प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन चाहते हैं कि लोकसभा चैनल की तरह ही देश में न्यायपालिका से संबंधित खबरों के प्रसारण के लिए एक अलग चैनल होना चाहिए, जिसमें अदालतों के मामलों को प्रमुखता से पेश किया जा सके। प्रधान न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री के सूचना प्रौद्योगिकी सलाहकार सैम पित्रोदा से इसकी संभावना तलाशने का आग्रह भी किया है। न्यायमूर्ति बालाकृष्णन के अनुसार उन्होंने नेशनल इंफॉरमेटिक्स सेंटर को भी न्यायपालिका के लिए अलग चैनल बनाने का सुझाव दिया है। निजी क्षेत्र के 24 घंटे के समाचार चैनलों का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि भले ही हम 24 घंटे न सही, लेकिन कुछ घंटे ही सही अदालत की कार्यवाही का प्रसारण तो कर ही सकती हैं। ऐसे चैनल पर सुप्रीम कोर्ट में रिलांयस जैसे कई ऐसे अहम मुदकमों में हुई बहस के अंशों का प्रसारण किया जा सकता है, जिसमें इस समूह के तीन लाख शेयरधारकों जैसे दर्शकों की दिलचस्पी हो सकती है।
प्रधान न्यायाधीश के पद पर तीन साल पूरे करने के अवसर पर न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने चुनिंदा पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान जजों की नियुक्ति और उनकी संख्या बढ़ाने से लेकर न्यायपालिका में सुधार से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए। सुप्रीम कोर्ट में पिछले साढ़े तीन साल से कोई महिला न्यायाधीश नहीं होने के सवाल पर वह कहते हैं कि सुप्रीम को पहली महिला न्यायाधीश मिलने में 45 साल लग गए थे। महिला न्यायाधीश की नियुक्ति में विलंब के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह सिर्फ उनके हाथ में नहीं है और आशा है कि उनके अन्य सहयोगी जज इस ओर ध्यान देंगे।
भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण महाभियोग की कार्यवाही की प्रक्रिया में फंसे कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन की पदोन्नति को लेकर व्याप्त किंतु परंतुओं के सवालों के बीच प्रधान न्यायाधीश का मानना है कि न्यायाधीशों की समिति ने न्यायमूर्ति दिनाकरन की सिफारिश करके गलती की थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि यह पता चलता है कि किसी न्यायाधीश ने भूमि पर कब्जा किया है या कोई गलत काम किया है तो वह पदोन्नति के लायक नहीं है। न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने स्पष्ट किया कि न्यायमूर्ति दिनाकरन को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत करने की न्यायाधीशों की समिति की सिफारिश के समय उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं था। यही नहीं न्यायमूर्ति दिनाकरन के मद्रास हाईकोर्ट का न्यायाधीश बनने और फिर कर्नाटक हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने के वक्त भी उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं था। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा किसी की भूमि पर कब्जा करने के तथ्यों का पता लगाने के लिए उनके पास कोई मशीनरी नहीं है और इसीलिए हमने विधि मंत्रालय से सारे तथ्यों की जांच करने की सिफारिश की थी। रुचिका प्रकरण के बारे में पूछे जाने पर न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि इस मामले में काफी लंबा समय लगा जो चिंता का विषय है, लेकिन राजस्थान में ऐसे मामले भी हुए है जिनकी सुनवाई 10 से 15 दिन में पूरी हो गई। साभार : नईदुनिया
ratna
January 20, 2010 at 12:05 pm
nyalaay ka alag channel hona achha prastav hein.kya is channel mein pending padhe cases ko dikhaaya jayega.kya ek aam insaan ko court se sambandhit rights aur corrupted lawyers ki stories hogi.kya ek aam admi ki court se judi samasyayo ko kendrit kiya jayega.court to sab filmo mein dekhte hein,par uski vastavikta aur bhartiya nayalaye ke der se nirnay ki khabar ya special programme bhi hona cahiye.ek aam admi sirf court case ki sunvai nahi dekhna cahata balki satya par adharit court ka faisla dekhna cahata hein.is vishey per soche.