Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

मेरठ के संपादकों ने किया समझौता

हमलावरों को दी माफी : मेरठ के वेंकटेश्वर इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में कवरेज करने गए मीडियाकर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटने वाले इंस्टीट्यूट संचालकों के खिलाफ अब कोई कार्रवाई नहीं होगी. दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिंदुस्तान के मेरठ संस्करण के संपादकों ने इंस्टीट्यूट संचालकों संग होटल में बैठक के बाद मामला रफा-दफा करने का फैसला ले लिया है.

हमलावरों को दी माफी : मेरठ के वेंकटेश्वर इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में कवरेज करने गए मीडियाकर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटने वाले इंस्टीट्यूट संचालकों के खिलाफ अब कोई कार्रवाई नहीं होगी. दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिंदुस्तान के मेरठ संस्करण के संपादकों ने इंस्टीट्यूट संचालकों संग होटल में बैठक के बाद मामला रफा-दफा करने का फैसला ले लिया है.

सूत्रों का कहना है कि बैठक में इंस्टीट्यूट संचालक ने अपनी गलती के लिए माफी मांगी और मीडियाकर्मियों को हुए नुकसान के लिए मुआवजा देने की बात कही. इंस्टीट्यूट संचालकों का कहना था कि जो भी हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण था और उन लोगों ने पहले ही दिन घटना पर खेद प्रकट करते हुए माफी मांगी थी और उनके इस पक्ष को सभी अखबारों ने प्रकाशित भी किया था. इंस्टीट्यूट संचालकों ने अखबारों के संपादकों से अनुरोध किया कि वे जो भी तय करेंगे, उन्हें मंजूर होगा पर इस मामले को आपस में ही निपटा लेना चाहिए. सूत्रों के मुताबिक इंस्टीट्यूट संचालक द्वारा पूरी तरह समर्पण किए जाने से पसीजे अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिंदुस्तान के संपादकों ने अपनी ओर से लाए गए पहले से बने-बनाए एक समझौता पत्र पर इंस्टीट्यूट संचालक से हस्ताक्षर करा लिए और खुद भी कर दिए. इस प्रकार मामला अब खत्म हो चुका है.

पर संपादकों द्वारा इंस्टीट्यूट संचालक से एकतरफा समझौता कर लेने से मेरठ के आम पत्रकार बेहद नाराज हैं. इन अखबारों के पत्रकारों का कहना है कि इंस्टीट्यूट संचालक को हर हाल में गिरफ्तार कर जेल भेजा जाना चाहिए क्योंकि उसे मीडियावालों से बिहैव करने की तमीज नहीं है. अगर इस इंस्टीट्यूट संचालक को गिरफ्तार नहीं कराया गया तो कल को कोई भी ऐरा-गैरा व्यक्ति मीडिया वालों पर हाथ उठाता दिख जाएगा और इस तरह से धंधई के इस दौर में मीडिया वालों की रही सही इज्जत भी खत्म हो जाएगी.

सूत्रों के मुताबिक इंस्टीट्यूट संचालकों को गिरफ्तार करने और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने की मांग को लेकर पत्रकारों ने वेस्ट यूपी के दौरे पर मेरठ आए यूपी के डीजीपी को ज्ञापन भी दिया. डीजीपी के सामने घायल पत्रकारों ने जख्मों की नुमाइश भी की. इस सबसे भावुक हुए डीजीपी ने हमलावर इंस्टीट्यूट संचालकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश डीजीपी को दिए. पर अब डीजीपी व अन्य पुलिस अधिकारी इंस्टीट्यूट संचालक के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हमलावर इंस्टीट्यूट संचालकों का संपादकों के साथ लिखित समझौता हो चुका है और यह समझौता पत्र पुलिस वालों के पास भी भेजा जा चुका है.

सूत्रों के मुताबिक इंस्टीट्यूट संचालकों ने मामला गंभीर होते देख अखबार प्रबंधन से गुहार लगाई और माफी मांगने व मुआवजा देने की बात कहते हुए मामले को खत्म करने की अपील की. इंस्टीट्यूट संचालकों ने प्रबंधन तक पहुंचने के लिए मध्यस्थ बनाया अखबारों के विज्ञापन प्रबंधकों को. इन विज्ञापन प्रबंधकों का पाला आमतौर पर इन इंस्टीट्यूट संचालकों से पड़ता है और इन इंस्टीट्यूटों के लाखों रुपये के विज्ञापन हर साल अखबारों में छपते हैं. प्रबंधन ने संपादकों को आगे किया और इन्हें पूरे मामले को स्व-विवेक से निपटाने के लिए कहा. इसके बाद तीनों अखबारों के संपादक पहले आपस में मिले. राय-मशविरा किया और अखबार हित में मामले को लंबा न खींचने का फैसला लेते हुए अपनी शर्तों पर समझौता करने का फैसला लिया. इसके बाद संपादकों व इंस्टीट्यूट संचालकों की बैठक मेरठ के एक होटल में हुई. इंस्टीट्यूट प्रबंधन द्वारा माफी मांगने और मुआवजा देने का ऐलान करने के बाद सहमति-समझौता पत्र पर सभी पक्षों ने हस्ताक्षर कर दिए.

इस हस्ताक्षर के बाद मेरठ की मीडिया में दो-फाड़ की स्थिति है. आम पत्रकारों का कहना है कि संपादकों ने पत्रकारों के हित की रक्षा नहीं की और समझौता करके पत्रकारों की पिटाई करने वाले इंस्टीट्यूट संचालकों को गिरफ्तार कर जेल भेजे जाने से बचा लिया. आरोप है कि इसके एवज में इंस्टीट्यूट संचालकों ने भविष्य में कई लाख रुपये का अतिरिक्त विज्ञापन तीनों अखबारों को देने वादा किया है. चर्चा है कि संपादक अपने पत्रकारों के हित की रक्षा करने की जगह अखबार को भविष्य में मिलने वाले आर्थिक फायदे के लालच में आ गए. इस तरह उन्होंने एक गंभीर मामले में संपादकीय दायित्व की जगह अखबार प्रबंधन के फायदे को तवज्जो दिया. इससे ओवरआल मीडिया की छवि पर बट्टा लगा है.

उधर, तीनों अखबारों के संपादकों से जुड़े लोगों का कहना है कि गल्ती सिर्फ इंस्टीट्यूट वालों की ही नहीं थी, जो पत्रकार गए थे, वे भी कम दोषी नहीं हैं. संपादक मंडल की मानें तो जिन पत्रकारों का झगड़ा हुआ है उनकी छवि बहुत अच्छी नहीं है. मर्यादा और शालीनता की सीमा अगर कोई पत्रकार लांघता है तो उसे भी नतीजा भुगतने को तैयार रहना चाहिए. संपादकों का कहना है कि अगर इंस्टीट्यूट संचालक खेद प्रकट कर रहा है, लिखित में माफी मांग रहा है, मुआवजा देने को तैयार है, आगे ऐसी स्थिति न आने का वादा कर रहा है तो उसे माफ कर देने में क्या बुराई है. इन संपादकों के मुताबिक अगर किसी वरिष्ठ पत्रकार से कोई झगड़ा हुआ होता तो उसे गंभीरता से लिया भी जाता. जिन लोगों से विवाद हुआ है उनकी साख को लेकर भी बाजार में कई सवाल हैं. ऐसे में आंख मूंदकर सामने वाले को ही खराब कहते रहने और उसे फांसी पर लटकाने की मांग करना उचित नहीं है. हमें अपने गिरेबां में भी झांकना चाहिए.

पर आम पत्रकार ऐसा नहीं सोच रहे हैं. इनका कहना है कि जो पत्रकार पीटे गए हैं, जो पत्रकार पीड़ित हैं, उनका दोष बस इतना है कि वे बेहद कम पैसे पर अखबारों के लिए काम करते हैं, उनका दोष इतना है कि वे अखबारों के स्थायी कर्मचारी नहीं हैं, उनका दोष इतना है कि वे स्ट्रिंगर व संवाद सूत्र हैं जिनका इस्तेमाल तो सभी मीडिया हाउस करते हैं पर उनके दुख में कोई उनका साथ नहीं देता, साथ देना तो दूर, ये मीडिया हाउस अपना संवाददाता तक नहीं बताते. इन पीड़ित पत्रकारों से सहमति लिए बगैर जो समझौता संपादकों ने कर लिया है, वह बेहद शर्मनाक है.

इसी प्रकरण पर मेरठ से एक वरिष्ठ पत्रकार ने मेल भेजा है. उन्होंने अनुरोध किया है कि उनका नाम न प्रकाशित किया जाए. वह मेल इस प्रकार है…

Big and Breaking Regarding Merrut journalist beaten by educational institute : PATRAKAR PITE….SAMPADAKON NE KI DEAL : some days ago journalists of different media organization was beaten by a local educational institute. In this incidence two or three journalist were hospitalised…. even when DGP visited merrut… journalist meet him and tell to take all necessry action… in reply DGP ordered DIG to arrest all persons behind this incidence….

Advertisement. Scroll to continue reading.

DIG came in action and arrested some persons…. but Editors OF THREE BIG NEWSPAPERS made a deal of big advertisements of around five lakh each newspaper… now senior police officials are abusing management and editors of newspapers to do so…. DIG told some reporters that when DGP was in Merrut Journalists show their injury and now management and editors are ashamed……

Deal finalised in Samrat Hotel of Merrut…….

it is a black chapter of journalism….

and it shows that jopurnalism of values has died… and all editors are just dalal…….. of their organization

Click to comment

0 Comments

  1. Rajnish Chauhan

    April 11, 2010 at 9:01 am

    पत्रकारिता में ये कैसी रात आई,
    पत्रकार पिट रहे और संपादको को लाज न आई,
    जिसने संसथान के लिए पीटने में भी गुरेज नहीं किया,
    उनकी कीमत लगाने में इन बड़ो ने भी परहेज नही किया|
    पत्रकारिता में ये कैसी काली रात आई||

    मेरठ के पत्रकारों की ये कैसी शामत आई,
    इन बड़ो के चक्कर में छोटे पिट रहे हैं भाई,
    लोगो की लडाई लड़ने वाला पत्रकार,
    अब खुद परेशान है,
    क्या करे एक तरफ कुआ है, तो दूसरी तरफ खाई है|

    खुद ऐ.सी. होटल में बैठ कर समझोता कराते हैं,
    फ़ोकट में तो बेचारे ये छोटे पिट जाते हैं,
    मेरठ के एक कॉलेज में भी ऐसा ही काला पाठ लिखा गया,
    जो कवरेज पर गया वो पिट गया और जो बाद में पहुंचा वो नेता बन गया|
    शर्म तो तब आई जब पता चला सेना लड़ने को तैयार थी,
    लेकिन सेनापतियो ने ही घुटना टेक दिया,
    बंद कमरे की गोलमेज पर आरोपी को कथित माफ़ी देकर छोड़ दिया|

    चाहता नहीं था कुछ लिखू, ये तो मेरा दर्द था जो कलम से बयाँ हो गया,
    सोचता था मैं पत्रकार हूँ मेरा सीर ऊँचा हो गया,
    मुझे क्या पता था इन उंचाइयो की कीमत ऐसी है,
    अब जाना तो खुद सीर नीचा हो गया||

    अब तो बस एक डर है कहीं अगला नंबर मेरा ना हो,
    फिर सोचता हूँ की मेरे पास तो बहुतो की हमदर्दी है,
    पता नहीं उन बडो के पास तो शायद वो भी ना हो|
    पत्रकारिता में ये कैसी काली रात आई…||

    Written By- रजनीश चौहान
    मेरठ
    छोटे पत्रकार
    9359051776

    Respected sir,
    This few lines i have written on the incident happens in meerut. Those who are victims no one asked them and the few ‘Bade Patrkaar’s’ make their own decision which brings ashame for journalism. And one more thing i want to clear that in this settlement not only reputed newspaper editors involved but also some of electronic media leaders or you can say leaders are there. I dont want to criticise the things, what i want is the transparency which is the major ethic of journalism.

    with regards
    from Rajnish Chauhan
    Meerut
    9359051776

  2. राजीव तिवारी

    April 10, 2010 at 5:09 pm

    जो संपादक बेनामी टिप्‍पणी लिखे उसके मुंह से मान मर्यादा जैसे शब्‍द शोभा नहीं देते। चलते-चलते सो जाने वाले लोग घटनास्‍थल के चश्‍मदीद भी होंगे तो भी उनकी आंखे बंद ही होंगी।
    अब ये भी बता दीजिए चश्‍मदीद जी कि उस इंस्‍टीटयूट के गार्ड का सिर पत्‍थर मारकर कौन से प्रेस फोटोग्राफर ने फोड़ा था। उस गरीब के भी चौदह टांके आएं हैं। आप किसी को पत्‍थर मारोगे और फिर पत्रकारिता की हेकड़ी दिखाओगे तो क्‍या सामने वाला आपकी पूजा करेगा।
    सच्‍चाई देखिए और लिखिए। लेकिन लिख नहीं सकते क्‍योंकि धंधा है और धंधे में सिर्फ धंधा देखा जाता है।

  3. sangh priy gautam

    April 10, 2010 at 3:54 pm

    ye samjota nahi media mai bete dalalo ka kam hai. jo apne aap ko bahaut bada sampadak kahte hai. is mamale mai samil ak congress ka neta to meerut hindustan ke ak reporter ko usake room par paisa dene aaaya. bola sal mai 20 karod ka ad. dete hai. is mamle mai amar ujala ,denik jagran , hindustan ke sampadak or logo ne mota paisa lekar ye samjota karaya hai. hindustan ke reporter se aaj sam ko deel hogi.

  4. ek dost

    April 10, 2010 at 8:46 am

    दोस्‍त राजीव तिवारी मैं नहीं जानता कि आप पत्रकार हैं या एंवई…। लेकिन आपकी बातों से तो यह कतई महसूस नहीं किया जा सकता है कि आपको उस प्रकरण में शारीरिक और मानसिक रूप से चोट खाने वाले पत्रकारों से कोई हमदर्दी है। दोस्‍त यहां मामला मुआवजे या पैसे का नहीं था सारी बात मान सम्‍मान का थी। जिसे अखबारों के संपादकों ने अपने निजी हितों के लिए बेच खाया। मुआवजा पाने के लिए तो उन पत्रकारों ने पिटाई नहीं खाई थी। मैं भी उस मौके पर मौजूद था और वहां कालेज प्रबंधन ने जिस तरह फोटोग्राफरों को बंद करके पिटाई की उसके विरोध में मेरठ के पत्रकार लामबंद हुए थे। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पत्रकारों के कैमरे चोरी नहीं हुए मारपीट कर छीन लिए गए थे। शायद मौके पर मौजूद आपका प्रत्‍यक्षदर्शी यह नहीं देख सका कि पत्रकारों के कैमरे के साथ मोबाइल भी छीन लिए गए और दर्जनभर से अधिक पत्रकारों को दौडा दौडा कर पीटा गया। इसके अलावा आपकी पूरी जानकारी के लिए बता दूं कि उनमें से भी किसी पत्रकार ने पूरे प्रकरण में कहीं पर भी मुआवजे के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया। मुआवजे की बात भी आपके संपादकों सॉरी मतलब कुछ अखबारों के संपादकों ने ही मामले को रफा दफा करने के लिए चलाई। उसमें भी शुरू से आखिर तक दो तीन पत्रकारों का ही नाम था डेढ दर्जन का नहीं। सवाल ये नहीं कि अखबार बडा है या छोटा अगर आप पत्रकार हैं कवरेज के लिए कहीं गए हैं और ऐसी घटनाएं होती ैं तो अपमान का जो दंश आप झेलेंगे उस पर गुस्‍सा और तीखी प्रतिक्रिया आना लाजिमी है। मगर तब जब आपके भीतर पत्रकार नामक व्‍यक्ति की आत्‍मा होगी। मैंने अपनी बात में सिर्फ उन संगठनों को कोसा है। जिनकी कमजोरी के कारण गली मोहल्‍ले और गांव देहात में काम करने वाले निरीह पत्रकार दबंगों और गुंडों से निरंतर खतरें झेल रहे हैं। रही बात टिप्‍पणी पर नाम लिखने या न लिखने की तो दोस्‍त मेरी मंशा हालत पर राजनीति करके रोटी सेंकने की नहीं बल्कि उस पत्रकारिता की मर्यादा को कायम रखने की है जिसे मैं कई दशकों से जी रहा हूं। अगर नाम बता दूंगा तो हो सकता है आप जैसे वो लोग खुद सोचने पर मजबूर हो जाएं कि आप तंज करने लायक भी हैं या नहीं। जहां तक बात जाहिलों और गंवारों को पत्रकार बनाने की है तो ऐसे लोगों का शोषण करके अपने अखबार को बडा कहने का सुख कौन भोग रहा है। और इसके लिए क्‍या संपादक खुद जिम्‍मेदार नहीं। वैसे आपकी याद़दाश्‍त के लिए बताऊं कि आज इस बाजार में एक और दो नंबर के जो भी अखबार हैं उन्‍हें संपन्‍नता देने में उन लोगों की भूमिका सबसे ज्‍यादा रही है जिन्‍हें आप अनपढ गंवार और जाहिल जैसे रुतबों से नवाज रहे हैं। लिखना बहुत कुछ चाहता हूं पर जवाब तर्कों के दिए जाते हैं कुतर्कों के नहीं।

  5. shryeas

    April 9, 2010 at 6:53 pm

    ये तो बड़ी विचित्र स्थिति है। आज इन बड़े अखबारों के संपादक और पत्रकार पीटे गए पत्रकारों को पत्रकार माने जाने से इनकार कर रहे हैं, लेकिन जो पत्रकारों की राजनीति कर रहे हैं क्या वो बताएंगे कि मेरठ प्रेस क्लब का पीटे गए इन पत्रकारों में कौन सदस्य नहीं है। क्या कभी यह प्रयास हुआ है कि पत्रकारों के नाम पर धंधा कर रहे लोगों को इस धंधे से बाहर करने के लिए इनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की जाए। या फिर यह लड़ाई छोटे और बड़े अखबारों की है। क्या छोटे अखबार अखबार नहीं हैं? यदि ये पत्रकार नहीं थे तो इनकी तरफ से इन तथाकथित संपादकों को समझौता क्यों करना पड़ा। पीड़ित खुद ही अपने मामले को देख लेते। दूसरी बात यह है कि पुलिस को पीड़ितों की एफआईआर पर कार्रवाई करनी चाहिए न कि उनके नेता बनकर आए लोगों द्वारा किए गए समझौते को मानना चाहिए?

  6. P.JOURNALIST

    April 9, 2010 at 5:01 pm

    khabar mili hai sampadko ki is dalali ke virodh me merut me sahara ke camera man shakal ji ne press club se istifa de diya hai or uske baad dainik prbhat I-Next news pepar sahit kai patrkaaro ne press club se istifa de diya hai shayad ab to patrkarita ka souda kane walo ko kuch sharam aaye

  7. AJAY

    April 9, 2010 at 5:10 pm

    AB TO MEDIA PAR HAMLE AUR BADANGE

  8. AJAY

    April 9, 2010 at 5:13 pm

    XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX

  9. chauthisatta

    April 9, 2010 at 4:19 pm

    सड्क पर जूते मारो, बन्द कमरे माफी…… आखिर कब तक चलेगा|

  10. Prateek Abhay

    April 9, 2010 at 3:14 pm

    meerut ke photographaro ne apni pitai ke paise bata diye ha .ab hame maro aur list ke hisab se payment kar do. satish yadav

  11. Prateek Abhay

    April 9, 2010 at 3:42 pm

    Ye to hona he tha….. aaj ek patrakar ke halat lala ke dukan me kaam krne wale ek naukar se bhe buri ho gaye hai, anaaj CHUHEY khaa jate hain or CHOR naukar ko samjha jata hai. is mamle me bhe aisa he kuch hua, aage kya kahun aap khud samajhdar hain…….

  12. Rakesh bhartiya

    April 9, 2010 at 12:19 pm

    yadi patrkaro ki chavi kharab thi to sampadkno ney madysathta kyo ki…yadi education sanstan mafi maang raha tha gidgida raha tha too acha hota ki sabi pidit patrkarno ko bulaya jata…….marketing key logo ko bhi patrkaro ko saath lekar chalna chaiye…….sampdak gano ney kis majburi mey laachari dhikayi ho magar issey patrkatia hi shermshar hui hai !

  13. राजीव तिवारी

    April 9, 2010 at 11:33 am

    ये रिपोर्ट जिस अनामी संपादक/पत्रकार की है टिप्‍पणी भी उन्‍हीं की है लेकिन उनमें इतना साहस नहीं है कि वह अपने नाम से लिख सकें। ये वह खुद ही तय करें कि ये कौन सी पत्रकारिता है। अनाम बनकर लिखना पत्रकारों का नहीं कायरों और बुझदिलों का काम होता है।
    सबसे बड़ा सवाल ये है कि पत्रकारिता में आज अनपढ़, जाहिल और कालाबा‍जारिओं ने बड़ी संख्‍या में प्रवेश पा लिया है। इस घटना में भी एक प्रत्‍यक्षदर्शी पत्रकार ने कहा कि कैमरे सिर्फ दो लोगों के गायब हुए लेकिन कम से कम डेढ़ दर्जन छायाकार/पत्रकार अपना कैमरा चोरी होने का दावा करते हुए मुआवजे/क्षतिपूर्ति के लिए लार टपका रहे हैं। इसे आप क्‍या कहेंगे?

  14. sunit rathi

    April 9, 2010 at 8:36 am

    sahi kaha hai teeno newspapers ke sampadako ne dalal ka kam kiya hai. par ve bhool gaye ki gujre time me unki hasiyat bhi is ghatna me pitne wale patrakaron jaisi thi. rupayon ki chamak ke aage ve pitne walon ka dard bhool gaye. bas yad raha to paisa.

  15. ek dost

    April 9, 2010 at 9:19 am

    जब संगठन बौने हो जाएंगे और उसका झंडा थामकर आगे चलने वालों की धार मोथरी हो जाएगी तो कमान ऐसे लोग ही संभालेंगे जो अखबारों में खबर की बजाय व्‍यवसाय के हितों पर ज्‍यादा ध्‍यान देते हैं। संपादकों की अपनी मजबूरियां हैं पर संगठनों के वे लोग कहां हैं जो पत्रकारों के हितों की रक्षा के नाम पर शासन प्रशासन के नजदीक कुर्सियां घेरकर बैठे दिखाई देते हैं। आज जो संपादक हैं वो शुरू में कहीं न कहीं ऐसे ही स्ट्रिंगर रहे होंगे। लेकिन बंद एसी कमरों और पत्रकारिता के इतर की जिम्‍मेदारियां सोच इस तरह बदल दें कि गली कूचों और गांव देहात में काम करने वाले पत्रकार बेहैसियत हो जाएं तो यह दुखदायी है। आज के हालात से साफ हो गया है कि संपादक नाम की जिस संस्था का विशेष सम्‍मान होता था वो स्‍वर्गीय राजेन्‍द्र माथुर के साथ ही अपना अस्तित्‍व खो बैठी है। सडक पर खबरें ढूंढने वाले पत्रकार की शक्ति उसके पीछे खडे अखबार के वरिष्‍ठ साथी होते हैं। प्रशासन की मदद की भी दरकार रहती है, पर आज जब वरिष्‍ठ अधिकारियों के सामने पत्रकार पीटें जाते हैं और वरिष्‍ठ पत्रकार अपने ही शिकार हुए पत्रकार बंधुओं की हैसियत का फजीता कर रहे हों तो पत्रकार कितना सुरक्षित है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन निराशा इसलिए नहीं होनी चाहिए कि बदले हुए हालातों में विरोध का जज्‍बा रखने वालों की कमी नहीं है। ऐसे पत्रकारों को हिम्‍मत हारने की जरूरत नहीं जो वास्‍तव में खबर की जद़दोजहद में जोखिम ले रहे हैं। पेशे के प्रति ईमानदारी उनकी ऐसी ताकत है जो उन्‍हें कभी कमजोर नहीं पडने देगी। पिछले कुछ घंटों में पत्रकारों के साथ दो तीन घटनाएं हुईं। वेंकटेश्‍वर प्रकरण के अलावा नौगजा में भी फोटों खींचते फोटो पत्रकारों को दौडाया गया और उनसे हाथापाई की गई। आज सुबह दौराला थाने में एक दरोगा ने पत्रकार को थाने में घुसने पर हडकाया ये घटनाएं और भी होंगी अगर पत्रकार समूह चुप्‍पी साधे रहा, विरोध की एक आवाज उठती है तो उसका संदेश दूर तक जाता है और समाज में गडबडियां फैलाने वालों को लगता है कि पत्रकार कमजोर नहीं है। सच्‍चाई ये है कि सही मायनों मे पत्रकार वो है जो खबर के लिए जोखिम ले रहा है न कि वो जो उनकी पत्रकारिता को कटघरे में खडा कर रहा है। ऐसे लोगों की कैटेगरी बदल गई है। अब उन्‍हें एडिटोरियल मैनेजर माना जाता है।

  16. mukeshgoel

    April 9, 2010 at 8:32 am

    patrkaro ko peeto aur fir mafee maango. tareeka badiya he.

  17. yogi

    April 11, 2010 at 6:06 pm

    विचित्र हालातों में कोई टीका-टिप्पणी भी क्यां करें। यह मीडिया के इतिहास का काला पन्ना है। भूतकाल अच्छा था, वर्तमान बिगड़ चुका अब भैया भविष्य तो सुधार लो।

  18. Nitin

    April 12, 2010 at 11:24 am

    Nice wbsite… 🙂

  19. राम बाबु गुप्ता

    April 12, 2010 at 7:53 pm

    मेरठ प्रेस क्लब से इस्तीफा देकर शाकल भाई ने बहुत अच्छा कदम उठाया है और इस कदम में हम उनके साथ है

  20. ABHISHEK KUMAR SINGH STUDENT BJMC IIMT MEERUT

    April 12, 2010 at 8:16 pm

    Bahut saram ki baat hai media- media ka dusman hai.PAISA BOLTA HAI………

  21. Hemant Tyagi Journalist

    April 13, 2010 at 6:47 am

    Randi ka kotha ban chuke hai kuch bade akhbaar, malik bane hai kothey ki khala jinhe sirf paisa dikhai deta hai. sampadak ban gaye kothey bhaduwey.To aisa hi hoga patrakaro ke saath.

  22. yogi

    April 13, 2010 at 7:08 pm

    कई सम्मानजनक लोगों के चेहरों से अपमानजनक अंदाज में मुखौटा उतर गया। बताया जाता है कि मेरठ के मीडियाकर्मियों में भारी आक्रोश बना हुआ हैं। अब तक सम्मान पाते आ रहे मीडिया के लोगों ने निहित स्वार्थ के लिये भविष्य में इतना कुछ खो दिया जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकते। बहुत बेइज्जती हो रही है। जिन्हें वह छोटे पत्रकार बता रहे हैं शायद वो भी गरिमा को बचाते हुए काम करते। बेशर्म इतने बड़े हैं कि साथी पत्रकारों के बीच आकर कुछ बोल भी नहीं रहे। या शायद उन्होंने खा इतना लिया कि डकार भी नहीं आ रही। पुलिस वाले भी कह रहे हैं कि जब पत्रकार डीजीपी के सामने शर्ट उतारने की बात कहकर विरोध करने की बात कर रहे थे, लेकिन अब उनके सीनियर तो शिक्षा माफिया के आगे अपनी पैंट ही उतार आये। पुलिस अधिकारी एक-दूसरे को ऐसे एसएमएस करके मजाक बना रहे हैं। इस घटनाक्रम के बाद प्रेस क्लब में भी हंगामा हैं इस्तीफों का दौर चल रहा है। अध्यक्ष कोई तीर नहीं चला पाये। हां-हां में ही उन्होंने अपना पूरा वक्त बिता दिया। अज्ञात कारणों से झलक रही उनकी रईसी सभी को दिख रही है। पत्रकार जगत की इज्जत का जनाजा ही निकाल डाला। लगता नहीं यह बवाल इतनी जल्दी थम जायेगा। जो राजनैतिक दल, पुलिस अधिकारी व व्यापारी नेता पत्रकारों के साथ खड़े थे वह भी संपादकों को कोस रहे हैं। उनके अपने संस्थानों के लोग मुंह पर तो बोल नहीं सकते भई नौकरी करनी, लेकिन पीछे से संपादकों की बखिया उधेड़ी जा रही है। कहते रहें अपने आप को बड़ा पत्रकार? अरे सभी जानते हैं कि समझौता तो होना ही था, लेकिन कुछ ऐसा तो कर देते कि सभी का सम्मान बच जाता। किसी ने पंच बनाया नहीं ओर सरपंच बनकर ऐसे लोग पहुंच गए जिनका सीधे कोई वास्ता नहीं रहा। शर्म की बात देखिए जो फोटोग्राफर पत्रकार पिटे उन बेचारों को पूछा तक नहीं गया। हां उनके नाम पर दलाली जरूर हो गई। उनकी पिटायी की कीमत ठेकेदारों को लेते हुए शर्म नहीं आयी। एक कथित वरिष्ठ पत्रकार जो अमर उजाला संपादक के रिश्तेदार हैं पर तो आरोप है कि उन्होंने 25 हजार रूपये इस बात के झटक लिये कि उनका भी फोटोग्राफर पिटा था। उनका यह झूठ चल भी गया, मगर अब कालिख पुत रही है। ऐसे लोग यह कहकर अपनी बेशर्मी को सम्मान में बदलने की नाकाम कोशित कर रहें हैं कि हमाम में सब नंगे हैं। अपने विवके से वह ठीक हैं नंगों को नंगे ही दिखायी पड़ते हैं। थोड़े लालच पर उन्होंने अपने साथ ओरों का चीरहरण भी करवा दिया। सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि क्या पूरी पत्रकार बिरादरी गलत है केवल चंद लोग ठीक हैं बहुमत से सरकार भी बनती है फिर बहुमत तो उनके खिलाफ हैं? पूरे घटनाक्रम में पुलिस ने पूरा सहयोग दिया 307 में मुकदमा लिखा ओर डीआईजी अखिल कुमार ने क्रास एफआईआर तक नहीं होने दी। डीजीपी ने भी पत्रकारों को 24 घंटे मे गिरफ्तारी का आश्वासन दे दिया था मगर उससे पहले ही कुछ सीनियर की लार टपक गई।

  23. ek chota press photographer ankit

    May 13, 2010 at 9:14 am

    rajnish bhai jo likha he wo bilkul sach he me bi ek press photographer re chuka hu or mere saat bi kafi bar paange hue lekin sabhi chote log te (mera matlab vigyapen party nahi ti) teb hamare boss hamere liye police, neta sabhi se lade liya kerte te lekin jaha vigyapen party sabdh likh diya jata ta waha humhe hi chup kiya jata he ku kuki add. department in news paper ki kimat lagwa lete he chaye koi neta ho koi badmash ho sab humare boss ko kimat vigyapen ke rup me de dete he or ye press club kya kerega jab iska maha mantri police ne pita ta public ne bi pita ta teb ye us so ke khilaf kuch nahi ker paye to ek chote se photographer ya patrkar ke liye kya kerrge ye sab bhi to paiso ke liye hi kaam ker rahe he.

  24. ek chota press photographer ankit

    May 13, 2010 at 9:16 am

    ek patrkar ko 10,000/- diye gaye te ghar jaker

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement