प्रिय चन्दन जी, सादर अभिवादन, आपका पत्र पढ़ा। शायद आप दैनिक जागरण की ही संतति हैं। पहले आपको स्पष्ट कर दूं, अगर नरेन्द्र मोहन का जन्मदिन सिर्फ दैनिक जागरण मनाता तो मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। इस बहुरुपिये अखबार ने पूरे देश को जन्मदिन मनाने के लिए मजबूर किया। और तो और, नरेन्द्र मोहन की क्षीण होती स्मृतियों को स्थायित्व देने के लिए हमेशा की तरह गेम प्लान किया। आपको ये भी स्पष्ट कर दूं, दैनिक जागरण की नीतियों से असहमति की वजह मेरा पूर्वाग्रह नहीं, मेरी अपनी सोच है जो इस अखबार की कलाकारी और गैर-अखबारी चरित्र की वजह से और भी स्थायी होती जा रही है।
मेरा मौजूदा विरोध उस तरीके पर है जिस तरह से जन्मदिन मनाया गया। अखबार जागरण समूह का है। लेकिन पाठकों को क्या पढना है और क्या पढाया जाए, इस पर टिप्पणी करना वैचारिक स्वतंत्रता का हिस्सा है। और ये काम मैं बार-बार करता रहूँगा। आपको शायद कोई ग़लतफ़हमी हुई है या मेरे बारे में आपने जिन स्रोतों और मेरे मित्रों से पता किया है वो अल्पज्ञ हैं। मैं आपकी तरह जागरण जैसे किसी भी अखबार के कारखाने की पैदावार नहीं हूँ और मेरे लिए ये गर्व का विषय है। जिस वक़्त दैनिक जागरण ने पूर्वांचल में सांस लेना ही शुरू किया था, उस वक़्त से मैं स्वतंत्र रूप से लिख रहा था और खूब लिख रहा था। हां, ये सच है कि मैंने अपनी आर्थिक विवशताओं की वजह से जागरण में नौकरी की थी। मगर क्यूं छोड़ दिया, अगर आपको ये पता चलेगा और आपमें अपने पेशे के प्रति दोगलापन नहीं होगा तो आप भी जागरण अखबार से तत्काल त्यागपत्र दे देंगे। जागरण छोड़ने की वजह भड़ास4मीडिया पर मौजूद है। लिंक पर क्लिक करें और पढें- ‘गैंग रेप, प्रेस, पुलिस और नेता’
आपका
आवेश तिवारी
पत्रकार