टाइम्स आफ इंडिया के लोगों ने पहनी थी पुलिस की वर्दी : तहलका ने लिया था वेश्याओं का सहारा : अनुरंजन जी, माफ कीजिए, मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हूं। एक नक्सली छत्रधर महतो, जो सैकडों हत्याओं का दोषी है, उसको अगर बंगाल पुलिस पत्रकार बनकर पकड़ती है तो गलत क्या है? एक मिशन के रूप में और अपने आप को देश का चौथा स्तम्भ कहने पर गर्व महसूस करने वाली मीडिया के लिए नक्सली हत्यारे छत्रधर महतो को पकड़े जाने पर बंगाल पुलिस पर गर्व करना चाहिए, भले ही यह काम पत्रकार का स्वांग रचाकर पुलिस को करना पड़ा हो। यह तो पत्रकारिता जेसे पेशे के लिए गौरवपूर्ण बात है। खासकर ऐसे दौर में जब पत्रकारिता के नाम पर न्यूज चैनलों पर क्या क्या चल रहा है, यह हम सबसे छुपा नहीं है। आपने सवाल उठाया कि अगर पत्रकार पुलिस की वर्दी में चलता तो…. मैं आपको बता दूं कि देश के जाने-माने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने कुछ समय पहले अपने पत्रकारों को नकली वर्दी पहनाकर वीवीआईपी एरिया में मोटरसाइकिल पर घुमाया था और अगले दिन प्रमुखता से अखबार में खबर छपी थी।
आप स्टिंग आपरेशन करने वाले मीडिया हाउस में प्रमुख पद पर रहे हैं और आप भली भांति जानते हैं कि पत्रकार किन-किन रूपों में स्टिंग पत्रकारिता करते हैं। तहलका के रक्षा सौदे घोटाले की स्टिंग से सारी दुनिया परिचित है। तहलका के लोगों ने इस स्टिंग के लिए वेश्याओं का सहारा लिया था। ऐसे में पत्रकारिता के लिहाज से एक नक्सली हत्यारे का पक्ष लेकर पुलिस की आलोचना के आपके रवैये से मैं सहमत नहीं हूं।
-आशीष अग्रवाल
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