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चार साल से बिना सेलरी काम कर रहे पत्रकार को घर बिठाया

गोरखपुर में दैनिक हिंदुस्तान से जुड़े रहे पत्रकार लक्ष्मीकांत दुबे के दिल में बहुत सारी बाते हैं, जिसे वे कहना चाहते हैं। वे जो कुछ कह रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई या झूठ है, ये तो वे ही जानें लेकिन उनकी भड़ास उनके गले तक आकर अटकी हुई है, सो उसे बाहर निकलने का मौका मिलना ही चाहिए. -एडिटर

<p align="justify"><strong>गोरखपुर में दैनिक हिंदुस्तान से जुड़े रहे पत्रकार लक्ष्मीकांत दुबे के दिल में बहुत सारी बाते हैं, जिसे वे कहना चाहते हैं। वे जो कुछ कह रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई या झूठ है, ये तो वे ही जानें लेकिन उनकी भड़ास उनके गले तक आकर अटकी हुई है, सो उसे बाहर निकलने का मौका मिलना ही चाहिए. </strong>-एडिटर<strong><font color="#993300"> </font></strong></p>

गोरखपुर में दैनिक हिंदुस्तान से जुड़े रहे पत्रकार लक्ष्मीकांत दुबे के दिल में बहुत सारी बाते हैं, जिसे वे कहना चाहते हैं। वे जो कुछ कह रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई या झूठ है, ये तो वे ही जानें लेकिन उनकी भड़ास उनके गले तक आकर अटकी हुई है, सो उसे बाहर निकलने का मौका मिलना ही चाहिए. -एडिटर

पत्रकारों का सर्वाधिक शोषण होता है यहां

हिन्दुस्तान अखबार की गोरखपुर में यूनिट लगने की खबर के साथ ही वहां बगैर वेतन के काम कर रहे पत्रकारों का शोषण तेज हो गया है। जिन पत्रकारों को अच्छा खासा मानदेय वेतन मिलता है, वे यह मानकर चल रहे हैं कि उनकी नौकरी यूनिट में भी पक्की है। मगर बगैर वेतन वाले लोग ब्यूरो चीफ के शोषण और मनमानेपन का शिकार हो रहे हैं। दरअसल हिन्दुस्तान का गोरखपुर ब्यूरो कार्यालय चलता ही है बगैर वेतन काम करने वाले पत्रकारों से। उस पर भी, ये बिना वेतन वाले हर वक्त जलील किए जाते हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो ब्यूरो चीफ के रिश्तेदार बताए जाते हैं, कम्पनी से मोटा मानदेय भी उठाते हैं मगर उनका ज्यादा वक्त एनजीओ चलाने में बीतता है। वे ब्यूरो चीफ के रिश्तेदार हैं, सो कोई कुछ कह नहीं सकता। बगैर वेतन कार्य करने वालों के काम को एनजीओ वाले पत्रकार का काम प्रतिदिन की रिपोर्ट में दिखाया जाता है।

कोई एक साल पहले कम्पनी की तरफ से बगैर वेतन काम करने वाले पत्रकारों के लिए एक हजार रुपए प्रति माह मेहनताना देने का निर्णय लिया गया। ऐसे पत्रकारों की सूची जब लखनउ कार्यालय से मांगी गई तो स्वयं को सबसे बड़ा नैतिक साबित करने वाले ब्यूरो चीफ की नैतिकता भी जवाब दे गई। उन्होंने बगैर वेतन काम करने वालों को दरकिनार कर अपने एक प्रिय का नाम भेजा। कई पत्रकार बगैर वेतन अभी भी काम कर रहे हैं। दरअसल ब्यूरो कार्यालय में चीफ की कार्यशैली से सभी नाखुश हैं मगर यूनिट के नाम पर सभी की आवाज दबी हुई है। इधर ब्यूरो चीफ सभी की आवाज यह कह कर दबाए हुए हैं कि यूनिट आने पर उन्हें अच्छे वेतनमान पर रखा जाएगा। ऐसा उन पत्रकारों के साथ लगभग तीन वर्षों से किया जा रहा है।

ऐसे ही एक पत्रकार ब्यूरो चीफ की प्रताड़ना के शिकार हो गए। दरअसल उक्त पत्रकार कभी ब्यूरो चीफ के बहुत प्रिय हुआ करते थे। सभी उनकी रिपोर्टिंग के कायल थे। ब्यूरो चीफ उन्हें पिछले चार वर्षों से लगातार आश्वासन देते थे कि यूनिट आने पर सबसे पहले उसे प्राथमिकता मिलेगी। दूसरे अखबारों के लोग भी उसकी बीट पर उक्त पत्रकार को अपना सबसे बड़ा प्रतियोगी मानकर परेशान रहते थे कि वह आज कौन सी खबर दे रहा है। कहीं ऐसा न हो वह कुछ खबर दे तथा अगले दिन दूसरे अखबारों में सम्बन्धित बीट के रिपोर्टर की क्लास ले ली जाए। मगर उस पत्रकार की तेजी ही उसकी दुश्मन बन गई। अपनी कार्यशैली तथा मधुर व्यवहार के कारण उक्त पत्रकार सबका प्रिय है। कुछ इमानदार अफसरों से भी उसके अच्छे सम्बन्ध बन गए थे। धीरे-धीरे यही सब बातें ब्यूरो चीफ को नागवार लगने लगीं। ब्यूरो चीफ के एक करीबी का मुकदमा एक अधिकारी के न्यायालय में लम्बित था। ब्यूरो चीफ स्वयं नैतिकता का लबादा ओढकर उक्त पत्रकार से अपने करीबी के पक्ष में फैसला कराने के लिए अफसर से सिफारिश करने को कहा मगर उक्त पत्रकार ने न्यायिक कार्य में सिफारिश करने से इंकार कर दिया।

यहीं से पत्रकार के दुर्दिन शुरू हो गए। पहले उसकी बीट बदली गई। एक दिन कार्यालय पंहुचने पर उक्त पत्रकार से कहा गया कि चपरासी से बात कर लें। पत्रकार ने जब चपरासी से पूछा कि क्या बात है तो उसे कहा गया कि आज से उनकी बीट फिर बदली जा रही है। इसी बीच शशि शेखर हिन्दुस्तान के ग्रुप एडिटर बने। इसे संयोग कहिए या उक्त पत्रकार का दुर्भाग्य, लोगों ने बात फैला दी कि उक्त पत्रकार के दिन फिरने वाले हैं और ब्यूरो चीफ के दिन लदने वाले हैं। ब्यरो चीफ की खासियत है कि वह आंखों से देखी हुई नहीं, सुनी-सुनाई बातों पर ज्यादा यकीन करते हैं। उनके अन्दर कोई भय था या कुछ और, उन्होंने चार साल से ज्यादा समय से बगैर वेतन काम कर कर रहे उक्त पत्रकार को अक्टूबर माह में घर बैठ जाने को कहा। उक्त पत्रकार लगभग चार साल से ज्यादा वक्त से ब्यूरो चीफ के इसी आश्वासन पर काम कर रहा था कि यूनिट आने पर उसे भी मानदेय मिलेगा। जब कुछ लोगों ने ब्यूरो चीफ के निर्णय का विरोध करना चाहा तो उन्हें यह कह कर शान्त करा दिया गया कि चुप रहें वर्ना यूनिट आने पर उन्हें मौका नहीं मिलेगा।

लेखक लक्ष्मीकांत दुबे दैनिक हिंदुस्तान, गोरखपुर में कार्यरत रहे हैं. अभी वे कहीं पर नहीं हैं. लक्ष्मी के लिखे पर अगर किसी को आपत्ति है तो अपनी बात नीचे कमेंट आप्शन के जरिए कह सकते हैं.

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0 Comments

  1. Sadashiv Tripathi

    January 20, 2010 at 5:04 am

    Hindustan Prabandhan Ko Laxmikant ki Bat Ko Sangyan Me Lete Hue Nyay Kana Chahie

  2. vijay mishra

    January 20, 2010 at 7:46 am

    aaj kal lagatar aisi khabaro ko dekhakar to yahi lagata hai ki patrakarita patrakaro ki na rahakar dalalo ki ho kar rah gayi hai lekin kami sirf yahi nahi hai karayalay ko bhi chahiye ki kam se kam saal me ek baar kisi visavasniy karamchri se ek baar apna karyalay ki jaacha karawa leni chahiye jisase waha ke buro ki karavidhi kitani visawasaniya hai ye pata chalega aur kam se kam is tarah ka sisan to band ho hi jayega

  3. sanjay

    January 20, 2010 at 8:03 am

    gorakhpur ke sabse dalal patrkar ke jhoothi baton ko post par dalkar apne bhadas blog ka attitude sapast kar diya hai. badhai ho yaswant ji

  4. krishna

    January 20, 2010 at 8:14 am

    laxmikant dubey ko gorakhpur me lKD ya Lakadoo ke nam se jana jata hai. iske bare me kisi ko theek se janna ho to gorakhpur ke kisi patrkar ko phone kar jan sakta hai. Bhadas ne LKD ko heero banane ka kam kiya hai. lekin isse sach chip nahi jata hai sab log sach ko jante hai. LKD ke bare men kuch likhna apna samay barbad karna hai. yeh kam yaswant ji ko hi mubarak ho

  5. T.Gorani

    January 20, 2010 at 9:18 am

    Yakeen nahian hota magar dubeyji kah rahin hain to manna parea. likin yah hazam nahin hota ki koi patrakar free main kam karega wah bhi 4 saal. asi kya mazboori ho sakati hai!

  6. T.Gorani

    January 20, 2010 at 9:22 am

    yakeen nahin hota ki koi patrakar free main kaam karega wah bhi 4 saal. aisi kya mazboori ho sakati hai.

  7. बागी

    January 20, 2010 at 9:27 am

    लकादू के लिए अखबार क्‍या सचमुच पत्रकारिता का माध्‍यम रहा है। वे खुद ईमानदारी से बतायें। उनकी कीर्ति शहर में चतुर्दिक है। चाहे सफाई कर्मियों की भर्ती का मामला रहा हो या‍ पिफर जीडीए से मकान लेने का। आज वे अखबार से बाहर है तो उन्‍हें सब कमजोरियां दिख रहीं हैं। लकादू का दर्द उनका अपना है। इसे सार्वजनिक बनाकर वे क्‍या करना चाहते हैं।

  8. nagendra kumar singh

    January 20, 2010 at 12:09 pm

    press me ane ke liye kaun kaha th
    agar aa bhi gaye to free me kaam kuy kiye
    ek saal nahi balaki chhar saal
    mahina do mahina me pata chalata hai
    free me kaam kiye free me baithiye
    phir ro kuy rahe hai

  9. ब्रजकिशोर सिंह

    January 20, 2010 at 2:44 pm

    हिंदुस्तान अखबार लक्ष्मीकांत दूबे के साथ जो व्यवहार कर रहा था और कर रहा है वह अतिअमानवीय है.ज्यादा-से-ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में हिंदी के अख़बार पत्रकारों के साथ जानवरों-सा व्यवहार कर रहे हैं.हम सभी हिंदीभाषियों को इस तरह के अख़बारों का बहिष्कार करना चाहिए.

  10. Arun singh , Azamgarh

    January 20, 2010 at 3:55 pm

    लक्ष्मीकान्त जी का कार्य उनके नाम के अनुरूप ही है | वह लक्ष्मी के लिए कुछ भी कर सकते हैं | उनकी पुरानी आदत रही है कि वे लक्ष्मी के लिए तमाम अनैतिक काम करते हैं | लक्ष्मीकान्त गोरखपुर कि पत्रकारिता में दलाली के प्रवेशद्वार हैं | उन्हें तो मै तबसे जनता हू जबसे वे पैसे कि ब्लैक मेलिंग के धंधे से जुड़े थे | वाह रे दलाल तुने कितना अच्छा रोना रोया है इस ब्लॉग पर |आने वाली नस्ले तुम्हे याद करेंगी | भगवन तुम्हे सदबुधि दे |

  11. raj narayan mishra

    January 20, 2010 at 6:47 pm

    lakadu tumne apna charitra bata diya. tum multaha dalal ho. jab tumhe shahi ji ne dalali se roka to tumne unhe hi badnam karna shuru kar diya. tumhare jaise dalal ko kisi bhi sansthan me jgah nahi milni chahiye.

  12. Swami Nandan

    January 20, 2010 at 7:37 pm

    laxmikant jee ki baten 100 fisdi sahi hai,kyon ki mai bhi ish se gujar chuka hoon. hindustan prabandhan me uper se niche tak chatukaro ki jamaat hai.reporter kitna bhi muskil uthkar news laye ushse ht ko koi matlab nahi hai. laxmikant jee aapke sath jo hua dukh laga,lekin aaj kisi bhi banner ke sath dil se judkar nahi dimag se kaam kare. jharkhand me bhi yahi sthitee hai.ho sakta hai iske baad aap aur aage badh jayen. Swami Nandan Raftaar Tv Ramgarh(JHARKHAND)

  13. puransingh

    January 21, 2010 at 5:11 am

    aajkal ki patrkarita mai aesa ho rha hai to ye ak tarah se patrkarita ka ant hai.

  14. suneel srivastava

    January 21, 2010 at 6:05 am

    सही प्रतिक्रिया देने के लिए अरुण सिंह को बधाई। लक्ष्‍मीकांत गोरखपुर की पत्रकारिता को कलंकित करने वाले पत्रकार है। जाहिर है अपने अखबार के हित के लिए निजी तौर पर उन्‍हें पत्रकार बनाने के लिए ब्‍यूरो चीफ महोदय भी जिम्‍मेदारी से बच नही सकते। जिले के सभी प्रमुख लोगों, सभ्‍य पत्रकारों व सम्‍भ्रांत लोगों ने बारंबार लक्ष्‍मीकांत की दलाली के बारे में उन्‍हें बताया, साक्ष्‍य के तौर पर खबरें दिखाईं लेकिन ब्‍यूरो चीफ महोदय ध्रितराष्‍ट बने रहे। वह तब चेते जब उनके बेदाग जीवन पर कालिख पडने लगी। आप लोगों को यह भी जानना चाहिए कि लक्ष्‍मीकांत एमएलसी वाईडी सिंह के प्रतिनिधि थे और बकायदा ठेकेदारी करते थे। अगर यह गलत हो तो बताएं कि पांच साल तक परिवार का खर्च कैसे चलाया। रोज सौ रुपए की सिगरेट और शाम को दारू कहां से मिलती है। कलेक्‍टेट व जीडीए आफिस का चपरासी तक उनकी दलाली का गवाह है। भगवान ऐसे दलालों से पत्रकारिता को बचाए रखे तो ही भला है।

  15. A Rai

    January 21, 2010 at 9:21 am

    बकौल लकादू वह चार साल तक बिना वेतन पाए पत्रकारिता करते रहे लेकिन इतने कम समय में 20 लाख का मकान, चार लाख की कार कहां से आ गई। और जब पत्रकारिता में नहीं हैं तो नई नवेली कार में नया-नया कौन घूम रहा हैं जरा इस नए धंधे के बारे में भी बताओ लकादू

    ए राय गोरखपुर

  16. mukeesh kumar

    January 21, 2010 at 11:52 am

    sase sekhar je sayad awgat na ho lekin faizabad jile me laxmikant jaise kae reportar kam kar rhe hain jo kam kuch karte hai lekin ugahe aur bailine akhbar ka istemal kar rahe hai

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