ऐसे अफसरों को कार्यमुक्त कर देना चाहिए : यशवंत जी, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि यूपी के अफसरों को क्या हो गया है. हमारी कमजोरी का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं या फिर उन्हें संविधान की समझ नहीं है. यदि कारण पहला है तो ये उनकी होशियारी है. अगर जनसेवा के लिए नियुक्त किए गए आईएएस / आईपीएस अधिकारियों ने कर्तव्य और जिम्मेदारियों को ताक पर रख दिया है तो दुर्भाग्यपूर्ण है. अगर उन्हें सविधान की ही समझ नहीं है तो उन्हें अखिल भारतीय सेवा से मुक्त कर दिया जाना चाहिए. ये लोग भारत में जनता के पैसों से अपना घर चला रहे हैं और संविधान की अनदेखी कर जनता को ही सताते हैं. एक दिन जिले के पुलिस कप्तान ने मुझसे खबर के बारे में वर्ज़न लेते समय पूछा कि मेरे पार अथॉरिटी क्या है?
उसके बाद मेरा जवाब सुनने से पहले ही फ़ोन भी काट दिया. हां, अंत समय में एक बात जरूर कह दी थी कि मुझसे आकर आफिस में मिल लो. खैर, अपने स्वभाव के मुताबिक़ मुझे कोई काम नहीं पड़ा और मैं मिलने नहीं गया, मगर मैंने अपने कई पत्रकार मित्रों से इस बात की चर्चा जरूर की. उनसे जानने का प्रयास किया कि उन्हें पत्रकारिता करने का अधिकार किसने दिया. मगर अफ़सोस, किसी ने भी उसका सही जबाब नहीं दिया. कोई बोला, मेरे पास फलां चैनल की आईडी है. कोई बोला, मेरे पास फलां अखबार का आई कार्ड है. कोई बोला मेरे पास फलां अखबार या टीवी चैनल का अथॉरिटी लेटर है.
मगर अफ़सोस, ये सही जबाब नहीं थे. उन सबके पास उन मीडिया कंपनी के प्रतिनिधि होने के तो सबूत थे मगर पत्रकारिता करने का कोई प्रमाण पत्र नहीं.
किसी अख़बार या चैनल की आईडी या आईकार्ड होने का ये मतलब नहीं कि आप पत्रकारिता करने का अधिकार पा गए. अरे, ये अख़बार या टीवी कंपनी वाले और सरकार कौन होते हैं पत्रकारिता करने का लाइसेंस देने वाले. मालूम हो कि ये अधिकार हमें या हर उस भारतीय को मिल जाता है, जब वो भारत में पैदा होता है. संविधान के अनुच्छेद 19 RIGHT TO FREDOM का (1) a Freedom of Speach and Expression हमें पत्रकारिता करने की आज़ादी देता है और सविधान के अनुच्छेद 56 (A to J) Fundamental Duties- It Shall be the duty of every citizen of India हमें अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए प्रेरित करता है कि हम पत्रकारिता करें.
मुझे हंसी आती है जब पुलिस वाले कहते हैं कि मीडिया हमारे बारे में कभी-कभी तालिबानी पुलिस संबोधित करती है, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए मगर वो भूल जाते हैं कि तालिबानी तो कम से कम खुलेआम ये काम करते हैं और स्वीकारते भी हैं मगर यूपी का प्रशासन और उनके अधिकारी संविधान कि अवहेलना कर अपना कानून चलाते हैं और जानकार जब उन्हें आईना दिखाते हैं तो वो आईने को ही झूठा बताने का प्रयास करते हैं. इसलिए मित्रों अगर कोई पत्रकार पहचान छुपा कर पत्रकारिता करता है तो वह ज्यादा जेनुइन है क्योंकि जो पहचान बता कर मिलता है वो दरअसल अपना इश्तिहार करता है और इस इश्तिहार का असर सामने वाले आदमी पर होता है. असर पड़ने से सामने वाला आदमी अपने सहज स्वभाव में नहीं रह जाता इसलिए वह सच-सच नहीं बताता.
-पंकज दीक्षित
संपादक
जेएनआई न्यूज
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