह हिंदी मैग्जीन बाजार पर भी अपनी अलग छाप छोड़ती नजर आती है। संपादकीय पृष्ठ पर प्रिंट लाइन के साथ प्रकाशित विज्ञापन प्रतिनिधियों के नाम, फोन नंबर और कार्यालय पते साफ संकेत देते हैं कि कोलकाता से दिल्ली तक और पटना से मद्रास तक देश के सभी प्रमुख शहरों में पत्रिका विशाल नेटवर्क सक्रिय है। इस तरह देखें तो पत्रिका परिवार का जितना जोर सामग्री की पठनीयता पर है, मार्केट पर भी वैसी ही पकड़ बनती जा रही है।