दैनिक ‘राष्ट्रप्रकाश’ के प्रधान संपादक और मराठी ‘दैनिक देशोन्नती’ के समूह संपादक एसएन विनोद के बारे में नई पीढ़ी के बहुत कम पत्रकारों को पता होगा यही वो शख्स हैं जो दैनिक प्रभात खबर के संस्थापक व प्रथम संपादक रहे। करीब चार दशक के पत्रकारीय करियर में विनोद ने कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन कभी हारे नहीं। झंझावात आए पर अपने सकारात्मक व ऊर्जावान व्यक्तित्व के नाते वे कभी कमजोर नहीं हुए। इस बार हमारा हीरो कालम में एसएन विनोद से उनकी जिंदगी पर बात होगी।
एसएन विनोद की प्रोफाइल के बारे में संक्षेप में बता दें कि वे दैनिक ‘लोकमत समाचार’ के संपादक, दैनिक ‘नवभारत’ के संपादक, साप्ताहिक ‘सीनियर इंडिया’ के प्रधान संपादक, न्यूज चैनल ‘एस-1’ और ‘इंडिया न्यूज’ के संपादक रहे। करियर की शुरुआत में ‘पाक्षिक धारा’ के संपादक, ‘स्वतंत्रता’ के संपादक रहे। एसएन विनोद इन दिनों अपने करियर के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। यह है देश के पहले हिंदी विचार दैनिक राष्ट्रप्रकाश की लांचिंग। लांचिंग की तैयारियों व व्यस्तताओं के बीच एसएन विनोद लिखना जारी रखे हुए हैं। उनके नाम रोज कालम लिखने का एक ऐसा रिकार्ड स्थापित हो चुका है जिसे शायद कोई तोड़ पाए। अभी कुछ दिनों पहले ही एसएन विनोद ने अपना ब्लाग शुरू किया है, चीरफाड़ नाम से। इस ब्लाग में अखबारों में लिखे गए सामयिक मुद्दों वाले कालम के कंटेंट को देखा जा सकता है। इसी ब्लाग में एसएन विनोद ने अपने बारे में कुछ यूं बताया है-
‘तुम क्या बनना चाहते हो, इंजीनियर या डॉक्टर?’ बात तब की है, जब मैं सातवीं कक्षा उत्तीर्ण कर आठवीं में प्रवेश ले रहा था. यह वही काल था, जब देश की नयी पीढ़ी की दिलचस्पी इंजीनियर या डॉक्टर बनने के प्रति जोर मार रही थी. हम सभी छात्र स्कूल के हॉल में बैठे थे. प्रधानाध्यापक अपने सहयोगी अध्यापकों के साथ एक-एक विद्यार्थियों से उसकी पसंद पूछ रहे थे. परीक्षा में प्राप्तांक के आधार पर उन्हें विषय आबंटित करना था. इंजीनियर और डॉक्टर से प्रधानाध्यापक का मतलब था कि गणित लोगे या जीव विज्ञान.
माता-पिता की इच्छा थी कि मै इंजीनियर बनूं, मैं घर से सोचकर भी यही चला था लेकिन ….? जब मुझसे प्रधानाध्यापक ने पूछा कि ‘…. क्या बनना चाहते हो?’ ‘एडिटर’ …. अनायास, बेसाख्ता मेरे मुंह से निकल गया था. वहां मौजूद विद्यार्थी तो हंस पड़े, लेकिन प्रधानाध्यापक ने तब मुस्कुराकर टिप्पणी की थी : ‘हां, तुम एडिटर ही बनोगे …. अपने चाचा की तरह’. मैं पूरी ईमानदारी पूर्वक बता रहा हूं कि मेरा उत्तर पूर्वनिश्चयाधारित नहीं था. पत्रकारिता की पवित्रता और प्रभाव की तेज आभा से वशीभूत, अनायास मैं वह उत्तर दे गया था.
मेरे बचपन की यही इच्छा थी और मैंने यह पा लिया. अपने इच्छित को पाने की निरंतरता जारी है. अवरोध तो खड़े किये गये, पर मै डटा रहा. मेरे पत्रकारीय कैरियर की शुरूआत ही संपादक के रूप में हुई. पत्रकारीय मूल्य और सिद्घांत की जिन ऊंचाईयों को मैंने बचपन में देखा था, इनके रक्षार्थ पत्रकारों को कुर्बान होते देखा था, उसी राह पर चलने के अपने संकल्प पर आज भी कायम हूं. समय के परिवर्तित सामाजिक परिवेश में जब ‘पत्रकारीय मिशन’ को कोष्टïक में डाल कर चुनौती दी जा रही है, तब भी मैं इस मान्यता पर दृढ़ हूं कि पत्रकारिता आज भी मिशन ही है. बल्कि मैं समझता हूं कि आज पत्र और पत्रकारों का सामाजिक दायित्व और भी गुरूत्तर हो गया है. आजादी पूर्व का पत्रकारीय संघर्ष अगर स्वतंत्रता आंदोलन से गलबहियां कर रहा था, तो स्वतंत्रता पश्चात सर्वधर्म समभाव आधारित भारतीय लोकतंत्र के स्वरूप को संरक्षण और संवद्र्घन प्रदान करने की अहम भूमिका का निर्वाह कर रहा हैं. यह एक मिशन ही है. ‘पेशा’ संबंधी इसके चरित्र को चुनौती तो नहीं दी जा सकती, लेकिन पत्रकारों तथा इस पेशे में प्रवेश करने को इच्छुक विद्यार्थियों को यह अवश्य याद रखना चाहिए कि इस पेशे के साथ एक शब्द ‘पवित्र’ भी जुड़ा है. पेशे की पवित्रता ही अंतत: मिशन की सफलता का आधार तैयार करती है.
त्याग, ईमानदारी और निर्भिकता का वरण पत्रकारिता के उक्त चरित्र की पुष्टिï करता है. रक्षा करता है. राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विषमता के वर्तमान कालखंड में जब संपूर्ण राष्ट्र को अविश्वास, झूठ, फरेब और स्वार्थ के मकडज़ाल से उलझा दिया गया है, तब समाचार पत्र जगत के सैनिकों का दायित्व है कि वह इस जाल को तार-तार कर उसे मुक्त करें. यह उनका मिशनरी कर्तव्य है. मै समझता हूं कि दृश्य-अदृश्य अपरोधों के बावजूद पत्रकार इस कर्तव्य निर्वाह को सफलतापूर्वक अंजाम दे पायेंगे.
एक स्वस्थ-रचनात्मक ‘पत्रकारीय मंच’ की स्थापना के उद्देश के साथ पच्चीस वर्ष पूर्व 1984 मे छोटा नागपुर (अब झारखंड) की राजधानी रॉंची से दैनिक ‘प्रभात खबर’ के प्रकाशन के स्वप्न को मैंने साकार किया था. युवा जुझारू पत्रकारों की एक समर्पित टीम का रचनात्मक सहयोग अविस्मरणीय हैं. ‘प्रभात खबर’ अल्प काल में ही लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुंच गया. पत्रकारिता के प्रकाश स्तंभ राजेन्द्र माथुर के शब्दों में ”हिन्दी पत्रकारिता को विनोदजी की यह (प्रभात खबर) एक अमूल्य-क्रांतिकारी देन है.”
20 वर्ष पूर्व, अगस्त 1988 में नियति ने नागपुर (महाराष्ट्र) पहुंचा दिया. तब इस बात का तनिक एहसास नहीं था कि नागपुर में रच- बस यहीं का होकर रह जाऊंगा. लेकिन, नागपुर ने कुछ यूं बांधा कि सचमुच यहीं का होकर रह गया. वैसे 20 वर्ष एक लंबी अवधि को रेखांकित करता है, किन्तु ऐसा लगता है कि यह कल ही की बात है, जब 14 जनवरी 1989 को दैनिक ‘लोकमत समाचार’ की लोकार्पित किया. नए ‘पाठकीय मंच’ के माध्यम से पत्रकारिता को एक नई दिशा एवं नया तेवर देने का विनम्र प्रयास था वह. पाठकों एवं पत्रकारीय जगत ने उस प्रयास को स्वीकार करते हुए मुझे प्रोत्साहित किया था. यात्रा जारी रही. तब से आज तक की कालावधि में मराठी दैनिक ‘जनवाद’, हिन्दी दैनिक ‘नवभारत’ (भोपाल और नागपुर), सीनियर मीडिया ग्रुप (दिल्ली) के राष्ट्रीय टीवी न्यूज चैनल ‘एस-1’ तथा ‘ सीनियर इंडिया’ पत्रिका में प्रधान संपादक और टीवी न्यूज चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में संपादक का गुरुत्तर दायित्व निभाते हुए अब ‘देशोन्नति समाचार पत्र समूह’ के समूह संपादक के रूप में नई चुनौती स्वीकार की है. यह आपका सहयोग – समर्थन ही है, जिसके कारण मैं सफलता के प्रति पुन: आश्वस्त हूं.
साथ ही एक और नई चुनौती-देशोन्नति समूह के साथ संयुक्त उपक्रम के रूप में हिन्दी दैनिक ‘राष्ट्रप्रकाश’ के प्रकाशन की. नयी चुनौती इसलिए कि ‘राष्ट्रप्रकाश’ देश का पहला ऐसा समाचार-विचार दैनिक है, जो खबरों के माध्यम से पाठकों की सिर्फ जानकारी ही नहीं देगा बल्कि उनकी सोच-प्रक्रिया को ठोस आधार भी देगा. यह एक ऐसा दैनिक होगा, जो जारी परंपरा को तोड़ते हुए विश्लेषणात्मक खबरें प्रस्तुत करेगा. स्वस्थ पाठकीय मस्तिष्क को विचार-प्रक्रिया रूपी ईंधन प्रदान करेगा- बगैर किसी पक्षपात के,बगैर किसी पूर्वाग्रह के. निडर- निष्पक्ष पत्रकारिता का आदर्श मानक बन ‘ राष्ट्र प्रकाश’ एक नए विचार क्रांति का प्रेरक बनेगा. मीडिया पर मंडरा रहे विश्वसनीयता के संकट की समाप्ति की दिशा में ‘राष्ट्रप्रकाश’ ईमानदारी से प्रयत्नशील है. अविश्वसनीयता की कालिमा से दूर विश्वसनीयता की नई रोशनी का वाहक होगा ‘राष्ट्र प्रकाश’. इस नई लालिमा से आलोकित पत्रकारीय क्षितिज मीडिया जगत को प्रकाशमय रखेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.
मेरी लेखनी की प्रतिबद्घता इसी मिशन की सफलता के प्रति है जबकि लड़ाई में सब कुछ खोना पड़ता है. सिवाय पाठकों के विश्वास के. इसी विश्वास को अर्जित करने की दिशा में अग्रसर मैं ‘प्राप्ति’ के खाते में सिर्फ ‘विश्वास’ को जमा देख कर ही तृप्त हूं. खोने का खाता ‘रिक्त’ है, चूंकि सचमुच मैंने आज तक कुछ खोया ही नहीं है. पत्रकारीय जिंदगी में मैने अपने पाठकों का विश्वास अर्जित करने की इच्छा रखी, आज भी है, वह मुझे मिला, मिल रहा है. दूसरी कोई इच्छा रखी ही नहीं, सो खोने का सवाल ही नहीं उठता है?
वैसे जब कुछ नजदीकी यह चर्चा करते हैं कि इस पाठकीय विश्वास को अर्जित करने के संघर्ष में विनोद जी ने बहुत कुछ खोया है, तब मैं जिज्ञासावश अपने हौलखौल, उस कथित खोई हुई ‘चीज’ को ढूंढने की कोशिश करता हूं, मित्र निराश होते हैं जब मैं अपने खाली जेबें उनके सामने खोल देता हूं. स्वयं में संतुष्टï हूं कि मैने वैसा कुछ भी अर्जित ही नही किया जिसके खोने का गम कभी सताये.
हां, यह कहा जा सकता हैं कि इस भौतिकवादी युग में लगभग पाच दशक के संघर्ष के पश्चात आज भी मैं ‘देनदार’ ही हूं. खोने के नाम पर अगर कहना ही पड़े, तो यही कहूंगा कि वही सब खोया है, जो ईमानदार और सच्ची पत्रकारिता के लिए, पत्रकारिता के मूल्यों के रक्षार्थ अमूमन खोना ही पड़ता है.
अब तो बस एक ही इच्छा है, जो एक अमेरिकी पत्रकार की भी थी-
मेरी तमन्ना है कि
जब मेरी सांसें थमे
लोगों की जुबां से निकले
वह ‘पापी’ था
लेकिन पढ़ा और समझा गया
ये तो वो बातें हैं जो एसएन विनोद ने अपने बारे में अपने ब्लाग पर दर्ज की हैं लेकिन हम बताएंगे कई राज की बातें जिनसे जुड़े हुए हैं मीडिया के कई दिग्गज। तो, इंतजार करिए नए साल के पहले दिन का।
अगर आप एसएन विनोद से जुड़ा कोई प्रसंग बताना चाहते हैं या उनसे कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो हमें लिख सकते हैं- [email protected] पर मेल के जरिए।