Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

हिन्दी को साजिशन हिंग्लिश बनाया जा रहा (4)

अमरेन्द्र कुमारहिन्दी साहित्यिक भाषा के साथ-साथ बोलचाल की भी भाषा है। हमारे चलने-फिरने, देखने-सुनने, समारोह-उत्सव, पर्व-त्योहार और रोजमर्रा की घटनाओं की भाषा हिन्दी है, जिन्हें समाचारपत्र खबरों में छापते हैं। अब उन्हीं खबरों में हिन्दी के पत्रकार अंग्रेजी के शब्दों को बिना जरूरत के शामिल करते जा रहे हैं। इसका नतीजा होगा कि बोलियों के फूलों से सजे हिन्दी भाषा के गुलदस्ते की खूबसूरती समाप्त हो जाएगी। हिन्दी भाषा एक गुलदस्ता है। इसमें विभिन्न भाषाओं-बोलियों के रंग-बिरंगे फूल सुशोभित हो रहे हैं।

अमरेन्द्र कुमार

अमरेन्द्र कुमारहिन्दी साहित्यिक भाषा के साथ-साथ बोलचाल की भी भाषा है। हमारे चलने-फिरने, देखने-सुनने, समारोह-उत्सव, पर्व-त्योहार और रोजमर्रा की घटनाओं की भाषा हिन्दी है, जिन्हें समाचारपत्र खबरों में छापते हैं। अब उन्हीं खबरों में हिन्दी के पत्रकार अंग्रेजी के शब्दों को बिना जरूरत के शामिल करते जा रहे हैं। इसका नतीजा होगा कि बोलियों के फूलों से सजे हिन्दी भाषा के गुलदस्ते की खूबसूरती समाप्त हो जाएगी। हिन्दी भाषा एक गुलदस्ता है। इसमें विभिन्न भाषाओं-बोलियों के रंग-बिरंगे फूल सुशोभित हो रहे हैं।

अंग्रेजी के फूलों को अगर उसमें हम शामिल करते जाएंगे और गुलदस्ते के अन्य फूलों को निकाल बाहर करेंगे, तो उसका सौंदर्य ही समाप्त हो जाएगा। हिन्दी के पत्रकार इन दिनों यही कर रहे हैं। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिन्दुस्तान के 27 दिसम्बर 2008 के अंक में एक वाक्य और फिर शीर्षक देखें-

इस अंक के पृष्ठ 8 पर एक स्तम्भ ‘नक्कारखाना’ में व्यंग्य स्तम्भकार सूर्य कुमार पाण्डेय ने वाक्य की शुरूआत  की है- ‘सिचुएशन नार्मल-सी हो गयी है, मतलब पुराने कनफ्यूजन के दिन लौट आये हैं।’ इस स्तम्भ के व्यंग्य-आलेख का शीर्षक है- ‘फ्लैक्सिबल अखण्डता’। अब आप स्वयं सोचें की प्रारम्भिक पंक्ति में ‘कनफ्यूजन’ ‘नार्मल’ और ‘सिचुएशन’ अंग्रेजी शब्दों की क्या जरूरत थी ? क्या ‘दुविधा’ ‘सामान्य’ और ‘स्थिति’ शब्द नहीं लिखे जा सकते थे? ‘फ्लैक्सिबल अखण्डता’ की जगह ‘लचीली अखण्डता’ भी तो शीर्षक दिया जा सकता था।

मैंने पिछले आलेख में यह कहा था कि एक स्वस्थ और समृद्ध भाषा में अनावश्यक रूप से एक विदेशी भाषा के शब्दों को मिला देना शर्मनाक है। शर्मनाक इसलिए कि ये हिन्दी के पत्रकार हिन्दी को क्रियोल भाषा बनाने पर तुले हुए हैं। यह क्रियोलीकरण वास्तव में हिन्दी के लिए घातक है, क्योंकि हिन्दी को एक साजिश के तहत अंग्रेजी के द्वारा विस्थापित किया जा रहा है और हिन्दी को हिंग्लिश बनाया जा रहा है। इस कार्य में बहुराष्ट्रीय निगम लगे हुए हैं। हमारे आर्थिक ढांचे को तो गड्डमड्ड कर ही दिया गया है, अब हमारी भाषा-संस्कृति को भी तहस-नहस करने में अंग्रेजी के हिन्दी भाषा में लगातार अवतरित करने के माध्यम से जुटे हुए हैं। अगर हमारे समाचारों की भाषा ‘हिंग्लिश’ हो जाएगी, तो हमारी भाषा नष्ट होगी और तब रूपांतर से हमारी संस्कृति नष्ट होगी। इसे तहस-नहस करने में वही लगे हुए हैं जो पत्रकारिता के जरिये हिन्दी से अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं। बाजारवाद के नाम पर हिन्दी अखबारों के जो प्रबंधक अंग्रेजी शब्दों का समाचारों में प्रयोग करने के लिए आदेश दे रहे हैं, वे यह क्यों भूल जाते हैं कि चीन और जापान ने अपने बाजार के प्रसार के लिए चीनी और जापानी भाषा के लिए किसी अन्य भाषा का सहारा नहीं लिया और वे बढ़ते-फैलते बाजार में किसी से कम भी नहीं हैं।

हम पहले अखबारों में विचार देते थे, लेकिन अब हम अखबार को आकर्षक और मनमोहक बना कर बाजार में कम-से-कम पैसे में ग्राहक को विज्ञापन के बल-बूते पर बेंच रहे हैं। हमारी जानकारी में तो नहीं है, लेकिन अगर इन अखबारों को अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ाने और उन्हें चमकीला बना कर बिक्री का माल बनाने के लिए कहीं से सहायता-राशि मिलती हो, तो यह बात अविश्वसनीय नहीं है। पहले संपादकीय विभाग अखबारों के दफ्तर में महत्वपूर्ण और सम्माननीय होता था, उसी के इशारे पर सब होता था, लेकिन अब विज्ञापन विभाग ही शीर्ष पर हो गया है और वह संपादकीय विभाग में भी हस्तक्षेप करता है। हिन्दी के मीडियाकर्मी सिर झुका कर इसे स्वीकार करते हैं। बाजारवाद हमारी भाषा और संस्कृति को निगल रहा है और हम हिन्दी के पत्रकार उसके सामने अपनी भाषा और संस्कृति को उसका आहार बनने के लिए परोस रहे हैं।


इसके पहले के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें-  (1), (2), (3)

लेखक अमरेंद्र कुमार बिहार के सासाराम जिले के निवासी हैं। वे हिंदी के प्राध्यापक रहे, बाद में सक्रिय पत्रकारिता की ओर मुड़ गए। वे कई अखबारों और पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर रहे। अमरेंद्र जी ने पत्रकारिता पर कई किताबें भी लिखी हैं। उनसे संपर्क 06184-222789, 09430565752, 09990606904 के जरिए या फिर [email protected] के जरिए किया जा सकता है। This e-mail address is being protected from spambots, you need JavaScript enabled to view it

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement