मिशन निर्भय : क्रूरता के किस्से और बीहड़ की पगडंडी
कहते हैं चंबल के पानी में कुछ ऐसी बात है कि वहां बागी पैदा होते रहते हैं- बात चाहे चंबल की पगडंडियों से संसद तक पहुंचने वाली फूलन देवी की हो या एक खास जाति के 101 लोगों का कत्ल करने का ऐलान करने वाले जगजीवन परिहार की, या फिर एक जाति विशेष के लोगों को अपना दुश्मन समझने वाला खूंखार दस्यु दयाराम गड़रिया हो, या मुखबिरी के आरोप में दो लोगों की आंखें निकाल लेने वाली कुसुमा नाइन.
चंबल का इतिहास डाकुओं से भरा हुआ है….चंबल की वादियों में एक और डाकू ने करीब 25 साल तक में राज किया ……निर्भय गुज्जर -वो डाकू जिसका नाम ही नहीं, नाम का एहसास ही लोगों में खौफ पैदा कर देता है —-अगस्त की एक रात में, रुक रुक कर हो रही बारिश के बीच हम धीरे धीरे आगे बढ़ रहे हैं ….बारिश से बचने के लिए हमारे पास छाता है लेकिन बीच बीच में बारिश इतनी तेज हो जाती है कि बूंदों से वो भी नहीं बचा पाता. हमारी मंजिल है चंबल का सबसे खूंखार डाकू निर्भय गुज्जर ….सब चुपचाप बढ़े चले जा रहे हैं ….कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा ….विचारों के इस चक्रव्यूह में हमारे दिमाग में निर्भय की हैवानियत के किस्से तैर रहे हैं ……
एक लड़का, एक लड़की, एक दूसरे का हाथ पकड़े बड़ी तेजी से भागे जा रहे हैं …सुनसान पगडंडी पर …चेहरे पर बदहवासी…मानों पीछे मौत पड़ी हो…वैसे सचमुच उनके पीछे मौत ही पड़ी थी…कुछ हथियारबंद उनका पीछा कर रहे हैं …आगे-आगे लड़की -लड़का और पीछे पीछे उनकी जान के दुश्मन …दोनों बदहवास भाग रहे हैं …जोड़े को एहसास है कि पकड़े जाने का एक ही मतलब है -मौत…वैसे उनके पीछे दौड़ रहे डाकुओं को भी पता है कि अगर ये दोनों उनके हाथ से निकल गये …तो वो भी जिंदा नहीं बचेंगे….यानि दोनों तरफ मौत का खौफ, बराबर है … इस बीच एक जगह लड़की को ठोकर लगी ….लड़की गिर पड़ी …लड़का, जो थोड़ा आगे निकल गया था, लौटकर वापस आया …लेकिन इससे पहले कि दोनों दुबारा भाग सकें .. दोनों के सिर पर कई बंदूकें सट गईं ….फिजाओं में मौत का खौफ तैरने लगा …..अंधाधुंध उड़ती मिट्टी …धूल का गुबार…लेकिन चारों तरफ, मौत का सन्नाटा. सन्नाटे को चीरती दो कदमों की आवाज…. ठक ठक ठक ठक…
कद करीब 6 फुट…गठीला बदन…चेहरे पर लंबी ढाढी …छाती पर सेमी ऑटोमेटिक रॉयफल लटकी हुई …पहली बार कोई देखे तो मारे खौफ के, हलक में ही जान निकल जाए ….धूल के बादल को चीरते हुए वो उनके सामने पहुंचा ……लेकिन ये क्या, उसे देखते ही अचानक ….दोनों के चेहरे पर मौत की आहट तैर गई ….
‘हमें माफ कर दो …माफी देई दो हमका … भूल हो गई हमसे…मालिक ,हमें माफ कर दो …जान बख्श दो मालिक’
…दोनों में न जाने कैसे ताकत आई और दोनों ने उसके पैर पकड लिए ‘……मालिकककककककककक……….’
मगर इससे पहले कि गुहार पूरी होती … उस शख्स के हाथों में रिवाल्वर लहराई और लड़के के माथे में सुराख हो गया ।…
अब सामने पड़ी थी उसकी लाश …..चारों तरफ मौत की खामोशी…गोली की आवाज से आसमान में चारों तरफ पछी की पछी दिखाई दे रहे थे ….मानों उन्हें भी मौत का खौफ हो …इधर जमीन पर सचमुच मौत दस्तक दे रही थी …हर किसी को लगा कि बस अब कुछ ही पल की देर है ….. बंदूक से एक गोली और निकलेगी और इस लड़की का भी काम तमाम… उधर उस लड़की की सांसे तो मानों हलक में ही अटक गईं …. कुछ कहना चाहती है लेकिन जुबान साथ देने को ही तैयार नही.
‘इसीके लिए छोड़ा था तुमने हमें … कितनी मोहब्बत की हमने तुमसे …..तुम्हें अपना सब कुछ माना …और तुमने….थू…मोहब्बत को बदनाम कर डाला तुमने …इसके लिए छोड़ा तुमने हमें, जो आखिरी वक्त में, तुम्हारा साथ देने से मुकर गया …ये, जिसे मोहब्बत से ज्यादा अपनी जान की फिकर थी …थू……..तेरी अईय्या की च…..’
(मौत के सन्नाटे के बीच, सब सन्न खडे थे, सिर्फ उसकी आवाज गूंज रही थी)
‘मालिक …..हमें माफ…’ उस खूबसूरत लड़की ने कुछ कहने की कोशिश की ….लेकिन, बात पूरी न हो सकी।
‘नईं….माफी …अगर तुमको माफी दे दई तो, मोहब्बत से लोगों का यकीन उठ जाएगा…कितना प्यार करते थे हम तुमसे …क्या नहीं दिया तुम्हें …रुपया पैसा ,हीरे जवाहरात …किस बात की कमी थी तुमको…..क्यों किया तुमने ऐसा …क्या कमी थी हममें …रानी बनाके रखे थे न तुम्हें ….थू …लेकिन नहीं, वो कहते हैं न, छोटा आदमी ..छोटी औरत चाए, जितना बड़ा हो जाए, उसकी सोच नहीं बदलती … सोच हमेसा छोटी रहती है ‘ ….(गुस्सैल आवाज ने, माहौल में फिर खौफ घोल दिया)
‘अपने प्यार के लिए ही …हमें माफ कर दो …बस एक बार …अब हमसे ऐसी गलती….’
एक बार फिर, उस लड़की ने कुछ कहने की कोशिश की …
नहीं…( उसकी बात बीच में ही काटकर, एक बार फिर उसकी आवाज गूंजी)
उसने उसकी तरफ घूरकर देखा …और उसके शरीर के बीच के हिस्से पर गोलियों की बरसात कर दी …गोलियां, सिर्फ और सिर्फ उस लड़की के गुप्तांग पर बरस रही थीं …गोलियों की भारी बरसात के बीच …चेहरा एकदम सही सलामत…
‘ले…जा अपने आशिक के साथ…अपने जिस्म की प्यास बुझाना चाहती थी न तू इसके साथ…ले बुझा ले …’
गोलियां चलती रहीं…और उसका जिस्म ..मांस के छोटे छोटे टुक़डो में इधर उधर उड़ता रहा …और गोलियों की ये बारिश तब तक होती रही, जब तक गोलियां खत्म नहीं हो गईं.
तभी एक बार फिर…उसकी आवाज गूंजी…’लाठी…इसका ‘किरया करम ‘ठीक से करना , बहुत प्यार करते थे हम इससे …ये दगाबाज थी…मगर हम ..जान से ज्यादा चाहते थे इसको … ‘देखना जमाने में कोई ये न कहे कि हम सच्चे आशिक नहीं थे …कोई ये न कहे कि हमने प्यार का फर्ज नहीं निभाया ।…ले जाओ लाठी इसे ,ले जाओ…लाल जोडे में सजाकर करना इसका किरया करम ….’
उसकी आवाज भर आई… … पलकों से बाहर निकल आई पानी की बूंदों को उसने हाथ से पोंछा और …..मुडकर चल दिया….
अचानक तेज बारिश के साथ जोरदार तूफान आया और मेरा छाता उड़ गया…. बारिश की हल्की बूंदे जो अब तक छाते की वजह से मुझतक नहीं पहुंच रही थीं , अब मेरे जिस्म से टकराने लगीं … बारिश तेज होती जा रही थी …बड़ी बड़ी बूंदे मेरे जिस्म को भिगोने लगीं …कुछ ही पलों में मैं पूरा भीग गया लेकिन मैने अपने छाते को पकड़ने की कोई कोशिश नहीं की…वैसे तेज हवा और बारिश के बीच ऐसी किसी भी कोशिश का क्या अंजाम होगा, इसका अंदाजा मुझे ही नहीं, मेरे साथ चल रहे हर शख्स को था.
अगला भाग अगले शनिवार को
लेखक बृज दुग्गल वर्तमान में आईबीएन7 न्यूज चैनल में डिप्टी एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं और ‘क्रिमिनल’ प्रोग्राम के एंकर हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट और 1997-98 में आईआईएमसी से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा करने वाले बृज दुग्गल ने करियर की शुरुआत ‘आंखों देखी’ से की। उसके बाद जी न्यूज, फिर आज तक होते हुए अब आईबीएन7 में हैं। पत्रकारिता के 12 साल के सफर में दुग्गल ने समाज के कई अनछुए पहलुओं को करीब से देखने की कोशिश की। कुछ अलग, कुछ हटके करने का जुनून बृज को कभी पूर्वोत्तर के आतंकी कैंप में रिपोर्टिंग कराने ले गया तो कभी चंबल के बीहड़ में पहुंचाया। बृज से संपर्क करने के लिए आप उन्हें [email protected] पर मेल कर सकते हैं।