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अनिल चमड़िया व कृपाशंकर की नई पारी

[caption id="attachment_14920" align="alignleft"]अनिल चमड़ियाअनिल चमड़िया[/caption]देश के दो वरिष्ठ हिंदी पत्रकारों ने अध्यापन की तरफ रुख कर लिया है। ये हैं अनिल चमड़िया और कृपाशंकर चौबे। इन दोनों ने वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में ज्वाइन किया है। अनिल चमड़िया ने प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन किया है तो कृपाशंकर चौबे ने एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में। अनिल चमड़िया और कृपाशंकर चौबे दोनों मुख्यधारा की पत्रकारिता में करीब 25 वर्षों से सक्रिय हैं। सागर (मध्य प्रदेश) के रहने वाले अनिल चमड़िया का जन्म, लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा उनके ननिहाल बिहार के सासाराम जिले में हुई। औपचारिक पढ़ाई-लिखाई कम करने वाले अनिल ने ज्यादा कुछ पढ़ा-सीखा आंदोलनों से। वे जेपी मूवमेंट में शामिल हुए। पिछड़ों को आरक्षण दिलाने वाले छात्र आंदोलन के नेता रहे। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के बिहार के सचिव रहे। किसान और खेतिहर मजदूरों के आंदोलनों से करीब का नाता रहा। देश के विभिन्न मीडिया हाउसों में सामाजिक मुद्दों पर बेलौस लेखन करने वाले अनिल चमड़िया जनसरोकार की पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं।

अनिल चमड़िया

अनिल चमड़ियादेश के दो वरिष्ठ हिंदी पत्रकारों ने अध्यापन की तरफ रुख कर लिया है। ये हैं अनिल चमड़िया और कृपाशंकर चौबे। इन दोनों ने वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में ज्वाइन किया है। अनिल चमड़िया ने प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन किया है तो कृपाशंकर चौबे ने एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में। अनिल चमड़िया और कृपाशंकर चौबे दोनों मुख्यधारा की पत्रकारिता में करीब 25 वर्षों से सक्रिय हैं। सागर (मध्य प्रदेश) के रहने वाले अनिल चमड़िया का जन्म, लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा उनके ननिहाल बिहार के सासाराम जिले में हुई। औपचारिक पढ़ाई-लिखाई कम करने वाले अनिल ने ज्यादा कुछ पढ़ा-सीखा आंदोलनों से। वे जेपी मूवमेंट में शामिल हुए। पिछड़ों को आरक्षण दिलाने वाले छात्र आंदोलन के नेता रहे। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के बिहार के सचिव रहे। किसान और खेतिहर मजदूरों के आंदोलनों से करीब का नाता रहा। देश के विभिन्न मीडिया हाउसों में सामाजिक मुद्दों पर बेलौस लेखन करने वाले अनिल चमड़िया जनसरोकार की पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं।

पत्रकारिता की शुरुआत उन्होंने पटना से की और शान-ए-सहारा, अवकाश, आज जैसे अखबारों-पत्रिकाओं के लिए काम किया। बाद में उनका लिखा हर बड़ी पत्रिका व अखबार में छपने लगा। अनिल भारतीय मीडिया में दलित पत्रकारों की मामूली मौजूदगी को लेकर बराबर चिंतित रहे हैं और इस मुद्दे पर सक्रिय लेखन करते रहे हैं।

कृपाशंकर चौबे कोलकाता में बारह साल तक जनसत्ता के संवाददाता रहे। सहारा के लिए कोलकाता से चीफ रिपोर्टर के रूप में काम कर चुके हैं। दैनिक हिंदुस्तान के कोलकाता में विशेष संवाददाता और ब्यूरो चीफ रह चुके हैं कृपाशंकर। यूपी के बलिया जिले के रहने वाले कृपाशंकर चौबे एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के हिस्से बन चुके हैं। इस विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय हैं जो आईपीएस रह चुके हैं और एक साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं।

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0 Comments

  1. Chandan ( Freelancer Cine Editor,Patna)

    February 1, 2010 at 3:33 pm

    koi comprison karne ki bat hi nahi hai….. Anil Chamadia jee ko unse zor kar bate karna hi tarkik nahi lagta hai…..

    Kirpa kar aisi bat na kare……..

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