हिंदी-अंग्रेजी के ब्लागर प्रिंट-टीवी के अनजान-महान पत्रकारों-संपादकों की हर हरकत पर तगड़ी नजर रखे हुए हैं। दुनिया भर की खबर लेने-देने वालों की खबर लेने का काम आजकल ये ब्लागर करने लगे हैं। तभी तो इन ब्लागरों से अब बड़े-बड़े तुर्रम खां टाइप संपादक भी डरने लगे हैं। कइयों ने तो पालिसी बना ली है कि दिन दूनी-रात चौगुनी गति से फल-फूल रहे इन ब्लागरों के लिखे-कहे को इगनोर करो वरना ये बर्र के छत्ते जैसे हैं, जितना छेड़ोगे, उतने ही संगठित तरीके से काटे-बकोटे जाओगे। ताजा मामला टाइम्स आफ इंडिया, अहमदाबाद का है। यहां पूरा का पूरा एडिट पेज रिपीट हो गया है।
ब्लागर भाई लोगों ने इस ‘ऐतिहासिक गलती’ को ‘ऐतिहासिक तरीके’ से ‘पकड़’ लिया है। मतलब, 15 जून को जो एडिट पेज छपा था, वही 16 जून को छपा है। केवल तारीख अपडेट है। ब्लागरों ने गलती पकड़ ली है तो जाहिर सी बात है कि ये भाई लोग अब चीख-चीख कर दुनिया को बताने में जुट गए हैं कि देखो, इस नामी-गिरामी अखबार में काम करने वाले नामी-गिरामी पत्रकार-संपादक कितने जाहिल टाइप के हैं कि ये जाहिलों से बड़ी मूर्खताएं करने लगे हैं। और ब्लागरों के लिखे पर जनता ने भी हां में हां मिलाते हुए जमकर कमेंट किया है। किसी ने गंगू तेली नाम से कमेंट किया है कि – ”वाह गुरु…साबित कर दी समझदारी। भगवान अखबार वालों को अक्ल दे।” तो किसी रंजन ने टिप्पणी की है- ”समय पर तनखा नहीं दोगे तो ऐसे ही छापेंगे…मजेदार।” मतलब ये कि ब्लागरों ने इस गलती को पकड़कर फिर इस गलती पर विमर्श कर परनिंदा लाभ जमकर उठाया है। और यही है ब्लागिंग का सुख।
वैसे, टीओआई, अहमदाबाद के आज के अंक में फ्रंट पेज पर स्थानीय संपादक की ओर से यह कहते हुए खेद प्रकट किया जा चुका है कि 16 जून के अखबार में 15 जून के एडिट पेज का कंटेंट रिपीट हो गया है।
जो लोग प्रिंट मीडिया के हिस्से हैं या रह चुके हैं, वे जानते हैं कि पूरा का पूरा पेज रिपीट होना भले ही बहुत बड़ी गलती हो लेकिन यह तकनीकी या फिर मानवीय चूक है और इस चूक में बेचारे संपादक की कोई खास गलती नहीं। संपादक ने तो रोज की तरह उस दिन भी नया एडिट पेज बनवाया होगा। उसे चेक किया या कराया होगा। उसे फाइनल प्रिंट के लिए ओके किया या कराया होगा। संपादक तकनीकी रूप से दोषी इसलिए हो सकता है कि वह न्यूज रूम का मुखिया है और अखबार में हुई कोई गलती टीम लीडर के नाते नैतिक रूप से उसी की होती है। या फिर इसलिए भी कि संपादक महोदय को रात में ही गलती को पकड़ने व सुधारने की कवायद कर लेनी चाहिए थी। पर अगर न्यूज सेक्शन (एडिटोरियल डिपार्टमेंट) ने ताजा पेज प्रिंट होने के लिए दिया हो लेकिन प्रिंट देते वक्त या प्लेट बनाते समय या प्रिंटिंग के लिए प्लेट मशीन पर चढ़ाते समय किसी गैर-न्यूज कर्मी (प्रोडक्शन डिपार्टमेंट) की गलती से पुराना पेज चढ़ा दिया गया हो तो इसमें संपादक की गलती कहां है!
टाइम्स आफ इंडिया, अहमदाबाद में एडिट पेज रिपीट होने के मामले में सच्चाई क्या है, यह तो नहीं पता लेकिन हिंदी ब्लागरों ने टीओआई, अहमदाबाद के संपादक को गरियाना शुरू कर दिया है। इस गलती के लिए संपादक को ही जिम्मेदार ठहरा दिया गया है। कुछ ब्लागरों ने लंबा-चौड़ा आलेख लिख डाला है और इस गलती के लिए दोष संपादक पर मढ़ते हुए उसे तुरंत निकाल बाहर करने की मांग भी कर डाली है। संभव है, मीडिया की बाहर की दुनिया के लिए संपादक और पत्रकार ही दो ऐसे पद व नाम हैं जिसे किसी अखबार या मीडिया हाउस का प्रतिनिधि माना जाता है इसलिए किसी भी छोटी से बड़ी गलती के लिए इन्हीं संपादक और पत्रकार को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
आप बताइए, क्या पेज रिपीट होने के लिए संपादक को जिम्मेदार माना जाना चाहिए? अगर आप प्रिंट मीडिया के हिस्से हैं या हिस्से रहे हैं तो क्या आप बता सकते हैं कि पूरा का पूरा पेज (तारीख छोड़कर) किन स्थितियों में रिपीट हो सकता है? आपके अनुरोध पर आपका नाम गुप्त रखा जाएगा। मेल [email protected] पर करें।
टीओआई अहमदाबाद के मामले में हिंदी ब्लागरों के तेवर और इरादों को जानने-समझने के लिए आप इन लिंक पर क्लिक कर सकते हैं-