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‘कातिल’ के कंधे पर सिर रख रो रहे दुखियारे

Rocky Mountain Newsएक अखबार की मौत का पोस्टमार्टम 

भारत में साक्षरता बढ़ने व बाजार विस्तार से अखबारों के प्रसार-राजस्व में जमकर वृद्धि हो रही है पर अमेरिका में तस्वीर उलट है। पढ़े-लिखे हाइटेक अमेरिकी कागज से पूरी तरह मुंह मोड़ रहे हैं। खबर भी उन्हें कागज पर नहीं सुहा रहा। इसे वे नेट व मोबाइल के जरिए पढ़ना चाहते हैं। इस ट्रेंड के जोर पकड़ने से अखबारों के पसीने छूटने लगे हैं। कुछ हांफते हुए वीर गति प्राप्त होने लगे हैं। खबर अमेरिका के कोलोराडो शहर से है। 

Rocky Mountain News

Rocky Mountain Newsएक अखबार की मौत का पोस्टमार्टम 

भारत में साक्षरता बढ़ने व बाजार विस्तार से अखबारों के प्रसार-राजस्व में जमकर वृद्धि हो रही है पर अमेरिका में तस्वीर उलट है। पढ़े-लिखे हाइटेक अमेरिकी कागज से पूरी तरह मुंह मोड़ रहे हैं। खबर भी उन्हें कागज पर नहीं सुहा रहा। इसे वे नेट व मोबाइल के जरिए पढ़ना चाहते हैं। इस ट्रेंड के जोर पकड़ने से अखबारों के पसीने छूटने लगे हैं। कुछ हांफते हुए वीर गति प्राप्त होने लगे हैं। खबर अमेरिका के कोलोराडो शहर से है। 

TV Mediaयहां राकी माउंटेन न्यूज नामक अखबार की मौत हो गई है। इस अखबार को एक जमाने में ठीकठाक प्रसार और पैसा हासिल था। लेकिन अमेरिकियों की बदली हुई आदत ने अन्य अखबारों को तरह इसे भी कहीं का न छोड़ा। अखबार का न सिर्फ प्रसार धुंआधार तरीके से गिरने लगा बल्कि दाम की दमदारी भी कम होने लगी। प्रबंधन ने खूब कोशिश की, कई फंडे अपनाए, स्कीमें चलाईं लेकिन अखबार को फिर से अपने पाठकों के हाथों न पहुंचा सके। अखबार के राजस्व में तेजी से गिरावट के चलते आखिरकार प्रबंधन ने इस धंधे से तौबा करने का फैसला ले लिया। कोलराडो शहर के लोगों को बाय बाय बोलते हुए इस अखबार ने पिछले दिनों अपना अंतिम अंक निकाला। ‘गुडबाय, कोलोराडो‘ हेडिंग के साथ अखबार ने खुद के दफन होने का ऐलान कर दिया।

यह पूरी खबर इस तरह है-


Goodbye, Colorado

It is with great sadness that we say goodbye to you today. Our time chronicling the life of Denver and Colorado, the nation and the world, is over. Thousands of men and women have worked at this newspaper since William Byers produced its first edition on the banks of Cherry Creek on April 23, 1859. We speak, we believe, for all of them, when we say that it has been an honor to serve you. To have reached this day, the final edition of the Rocky Mountain News, just 55 days shy of its 150th birthday is painful. We will scatter. And all that will be left are the stories we have told, captured on microfilm or in digital archives, devices unimaginable in those first days. But what was present in the paper then and has remained to this day is a belief in this community and the people who make it what it has become and what it will be. We part in sorrow because we know so much lies ahead that will be worth telling, and we will not be there to do so. We have celebrated life in Colorado, praising its ways, but we have warned, too, against steps we thought were mistaken. We have always been a part of this special place, striving to reflect it accurately and with compassion. We hope Coloradans will remember this newspaper fondly from generation to generation, a reminder of Denver’s history – the ambitions, foibles and virtues of its settlers and those who followed. We are confident that you will build on their dreams and find new ways to tell your story. Farewell – and thank you for so many memorable years together.


Newspaper Industryराकी माउंटेन न्यूज की वेबसाइट पर पड़ी इस खबर पर अभी तक 250 कमेंट आ चुके हैं जिसमें ज्यादातर लोगों ने दिल से दुख जताया है, रोया है, चिल्लाया है, श्रद्धांजलि दी है। मतलब, प्रिंट एडिशन के मौत का दुख इस अखबार के इंटरनेट एडिशन में  जताया जा रहा है। अखबार की वेबसाइट पर पड़ी इस खबर को पढ़कर जिस तेजी से लोग दुख जता रहे हैं, वह इंटरनेट की बढ़ती ताकत और पीपुल कनेक्ट स्वभाव को दर्शाता है। कह सकते हैं, इंटरनेट का बढ़ता दबदबा इस अखबार के मौत के लिए एक वजह बना तो यही ‘कातिल’ इंटरनेट ही मौत पर रोने वालों के लिए कंधा बन गया है। इससे समझ में आता है कि अखबारों के इकतरफा ज्ञान परोसने की बजाय इंटरनेट में दो-तरफा संवाद की गुंजाइश होना इस मीडिया माध्यम को ज्यादा ताकतवर, आयुष्मान, आधुनिक और संभावनामय बनाता है। 

Newspaper Industryबात आगे बढ़ाते हैं। राकी माउंटेन न्यूज ने तो अपने सरवाइवल की लड़ाई में सरेंडर कर दिया लेकिन अमेरिका के कई अखबार हैं जो अब भी घटते प्रसार और पैसे को वापस पाने के लिए दम लगाए हैं। इन अखबारों के आर्थिक रूप से कमजोर होने और बंद होने से बड़ा नुकसान इनमें काम करने वाले पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को झेलना पड़ रहा है। जो लोग कभी पत्रकार हुआ करते थे, वे अब किसी तरह जुगाड़ से जिंदगी चला रहे हैं। पिया कैटन को ही ले लीजिए। ये पहले ‘न्यूयार्क सन’ नाम के अखबार में काम करती थीं। पांच महीने पहले यह अखबार बंद हुआ तो पिया किसी तरह से लोकल एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़ गईं और अब इसी के जरिए जिंदगी की गाड़ी खींचने में लगी हैं।

अमेरिका के एक दूसरे शहर डेट्रायट में अखबारों ने संकट से निपटने के लिए बीच का रास्ता निकाला है। दो बड़े अखबारों के मालिकों ने तय किया है कि वे अपना अखबार रोज-रोज पाठकों के यहां नहीं पहुंचाएंगे। अब पाठकों को हफ्ते में तीन दिन ही इन अखबारों के दर्शन होंगे। ये दोनों अखबार हैं- ‘डेट्रायट फ्री प्रेस‘ और ‘डेट्रॉयट न्यूज‘। इन अखबारों के प्रकाशकों ने घटते पाठक और Newspaper IndustryIntertainment Industryकम होती कमाई से निपटने के लिए अखबार के स्टाफ से 10 फीसदी लोगों को बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। डेट्रॉयट मीडिया के सीईओ डेव हंक साहब खुद कुबूल करते हैं- ”न्यूजपेपर मार्केट को तगड़ी चुनौती से रू-ब-रू होना पड़ रहा है। हम वही सब कर उपाय रहे हैं जिससे अखबार की खराब होती सेहत को दुरुस्त किया जा सके।” अमेरिकी विश्लेषकों का कहना है कि इंटरनेट ने जिस तेजी से परंपरागत मीडिया माध्यमों को रिप्लेस करना शुरू कर दिया है उसे Mobile Mediaदेखते हुए कहा जा सकता है कि दुनिया में अखबार और टीवी के बाद इंटरनेट व मोबाइल ही सबसे बड़े मीडिया माध्यम बनकर उभरेंगे। ज्ञात हो, इंटरनेट एडवरटाइजिंग का मार्केट दिन-रात बढ़ रहा है। विज्ञापन दाता प्रिंट और टीवी के साथ-साथ इंटरनेट को भी जबरदस्त माध्यम के रूप में स्वीकार Media and Intertainment Industryकर रहे हैं और इसके साथ अपने प्रोडक्ट को जोड़कर मार्केट फतह करने की रणनीति बनाने में लगे हैं। भारतीय मीडिया मार्केट की बात करें तो अखबारों के प्रसार और राजस्व पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। विज्ञापनों से कमाई पिछले कुछ महीनों में भले कम हुई हो लेकिन बड़े अखबारी हाउसों अब भी लाभ में हैं।

हां, लाभ का प्रतिशत जरूर कम हुआ है लेकिन यह अस्थायी दौर वैश्विक मंदी के खत्म होने पर खुद ब खुद खत्म हो जाएगा। दरअसल भारत में अभी पूर्ण साक्षरता नहीं है। जिस रफ्तार से लोग साक्षर और TV Industryशिक्षित बन रहे हैं, उस रफ्तार से अखबारों को ग्रोथ मिल रही है। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका जैसी स्थिति आने में अभी कई बरस लगेंगे क्योंकि भारतीय बाजार फैलाव और उफान पर है। यही हाल टीवी मीडिया का है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से Internet Mediaपिछले दिनों आई एक खबर इस बात की तस्दीक करती है कि टीवी मीडिया की सेहत दुरुस्त है।

खबर यह कि 97 नए न्यूज चैनल खोलने के आवेदन आईबी मिनिस्ट्री के पास पड़े हुए हैं और मंत्रालय इन आवेदनों को मंजूर करने के लिए जरूरी जांच पड़ताल कर रहा है। संसद में सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री आनंद शर्मा ने कुबूल किया था कि न्यूज एंड करेंट अफेयर्स कैटगरी में 97 प्राइवेट सैटेलाइट चैनल और नान न्यूज कैटगरी में 85 चैनलों के आवेदनों की छानबीन चल रही है। शर्मा का कहना था कि मौजूदा अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग गाइडलाइन के हिसाब से इन आवेदनों पर कार्यवाही चल रही है। आनंद शर्मा ने बताया कि फिलवक्त देश में न्यूज एंड करेंट अफेयर्स कैटगरी में कुल 215 चैनल चल रहे हैं और नान न्यूज कैटगरी में 233 चैनल दर्शकों को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं।

भारत में मीडिया और मनोरंजन का मार्केट बहुत बड़ा है। इसीलिए इस मार्केट को ट्रैप करने के लिए नित नए खिलाड़ी मैदान में आ रहे हैं। औद्योगिक संगठन फिक्की (फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री) और केपीएमजी ने पिछले दिनों जो संयुक्त अध्ययन रिपोर्ट जारी किया, उसके मुताबिक बीते साल 2008 में भारत में मीडिया एंड इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री ने कुल 11.68 अरब डालर का कारोबार किया। मजेदार यह है कि 2006 से इस इंडस्ट्री के कारोबार में 15 प्रतिशत का विकास हर साल हो रहा है। रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि मंदी के बावजूद मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र को वर्ष 1012 तक हर साल साढ़े बारह प्रतिशत के आसपास ग्रोथ मिलती रहेगी।


लेखक तक अपनी बात [email protected] के जरिए पहुंचा सकते हैं। मीडिया से जुड़ी खबरें, सूचनाएं, लेख, रिपोर्ट, सुझाव भेजने के लिए [email protected] को माध्यम बना सकते हैं.
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