यह खबर-तस्वीर छापना जनहित में जरूरी था या पत्रकारिता के लिए?
टीवी न्यूज चैनलों को बात-बात पर गालियां देने वाले आलोचकों और मीडिया समीक्षकों के लिए एक जरूरी सूचना। अपने ब्वायफ्रेंड के धोखे की शिकार हुई नोएडा की एक लड़की के एमएमएस वाली खबर को न्यूज चैनलों ने नहीं दिखाने का फैसला किया है। कई टीवी न्यूज चैनलों के संपादकों ने तीन दिन पहले ये तय किया कि एमएमएस कांड को दिखाने से उस लड़की की इतनी फजीहत होगी कि उसका जीना मुश्किल हो जाएगा।
जिन लोगों को अब तक उसके एमएमएस के बारे में कुछ नहीं पता है, उन तक भी बात पहुंचेगी। कई कैमरे और रिपोर्टर उस लड़की के घर-परिवार तक पहुंच जाएंगे। यही सब सोचकर कई टीवी चैनलों के संपादकों ने एमएमएस वाली स्टोरी को नहीं दिखाने का फैसला किया। तीन दिन पहले ये खबर तस्वीरों के साथ मुंबई से छपने वाले मिडडे में छपी और कुछ ही मिनटों के भीतर हर चैनल के रिपोर्टर के पास ये खबर भी थी और एमएमएस भी। कई न्यूज चैनलों ने क्यों एमएमएस कांड को नहीं दिखाने का फैसला किया, ये बताने से पहले आपको बता दें कि कई अखबारों ने ना सिर्फ उस लड़की को शर्मसार कर देने वाली तस्वीरें छापी हैं, बल्कि वो किस शहर के किस सेक्टर में रहती है, ये तक छापा है। कई अखबारों ने उस लड़की के स्कूल और उसके क्लास के बारे में भी छापा है। मतलब अब हजारों लोगों को अखबारों के जरिए पता चल चुका है कि वो लड़की कहां रहती है, कहां पढ़ती है, उसके पिता क्या करते हैं, आदि..आदि….।
अपने ब्वायफ्रेंड के जाल में फंस कर स्ट्रीपटीज़ करने वाली उस लड़की का एमएमएस तो उसके चंद दोस्तों तक ही पहुंचा होगा लेकिन अब पूरी दुनिया को अखबारों ने बता दिया है। अखबार वाले हमेशा न्यूज चैनलों को पानी पी-पीकर कोसा करते हैं। चैनलों पर बेड़ा गर्क करने का आरोप लगाते रहते हैं। चैनलों के लिए गाइड लाइन और नियंत्रण की वकालत भी करते रहते हैं। उनसे मेरा एक सवाल, जो मेरे हिसाब से लाख टके का है- उस लड़की की खबर इस जानकारी के साथ कि वो किस सेक्टर में रहती है, कहां तक सही है?
मैं पूछना चाहता हूं दैनिक हिन्दुस्तान की संपादक मृणाल पांडेय और स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी से, उनके अखबार के पहले पन्ने पर आज (अगर उनकी नजर न गई हो तो माफ करें) उस लड़की के बारे में छपी खबर में बताया गया है कि वो लड़की फरीदाबाद के अमुक सेक्टर में रहती है। क्या बताना चाहते हैं आप संपादक महोदय? क्या पाठकों को बताना चाहते हैं कि वो लड़की कहां रहती है? क्या ये बताना उस लड़की के साथ खिलवाड़ नहीं है? ठीक है- न्यूज चैनल वाले आप लोगों के हिसाब से हमेशा गैर-जिम्मेदार होते हैं, लेकिन प्रिंट मीडिया के आप जैसे बड़े-बड़े संपादक तो कम से कम कुछ तो जिम्मेदारी दिखाते। आपके अखबार में छपी ये खबर किस जिम्मेदार पत्रकारिता की कसौटी पर उतरती है? और अगर आपकी खबर से उस लड़की की पहचान उजागर हो रही है तो क्या आप इसे सही ठहराने को तैयार हैं?
दैनिक हिन्दुस्तान और इसी ग्रुप के अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स ने कल भी इस खबर को बहुत सनसनीखेज ढंग से छापा था। पहले पेज पर फोटोग्राफ छपे थे। फोटोग्राफ में सब कुछ दिख रहा था, सिवाय लड़की के चेहरे के। सबकुछ से मेरा मतलब है जहां मोबाइल कैमरे से वीडियो बनाया गया था, वो जगह पीछे दिख रही थी। कमरे की पहचान हो रही थी। पीछे रखी किताबें, कंप्यूटर टेबल, रिवाल्विंग चेयर और बिस्तर का कुछ हिस्सा। इतना काफी है उस लड़की को जानने वालों के लिए। क्या एमएमएस से निकाले गए फोटो फ्रेम को छापना जनहित के लिए जरूरी था या पत्रकारिता के लिए?
आज भी दिल्ली के एक अखबार ने दो पन्ने रंग दिए हैं। अपने ढंग से जितनी सनसनी ये अखबार फैला सकता है, फैलाने की कोशिश की गई है। चार फोटोग्राफ्स छापे गए हैं। उस लड़की के जिस्म से उतरते कपड़े से शुरूआत हुई है और आखिरी तस्वीर में वो जिस हाल में दिख रही है, वो सब कुछ इस अखबार ने छाप दिया है। अखबारों ने ये भी प्रमुखता से छापा है कि वो लड़की नोएडा के किस बिजनेस स्कूल में पढ़ती है। जबकि आप सबको याद होगा दिल्ली के डीपीएस एमएमएस कांड के बाद कोर्ट ने मीडिया को इस बात की हिदायत दी थी कि किसी भी सूरत में उस लड़की के स्कूल का नाम न प्रसारित किया जाए। इससे उसकी पहचान दुनिया के सामने खुलने का खतरा होता है।
अखबारों ने न तो उसके स्कूल का नाम छिपाया, न ही उसके मोहल्ले का नाम छिपाया, न ही उसको शर्मसार करने वाली तस्वीर छापने से गुरेज किया है। हां, टीवी न्यूज चैनलों ने इस खबर को टेलीकास्ट ना करने का फैसला किया था और एक चैनल को छोड़कर शायद किसी ने इस खबर को नहीं दिखाया।
सबको पता है कि उस लड़की के साथ धोखा हुआ है। उसके दोस्त ने उसके भरोसे का खून किया। पहले प्यार – मोहब्बत में उससे स्ट्रीप्टीज करवाया, फिर अपने मोबाइल पर रेकार्ड किया और किसी बात पर दोनों के रिश्ते खराब हुए तो उस लड़के ने इस वीडियो क्लिप को इंटरनेट के जरिए कई दोस्तों तक पहुंचा दिया। उन्हीं में से किसी ने ये वीडियो मिड डे को भी दिया और बाकियों तक भी पहुंचा। हालांकि इस तरह के वीडियो को एक – दूसरे तक भेजना भी कानूनन जुर्म है। पहले भी कई बार एमएमएस कांड हुए हैं, चैनलों पर खबरें भी चली हैं। इस बार तकरीबन सभी चैनल इस बात से सहमत थे कि इस खबर को एमएमएस से निकली तस्वीरों के साथ दिखाना उस लड़की के हित में तो नहीं ही है, किसी भी तरह से जनहित में भी नहीं है।
एमएमएस कांड की शिकार हुई वो लड़की अगर खुद मीडिया के सामने आकर कहती कि मेरे साथ नाइंसाफी हुई है, कानून मेरी मदद नहीं कर रहा है, तब मीडिया का फर्ज बनता है कि उसकी खबर को दिखाए। तब भी उसकी तस्वीरें किसी सूरत में नहीं दिखाई जानी चाहिए। उसकी पहचान छिपी रहे ये हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। लेकिन यहां तो अखबार वाले पीछे पड़ गए इस खबर के। ये तर्क दिया जा सकता है कि एमएमएस कांड किसी और के साथ न हो, इसके लिए आगाह करने के मकसद से हमने खबर छापी है, लेकिन उस लड़की की अश्लील तस्वीरें छापना और उसकी पहचान को सार्वजनिक करने के खतरे पैदा करने वाली खबर छापना कहीं से जायज नहीं है। किसी भी सूरत में नहीं।
दैनिक हिन्दुस्तान की खबर के बाद तो पूरे फरीदाबाद के लोगों को पता चल गया है कि अमुक सेक्टर में वह लड़की रहती है। आस-पास के इलाके के लोग उस लड़की के घर का पता लगा चुके होंगे क्योंकि सेक्टर के बारे में दैनिक हिन्दुस्तान ने छाप ही दिया है। न्यूज चैनलों के रिपोर्टर भले ही उनके घर न पहुंचे हों लेकिन अखबारों के संवाददाता दनादन पहुंच रहे हैं। न्यूज़ चैनलों पर टीआरपी के लिए कुछ भी चलाने का आरोप लगाने वाले संपादकों, आलोचकों, मीडिया समीक्षकों और बुद्धिजीवियों, क्या आपकी नजर इस तरफ अब तक गई है या नहीं?
लेखक अजीत अंजुम वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन दिनों हिंदी न्यूज चैनल ‘न्यूज 24’ के मैनेजिंग एडिटर हैं। इस आलेख पर अपनी राय, टिप्पणी या प्रतिक्रिया लेखक तक पहुंचाने के लिए आप [email protected] का सहारा ले सकते हैं।