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दुख-दर्द

पुलिस के थप्पड़ से पत्रकार की मौत

उर्दू अखबार के संवाददाता के साथ रमजान के पाक महीने में लखनऊ के वीवीआईपी चौराहे हुई घटना : शर्म आती है खुद को पत्रकार मानते हुए, जिसकी इतनी भर औकात है कि उसे कोई सिपाही सरेआम थप्पड़ मार दे। शर्म आती है इस उत्तर प्रदेश का हिस्सा बनते हुए जहां के राज में पुलिस इतनी बेलगाम हो गई है कि वह किसी पत्रकार को थप्पड़ मार दे। लखनऊ के उस वीवीआईपी चौराहे पर जहां से दो सौ मीटर की दूरी पर सीएम आफिस है, ढाई सौ कदम पर राजभवन है, सौ मीटर पर डीएम आवास है, सौ कदम पर विधानसभा है, एक पत्रकार को एक दरोगा टाइप का सिपाही सरेआम झापड़ मार देता है और यह सदमा बर्दाश्त न कर पाने के कारण पत्रकार की मौके पर ही मौत हो जाती है। उर्दू अखबार के पत्रकार मुमताज सिद्दीकी की उम्र भी ज्यादा नहीं थी। वे केवल 47 वर्ष के थे। रमजान के इन पवित्र दिनों में उनके साथ जो कुछ हुआ है वह न सिर्फ लखनऊ के बड़बोले पत्रकारों को उनकी औकात बताने के लिए काफी है बल्कि यह भी बताने के लिए काफी है कि हमारे यूपी का पुलिस तंत्र किस कदर असंवेदनशील, भ्रष्ट, बेखौफ और बर्बर हो चुका है कि वह बिना वजह पत्रकार तक से उलझने से खुद को नहीं रोक पाता। खाकी वाले राक्षसों ने संयम तो सीखा ही नहीं है।

<p align="justify"><font color="#993300">उर्दू अखबार के संवाददाता के साथ रमजान के पाक महीने में लखनऊ के वीवीआईपी चौराहे हुई घटना :</font> शर्म आती है खुद को पत्रकार मानते हुए, जिसकी इतनी भर औकात है कि उसे कोई सिपाही सरेआम थप्पड़ मार दे। शर्म आती है इस उत्तर प्रदेश का हिस्सा बनते हुए जहां के राज में पुलिस इतनी बेलगाम हो गई है कि वह किसी पत्रकार को थप्पड़ मार दे। लखनऊ के उस वीवीआईपी चौराहे पर जहां से दो सौ मीटर की दूरी पर सीएम आफिस है, ढाई सौ कदम पर राजभवन है, सौ मीटर पर डीएम आवास है, सौ कदम पर विधानसभा है, एक पत्रकार को एक दरोगा टाइप का सिपाही सरेआम झापड़ मार देता है और यह सदमा बर्दाश्त न कर पाने के कारण पत्रकार की मौके पर ही मौत हो जाती है। उर्दू अखबार के पत्रकार मुमताज सिद्दीकी की उम्र भी ज्यादा नहीं थी। वे केवल 47 वर्ष के थे। रमजान के इन पवित्र दिनों में उनके साथ जो कुछ हुआ है वह न सिर्फ लखनऊ के बड़बोले पत्रकारों को उनकी औकात बताने के लिए काफी है बल्कि यह भी बताने के लिए काफी है कि हमारे यूपी का पुलिस तंत्र किस कदर असंवेदनशील, भ्रष्ट, बेखौफ और बर्बर हो चुका है कि वह बिना वजह पत्रकार तक से उलझने से खुद को नहीं रोक पाता। खाकी वाले राक्षसों ने संयम तो सीखा ही नहीं है। </p>

उर्दू अखबार के संवाददाता के साथ रमजान के पाक महीने में लखनऊ के वीवीआईपी चौराहे हुई घटना : शर्म आती है खुद को पत्रकार मानते हुए, जिसकी इतनी भर औकात है कि उसे कोई सिपाही सरेआम थप्पड़ मार दे। शर्म आती है इस उत्तर प्रदेश का हिस्सा बनते हुए जहां के राज में पुलिस इतनी बेलगाम हो गई है कि वह किसी पत्रकार को थप्पड़ मार दे। लखनऊ के उस वीवीआईपी चौराहे पर जहां से दो सौ मीटर की दूरी पर सीएम आफिस है, ढाई सौ कदम पर राजभवन है, सौ मीटर पर डीएम आवास है, सौ कदम पर विधानसभा है, एक पत्रकार को एक दरोगा टाइप का सिपाही सरेआम झापड़ मार देता है और यह सदमा बर्दाश्त न कर पाने के कारण पत्रकार की मौके पर ही मौत हो जाती है। उर्दू अखबार के पत्रकार मुमताज सिद्दीकी की उम्र भी ज्यादा नहीं थी। वे केवल 47 वर्ष के थे। रमजान के इन पवित्र दिनों में उनके साथ जो कुछ हुआ है वह न सिर्फ लखनऊ के बड़बोले पत्रकारों को उनकी औकात बताने के लिए काफी है बल्कि यह भी बताने के लिए काफी है कि हमारे यूपी का पुलिस तंत्र किस कदर असंवेदनशील, भ्रष्ट, बेखौफ और बर्बर हो चुका है कि वह बिना वजह पत्रकार तक से उलझने से खुद को नहीं रोक पाता। खाकी वाले राक्षसों ने संयम तो सीखा ही नहीं है।

समझा जा सकता है कि आम आदमी के साथ ये पुलिस के भेड़िए क्या व्यवहार करते होंगे। अमर उजाला, लखनऊ में आज इस घटना के बारे में जो खबर प्रकाशित हुई है, उसे हम आपके सामने हू-ब-हू रख रहे हैं। पढ़िए और सोचिए, किस लोकतंत्र में जी रहे हैं हम लोग और ऐसे पुलिसवालों को क्यों न फांसी दे दी जाए….


पुलिस की प्रताड़ना से पत्रकार की मौत

लखनऊ : हजरतगंज के व्यस्ततम चौराहे पर खाकीधारियों ने मामूली गलती पर बीमार खबरनवीस को इस कदर प्रताड़ित किया कि उसकी हार्टअटैक से मौत हो गई। करतूत पर परदा डालने के लिए पुलिस आनन-फानन में उसे सिविल अस्पताल ले गई जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने खबरनवीस के परिजनों पर दबाव बनाकर मामला रफादफा करा दिया। घटना की न तो रिपोर्ट दर्ज हुई और न ही पोस्टमार्टम कराया गया। कैसरबाग के मोहल्ला फूलबाग निवासी मुमताज सिद्दीकी (47) एक साप्ताहिक अखबार के पत्रकार थे। सिद्दीकी अपने भांजे फैजल के साथ सोमवार की दोपहर रिक्शे से हजरतगंज स्थित डीआरएम दफ्तर जा रहे थे। हजरतगंज चौराहा स्थित छंगामल की दुकान के सामने होमगार्ड रघुनंदन प्रसाद ने रिक्शा रोक दिया। सिद्दीकी ने तबियत खराब होने की बात कहकर चालक को रिक्शा बढ़ाने के लिए कहा। यह बात होमगार्ड को नागवार गुजरी। वह दोनों से बदसलूकी करने लगा। इस पर दोनों रिक्शे से उतरकर चौराहे स्थित ट्रैफिक बूथ पर गए। वहां टीएसआई मिथिलेश कुमार सिंह से होमगार्ड की शिकायत की।

शिकायत सुनने की जगह थप्पड़ मारा :  फैजल के मुताबिक टीएसआई ने होमगार्ड को कुछ कहने के बजाए मुमताज को ही फटकारना शुरू कर दिया। मुमताज ने विरोध किया तो गुस्साए टीएसआई ने उन्हें तमाचा जड़ दिया। क्षुब्ध सिद्दीकी अपने मोबाइल से करीबी सिनेमाहाल मालिक मुकुल शर्मा को फोन मिलाने लगे। टीएसआई ने उनका मोबाइल छीन लिया। मुमताज ने मुकुल शर्मा को बुलाने के लिए फैजल को उनके माल एवेन्यू स्थित घर भेजा। मुकुल शर्मा के मुताबिक, इस दौरान उन्होंने कई बार सिद्दीकी के मोबाइल फोन पर कॉल कर यह बताने की कोशिश की कि वे दिल के मरीज हैं, लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ। कुछ देर बाद किसी पुलिसकर्मी ने फोन कर उनको बताया कि मुमताज की तबियत बिगड़ गई है और वे लोग उन्हें लेकर सिविल अस्पताल आए हैं। सिविल अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि मुमताज की मौत हो चुकी है।

पहले ही तबियत खरीब थी : फैजल का आरोप है कि मुमताज टीएसआई की प्रताड़ना नहीं बर्दाश्त कर सके। उनकी तबियत पहले ही खराब थी। थप्पड़ के बाद उन्हें हार्ट अटैक हो गया और उनकी पुलिस बूथ पर ही मौत हो गई। मौत की खबर फैलते ही सिविल अस्पताल में उनके परिजन और करीबी पहुंच गए। एसपी पूर्वी हरीश कुमार, एडीएम पूर्वी अनिल कुमार पाठक, सीओ हजरतगंज बीएस गरब्याल भी मय फोर्स के वहां पहुंचे।

पुलिस की सफाई :  एएसपी विधानसभा सुरक्षा एके गुप्ता का कहना है कि रिक्शा चालक नो इंट्री में जा रहा था। होमगार्ड ने उसे रोका तो उसकी सिद्दीकी से कहासुनी हो गई। विवाद होते देख टीएसआई मिथिलेश कुमार सिंह जैसे ही वहां पहुंचे, उसी दौरान मुमताज की तबियत बिगड़ गई और अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई। मुमताज की पत्नी निखत, बड़े भाई अनवार अहमद सिद्दीकी और परिवार के अन्य लोगों ने कानूनी कार्रवाई से इनकार करते हुए पोस्टमार्टम न कराने का अनुरोध किया। इस पर पंचायतनामा भरकर शव उन्हें सौंप दिया गया। मुमताज के कोई संतान नहीं थी। साभार : अमर उजाला

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