ईद के दिन यह पत्र भड़ास4मीडिया के एक पाठक ने भेजा। उन्होंने अपना नाम व पहचान उजागर न करने का अनुरोध किया है। वे पत्रकार हैं। उनकी अपनी पीड़ा है। वे चाहते हैं कि उनकी बात भड़ास4मीडिया पर जरूर छपे। वे मीडिया हाउसेज के बासेज से कुछ कहना चाहते हैं। सवाल उठाना चाहते हैं। अगर लगे कि उनका सवाल जायज है तो उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। -एडिटर, भड़ास4मीडिया
स्वाधीनता और गणतंत्र दिवस के अलावा मीडिया में सिर्फ हिंदू त्यौहारों पर ही क्यों अवकाश या सवैतनिक अवकाश दिया जाता है। यह सवाल मीडिया में काम करने वाले गैर-हिंदू पत्रकारों और कामगारों के दिमाग में अक्सर उठता रहता है और कोई बोलता नहीं। बोले भी तो कैसे, अल्पसंख्यक जो ठहरे। चाहे ईद हो, क्रिसमस हो या महावीर जयंती, मीडिया में हिंदू त्यौहारों के अलावा किसी गैर-हिंदू पर्व पर और नहीं तो कम से कम उस धर्म के मानने वालों को तो अवकाश दिया ही जाना चाहिए। एक अलिखित आचार संहिता मीडिया प्रतिष्ठानों में बनी हुई है, जिसमें अल्पसंख्यक पिस रहे हैं। हिंदुओं के लिए राखी, भाई दूज और दूसरे पर्वों के लिए सवैतनिक अवकाश की व्यवस्था है, लेकिन जिन धर्मों के साल में मात्र दो त्यौहार ही होते हैं उन धर्मों के मतावलंबियों को मीडिया प्रतिष्ठान दो दिन की भी छुट्टी नहीं देते। आखिर क्यों?
मीडिया के तमाम प्रतिष्ठानों में सब धर्मों के मानने वाले काम करते हैं, लेकिन आश्चर्य कि कहीं भी गैर-हिंदू त्यौहारों पर अवकाश देने की कोई परंपरा नहीं। जबकि हिंदुओं के उन त्यौहारों पर, जब अखबार का प्रकाशन बाधित नहीं होता, जैसे होली-दीवाली पर होता है, सब लोगों को काम के बदले वेतन यानी सवैतनिक अवकाश दिया जाता है। इसमें धर्म की कोई बाधा नहीं होती, फिर गैर हिंदू त्यौहारों के साथ मीडिया प्रतिष्ठानों का यह रवैय्या क्यों है? इसे अनजाने में चली आ रही परंपरा नहीं कहा जा सकता, इसके पीछे कोई ना कोई कारण जरूर है और यह संभवत: अनजाने में ही चली आ रही सांप्रदायिक दृष्टि भी हो सकती है। संभव है कुछ मीडिया प्रतिष्ठानों में ऐसा सांप्रदायिक व्यवहार ना हो, लेकिन राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर के बहुसंख्यक मीडिया प्रतिष्ठानों में यह सांप्रदायिक और सौतेला व्यवहार गैर हिंदू पत्रकार और कामगारों के साथ हो रहा है और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने वाला मीडिया खुद यह सब कर रहा है।