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रिपोर्टरों, थोड़ा दिमाग भी लगाया करो

कांपैक्ट, इलाहाबाद में प्रकाशित खबर

‘विश्वविद्यालय में खंगाले जा रहे हैं माओवादियों के सूत्र’ शीर्षक से इलाहाबाद में अमर उजाला के टैबलायड अखबार ‘कांपैक्ट’ में एक खबर 16 फरवरी को छापी गयी, या कहें छपवायी गयी। खबर में बाइलाइन से नवाजे गए अक्षय कुमार की ‘खोजी पत्रकारिता’ का प्रदर्शन है।

कांपैक्ट, इलाहाबाद में प्रकाशित खबर

कांपैक्ट, इलाहाबाद में प्रकाशित खबर

‘विश्वविद्यालय में खंगाले जा रहे हैं माओवादियों के सूत्र’ शीर्षक से इलाहाबाद में अमर उजाला के टैबलायड अखबार ‘कांपैक्ट’ में एक खबर 16 फरवरी को छापी गयी, या कहें छपवायी गयी। खबर में बाइलाइन से नवाजे गए अक्षय कुमार की ‘खोजी पत्रकारिता’ का प्रदर्शन है।

इस खबर से मार्क्सवाद के बारे में पत्रकार की समझ, खुफिया एजेंसियों से पत्रकारों के गठजोड़ व अवैध खबरों की पैदाइश की प्रक्रिया को समझा जा सकता है। पिछले दिनों जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी द्वारा जारी पत्र में हमने अपने पत्रकार साथियों से अपील की थी कि नक्सलवाद जैसे गंभीर मसले पर रिपोर्टिंग करने से पहले हमें सतर्कता और सावधानी बरतने की जरुरत है। अगर हम ऐसा नहीं करते तो इसका खामियाजा जनता और उसके लोकतंत्र के लिए लड़ रही आवाजों को भुगतना पड़ता है। नए टैबलायड अखबार या नौसिखिए पत्रकार कह हम इस मामले को टालते हैं तो यह हमारी भूल होगी क्योंकि यह एक रुपए का अखबार छात्रों को अधिक सुविधाजनक रूप से मिल जाता है।

कांपैक्ट की इस खबर को इसलिए भी गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि इस नौसिखिए पत्रकार ने बीस-तीस साल के इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के इतिहास के खंगाले गए तथ्यों के आधार पर यह खबर बनायी जो उसके बस की बात नहीं है। और खबर की भाषा के हिचकोले बताते हैं कि उसको बताने वाला कोई खुफिया विभाग का आदमी है। मसलन “विश्वविद्यालय के एक विभाग के पूर्व अध्यक्ष ने सिवान में सर्वहारा वर्ग के समर्थन में ऐसा भाषण दिया कि उन पर निगाह रखी जाने लगी। वहां से लौटने के बाद उन्होंने विश्वविद्यालय में वामंपथी विचारधारा को फैलान का काम किया। इन लोगों के मार्क्सवादी नेताओं से सीधे संपर्क भी हैं।” इन लाइनों को पढ़ ऐसा लगता है कि सर्वहारा किसी विशेष उपग्रह का प्राणी है और मार्क्सवाद कोई छूआछूत की बीमारी। रही बात मार्क्सवादी नेताओं से सीधे संपर्क कि तो पत्रकार बन्धु को यह जान लेना चाहिए कि हमारे देश में भाकपा माओवादी प्रतिबंधित है न कि मार्क्सवाद या माओवाद। अगर मेरी इस बात का यकीन न हो तो किसी भी किताब की दुकान और विश्वविद्यालय के तमाम विभागों में इन विचारधाराओं की किताबों के जखीरे हैं। इस बात की जानकारी के बाद हो सकता है यह पत्रकार अगली खबर लिख दे कि किताबों की दुकानों और विश्वविद्यालय के विभागों में हैं नक्सली साहित्य के जखीरे।

दरअसल यह पत्रकार नहीं, उसको सूचना देने वाले पुलिसिया सूत्र के दिमाग की उपज है जिसमें उन लोगों ने इस तरह से तमाम लोगों को नक्सली साहित्य के नाम पर पकड़ कर जेलों में डाल दिया। पिछले दिनों पत्रकार और मानवाधिकार नेता सीमा आजाद को भी इसी तरह के झूठे आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया। पर एक पत्रकार और खुफिया विभाग के दिमाग और सोचने का तरीका तो एक नहीं हो सकता। मार्क्सवादी नेताओं से सीधे संपर्क पर अक्षय को कहां से जानकारी मिली, इसकी भी पुष्टि हम कर देते हैं। पिछले दिनों वरिष्ठ वामपंथी नेता कामरेड ज्योति बसु पर एक कार्यक्रम निराला सभागार में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम द्वारा कराया गया था। जहां सभी ने उनके बारे में और उनसे मुलाकातों के बारे में बात-चीत कर श्रद्वांजलि दी। पर खुफिया मित्र के लिए यह अचरज की बात थी कि इतने कद्दावर नेता से भला कैसे कोई मिल सकता है, कोई न कोई बात जरूर है और रही-सही कसर वहां ज्योति बसु को दी जा रही ‘लाल सलामी’ ने पूरी कर दी क्योंकि पिछले दिनों ‘लाल सलाम’ का नारा लगाने वालों को नक्सली कहने का इलाहाबाद की पुलिस और मीडिया वालों की आदत बन गयी है।

पत्रकार साथी को उस अपने परिसर सूत्र के बारे में भी जानना चाहिए और पूछना चाहिए कि वो कौन लोग और कौन संगठन थे। छात्र राजनीति या किसी भी विचारधारा की लोकतांत्रिक तरीके से राजनीति करने का अधिकार संविधान देता है। क्या इतनी समझ इस पत्रकार को नहीं है। हो सकता है न समझ में आए तो उसके लिए सरकारों द्वारा दिए जा रहे माओवादियों पर बयानों को गंभीरता से पढ़ने की जरूरत है। सरकार इतने दिनों से लाखों रुपए खर्च कर सैकड़ों प्रेस कांफ्रेंसों में इस बात को कहती रही है कि माओवादी लोकतांत्रिक राजनीति की मुख्यधारा में आएं। यानि कि वही विचारधारा या लोग प्रतिबंधित है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को नहीं मानते। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति विश्वविद्यालय जैसे जगहों पर मुख्यधारा में राजनीति करता है तो उसे कैसे प्रतिबंधित कहा जा सकता है। रहा मार्क्सवाद तो मार्क्सवाद एक गतिशील विचारधारा है जो किसी व्यक्ति में सोचने-समझने का नजरिया विकसित करती है। और सोचना समझना पत्रकारों के लिए बहुत आवश्यक है। कई पूर्व, वर्तमान शिक्षक, छात्र नेता निशाने पर हैं, इस बात को सिर्फ इस आधार पर नहीं कहा जा सकता कि वो मार्क्सवाद की समझ या उससे समस्याओं का राजनीति हल निकालते हैं।

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) की तरफ से  राजीव यादव, शाहनवाज आलम, लक्ष्मण प्रसाद, विजय प्रताप, अवनीश राय आदि की तरफ से जारी

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0 Comments

  1. Sapan Yagyawalkya

    February 25, 2010 at 8:54 am

    patrakaron ko kisi bhi samvedansheel vishay par likhte hue sanyam se kam lena chahiye. yah patrakarta aur patrakaron dono ke liye achchha hai. Sapan Yagyawalkya Bareli (MP)

  2. winit

    February 25, 2010 at 9:02 am

    Lekin JUCS Ke Sammanit PatraKaro ko Bhi Vastu Sthiti Ka Aakalan Karne K Baad Hi Apni Rai Rakhni Chahiye, Ap Logo Ka MaoVadiyo Ke Prati Ye Udaar Nazariya PurvaGrah se Grast Jyada Lagat Hai, Khufiya Tantro Ki Suchna Ko Bevajah Kharij Kar Ke Mao Ugravad Ko Badhava dena BHi uchit Nahi

  3. zia qureshi

    February 25, 2010 at 9:05 am

    sahi farmaya … kai noosikhye patrakar yeh bhool to karte hee hai ,ki police ya khufia vibhag kay logo ki idea per khabar banate hai , lakin jahan tak naxal mamlo ki reporting ka sawal hai us may bhi kai varist patrakar noosikhye ki tarah pesh aate hai. naxal prabhavit chattisgarh ki baat karu too yahan halat yeh hai ki kai reporter naxal mudde per police aur sarkar kay logo ki bhasha bolte sune jate hai. yeha kai patrkar manvadhikar ki usi paribhasha ka estemal karte hai jo police bolti hai , etna hee nahi manvadhikar ki baat karne walo ko police naxal samrthak batati hai too patrakar us per apni muhar lagne may deri nahi karte. mujhko lagta hai ki kai maslo per suchna ki kami , samajhdari ka abhav , aur gair nishpakch rukh ki vajah se patrakar dhoke se ya jaan bhoojh kar aisa karte hai , mera shujhav yahi hai ki sooch samjhkar , aur bina party bane khabar likhi jani chhahiye aur agar galti ka aabhas ho too usko shudharne ki disha may badhna sahi hoga.

    zia qureshi
    patrakar
    raipur
    chhattisgarh

  4. Mahabir Seth

    February 25, 2010 at 9:26 am

    good report

  5. rafat

    February 26, 2010 at 8:43 am

    जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) kee ye doosri chitthi saaf karti hai kee Allahabad mein patrakaro ke beech hee jung chidi hui hai. Waisa ye koi nai ya anotkhi baat nahi hai. Khabro mein exclusive kee daud mein har patrakar shamil hai. aur inme se kuch patrakar khabro ke saath aur bhee kuch paane ke liye bechain hain. Yashwant sajab aapke hee portal mein is tarah kee khabre aam hai. mere manna hai kee chichle patrakaron ke kalam ke sipahi bannein ka koi adhikar nahi hain. to saath mein main un kalam ke sipahion ko bhi is duniya se bahar jana chahiye, jo gut benakar apna varchasva kayam karnein kee firaq mein tatpar rehte hai.
    shukriya

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