दिल्ली के रायसीना रोड पर स्थित प्रेस क्लब आफ इंडिया में बगावत जैसी स्थिति पैदा हो गई है। क्लब के महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ की हरकतों से खफा क्लब के कई पूर्व और मौजूदा पदाधिकारी अब एकजुट होकर ‘पुष्पेंद्र हटाओ अभियान’ चलाने में जुट गए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 28 जून रविवार को दिन में जो कुछ हुआ उसके बाद से क्लब के कर्मचारी संगठन और क्लब के अन्य पदाधिकारी सकते में आ गए हैं। अभी तक लोग दबी जुबान से पुष्पेंद्र की कथित तानाशाही का विरोध करते थे लेकिन रविवार की घटना के बाद से सभी खुलकर बोलने लगे हैं।
रविवार के दिन क्लब खुलने के दो घंटे के अंदर ही 40-50 लोगों के साथ कपूर नामक एक शख्स गेट पर पहुंचा और खुद को प्रेस क्लब चलाने का ठेका दिए जाने की बात कहते हुए अपने आदमियों को किचन, बार काउंटर और स्टोर में काम करने के लिए रवाना कर दिया। कपूर के आदमियों ने इन जगहों पर कार्यरत कर्मचारियों से चाभी लेकर इन लोगों को घर जाने को कह दिया। क्लब के कर्मचारी हतप्रभ। कर्मचारियों ने अपनी यूनियन के पदाधिकारियों को सूचना दी। कर्मचारी संगठन के लोग क्लब पहुंचे और कपूर से बात की तो कपूर पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ का नाम लेते हुए और खुद को क्लब चलाने का ठेके दिए जाने की बात कहते हुए बदतमीजी पर उतर आया। कपूर के आदमी क्लब के कर्मचारियों से हाथापाई करने लगे। कर्मचारी यूनियन के लोगों ने इसका विरोध किया और मामले की जानकारी पुलिस को दी। पुलिस आते देख और क्लब में भारी विरोध को महसूस कर कपूर और उसके आदमी निकल तो गए लेकिन तब तक क्लब की शालीन परंपरा कलंकित हो चुकी थी। बताया गया कि पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने खुद अकेले फैसला लेकर क्लब चलाने का ठेका किसी बाहरी एजेंसी को दे दिया।
सूत्रों का कहना है कि इस सारे तमाशे के बाद पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ क्लब पहुंचे तो वहां मौजूद लोगों ने बाहर के आदमियों को क्लब चलाने का ठेका देने के संबंध में जानकारी चाही तो पुष्पेंद्र हत्थे से उखड़ गए। वे अभद्रता पर उतारू हो गए। पुष्पेंद्र ने अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि वे क्लब के महासचिव होने के नाते जो चाहे कर सकते हैं और उन्हें कुछ करने के लिए किसी से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। इस घटनाक्रम के बाद क्लब के ज्यादातर सदस्यों में नाराजगी फैल चुकी है। क्लब के नए और पुराने पदाधिकारी पुष्पेंद्र को हटाने का मन बना चुके हैं। इसके लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जाएगा। पुष्पेंद्र के विरोध में खुलकर आने वालों में मौजूदा कोषाध्यक्ष नदीम, पूर्व अध्यक्ष राहुल जलाली, सीनियर मेंबर जावेद फरीदी, दिनेश तिवारी आदि हैं। इन सभी लोगों ने पुष्पेंद्र पर जो आरोप लगाए हैं, उनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
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प्रेस क्लब में गैर कानूनी कार्य संचालित कराना
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लेन-देन का हिसाब किसी को न देना
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सारे लेन-देने खुद अपनी मर्जी और खुद के हस्ताक्षर से करना
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क्लब से संबंधित सभी संवेदनशील डाक्यूमेंट्स अपने पास रखना
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धांधली उजागर न हो जाए इस डर से कई वर्षों से आडिट न कराना
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नए सदस्य न बनाने के नियम के बावजूद चहेतों को मेंबरशिप देना
प्रेस क्लब आफ इंडिया के वरिष्ठ सदस्य और दिल्ली पत्रकार संघ के महासचिव जावेद फरीदी ने बी4एम को बताया कि पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ पिछले तीन साल से लगातार नए लोगों को क्लब का मेंबर बना रहे हैं जिनमें से कई तो पत्रकार ही नहीं हैं। इन सदस्यों की संख्या 500 के करीब हो चुकी है। इन्हीं लोगों के वोट से वो जीत रहे हैं। जावेद के मुताबिक आप बाहर गिलास भी खरीदते हैं तो उसकी एक रसीद मिलती है। पर आपने पूरा का पूरा क्लब किसी को चलाने के लिए दे दिया और इसका कहीं कोई एग्रीमेंट तक नहीं है। जब कपूर और उनके लोग आए तो उनसे यही कहा गया कि अगर क्लब चलाने का ठेका उन्हें मिला है तो वे एग्रीमेंट दिखाएं। पर वे लोग एग्रीमेंट नहीं दिखा सके। इसी कारण हम लोगों ने कपूर व उनके आदमियों को भगा दिया। क्लब में कोई कमर्चारी तीस साल से काम कर रहा है तो कोई 40 साल से। आप एक झटके में इनके पेट पर लात मार रहे हैं। वैसे भी, कोई निर्णय सामूहिक रूप से लिया जाता है। इसकी एक प्रक्रिया होती है। आपके मन में जो आए, आप वही कर दें, ये तो तानाशाही है। पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के कार्यकाल के बारे में जावेद फरीदी कहते हैं कि तीन साल पहले यह क्लब कुछ लाख के प्राफिट में था। तीन साल बाद क्लब पर अब करोड़ रुपये की देनदारी हो गई है। यह भी तब है जब सारा खाना-पीना कैश हो रहा है, कुछ भी उधारी नहीं है। यह गलत है और इसका हर हाल में विरोध किया जाएगा।
‘पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ हटाओ’ अभियान के बारे में प्रेस क्लब के कोषाध्यक्ष नदीम अहमद काजमी ने बी4एम को बताया कि पुष्पेंद्र को हटाने के लिए क्लब के आम सदस्य हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं जिसको हम लोगों ने समर्थन दिया है। नदीम कहते हैं कि उन्होंने कोषाध्यक्ष के बतौर कई बार पुष्पेंद्र को पत्र लिखकर इस बात का विरोध किया है कि वे बड़े फैसले बजाय कमेटी की मीटिंग में पारित कराने के, खुद के स्तर पर ले लेते हैं जो अनैतिक ही नहीं बल्कि प्रेस क्लब के नियमों के खिलाफ है। नदीम ने बताया कि पुष्पेंद्र लगातार तीन बार जीतने से हिटलर के रास्ते पर चल पड़े हैं। हर बात पर वो केवल यही कहते हैं कि मुझे कोई नहीं हटा सकता। यह सत्ता का नशा है जो पुष्पेंद्र में प्रवेश कर चुका है। चुनी हुई कमेटी को बाइपास करना पूरी तरह गलत है। नदीम ने जानकारी दी कि जल्द ही ईजीएम (एक्स्ट्रा जनरलबाडी मीटिंग) बुलाकर पुष्पेंद्र के बारे में फैसला लिया जाएगा क्योंकि पारी सिर के उपर से निकलने लगा है।
पूरे प्रकरण और आरोपों के बारे में प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष ने बी4एम से विस्तार से बात की। उनका कहना था कि जो लोग पिछले तीन सालों से चुनाव हार रहे हैं और यूनियन के कुछ लोग जिनकी आस्था अजय भवन में है, वे मेरे खिलाफ लगातार अभियान चला रहे हैं। ये कोई ताजा अभियान नहीं है बल्कि तीन वर्षों से मेरे खिलाफ चलाया जा रहा है। हारे हुए लोगों की कोशिश रहती है कि कोई मुद्दा मिल जाए ताकि उसे भड़का कर अपनी राजनीति चमकाई जा सके। पुष्पेंद्र के मुताबिक सर्विस और क्वालिटी ठीक करने के लिए अगर हम लोग कुछ वर्कर डेली वेज पर बाहर से ले आते हैं तो इसमें क्या गलत है। वैसे भी प्रेस क्लब में कई डेली वेजेज कर्मचारियों से काम कराया जा रहा है ताकि सर्विस ठीक रहे और गुणवत्ता बनी रहे। मैं 10 घंटे प्रेस क्लब में बैठता हूं और क्लब के सदस्यों की निजी शिकायतों को भी सुनता हूं। शिकायतों को दूर कराने की कोशिश करता हूं। मैं मैनेजर नहीं हूं लेकिन यह सब करता हूं ताकि क्लब के सदस्यों को कोई दिक्कत न हो।
अपने उपर लगाए गए कई आरोपों के बारे में पुष्पेंद्र का कहना है कि जितने भी आरोप आपने गिनाए हैं, वे सब झूठे हैं और पूर्वाग्रह से प्रेरित हैं। पीसीआई की मीटिंग हर महीने होती है और उसमें जिसको जो कहना होता है, वो कहता है। पीसीआई की चाभी जनरल सेक्रेटरी के पास नहीं होती। किसी से पूछ लीजिए, कभी किसी को प्रेस क्लब में रोका नहीं गया है। किसी को कहीं जाने की मनाही नहीं है। रही बात आडिट होने की तो जो लोग विरोध कर रहे हैं उन्हीं लोगों के कार्यकाल के दौरान जो घपले हुए हैं, उसी की आडिट नहीं हुई है। मैं तो तीन साल से जनरल सेक्रेट्री पद पर हूं लेकिन आडिट का काम सात साल से बंद है। शुरू के चार साल के आडिट को मैंने कराया है और अब केवल तीन साल का बचा है। कह सकते हैं कि 80 फीसदी आडिट हो गया है। मैंने यहां काम करने वालों को पीएफ दिलवाया। सर्विस क्वालिटी ठीक कराई और किसी सदस्य को कोई तकलीफ न हो, इस बात पर विशेष ध्यान रखा। मेरे कार्यकाल में प्रेस क्लब के लिए जितना काम हो रहा है, उतना कभी नहीं हुआ। मैं अगर गिनाना शुरू करूं तो पचास काम गिना सकता हूं लेकिन जिन लोगों को सिर्फ और सिर्फ विरोध करना है, वे अपनी ही बात कहेंगे और लोगों को बरगलायेंगे। यहां कर्मचारी यूनियन के जो लीडर हैं, वे नौकरी अजय भवन में करते हैं। लाल सलाम और जिंदाबाद-मुर्दाबाद करना इनका काम है। जिन लोगों का बयान मेरे खिलाफ छप रहा है, उन दो चार लोगों को छोड़कर कमेटी के और लोग क्यों नहीं बोल रहे हैं? इसलिए कि ये चार लोग हमेशा असंतुष्ट रहे थे और रहेंगे। अगर इन लोगों को लगता है कि प्रेस क्लब में ठीक से काम नहीं हो रहा है तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? ये लोग ऐसा नहीं करेंगे बल्कि यूनियनों और वर्करों के जरिए गंदी राजनीति करेंगे।