‘क्या बातें चल रही हैं हमारे बाबा से…’ पास आते कदमों के एहसास के साथ यह आवाज आई. नजरें एकाएक उस आवाज की तरफ मुड़ी. करीब 17 साल का छरहरे बदन वाला लड़का. आंखो पर काला चश्मा. चेहरे पर ढंग से दाढी-मूंछ नहीं उगी थीं. मगर चाल ऐसी मानों जंगल का राजा हो. ‘पहचाना इसे, पहचानने की कोशिश करो, चलो रहने दो, दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लोगे तब भी नहीं पहचान पाओगे.
कल रात ये ही तुम्हें यहां तक लाया था’- एक जोरदार ठहाके के साथ निर्भय ने कहा. उसने आते ही निर्भय के पैर छुए. निर्भय ने उसके सिर पर हाथ रखा और फिर उसने हमारी तरफ हाथ बढ़ा दिया- ‘मिला लो हाथ, डरो मत, श्याम अब तुम्हारी तलाशी नहीं लेगा, हमारे जिगर का टुकड़ा है श्याम. अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं इसे. छोटा सा था जब यहां आया था. अब तो ये ही हमारा सब कुछ है. हमारे मरने के बाद गैंग को यही संभालेगा’- निर्भय की बातें सुनते-सुनते कब हमारा हाथ श्याम की तरफ बढ गया, पता ही नहीं चला. निर्भय का तो कोई अपना बेटा है नहीं, फिर वो श्याम को जिगर का टुकड़ा क्यों कह रहा है. शायद अभी पूछना ठीक नहीं. यह सोचते हुए हम चुप हो गए.
‘अरे तुम वहां काहे बैठी हो, तुम भी यहीं आ जाओ…’ हमारी सोच में खलल पड़ा जब निर्भय ने पास ही बैठी दो लड़कियों को भी अपने पास बुला लिया. हालांकि जहां हम बैठे थे वहां से उनके बीच की दूरी दस फुट से ज्यादा न थी लेकिन उन्होंने आने में दो मिनट का वक्त लगा दिया. दोनों बला की खूबसूरत. इतनी खूबसूरत की पहली नजर में इंद्रदेव भी खुद को न बचा सकें. उपर से नीचे तक सोने से लदी हुईं. एक तो बला की सुंदर, दूसरे सलीके से पहने गए सोने के गहने उनकी खूबसूरती को चार चांद लगा रहे थे. हम चाहकर भी उन पर से नजरें नहीं हटा पाए. अगर ये कहा जाए कि दोनों की हर अदा में इठलाना था तो बिल्कुल गलत नहीं होगा. शोखी के साथ दोनों निर्भय के पास आकर बैठ गईं. पास आने पर दोनों और भी हसीन लग रही थीं.
‘ये हैं तुम्हारे मेहमान, रात को इनकी फटी हुई थी, अगर थोड़ी देर और बंदूक लगाए रखते तो पैंट में ही हग देते’ …बैठते ही एक ने कहा…इससे पहले कि हम कुछ कहें, निर्भय का जवाब आया …’इनकी बात का बुरा मत मानो,इन्हें तो कुछ भी कहने की आदत है ‘ …निर्भय के इस जवाब पर हम भी नकली हंसी हंस दिए, पर दिमाग में एक बात कुलबुला रही थी कि क्या ये लड़की भी उन दस्युओं में शामिल थी जो कल रात बंदूक की नोक पर हमें यहां लाए थे.
‘ये सरला है …हमारी बेटी, हमारी पुत्रवधु, श्याम की होने वाली बीवी …हमने इनकी और श्याम की शादी तय कर दी है .. जल्द ही किसी शुभ मुहुर्त में हम इनकी शादी करवा देंगे …इनकी शादी में आना मत भूलना ‘…ये कहते हुए निर्भय के चेहरे पर आई मुस्कान ऐसे लग रही थी जैसे कोई बाप, कन्यादान करने के बाद राहत महसूस करता है.
‘और ये हैं हमारी मैड़म …नीलम…नाम की तरह हीरा हैं बिल्कुल…एक बार श्याम और सरला की शादी हो जाए तो हम भी इनसे ब्याह रचा लें. अभी तो जंगल में मंगल ही हो रहा है ‘…निर्भय की बातें बड़ी ही अजीब थी.
नीलम उम्र में निर्भय से कम से कम 25 साल छोटी थी लेकिन वो चंबल के सबसे खतरनाक दस्यु से शादी करने जा रही थी ….सवाल था क्यों? क्या किसी मजबूरी की वजह से या निर्भय उसे जबरदस्ती उठा लाया है? देखने से ऐसा नहीं लगता था कि बेहद शानदार नैन नक्श की मालकिन नीलम को कोई अच्छा लड़का न मिले….पर वो तो अपने से दोगुनी उम्र से भी बड़े निर्भय से शादी रचाने वाली थी. सवाल कई थे लेकिन शायद अभी उन्हें पूछने का माकूल वक्त नहीं थ.
‘तो श्याम, कब खिलाओगे शादी के लड्डू’ …जैसे ही हमने श्याम से पूछा, उतनी ही तेजी से उसका जवाब भी आया ‘बाबा हुक्म कर दें तो हम तो अभी फेरा ले लें. वामें का है …फैरा ही तो लेना है’ ….इस बीच हमने देखा कि श्याम की जुबां से ये बातें निकल तो रही थीं लेकिन शायद दिल साथ नहीं दे रहा था …बात करते-करते उसका बार-बार नीलम की तरफ देखना और बात खत्म होते ही सीधे नीलम की ओर देखते हुए पूछना….’क्यों मम्मी , कब करवा रही हो हमारी शादी …सरला संग’
हम माहौल में कुछ पढ़ने की कोशिश करते हुए ये समझना भी चाह रहे थे कि क्या सचमुच निर्भय को अपने आसपास की बातों के बारे में नहीं पता या फिर वो जानबूझ कर अनजान बना हुआ है. निर्भय के गैंग में सिर्फ कुछ घंटे बिताने के बाद ही हम साफ देख सकते थे कि नीलम और श्याम की आंखे एक दूसरे से कुछ कह रही हैं … उन दोनों की बातचीत कुछ भी हो मगर वो मां-बेटे की बातचीत, मां-बेटे का साथ तो कतई नहीं था. उन दोनों की आंखों में एक दूसरे के लिए आकर्षण था …कुछ कुछ वैसा ही जैसा दो हम उम्र लड़के लड़की में होता है …कोई भी साफ तौर पर देख सकता था कि श्याम को सरला में नहीं, नीलम में रुचि थी ….शायद सरला भी इस बात को महसूस कर रही थी …वो चाहकर भी अपने चेहरे पर आने वाले गुस्से को नहीं छुपा पा रही थी. इसलिए श्याम ने सवाल भले ही नीलम से पूछा लेकिन जवाब सरला की तरफ से आया ….’मम्मी क्या बताएंगी, जब बाबा कहेंगे तभी शादी करेंगे हम, न उससे पहले न उसके बाद….समझ गए बुद्धु’…. इतना कहते हुए सरला निर्भय की पीठ से चिपक गई. निर्भय ने भी अपने दोनों हाथ पीछे कर उसे प्यार से थपथपाया. अभी ये चुहलबाजी चल ही रही थी कि हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लगी ….बारिश से बचने के लिए जिसे जहां जगह मिली, दुबक गया ….इस बीच सधे हुए कदमों में लाठी, निर्भय के पास आया, उसके कान में कुछ कहा. फिर उसने अपनी जेब से एक चाबी निकाली और एक पकड़ की जंजीरें खोल दीं.
‘चलो उठो…तुम्हें छोड़ आएं’…लाठी की आवाज सुनते ही डरा सहमा सा वो 35 साल का हट्टा कट्टा नौजवान उठा और चुपचाप खड़ा हो गया …कई दिनों तक जंजीर से बंधा होने के कारण वो कराह रहा था ….
‘मालिक का आशिर्वाद ले लो…उनकी कृपा से ही तुम आजाद हो रहे हो, वरना तुम तो दूर, तुम्हारी लाश तक का किसी को पता नहीं चलता’…लाठी बोलता रहा और इससे पहले की उसकी बात खत्म हो उस लड़के का सिर निर्भय के पैरों में था ….अब निर्भय की बारी थी …उसने सौ सौ के नोटों की गड्डी निकाली और उस लड़के को उठाते हुए उसके हाथ में रखकर बोला …
‘सुखी रहो जश…तुम्हारे करम अच्छे थे जो तुम्हें सस्ते में छोड़ दिया’..बस उसके बाद कुछ देर तक कहीं से कोई आवाज नहीं हुई …हम देखते रहे कि लाठी उन चारों मारवाड़ियों और उस नौजवान को लेकर झाड़ियों में गुम हो गया.
‘ये वही है न यश, जिसे छुड़ाने सुबह लोग आए थे …आपने तो बड़ी जल्दी उन्हें छोड़ दिया, हमें तो लग रहा था कि आप कुछ दिन और उन्हें अपने साथ रखेंगे ….लेकिन एक बात समझ नहीं आई, उन्हें बाहर तक छोड़ने के लिए आपने लाठी को क्यों भेजा, उन्हें बाहर तक छोड़ने तो कोई और भी जा सकता था’…हम अपनी उत्सुकता को रोक न सके.
‘दिल्ली के बाबू, जब पकड़ को जंगल में हम लाते हैं तो उन्हें जिंदा बाहर निकालने की जिम्मेदारी भी हमारी है, और ये काम लाठी से बेहतर कोई और नहीं कर सकता …हमारे श्याम थोड़े और बड़े हो जाएं तो फिर सारी जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर होगी…तब तक तो लाठी को ही सारा काम करना पड़ेगा न’…निर्भय के इस जवाब पर हमने सहमति में सिर हिला दिया. सुबह से बात करते करते दोपहर हो गई थी ….अब भूख लगने लगी थी.
मौत कभी भी आ सकती है
बियाबान बीहड़ में जिस जगह हम बैठे से वहां से अगर निर्भय हमें कह देता कि जाओ वापस चले जाओ तो यकीन मानिए, हम चंबल में भटक-भटक कर दम तोड़ देते लेकिन बाहर का रास्ता नहीं मिलता …दरअसल वहां चारों तरफ एक जैसा ही नजारा था ….जिधर भी नजर दौड़ाओ तो अगर कुछ नजर आता है तो वो है कंटीली झाडियां और मिट्टी के टीले …अगर सूरज और चंद्रमा न हों तो दिशा का पता भी नहीं चलेगा … ऐसे माहौल में हम निर्भय के मेहमान थे …एक दस्यु के मेहमान.
खैर हम भले ही चंबल की एक अनजान जगह बैठे थे लेकिन वहां से कई किलोमीटर दूर बाहर शहर से एक पुलिस पार्टी निर्भय के ठिकाने पर हमला बोलने को निकल चुकी थी.. करीब 100 पुलिसवाले, सभी आधुनिक हथियारों से लैस…सबका सिर्फ एक ही मकसद निर्भय को जिंदा या मुर्दा पकड़ना. वैसे इस बात से निर्भय भी अनजान न था कि पुलिस कभी भी उस पर हमला कर सकती है लेकिन पुलिस पार्टी उसके बेहद नजदीक पहुंच चुकी है, ये पूरे गिरोह में किसी को भी नहीं पता था …उधर इस सारे वाकये से बेखबर हम भोजन के इंतजार में थे ..तभी लाठी की आवाज गूंजी…’सब मोर्चा संभाल लो, मामू आ गए हैं’ ….बस इतना सुनना था कि जो जैसे जहां था वहीं थम गया. सबने अपने अपने हथियार संभाले और मोर्चा संभाल लिया. अचानक ही चारों तरफ अफरातफरी मच गई. लाठी अपने साथ यश और चारों मारवाडियों को वापस ले आया था.
इस अफरातफरी के बीच जो सबसे पहले शब्द निर्भय के मुंह से निकले वो थे ..’श्याम तुम पकड़ को संभालो, देखो कहीं कोई भाग न जाए…राजशेखर तुम दुग्गल साहब को लेकर पीछे से निकलो, जल्दी करो’ ये कहते हुए वो अपनी AK 47 में मैगजीन लोड कर रहा था, साथ ही उसने बुलेट प्रूफ जैकेट भी पहन ली …पूरा दृश्य बड़ा ही भयावह था, हम बुरी तरह डर गए …कुछ भी हो सकता है, ये भी तो मुमकिन है कि एनकाउंटर के दौरान पुलिस की गोली हमें लग जाए क्योंकि पुलिस को तो ये पता नही कि इस वक्त गैंग में एक टीवी चैनल का पत्रकार भी बैठा है. दिमाग में लगातार बुरे ख्याल आ रहे थे …क्या ये मुमकिन नहीं कि पुलिस से घिरने पर निर्भय हमें ढाल बनाकर सौदेबाजी करे. भला कौन पुलिसवाला चाहेगा कि उस पर ये दाग लगे कि निर्भय को पकड़ने के चक्कर में एक पत्रकार मारा गया.
इन ख्यालों को एक बार फिर निर्भय की आवाज ने ही तोड़ा….’जब तक हम न कहें कोई गोली मत चलाना, श्याम, राजशेखर तुम पीछे की तरफ से निकलो’ और देखते ही देखते हम सब पीछे की तरफ से निकलने लगे ….वो रास्ता और घने बीहड़ों में जा रहा था. उधर अब तक पुलिस वाले काफी नजदीक आ चुके थे …अब ये तो पता नहीं कि उन्हें निर्भय के यहां होने का पता कैसे चला लेकिन फिलहाल दोनों तरफ से किसी की भी बंदूकें नहीं गरज रही थीं. अब पुलिस करीब काफी करीब आ चुकी थी ….पुलिस नीचे थी और गैंग के 15 डाकू उपर मोर्चा संभाले बैठे थे. चारों तरफ खामोशी…हर कोई सांस थामे बैठा था ….शायद निर्भय के मन में था कि पुलिस पार्टी गश्त पर है और आराम से वहां से गुजर जाएगी लेकिन पुलिस और निर्भय के बीच 500 मीटर से भी कम दूरी रह गई तो एकाएक निर्भय उठा और उसने AK 47 से फायर खोल दिया…उसकी देखादेखी लाठी समेत दूसरे डाकू भी धड़ाधड़ गोलियां बरसाने लगे. उंचाई पर होने की वजह से निर्भय को साफ तौर पर एडवांटेज थी ….पुलिस की तरफ से फायर तो हो रहे थे लेकिन रुक रुक कर. इस बीच आश्चर्यजनक रुप से निर्भय खड़ा हुआ और पुलिस को गालियां देते हुए पीछे के रास्ते की तरफ जाने लगा…’मारदचोदों, तुम्हें पता नहीं यहां हम ठहरे हुए हैं, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुए यहां आने की. दुनियादारी से मन भर गया क्या तुम्हारा’ निर्भय एक बार गाली देता,फिर एक राउंड फायर करता और पीछे की तरफ चला जाता. इस पूरी कवायद में कुछ ही मिनट लगे और देखते ही पूरा गैंग बीहड़ों में खो गया …पुलिस की इतनी हिम्मत भी नहीं हुई कि वो गालियां देते हुए निर्भय पर गोली चला सके.
साक्षात मौत देखने के बाद हम बेहद डर गए थे ..लेकिन घने बियाबान में पहुंचकर गैंग पहले की तरह अपनी दिनचर्या में मस्त हो गया. मानों कुछ हुआ ही न हो. कुछ वो नजारा तो उससे ज्यादा थकान, इस नयी जगह पर हम एक जगह बैठ गए, दूसरी तरफ कुछ डाकू जमीन समतल करने में लग गए …कुछ बरसाती पानी के लिए नालियां बनाने लगे. देखते ही देखते कुछ ही देर में एक नयी अड्डी बस गई. सब कुछ पहले जैसा ही. एक तरफ पकड़ों को जंजीरों से बांधा जा रहा था तो दूसरी तरफ कुछ पकड़ खाना बनाने में लगे थे …लाठी बैठा हुआ इस बात का हिसाब लगा रहा था कि पुरानी अड्डी पर क्या क्या छूटा, ‘सब आ गया मालिक, बस दूध के डिब्बे छूट गए’ लाठी निर्भय को बताने लगा. निर्भय ने सहमति में गर्दन हिलाई तो एक दूसरे टैंट में श्याम, सरला और नीलम अठखेलियां कर रहे थे. कुछ भी तो नहीं बदला था. सब कुछ वैसा ही.
‘आप बिल्कुल हीरो की तरह अकेले 100 -100 पुलिसवालों पर फायरिंग कर रहे थे …आपको भी तो गोली लग सकती थी’
‘गोली तो तब लगती न जब उनके हाथ उनकी बंदूक के घोड़े तक जाते, चंबल के राजा हैं हम, खाकी वर्दी को इस बंदूक से नहीं, हमारे नाम से डर लगता है ….दस्यु सम्राट निर्भय वीर सिंह गुर्जर’ हमारी बात का जवाब देते ही उसने जोरदार ठहाका लगाया. सचमुच कुछ भी हो लेकिन इस आदमी के सीने में दिल तो है.
‘लाठी लेकिन पुलिस को हमारा ठिकाना पता कैसे चला’…निर्भय ने हमारे और यश को छुड़ाने आए लोगों की तरफ देखते हुए लाठी से सवाल किया ।
‘अब पुलिस का क्या है मालिक, वो तो कुत्ते की मानिंद हमें सूंघती फिरती है, किसी ने बता दिया होगा’ लाठी ने भी बिल्कुल निर्भय के अंदाज में हमारी तरफ देखते हुए जवाब दिया.
‘कहीं इन चारों ने तो मुखबिरी नहीं की …या फिर इन पत्रकार महोदय ने’ जैसे ही निर्भय के मुंह से ये अल्फाज निकले, उन चारों का तो पता नहीं लेकिन हमारी जान तो हलक में ही सूख गई. हम जानते थे कि ऐसे हालात में चंबल का क्या, कोई भी आदमी शक्की बन सकता है …इस वक्त यहां कमजोर पड़ने पर कुछ भी हो सकता था …लेकिन हमने भी बिना वक्त गंवाए जवाब दिया ‘आपने हमें बेइज्जती करने के लिए बुलाया है क्या, अगर आपको हम पर यकीन नहीं तो हम चले जाते हैं. अरे हम आपसे मिलने आए हैं …क्या हम आपको मुखबिर दिखाई देते हैं’
दांव एकदम सटीक पड़ा और निर्भय ने एक जोरदार ठहाका लगाया ….’फट गई न, देखो लाठी फट गई दिल्ली के बाबू की …. हम तो मजाक कर रहे थे, आप नहीं, मुखबिर तो राम सिंह है ….अरे लाठी जल्दी खाना बनवाओ, दुग्गल साहब को भूख लगी होगी’ हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम क्या बोलें और पूरा गैंग जोर जोर से हंस रहा था. अब वो हम पर हंस रहे थे या निर्भय हंस रहा है इसलिए हंस रहे थे, ये तो पता नहीं लेकिन हमें अपनी हालत बड़ी ही अजीब लग रही थी.
हंसी एक बार फिर थम गई जब निर्भय ने उन चारों की तरफ मुखातिब होकर सवाल दागा -‘दुग्गल साहब तो पुलिस को बताकर यहां आएंगे नहीं, तो क्या तुम, तुम लाए पुलिस को यहां, बताओ मादरचोद, नहीं तो सोच लो, तुम्हारे घरवालों को तुम्हारी लाश तक नसीब नहीं होगी’
‘नहीं मालिक, हम भला पुलिस को बताकर अपनी जान खतरे में क्यों डालेंगे, अगर हमें पुलिस को बताना ही होता तो हम आपको चढ़ावा क्यों चढाते’
‘मालिक इनकी बात में दम लगता है …इन फट्टुओं को मरना है जो ये पुलिस को बताएंगे, हमें लगता है मामुओं को कहीं और से मुखबिरी हुई है’…यश को छुड़ाने आए लोगों के जवाब पर लाठी बोला.
‘ठीक है …अब जब तक हम नहीं कहेंगे, जश और ये चारों यहीं रहेंगे’ ….निर्भय ने बड़ा अजीब सा फरमान सुनाया ….फैसला मालिक का था, और मालिक के फैसला को न मानने का क्या मतलब होता है ये गिरोह में किसी से छुपा न था, न हमसे और न ही उनसे जो कुछ देर पहले ही छूटने वाले थे.
‘क्या आपको सचमुच लगता है कि यहां आने से पहले ये लोग पुलिस को बताकर आए होंगे’…जैसे ही हमने सवाल पूछा, वैसे ही जवाब आया ,…’इस संसार में कुछ भी नामुमकिन नहीं, हो भी सकता है और नहीं भी ‘…..कभी कभी निर्भय बेहद रहस्यमयी बातें करने लगता था. बिल्कुल अपनी शख्सीयत की मानिंद. वैसे इस वक्त या तो हम ज्यादा सोच रहे थे या सचमुच निर्भय हम पर शक कर रहा था ये पता नहीं, लेकिन माहौल था बड़ा ही अजीब.
पास के टैंट में अठखेलियां हो रही थी …इस बात से बेखबर कि कुछ देर पहले ही मौत हम सबके सिर को छूकर निकली है. चूंकि वे पास ही बैठे थे इसलिए अगर कोई सुनना चाहे तो उनकी बातों को आराम से सुन सकता था ……और अचानक न चाहते हुए भी उनकी बातें हमारे कान में पड़ने लगीं. पहली आवाज श्याम की थी- ‘आज अगर मालिक हमसे न कहे होते, श्याम पकड़ को लेकर पीछे के रास्ते से निकलो तो हम मामुओं को बता देते कि श्याम क्या चीज है …ऐसा निशाना मारते जैसे अर्जुन ने चिड़िया की आंख में मारा था’
‘रहन दो, कर तो कुछ पाए न और मरद बनत हो …मरद तो मालिक हैं, देखा, कैसे अकेले मालिक के सामने सारे पुलिसवालों ने पैंट में ही हग दिया’….तंज मारती आवाज नीलम की थी.
‘अब तुम हमारी मम्मी हो, वरना हम तुम्हें दिखाते हम मरद हैं या नहीं’ श्याम की इस बात पर नीलम तो खिलखिला कर हंस पड़ी लेकिन सरला का चेहरा तमतमा गया.
‘रहने दो मम्मी, अगली बार जब ”काउंटर” होगा तो हमारे श्याम अकेले ही सबकी मिट्टी पलीत कर देंगे’ ….सरला का ये जवाब दिखा रहा था कि हिंदुस्तान की कोई भी औरत, अपने पति की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकती. भले ही पति होने वाला क्यों न हो.
‘सरला क्या हुआ, काहे हल्ला कर रही हो’….निर्भय की इस आवाज पर उधर से जवाब तो कोई नहीं आया हां, तीनों चुप जरूर हो गए.
‘अच्छा तुम बताओ दुग्गल साहब, तुम दिल्ली चंबल काहे आए, क्या तुम्हें डर नहीं लगा कि अगर हमने तुम्हारी पकड़ कर ली तो’
‘निर्भय अपनी जुबान के पक्के हैं, अगर आपने भी अपनी बात का मान नहीं रखा तो आपमें और दुसरे दस्युओं में क्या फर्क रह जाएगा’ हमने निर्भय को जवाब तो दे दिया लेकिन हमें लगा कि शायद अभी भी वो हमें तौल रहा है.
‘अच्छा छोड़ो, फूलन देवी से मिले हो दिल्ली में’ – अचानक निर्भय ने बड़ा ही बेतुका सा सवाल पूछा ‘हां, कई बार, लेकिन आप ये सब क्यों पूछ रहे हैं ‘ ….जैसे ही हमने ये कहा तुरंत ही उस सवाल के पीछे का मकसद भी सामने आ गया.
‘ये बताओ जब फूलन सांसद बन सकती है तो हम क्यों नहीं ‘….
‘हमारे यहां लोकतंत्र है और लोकतंत्र में हर किसी को चुनाव लड़ने की आजादी है ….लेकिन इसके लिए आपको सरेंडर करना पडेगा, तभी इलेक्शन लड़ पाओगे आप’….हमने निर्भय को समझाने की कोशिश की ….
‘अब यही तो दिक्कत है …वो हमें सरेंडर करने नहीं देंगे, उनकी मर्जी के बगैर अगर हमने सरेंडर की कोशिश की तो हम खत्म हो जाएंगे’….बुदबुदाते हुए निर्भय ने कहा और फिर चुप हो गया.
हालांकि निर्भय ने बुदबुदाते हुए ये कहा था लेकिन आवाज हमारे कानों तक पहुंच चुकी थी …हमने पूछा …’कौन वो’
‘अभी नहीं, वक्त आया तो जरुर बताएंगे’….निर्भय ने कहा और इसी बीच खाना भी आ गया. खाने में आलू की तरीदार सब्जी के साथ रोटियां थी ….हम सब साथ बैठकर खाना खाने लगे. लंबी भागदौड़ के बाद खाना स्वादिष्ट तो लग रहा था लेकिन एक सवाल लगातार दिमाग को मथ रहा था कि आखिर वो कौन है जिससे निर्भय का भी मालिक है, जिससे निर्भय को भी इजाजत लेनी पड़ती है. अगर सचमुच ऐसा कोई है तो निर्भय उसका नाम क्यों नहीं ले रहा. सवाल कई हैं पर जब तक निर्भय खुद न बताना चाहे, उसके बारे में कुछ भी पूछना, अपनी मौत को दावत देने से कम नहीं.
‘चलो अब आराम कर लो, रात को तुम्हें एक बहुत जरुरी चीज दिखाएंगे’ – हम निर्भय से पूछना तो चाहते थे कि वो हमें क्या दिखाने वाला है लेकिन थकान इतनी ज्यादा थी कि नींद जुबान पर हावी हो रही थी.
लेखक बृज दुग्गल वर्तमान में आईबीएन7 न्यूज चैनल में डिप्टी एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं। पत्रकारिता के 12 साल के सफर में दुग्गल ने समाज के कई अनछुए पहलुओं को करीब से देखने की कोशिश की। कुछ अलग, कुछ हटके करने का जुनून बृज को कभी पूर्वोत्तर के आतंकी कैंप में रिपोर्टिंग कराने ले गया तो कभी चंबल के बीहड़ में पहुंचाया।
पहले का पार्ट पढ़ने के लिए (1), (2), (3), (4) पर क्लिक कर सकते हैं।
बृज से संपर्क [email protected] से कर सकते हैं।
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